पीलिया Jaundice
पाण्डु (पीलिया) रोग पांच प्रकार का होता है।
1. वात का 2. पित्त का 3. कफ का 4. सन्निपात 5. मिट्टी का - इस प्रकार
(1) वातज पीलिया के लक्षण :-
बादी करने वाले अन्नपानादि सेवन करने और उपवास आदि करने से वायु कुपित होकर कष्टसाध्य पीलिया रोग पैदा करती है। इसमें शरीर का रंग रूखा और काला रंग मिला सा हो जाता है। शरीर में दर्द होता है, सुई चुभने की सी पीड़ा होती है, कंपकंपी आती है, पसलियों और सिर में दर्द होता है, मल सूख जाता है और मुख में विरसता होती है। सूजन, कमजोरी और अफारा होता है। सुश्रुत ऋषि कहते हैं कि वायु के पाण्डु रोग में नेत्रों में पीलापन लिये ललाई होती है।
(2) पित्त पीलिया के लक्षण :-
पित्तकारक आहार-विहार से पित्त कुपित होकर रक्तादि धातुओं को दूषित करके पाण्डु रोग पैदा होता है। पित्त प्रधान पाण्डु रोग में रोगी का रंग हरा या पीला होता है, ज्वर ,दाह, वमन, मूर्छा और प्यास होती है तथा मल-मूत्र पीले होते हैं। रोगी का मुंह कड़वा रहता है, वह कुछ भी खाना नहीं चाहता तथा गर्म और खट्टे पदार्थ सहन नहीं कर सकता। उसे खट्टी डकारें आती है। अन्न विदग्ध होने से शरीर में विद्रोह होता है। बदन से बदबू निकलती है, मल पतला उतरता है, शरीर कमजोर हो जाता है और सामने अंधेरा मालूम होता है। रोगी शीतल पदार्थों या ठण्ड को पसन्द करता है।
(3) कफज पीलिया के लक्षण :-
कफकारी पदार्थों से कफ कुपित होकर रक्तादि धातुओं को बिगाड़ देता है। इसमें भारीपन, तन्द्रा, वमन, सफेद रंग होना, लार गिरना, रोंए खड़े होना, थकान मालूम होना, बेहोशी, भ्रम, श्वास, आलस्य, अरुचि, आवाज रुकना, गला बैठना, मूत्र, नेत्र और विष्ठा का सफेद होना, रूखे, कड़वे और खट्टे पदार्थों का अच्छा लगना, सूजन और मुँह का जायका नमकीन सा रहना-ये लक्षण होते हैं।
(4) सन्निपातज पीलिया के लक्षण :-
यह सब तरह के अन्नों के सेवन करने वाले मनुष्य के दूषित हुये तीनों दोषों से उपर्युक्त तीनों दोषों के लक्षणों वाला, अत्यन्त असह्य घोर पीलिया रोग होता है। सन्निपात के पाण्डु रोग वाले को तन्द्रा, आलस्य, सूजन, वमन, खांसी, पतले दस्त, ज्वर, मोह, प्यास, ग्लानि और इन्द्रियों की शक्ति का नाश, जैसे लक्षण होते है।
(5) मिट्टी खाने से हुये पीलिया के लक्षण :-
जिस मनुष्य का मिट्टी खाने का स्वभाव पड़ जाता है, उसके वात, पित्त और कफ कुपित हो जाते है। कसैली मिट्टी से वायु कुपित होती है, खारी मिट्टी से पित्त कुपित होता है और मीठी मिट्टी से कफ कुपित होता है। खारी मिट्टी पेट में जाकर रसादिक धातुओं को रूखा कर देती है। जब रूखापन पैदा हो जाता है, तब जो अन्न खाया जाता है, वह भी रूखा हो जाता है। फिर वही मिट्टी पेट में पहुँचकर बिना पके रस को रस बहाने वाली नसों में ले जाकर नसों की राह बन्द कर देती है। जब रक्त बहाने वाली नसों की राहें रुक जाती हैं, शरीर की कान्ति, तेज और ओज क्षीण हो जाते है, तब पीलिया रोग पैदा होता है। पीलिया रोग होने से बल, वर्ण और अग्नि का नाश होता है।
लक्षण :-
पहले आंखों का श्वेत होना फिर चेहरा, गर्दन, हाथ-पैर, और पूरे शरीर में पीलापन हो जाना, तालू भी पीला हो जाता है, लम्बी अवधि तक रहने वाले पीलिया में त्वचा का रंग गहरे हरे रंग का हो जाता है। मल अधिक मात्रा में होता है। पसीना भी पीला रंग का होता है। नाड़ी धीमी चलती है तथा आसपास की सभी चीजें पीली दिखाई देती हैं।
पीलिया रोग के शुरुआती लक्षण :-
जब पीलिया होने वाला होता है, तब चमड़ी का फटना, बारम्बार थूकना, अंगों का जकड़ना, मिट्टी खाने पर मन चलना, आंखों पर सूजन आना, मल और मूत्र का पीला होना तथा अन्न का न पचना-ये लक्षण पहले ही नजर आते हैं।
पीलिया रोग निवारण अनुभूत नुस्खे :-
(1) फूल फिटकरी का चूर्ण 20 ग्राम लेकर उसकी 21 पुड़िया बना लें। एक पुड़िया की आधी दवा को सुबह मलाई निकले 100 ग्राम दही में चीनी मिलाकर खाली पेट सुबह खा लें। इसी प्रकार रात्रि में सोते समय बकाया आधी पुड़िया खा लें। इस प्रकार 21 दिन लगातार दवा खाने से पीलिया रोग सही हो जाता हैं।
नोट - 50 ग्राम सफेद फिटकरी गर्म तवे पर डालकर भून लें। जब उसके अन्दर का पानी सूख जाये, तो उसे पीसकर रख लें, वह ही फूल फिटकरी है। जब तक मरीज यह दवा खाता है, तब तक अगर गन्ने का रस मिल सके, तो जरूर पियें। यह योग पूर्णतः परीक्षित है।
(2) कुटक एक तोला, मुनक्का एक तोला, त्रिफला आधा तोला को रात को पानी में भिगोएं। सुबह पीसकर दिन में दो बार चीनी मिलाकर 21 दिन लगातार लेते रहने से पीलिया में आराम मिलता है।
(3) मूली के पत्तों के 100 ग्राम रस में 20 ग्राम चीनी मिलाकर पिलायें। साथ ही मूली, सन्तरा, पपीता, तरबूज, अंगूर, टमाटर खाने को दें। साथ ही गन्ने का रस पिलायेें और पेट साफ रखें। पीलिया में आराम जरूर मिलेगा।
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