पादपश्चिमोत्तानासन
विधि: जमीन पर आसन बिछाकर दोनों पैर सीधे करके बैठ जाओ | फिर दोनों हाथों से पैरों के अगूँठे पकड़कर झुकते हुए सिर को दोनों घुटनों से मिलाने का प्रयास करो | घुटने जमीन पर सीधे रहें | प्रारंभ में घुटने जमीन पर न टिकें तो कोई हर्ज नहीं | सतत अभ्यास से यह आसन सिद्ध हो जायेगा | यह आसन करने के 15 मिनट बाद एक-दो कच्ची भिण्डी खानी चाहिए | सेवफल का सेवन भी फायदा करता है |
लाभ: इस आसन से नाड़ियों की विशेष शुद्धि होकर हमारी कार्यक्षमता बढ़ती है और शरीर की बीमारियाँ दूर होती हैं | बदहजमी, कब्ज जैसे पेट के सभी रोग, सर्दी-जुकाम, कफ गिरना, कमर का दर्द, हिचकी, सफेद कोढ़, पेशाब की बीमारियाँ, स्वप्नदोष, वीर्य-विकार, अपेन्डिक्स, साईटिका, नलों की सुजन, पाण्डुरोग (पीलिया), अनिद्रा, दमा, खट्टी ड्कारें, ज्ञानतंतुओं की कमजोरी, गर्भाशय के रोग, मासिकधर्म की अनियमितता व अन्य तकलीफें, नपुंसकता, रक्त-विकार, ठिंगनापन व अन्य कई प्रकार की बीमारियाँ यह आसन करने से दूर होती हैं |
प्रारंभ में यह आसन आधा मिनट से शुरु करके प्रतिदिन थोड़ा बढ़ाते हुए 15 मिनट तक कर सकते हैं | पहले 2-3 दिन तकलीफ होती है, फिर सरल हो जाता है |
इस आसन से शरीर का कद लम्बा होता है | यदि शरीर में मोटापन है तो वह दूर होता है और यदि दुबलापन है तो वह दूर होकर शरीर सुडौल, तन्दुरुस्त अवस्था में आ जाता है | ब्रह्मचर्य पालनेवालों के लिए यह आसन भगवान शिव का प्रसाद है | इसका प्रचार पहले शिवजी ने और बाद में जोगी गोरखनाथ ने किया था |
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