Saturday, 20 February 2016

बच्चों का सही पालन-पोषण











बच्चों का सही पालन-पोषण

बच्चे के जन्म लेने से बच्चे के तीन महीने तक होने तक- बच्चे के जन्म लेने के बाद जितनी जल्दी हो सके बच्चे को मां का दूध पिलाना चाहिए। बच्चे को मां का पहला दूध (कोलोस्ट्रम) पीने से जीवन जीने की शक्ति मिलती है और मां के दूध में पाये जाने वाले तत्त्व पौष्टिकता देने के साथ-साथ बच्चे को कई रोगों और रोग को फैलने से बचाते हैं। बच्चे को पहले दिन से ही दो-तीन घंटे के बाद ही दूध पिला देना चाहिए। जब बच्चा रोने लगे तब उसको मां का दूध पिलाना सबसे अच्छा आहार है। तीन महीने तक के बच्चे को जब तक वह मां का दूध पीता है, उस समय बच्चे को पानी पीने की जरूरत नहीं पड़ती है। मां का दूध ही बच्चे के पूरे भोजन का काम करता है। फिर भी उस समय पानी पिलाने में कोई नुकसान नहीं है। शुरुआत में दो-तीन महीने बच्चा दूध पीकर अगर उल्टी कर देता है तो इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। जब तक बच्चा मां का दूध पीता है तब तक दूध को हजम करने के लिए बच्चे को किसी घुट्टी या प्राइपवाटर की जरूरत नहीं है। जब तक बच्चा मां का दूध पीए, तब तक मां को चाहिए कि वह खाना खाने के बाद पानी न पीए, बल्कि बच्चे को दूध पिलाने से 15 मिनट पहले थोड़ा सा पानी पी लें, इसके बाद ही बच्चे को स्तनपान (अपना दूध पिलायें) करायें। ऐसा करने से बच्चे को उल्टी-दस्त नहीं होते हैं। मां को सदा खुश होकर और हर दो से तीन घंटे के अंतर पर बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। गुस्से या दिमागी परेशानी में बच्चे को स्तनपान नहीं कराना चाहिए। नहाने के बाद या सिर धोने के तुरंत बाद भी दूध नहीं पिलाना चाहिए। दूध पिलाने के बाद बच्चे को अपने कंधे से लगाकर गोद में लें और धीरे-धीरे उसकी पीठ पर थपकी दें। इससे बच्चे के पेट की हवा डकार के रूप में बाहर निकल जायेगी और बच्चा अपने आपको हल्का महसूस करेगा और अपच (भोजन न पचना) से भी बचा रहेगा। बच्चे को नौवें महीने तक मां अपना दूध पिला सकती है। कमजोर बच्चों को मां का दूध एक साल तक पिलाया जा सकता है।

चौथे महीने से छठे महीने तक-

1. दूध : मां को अपने बच्चे को अपना दूध पिलाते रहना चाहिए।

2. शहद : 4 बूंदे शहद की रोजाना सुबह उठते ही बच्चे को चटाने से बच्चों को सभी रोगों से सुरक्षा हो जाती है। बच्चों का वजन भी बढ़ जाता है। शहद को चटाने से बच्चों के दांत निकलते समय कोई परेशानी नहीं होती है।

3. बादाम : बादाम की एक गिरी को रात में पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उठने पर बादाम को किसी साफ पत्थर पर चंदन की तरह बिल्कुल बारीक पीसकर अपनी अंगुली से धीरे-धीरे बच्चे को चटा दें। इससे बच्चे का दिल-दिमाग अच्छा बना रहता है और बच्चा खुशमिजाज रहता है। (नोट : बादाम कड़वा नहीं होना चाहिए)

4. संतरा : 4 महीने के उम्र के बच्चे को रोजाना दोपहर में एक पूरे संतरे का रस निकालकर और छानकर पिलाना चाहिए। अगर जरूरत पडे़ तो 4 सप्ताह के बच्चे को संतरे का रस और पानी बराबर मात्रा में मिलाकर दो चम्मच दिया जा सकता है। धीरे-धीरे पानी की मात्रा कम कर दी जाये और रस की मात्रा बढ़ा दी जाये। यह रस पिलाने से बच्चा सेहतमंद होता है और उसका रंग भी साफ हो जाता है।

5. सूप : धीरे-धीरे बच्चे को फलों के रस के अलावा हरी-सब्जियों का सूप (टमाटर, गाजर, पालक, धनिया, हरी पत्तियां) या मूंग की दाल का पानी आदि पीने वाले पदार्थ थोड़ी थोड़ी मात्रा में पिला सकते हैं।

6. बच्चों के सीने को चौड़ा करना : तीन महीने तक की उम्र के बच्चे को शुरू में दिन में तीन मिनट उल्टा जरूर लिटायें। उसके बाद जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता चला जाता है उसको उल्टा लिटाने का समय बढ़ाते जायें। इससे बच्चे की छाती चौड़ी होगी और उसकी पाचनशक्ति भी बढ़ेगी। इसके साथ ही बच्चे के पेट में कोई तकलीफ नहीं होगी।

7. सरसों का तेल: हफ्ते में कम से कम 2 से 3 बार सरसों या जैतून के तेल की मालिश करके बच्चे को नहलाना चाहिए। इससे बच्चे मोटे और सेहतमंद बन जाते हैं। बच्चे का वजन जन्म होने पर लगभग ढाई किलो होता है, चार महीने के बाद उस बच्चे का वजन जन्म से दो गुना अर्थात लगभग 5 किलो होना चाहिए और साल भर के बच्चे का वजन कम से कम जन्म से तिगुना या साढ़े सात किलो के आसपास होना चाहिए।

