Thursday 27 August 2015

स्वस्थ जीवन के लिए व्यवस्थित दिनचर्या













स्वस्थ जीवन के लिए व्यवस्थित दिनचर्या

अच्छे स्वास्थ्य की पहली शर्त है व्यवस्थित दिनचर्या। यह बहुत जरूरी है, क्योंकि दिनचर्या अव्यवस्थित होने पर शरीर रोगग्रस्त होने लगता है। 
आयुर्वेद में स्वस्थ व्यक्ति की दिनचर्या का बड़े विधान से वर्णन किया गया है। इसी आधार पर यहां आज के परिप्रेक्ष्य में अपेक्षित दिनचर्या का वर्णन किया जा रहा हैः

भरपूर नींद लेने के बाद सुबह सोकर उठने से लेकर शाम तक एक स्वस्थ व्यक्ति अपना स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए जो कार्य करता है, उन्हीं के समुच्चय को दिनचर्या कहा जाता है। स्वस्थ व्यक्ति को सुबह ब्रह्मामुहूर्त में उठ जाना चाहिए और बीती रात को किए गए भोजन की पक्वापक्व स्थिति की ओर ध्यान देते हुए दिनचर्या आगे बढ़ानी चाहिए। 
अगर वेग उत्पन्न हो तो मल त्याग करें, अन्यथा रात को तांबे के लोटे में भर कर रखा गया पानी सुबह मुख शुद्धि कर पी लें। 
यदि मौसम ठंडा है, तो पानी को थोड़ा गर्म करके पीएं। इससे पूरी आहार नलिका, आमाशय व आंतें साफ हो जाती हैं और मल-मूत्र निष्कासन में सहायता मिलती है। 

शौच के लिए जोर नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा बवासीर रोग हो सकता है। मल त्याग के समय दांतों को जोर से परस्पर दबाकर रखें। ऐसा करने से दांत मजबूत बने रहते हैं। उसके पश्चात दातौन (दातून), दंतमंजन या किसी भी अच्छे टूथपेस्ट से दांत साफ करें। 

अंगुलियों से या जीभ साफ करने वाली जीभी से जिह्वा को साफ करें व दायें हाथ के अंगूठे से ऊपर के तालू को साफ कर मुंह में पानी भरकर गरारे कर लें और आंखों को पानी से साफ कर मुंह धो लें। इसके बाद व्यक्ति को व्यायाम करना चाहिए।

व्यायाम: 
शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए, दैनिक कार्यों को सुचारु रूप से चलाने और स्फूर्ति, उत्साह व तरोताजगी बनाए रखने के लिए व्यायाम जरूरी है। अगर दिनचर्या में व्यायाम न हो तो शरीर अस्वस्थ, बलहीन, थकान व आलस्य से ग्रसित हो जाता है। इसके विपरीत नियमित व्यायाम करने से बल की वृद्धि होती है, मांसपेशियां और हड्डियां दृढ़ बनती हैं, भूख बढ़ती है, विजातीय द्रव्य शरीर से बाहर निकल जाते हैं। शरीर में रक्त संचार व ऑक्सीजन ग्रहण करने की प्रक्रिया बढ़ जाती है, जिससे तेज, बल, ओज व सुन्दरता में वृद्धि होती है। शरीर चुस्ती-फुर्ती से भर जाता है, सारे अंग-प्रत्यंग, समस्त संस्थान, समस्त अन्त:स्त्रावी ग्रंथियां स्वस्थ रहती हैं और शरीर निरोगी बना रहता है।

व्यायाम के कई भेद हैं, लेकिन इन सभी में योग साधना प्रमुख है जो शरीर ही नहीं, बल्कि मन को भी स्वस्थ बनाए रखती है। अगर किसी को कोई रोग है, तो योगाभ्यास से उसका भी निवारण हो जाता है। व्यायाम तो निश्चित अंगों के लिए होते हैं, लेकिन योग साधना मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है। अतः प्रातः काल आधे से एक घंटे तक का समय योगाभ्यास के लिए अवश्य निकालना चाहिए। उसके बाद शरीर की मालिश करनी चाहिए।

मालिश: 
शरीर पर तेल मलने की क्रिया को मालिश या अभ्यंग कहा जाता है। नियमित मालिश करने से बुढ़ापा, वायु विकार एवं थकान दूर होती है, नींद अच्छी आती है, त्वचा सुन्दर व दृढ़ हो जाती है। शरीर में बल की वृद्धि होती है तथा शरीर निरोगी बना रहता है। मौसम के अनुसार गर्मी के दिनों में शीतवीर्य और सर्दी के दिनों में ऊष्णवीर्य तेल लें और नीचे से ऊपर के अंगों की ओर इस प्रकार मालिश करें, ताकि रक्त हृदय तक आसानी से पहुंच जाए। इस प्रकार स्वयं 5-10 मिनट मालिश कर लेनी चाहिए। पैर, सिर व कानों की मालिश अवश्य करें। मालिश करते हुए एक्यूप्रेशर के समस्त बिंदू दबने लगते हैं, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहता है। मालिश के पश्चात शरीर का तापमान सामान्य होने पर स्नान करना चाहिए।

