Wednesday 30 September 2015

Get Rid Of Dark Circles Naturally


10 Signs Of Appendicitis
















10 Signs Of Appendicitis

Appendicitis is inflammation of the appendix. The appendix is a tube of tissue about 3.5 inches long. It is uncertain what the actual function of the appendix is though.
If Appendicitis is not treated, it lead's to the possibility of it busting. Which at that point spill's infectious material's into the abdominal cavity.
It is caused from when the Appendix becomes blocked, often it is by a foreign body,stool or cancer.

SIGNS

1.) Loss of appetite

2.) Nausea/Vomiting

3.) Dull or achy pain near the upper abdomen or navel often becomes a sharp pain when it radiates to the lower right of the abdomen.

4.) Abdominal Swelling

5.) Fever (99-103 degrees)

6.) Pressure of gas, but unable to pass it.

7.) Constipation or Diarrhea

8.) Severe Cramping

9.) Painful Urination

10.) Fatigue

If you have any of the sign's/symptoms from above, you should have someone take you to your DR right away. Dont try to wait it out.

Workouts


Monday 28 September 2015

एलोवेरा के आयुर्वेदिक फायदे














एलोवेरा को ग्वारपाठा भी कहा जाता है। साधारण सा दिखने वाला पौधा आपको कितना फायदा पहुंचा सकता है शायद आपने सोचा भी नहीं होगा। आयुर्वेद में एलोवेरा के एैसे गुणों का वर्णनन किया गया है जो अस्थमा, खांसी, गैस की समस्या, पथरी, सासों की समस्या जैसी कई बीमारीयों को ठीक कर सकता है। इसके लिए आपको यह पता होना चाहिए कि एलोवीरा का सेवन किस तरह से किया जाए और कितनी मात्रा में। वैदिकवाटिका आपके लिए लाया है प्राचीन आयुर्वेद में छिपे एलोवेरा के अनोखे प्रयोग जो आपको बनाएंगे कई बीमारियों से मुक्त और स्वस्थ। एलोवीरा का पौधा कांटेदार होता है। जिसके किनारे पतले होते हैं। एलोवेरा से निकलने वाला गूदा ही असल औषधि होती है।

एलोवेरा का प्रयोग बीमारियों से बचने के लिए कैसे किया जाता है। उसे भी आपको बताते हैं।

एलोवेरा के प्राकृतिक प्रयोग

1. पीलिया रोग से ग्रसित रोगी के लिए एलोवेरा एक रामबाण औषधि है। 15 ग्राम एलोवेरा का रस सुबह शाम पीयें। आपको इस रोग में फायदा मिलेगा। मूत्र संबंधी रोग हो या गुर्दों की समस्या हो तो एलोवेरा आपको फायदा पहुंचाता है। एलोवेरा का गूदा या रस का सेवन करें।

2. एलोवेरा का गूदा चेहरे पर लगाने से चेहरा सुंदर और चमकदार बन जाता है। पुरूष हो चाहे स्त्री दोनों को एलोवेरा का पेस्ट चेहरे पर लगाना चाहिए। यह पूर्णरूप से प्राकृतिक क्रिम है। यदि सिर में दर्द हो तो आप हल्दी में 10 ग्राम एलोवेरा मिलाकर सिर पर इसका लेप लगाएं एैसा करने से सिर दर्द में राहत मिलती है। और ताजगी का अहसास होता है।

3. एलोवेरा मोटापा कम करने में फायदा करता है। 10 ग्राम एलोवेरा के रस में मेथी के ताजे पत्तों को पीसकर उसे मिलाकर प्रतिदिन सेवन करें या 20 ग्राम एलोवेरा के रस में 4 ग्राम गिलोय का चूर्ण मिलाकर 1 महिने तक सेवन करने से मोटापे से राहत मिलती है।

4. यह एक तरह का प्राकृतिक कंडीशनर है। एलोवेरा को बालों पर 20 मिनट तक उंगलियों के जरिए बालों पर लगाते रहें। और थोड़ी देर में पानी से बालों को धों लें। यह बालों को सुदंर, घना और आकर्षक बनाता है। चेहरे की झुर्रियों को दूर करने में आप एलोवेरा का गूदा कच्चे दूध के साथ मिलाकर चेहरे पर मलें। यह झुर्रियों को खत्म करके चेहरे कांतिमान बनाता है।

5. डायबिटीज की समस्या से परेशान हैं तो 10 ग्राम एलोवेरा के रस में 10 ग्राम करेले का रस मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से डायबिटीज से मुक्ति मिलती है। 20 ग्राम आंवले के रस में 10 ग्राम एलोवेरा के गूदे को मिलाकर प्रतिदिन सुबह सेवन करें। यह शूगर की बीमारी को दूर करेगा।

6. आग से शरीर का कोई अंग जल या झुलस गया हो तो आप एलोवेरा का गूदा उस जगह पर लगाएं आपको जलन से राहत मिलेगी और घाव भी जल्दी ठीक होगा।