सातवें महीने से एक साल तक- जन्म के छह महीने के बाद बच्चे को मां के दूध के अलावा दूसरे भोजन की जरूरत भी होती है क्योंकि तब केवल मां का दूध ही बढ़ रहे बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं होता है। अत: मां का दूध जारी रखते हुए 6 महीने के बच्चे को जब खाने को दें तो पका केला मसलकर देना सबसे अच्छा है। उसके अंदर आधी इलायची का चूर्ण मिलाकर दें तो बच्चे को केला आसानी से हजम होता है। इससे बच्चे को कब्ज भी नहीं होगी। इस उम्र के बच्चे को मां के दूध के साथ-साथ स्वस्थ गाय का ताजा दूध (डिब्बे का दूध नहीं) शुरू किया जा सकता है। बच्चे को पीने के लिए जो भी दूध दें यदि उसको पिलाने से बच्चे को कोई नुकसान हो तो इसमें दूध के बराबर मात्रा में पानी मिलाकर बच्चे को पिलायें और धीरे-धीरे पानी की मात्रा कम करते जायें। इससे दूध हल्का और पचने लायक हो जाता है। दूध के अंदर कुछ सौंफ के दाने अथवा एक छोटी पीपर डालकर उबालने से भी दूध हल्का होकर बच्चे को हजम होने लगता है। बच्चे को दूध बोतल से नहीं पिलाना चाहिए बल्कि कटोरी या चम्मच की मदद से पिलाना चाहिए। अगर किसी मजबूरी के कारण बोतल से दूध देना जरूरी है तो बोतल को किसी पाउडर से साफ न करें बल्कि दूध पिलाकर बोतल को गर्म पानी में डालकर उबाल लें। दूध पिलाने से पहले शीशी का साफ होना जरूरी है जरूरत हो तो ऊपर का दूध 6 महीने से पहले भी दिया जा सकता है। बच्चे के दूध में बराबर या कुछ कम जौ का पानी मिलाकर पिलाना चाहिए।

जौ का पानी बनाने की विधि- 500 मिलीलीटर पानी में दस ग्राम जौ के दाने डालकर उबाल लें। दो-तीन बार उबाल आने पर बर्तन को आग से उतारकर पानी को छानकर रख लें। इस जौ के पानी को छानकर दूध में मिलाने से दूध अधिक पौष्टिक बन जाता है, आसानी से पच भी जाता है और पेट दर्द से भी बचाता है। दूध से आधा उबला पानी और उससे आधा जौ का पानी मिलाकर चार महीने तक के बच्चे को भी दिया जा सकता है। मां के दूध के साथ-साथ गाय-भैंस का दूध, फलों का रस, हरी सब्जियों के सूप आदि दें। अर्द्ध-ठोस आहार जैसे चावल, पतली खीर, आलू और सब्जियां, पतली खिचड़ी आदि देना शुरू करें। गाजर, आलू को उबालकर खूब मसलकर दें। केला दूध में फेंटकर, चावल के मुरमुरे, पटोलिया आदि भी दे सकते हैं। इस बीच नौवें महीने में धीरे-धीरे थोड़ा सा ठोस आहार दें जैसे खिचड़ी, दलिया, बिना मसाले की दाल और सब्जियां, दाल, भात, छाछ, दही, सूजी, इडली, साबूदाना, बिना मसाले की दाल में रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े करके खिलाना चाहिए। शुरू में कम मात्रा में और धीरे-धीरे उम्र और बच्चे की भूख के अनुसार खाने की चीजों की मात्रा बढ़ाते जायें तथा दिन में 2 से 3 बार खाने को दें। अब धीरे-धीरे फल (जैसे केला, चीकू, पपीता, आदि) छोटे टुकड़ों में काटकर दें ताकि बच्चा कुछ चबाकर भी खा सके। धीरे-धीरे बड़े बिस्कुट, गाजर आदि पकड़कर खाने को दें पर ध्यान रहे कि बच्चे का भोजन ऐसा न हो कि गले में अटक जाये।

1 वर्ष से 3 वर्ष तक- एक वर्ष से तीन वर्ष तक की उम्र के बच्चे को संतुलित आहार देना बहुत ही जरूरी है। शुरू के दो वर्ष में बच्चा जितनी तेजी से बढ़ता है बाद के वर्षों में उसकी बढ़त उतनी नहीं होती। स्वभावत: उसकी भूख भी अपेक्षाकृत कम हो जाती है। इससे परेशान नहीं होना चाहिए। चार महीने के बच्चे को शुरुआत में 24 घंटों में 200 मिलीलीटर दूध देते हैं तो अब एक साल के बच्चे को वजन के अनुसार धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाकर 750 मिलीलीटर से एक लीटर तक दी जा सकती है। 15 महीने की उम्र हो जाने पर बच्चे को परिवार के बाकी सदस्यों की तरह दाल, चावल चपातियां, दूध और दूध से बने पदार्थ, सब्जियां फल आदि दिये जा सकते हैं। बच्चे को चाकलेट, टॉफी या आइसक्रीम, तले हुए आलू के चिप्स आदि न दें। इन बातों का पालन करने से आपका बच्चा स्वस्थ और निरोगी होगा।

शिशु के विकास के सूचक जानने योग्य सामान्य लक्षण : बच्चा छठे सप्ताह में थोड़ा-थोड़ा मुस्कराने लगता है। तीसरे से चौथे महीने में गर्दन सम्भालने लगता है। चौथे महीने में जिधर से आवाज आती है उस तरफ सिर घूमाकर देखने लगता है। चीजों को पकड़ने की कोशिश करता है। चौथे से पांचवे महीने में बिस्तर में लेटा-लेटा पलटने लगता है। पांचवे महीने में चीजों को देखकर उस तरफ पहुंचने की कोशिश करता है l

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.