Sunday, 21 February 2016

गन्ने से विभिन्न रोगों में उपचार














गन्ने से विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

गलगण्ड:
2 से 4 ग्राम हरड़ का चूर्ण खाकर ऊपर से गन्ने का रस पीने से गलगण्ड के रोग में लाभ प्राप्त होता है।

स्वरभंग (आवाज का बैठ जाना):
गन्ने को गर्म राख में सेंककर चूसने से स्वरभंग (गला बैठने) के रोग में लाभ होता है।

श्वास:
3 से 6 ग्राम गुड़ को बराबर मात्रा में सरसों के तेल के साथ मिलाकर सेवन करने से श्वास में लाभ प्राप्त होता है।

स्तनों में दूध की वृद्धि:
ईख की 5-10 ग्राम जड़ को पीसकर कांजी के साथ सेवन करने से स्त्री का दूध बढ़ता है।

रक्तातिसार (खूनी दस्त):
गन्ने का रस और अनार का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) में लाभ होता है।

अग्निमान्द्य (अपच):
गुड़ के साथ थोड़ा सा जीरा मिलाकर सेवन करने से अग्निमान्द्य, शीत और वात रोगों में लाभ मिलता है।

अश्मरी (पथरी):
अश्मरी (पथरी) को निकलने के बाद रोगी को गर्म पानी में बैठा दें और मूत्रवृद्धि के लिए गुड़ को दूध में मिलाकर कुछ गर्म पिला दें।गन्ने को चूसते रहने से पथरी चूर-चूर होकर निकल जाती है। गन्ने का रस भी लाभदायक है।

वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द):
11 ग्राम गुड़ और बुझा हुआ चूना 500 मिलीग्राम दोनों को एकसाथ पीसकर 2 गोलियां बना लें, पहले एक गोली गर्म पानी से दें। अगर गुर्दे का दर्द शांत न हो तो दूसरी गोली दें।

प्रदर रोग:
गुड़ की खाली बोरी जिसमें 2-3 साल तक गुड़ भरा रहा हो, उसे लेकर जला डाले और उसकी राख को छानकर रख लें। इस राख को रोजाना 3 ग्राम सेवन करने से श्वेत प्रदर और रक्तप्रदर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।गन्ने का रस पीने से पित्तज प्रदर मिट जाता है।

वीर्यवृद्धि (धातु को बढ़ाने वाला):
गुड़ को आंवलों के 2-4 ग्राम चूर्ण के साथ सेवन करने से वीर्यवृद्धि होती है तथा थकान, रक्तपित्त (खूनी पित्त), जलन, दर्द और मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना) आदि रोग नष्ट होते हैं।

कनखजूरा के काटने पर:
कनखजूरा आदि जन्तुओं के काटने या चिपक जाने पर गुड़ को जलाकर लगाने से लाभ होता है।

विभिन्न रोगों में:
5 ग्राम गुड़ के साथ, 5 ग्राम अदरक या सोंठ या पीपल अथवा हरड़ इनमें से किसी भी एक चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से सूजन, प्रतिश्याय (जुकाम), गले के रोग, मुंह के रोग, खांसी, श्वास, अरुचि, पीनस (नजला), जीर्ण ज्वर (पुराने बुखार में), बवासीर, संग्रहणी आदि रोग तथा कफवात जैसे दूसरे रोग भी दूर हो जाते हैं।

दाह (जलन):
गुड़ को पानी में मिलाकर 25 बार कपड़े में छानकर पीने से दाह (जलन) शांत होती है। बुखार की गर्मी की शान्ति के लिए इसे पिलाया जाता है।
कंटक शूल (नुकीली चीजों के पैरों में गड़ जाने का दर्द):
कांटा, पत्थर कांच आदि के पैरों में गड़ जाने पर गुड़ को आग पर रखकर गर्म-गर्म चिपका देने पर लाभ प्राप्त होता है।

नलवात पर:
गुड़ को ताजे गाय के दूध में इतना मिलायें कि वह मीठा हो जाए और फिर खडे़-खड़े ही इसको पी लें। इसके बाद 3 घंटे बाद तक बैठना नहीं चाहिए। उसी समय लाभ मिलता है।

मुंह के छाले, आंखों की दृष्टि और बुखार में:
मिश्री के टुकड़े के साथ एक छोटा सा कत्थे का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह के छाले आदि में लाभ प्राप्त होता है।मिश्री को पानी में घिसकर आंखों में लगाने से आंखों की सफाई होती है तथा दृष्टिमान्द्य (आंखों की रोशनी कम होने का रोग) दूर होता है।मिश्री और घी मिले हुए दूध को पीने से ज्वर का वेग (बुखार) कम हो जाता है।

नकसीर (नाक से खून आना):
गन्ने के रस की नस्य (नाक में डालने) देने से नकसीर में लाभ होता है।

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