7. सर्दी, जुकाम या खांसी होने पर शहद में 5 ग्राम एलोवेरा के ताजे रस में मिलाकर सेवन करें आपको फायदा होगा। शरीर में कैल्शियम की कमी हो तो एलोवेरा के गूदे का सेवन जरूर करें ।

8. बवासीर में यदि खून ज्यादा बहता हो तो एलोवेरा के पत्तों का सेवन 25-25 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम करते रहें। बवासीर के मस्से खत्म करने के लिए एलोवेरा के गूदे में नीम की पत्तियों को जलाकर उसका राख मिला लें और इस पेस्ट को मलद्वार पर बांध लें।

9. खुजली, मुंहासों और फुंसी होने पर डेली 10 से 15 ग्राम एलोवेरा का रस पीना चाहिए यह खून को शु़द्ध करता है और चेहरे से मुंहासों को भी हटा देता है। दाद होने पर 10 ग्राम अनार के रस में 10 ग्राम एलोवेरा रस मिलाकर दाद वाली जगह पर लगाने से दाद ठीक हो जाते हैं।

10. पेट संबंधी कोई भी बीमारी हो तो आप 20 ग्राम एलोवेरा के रस में शहद और नींबू मिलाकर उसका सेवन करें। यह पेट की बीमारी को दूर तो करता ही है साथ ही साथ पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है।

 एलोवेरा कोई साधारण पौधा नहीं है। इसमें समाया हुआ है प्राकृतिक तत्वों का रहस्य जिससे आप अभी तक अनजान थे। एलोवेरा में ही छिपा हुआ है कई बीमारियों का  इलाज। आप भी एलोवेरा का पेड़ अपने घर आंगन में लगा सकते हो और इसके फायदे उठा सकते हो।

लीवर की देखभाल








लीवर की देखभाल

आज कल चंहु और लीवर के मरीज हैं, किसी को पीलिया हैं, किसी का लीवर सूजा हुआ हैं, किसी का फैटी हैं, और डॉक्टर बस नियमित दवाओ पर चला देते हैं मरीज को, मगर आराम किसी को मुश्किल से ही आते देखा हैं।

लीवर हमारे शरीर का सबसे मुख्‍य अंग है, यदि आपका लीवर ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पा रहा है तो समझिये कि खतरे की घंटी बज चुकी है। लीवर की खराबी के लक्षणों को अनदेखा करना बड़ा ही मुश्‍किल है और फिर भी हम उसे जाने अंजाने अनदेखा कर ही देते हैं।

* लीवर की खराबी होने का कारण ज्‍यादा तेल खाना, ज्‍यादा शराब पीना और कई अन्‍य कारणों के बारे में तो हम जानते ही हैं। हालाकि लीवर की खराबी का कारण कई लोग जानते हैं पर लीवर जब खराब होना शुरु होता है तब हमारे शरीर में क्‍या क्‍या बदलाव पैदा होते हैं यानी की लक्षण क्‍या हैं, इसके बारे में कोई नहीं जानता।

वे लोग जो सोचते हैं कि वे शराब नहीं पीते तो उनका लीवर कभी खराब नहीं हो सकता तो वे बिल्‍कुल गलत हैं।

* क्‍या आप जानते हैं कि मुंह से गंदी बदबू आना भी लीवर की खराबी हो सकती है। क्‍यों चौंक गए ना?

* हम आपको कुछ परीक्षण बताएंगे जिससे आप पता लगा सकते हैं कि क्‍या आपका लीवर वाकई में खराब है। कोई भी बीमारी कभी भी चेतावनी का संकेत दिये बगैर नहीं आती, इसलिये आप सावधान रहें।

* मुंह से बदबू -यदि लीवर सही से कार्य नही कर रहा है तो आपके मुंह से गंदी बदबू आएगी। ऐसा इसलिये होता है क्‍योकि मुंह में अमोनिया ज्‍याद रिसता है।

* लीवर खराब होने का एक और संकेत है कि स्‍किन क्षतिग्रस्‍त होने लगेगी और उस पर थकान दिखाई पडने लगेगी। आंखों के नीचे की स्‍किन बहुत ही नाजुक होती है जिस पर आपकी हेल्‍थ का असर साफ दिखाई पड़ता है।

* पाचन तंत्र में खराबी यदि आपके लीवर पर वसा जमा हुआ है और या फिर वह बड़ा हो गया है, तो फिर आपको पानी भी नहीं हजम होगा।

* त्‍वचा पर सफेद धब्‍बे यदि आपकी त्‍वचा का रंग उड गया है और उस पर सफेद रंग के धब्‍बे पड़ने लगे हैं तो इसे हम लीवर स्‍पॉट के नाम से बुलाएंगे।

* यदि आपकी पेशाब या मल हर रोज़ गहरे रंग का आने लगे तो लीवर गड़बड़ है। यदि ऐसा केवल एक बार होता है तो यह केवल पानी की कमी की वजह से हो सकता है।

