कफ
यह शरीर आयुर्वेद के मतानुसार त्रिधातु में बंटा है जब तक शरीर में त्रिधातु (वात, पित्त, कफ) समानता की स्थिति में रहता है, वह स्वस्थ रहता है। किन्तु, उनकी असामानता की स्थिति में अनेकों रोगों का जन्म होता है, इस बार हम त्रिधातु के तीसरे अंग कफ के बारे में जानकारी दे रहें हैैं। कफ चिकना, भारी, सफेद, पिच्छिल (लेसदार) मीठा तथा शीतल (ठंडा) होता हैं। विदग्ध (दूषित) होने पर इसका स्वाद नमकीन हो जाता है। कफ से सम्बन्धित तकलीफ लगभग 31 प्रतिशत लोगों को रहती है।
कफ के स्थान, नाम और कर्म आमाशय में, सिर (मस्तिष्क) में, हृदय में और सन्धियों (जोड़ों) में रहकर शरीर की स्थिरता और पुष्टि को करता है।
1- जो कफ आमाशय में अन्न को पतला करता है, उसे क्लेदन कहते हैं।
2- जो कफ मूर्धि (मस्तिष्क) में रहता है, वह ज्ञानेन्द्रियों को तृप्त और स्निग्ध करता है। इसलिए उसको स्नेहन कफ कहते हैं।
3- जो कफ कण्ठ में रहकर कण्ठ मार्ग को कोमल और मुलायम रखता है तथा जिव्हा की रस ग्रन्थियों को क्रियाशील बनाता है और रस व ज्ञान की शक्ति उत्पन्न करता है, उसको रसन कफ कहते हैं।
4- हृदय में (समीपत्वेन उरःस्थित) रहने वाला कफ अपनी स्निग्धता और शीतलता से सर्वदा हृदय की रक्षा करता है। अतः उसको अवलम्बन कफ कहते हैं।
5- सन्धियों (जोड़ों) में जो कफ रहता है, वह उन्हें सदा चिकना रखकर कार्यक्षम बनाता है। उसको संश्लेष्मक कफ कहते है।
1- काली मिर्च का चूर्ण एक ग्राम सुबह खाली पेट पानी के साथ प्रतिदिन लेते रहने से सर्दी जुकाम की शिकायत दूर होती है।
2- दो लौंग कच्ची, दो लौंग भुनी हुई को पीसकर शहद में मिलाकर सुबह खाली पेट एवं रात्रि में खाने के आधा घंटे के बाद लें, कफ वाली खांसी में आराम आ जायेगा।
3 - काली हल्दी को पानी में घिसकर एक चम्मच लेप बनायेँ। साथ ही एक चम्मच शहद के साथ सुबह खाली पेट दवा नित्य 60 दिन खाने से दमा रोग में आराम हो जाता है।
4- कफ पतला हो तथा सूखी खांसी सही हो शिवलिंगी, पित्त पापड़ा, जवाखार, पुराना गुड़, यह सभी बराबर भाग लेकर पीसें और जंगली बेर के बराबर गोली बनायें। एक गोली मुख में रखकर उसका दिन में दो तीन बार रस चूसें। यह कफ को पतला करती है, जिससे कफ बाहर निकल जाता है तथा सूखी खांसी भी सही होती है।
5- दमा रोग में 20 ग्राम गौमूत्र अर्क में 20 ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट 90 दिन तक पीने से दमा रोग में आराम हो जाता है। इसे लगातार भी लिया जा सकता है, दमा, टी.वी. हृदय रोग एवं समस्त उदर रोगों में भी लाभकारी है।
6- कुकुर खांसी मे धीमी आंच में लोहे के तवे पर बेल की पत्तियों को डालकर भूनते-भूनते जला डालें। फिर उन्हें पीसकर ढक्कन बन्द डिब्बे में रख लें और दिन में तीन या चार बार सुबह, दोपहर, शाम और रात सोते समय एक माशा मात्रा में 10 ग्राम शहद के साथ चटायें, कुछ ही दिनों के सेवन से कुकुर खांसी ठीक हो जाती हैै। यह दवा हर प्रकार की खांसी में लाभ करती है।
7- गले के कफ में पान का पत्ता 1 नग, हरड़ छोटी 1 नग, हल्दी आधा ग्राम, अजवायन 1 ग्राम, काला नमक आवश्यकतानुसार, एक गिलास पानी में डालकर पकायें आधा गिलास रहने पर गरम-गरम दिन में दो बार पियें । इससे कफ पतला होकर निकल जायेगा। रात्रि में सरसों के तेल की मालिश गले तथा छाती व पसलियों में करें।
8- खांसी की दवा :- भूरी मिर्च 5 ग्राम, मुनक्का बीज निकला 20 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम, छोटी पीपर 5 ग्राम तथा छोटी इलायची 5 ग्राम, इन सभी को पीसकर चने के बराबर गोली बना लें। सुबह एक गोली मुँह में डाल कर चूसें। इसी तरह दोपहर और शाम को भी चूसें। कफ ढ़ीला होकर निकल जाता है और खांसी सही हो जाती है।
9- अगर गला बैठ गया है तो दिन में तीन या चार बार कच्चे सुहागे की चने बराबर मात्रा मुंह में डालकर चूसें। गला निश्चित ही खुल जाता है और मधुर आवाज आने लगती है। गायकों के लिए यह औषधि अति उत्तम है।
10- श्वास पीड़ित व्यक्ति पीपल की छाल को रविपुष्य या गुरुपुष्य के दिन सुबह न्यौता देकर तोड़ लाएं और सुखाकर रख लें। माघ पूर्णिमा को बारह बजे रात में कपिला गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर उसमें एक चुटकी दवा डाल लें और चांदनी रात में तीन घंटे रखकर मरीज को खिलाएं श्वास रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है।
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