गण्डमाला की गाँठें (Goitre) :-
गले में दूषित हुआ वात, कफ और मेद गले के पीछे की नसों में रहकर क्रम से धीरे-धीरे अपने-अपने लक्षणों से युक्त ऐसी गाँठें उत्पन्न करते हैं जिन्हें गण्डमाला कहा जाता है।
मेद और कफ से बगल, कन्धे, गर्दन, गले एवं जाँघों के मूल में छोटे-छोटे बेर जैसी अथवा बड़े बेर जैसी बहुत-सी गाँठें जो बहुत दिनों में धीरे-धीरे पकती हैं उन गाँठों की हारमाला को गंडमाला कहते हैं और ऐसी गाँठें कंठ पर होने से कंठमाला कही जाती है।
* क्रौंच के बीज को घिस कर दो तीन बार लेप करने तथा गोरखमुण्डी के पत्तों का आठ-आठ तोला रस रोज पीने से गण्डमाला (कंठमाला) में लाभ होता है।
* बसंत मालती रस 120 मिग्रा, मृग श्रृंग भस्म 240 मिग्रा एवं कचनार गुग्गल आधा ग्राम दिन में तीन बार कंचनार की छाल के क्वाथ से लें ।
* प्रवालपिष्टी 120 मिग्रा, राज़ माणिक्य 30 मिग्रा एवं शुद्ध गन्धक 120 मिग्रा प्रतिदिन रात में शहद के सेवन करें
कफवर्धक पदार्थ न खायें।
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