स्नान: 
ऋतु के अनुसार उचित तापमान वाले स्वच्छ जल से प्रतिदिन स्नान करना स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम होता है। स्नान से शरीर की जलन, थकावट, पसीना, खुजली तथा शुष्कता दूर होती है। हृदय प्रसन्न होता है, शरीर पर चढ़े मैल का नाश होता है, समस्त इंद्रियां शुद्ध हो जाती हैं, आलस्य व थकान दूर होती हैं, शरीर में रक्त का संचार सुचारु रूप से होने लगता है, खून साफ होता है और भूख बढ़ती है।

बीमार व्यक्तियों के अलावा बाकी सभी को ताजे पानी से स्नान करना चाहिए। ठंड ज्यादा हो, तो थोड़ा गर्म पानी प्रयोग में लाएं। स्नान करते समय हाथों से शरीर को रगड़-रगड़ कर मलें, अधिक पानी से स्नान करें, जिससे शरीर की दूषित गर्मी बाहर निकल जाए। फिर तौलिए से शरीर को अच्छी तरह से रगड़ें। ऐसा करने से शरीर पर चढ़ी अनावश्यक चर्बी कम होती है, शरीर के समस्त अंगों को बल मिलता है। स्वच्छ नदी या तालाब में तैर कर स्नान करना बहुत अच्छा होता है। नहाते हुए ऐसा विचार करना चाहिए कि मेरे तन के मैल के साथ-साथ मेरे मन का मैल भी धुल रहा है। नहाते समय भगवान के नाम का उच्चारण करते रहना मन के लिए अच्छा रहता है। इसके बाद घर में सभी बड़ों को नित्य प्रणाम व चरण स्पर्श करें।

प्रातः उपासना: 
स्नान के पश्चात मन को स्वस्थ, प्रसन्न, सुखी व शांत रखने के लिए कुछ देर एकाग्रचित होकर ध्यान में बैठ जाएं। मंत्र जप, भजन, सत्संग, पूजा-पाठ, मंदिर जाना- ये सभी इसी के अंतर्गत आते हैं।

अल्पाहार: 
प्रातः उपासना के पश्चात भगवान को अर्पण करते हुए दूध, दलिया, फल, अंकुरित अनाज या अन्य कोई भी स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता लें। नाश्ते में परांठे, पकौड़े, ब्रेड या मैदा से बने खाद्य पदार्थ व गरिष्ठ भोजन नहीं लें, क्योंकि इनसे पाचनतंत्र विकृत होने लगता है।

व्यवसाय: नाश्ते के बाद प्रभु कृपा से जो भी कार्य मिला है, उसे सेवा मानें और उत्साह के साथ दिन भर कार्य करें।

आहार: 
दोपहर में एक बजे के आसपास स्वास्थ्यवर्धक भोजन कर पुनः दिनचर्या को आगे बढ़ाना चाहिए। स्वस्थ व्यक्ति के लिए दिन में सोना लाभप्रद नहीं होता। यदि आवश्यक हो, तो दिन में थोड़ी देर आराम किया जा सकता है। रात में 8 बजे तक भोजन करके 10-15 मिनट के लिए वज्रासन में बैठें। भोजन के दो घंटे पश्चात रात 10 बजे तक सो जाना चाहिए।

दिन में हमेशा प्रसन्न रहें। कोशिश करें कि जब भी कहीं बैठें, कमर व गर्दन हमेशा सीधी रखें। सायंकाल या प्रातः काल कुछ समय के लिए अधिक से अधिक सांस भरते व निकालते हुए टहलें। उस समय मन को विचारों से खाली रखें। टहलते समय किसी दूसरे व्यक्ति के साथ बातें न करें, अपना ध्यान सांसों पर रखें और यह महसूस करें कि मेरा शरीर स्वस्थ हो रहा है। पेड़, पौधे, फूल अर्थात् प्रकृति से एकाकार होकर उनसे ऊर्जा लेते हुए टहलें।

निद्राः 
मन और शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए नींद बहुत जरूरी है। भरपूर नींद नहीं लेने से शरीर अस्वस्थ हो जाता है। दिन में काम करना व रात में सोना प्रकृति का नियम है। इसके विरुद्ध जाने पर शरीर व मन अस्वस्थ हो जाता है।

जब इंद्रियां व मन काम करते-करते थक कर बाहरी विषयों से हट जाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से नींद आ जाती है। लेकिन जब तक मन बाहरी विषयों से नहीं हट पाता और केवल इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं, तो व्यक्ति नींद में तरह-तरह के सपने देखता है। यही कारण है कि गहरी नींद में सपने नहीं आते।

जब शरीर में तमोगुण प्रधान हो जाएं, तब नींद आती है और जब सत्व गुण प्रधान होने लगें, तब जागना होता है। स्वभाव से ही नींद आती है और स्वभाव से ही जागना होता है। अधिक निद्रा या कम निद्रा से शरीर में रोग होते हैं। समुचित नींद से शारीरिक एवं मानसिक सुख, शरीर का पोषण, बल, बुद्धि, पौरुष वृद्धि होती है और ज्ञानेंद्रियों की क्षमता बढ़ती है, दीर्घायु व स्वस्थ जीवन प्राप्त होता है।

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