* यदि आपके आंखों का सफेद भाग पीला नजर आने लगे और नाखून पीले दिखने लगे तो आपको जौन्‍डिस हो सकता है। इसका यह मतलब होता है कि आपका लीवर संक्रमित है।

* लीवर एक एंजाइम पैदा करता है जिसका नाम होता है बाइल जो कि स्‍वाद में बहुत खराब लगता है। यदि आपके मुंह में कडुआहर लगे तो इसका मतलब है कि आपके मुंह तब बाइल पहुंच रहा है।

* जब लीवर बड़ा हो जाता है तो पेट में सूजन आ जाती है, जिसको हम अक्‍सर मोटापा समझने की भूल कर बैठते हैं।

* मानव पाचन तंत्र में लीवर एक म‍हत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। विभिन्‍न अंगों के कार्यों जिसमें भोजन चयापचय, ऊर्जा भंडारण, विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलना, डिटॉक्सीफिकेशन, प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन और रसायनों का उत्‍पादन शामिल हैं। लेकिन कई चीजें जैसे वायरस, दवाएं, आनुवांशिक रोग और शराब लिवर को नुकसान पहुंचाने लगती है। लेकिन यहां दिये उपायों को अपनाकर आप अपने लीवर को मजबूत और बीमारियों से दूर रख सकते हैं।

करे ये घरेलू कुछ उपाय :-
===============
* हल्‍दी लीवर के स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार करने के लिए अत्‍यंत उपयोगी होती है। इसमें एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते है और एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करती है। हल्दी की रोगनिरोधन क्षमता हैपेटाइटिस बी व सी का कारण बनने वाले वायरस को बढ़ने से रोकती है। इसलिए हल्‍दी को अपने खाने में शामिल करें या रात को सोने से पहले एक गिलास दूध में थोड़ी सी हल्दी मिलाकर पिएं

* सेब का सिरका, लीवर में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। भोजन से पहले सेब के सिरके को पीने से शरीर की चर्बी घटती है। सेब के सिरके को आप कई तरीके से इस्‍तेमाल कर सकते हैं- एक गिलास पानी में एक चम्मच सेब का सिरका मिलाएं, या इस मिश्रण में एक चम्मच शहद मिलाएं। इस म‍िश्रण को दिन में दो से तीन बार लें।

* आंवला विटामिन सी के सबसे संपन्न स्रोतों में से एक है और इसका सेवन लीवर की कार्यशीलता को बनाये रखने में मदद करता है। अध्ययनों ने साबित किया है कि आंवला में लीवर को सुरक्षित रखने वाले सभी तत्व मौजूद हैं। लीवर के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए आपको दिन में 4-5 कच्चे आंवले खाने चाहिए.

* पपीता लीवर की बीमारियों के लिए सबसे सुरक्षित प्राकृतिक उपचार में से एक है, विशेष रूप से लीवर सिरोसिस के लिए। हर रोज दो चम्मच पपीता के रस में आधा चम्मच नींबू का रस मिलाकर पिएं। इस बीमारी से पूरी तरह निजात पाने के लिए इस मिश्रण का सेवन तीन से चार सप्ताहों के लिए करें.

* सिंहपर्णी जड़ की चाय लीवर के स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने वाले उपचारों में से एक है। अधिक लाभ पाने के लिए इस चाय को दिन में दो बार पिएं। आप चाहें तो जड़ को पानी में उबाल कर, पानी को छान कर पी सकते हैं। सिंहपर्णी की जड़ का पाउडर बड़ी आसानी से मिल जाएगा।

* लीवर की बीमारियों के इलाज के लिए मुलेठी का इस्‍तेमाल कई आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है। इसके इस्‍तेमाल के लिए मुलेठी की जड़ का पाउडर बनाकर इसे उबलते पानी में डालें। फिर ठंड़ा होने पर छान लें। इस चाय रुपी पानी को दिन में एक या दो बार पिएं।

* फीटकोंस्टीटूएंट्स की उपस्थिति के कारण, अलसी के बीज हार्मोंन को ब्‍लड में घूमने से रोकता है और लीवर के तनाव को कम करता है। टोस्‍ट पर, सलाद में या अनाज के साथ अलसी के बीज को पीसकर इस्‍तेमाल करने से लिवर के रोगों को दूर रखने में मदद करता है

* एवोकैडो और अखरोट को अपने आहार में शामिल कर आप लीवर की बीमारियों के आक्रमण से बच सकते हैं। एवोकैडो और अखरोट में मौजूद ग्लुटथायन, लिवर में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालकर इसकी सफाई करता है।

* पालक और गाजर का रस का मिश्रण लीवर सिरोसिस के लिए काफी लाभदायक घरेलू उपाय है। पालक का रस और गाजर के रस को बराबर भाग में मिलाकर पिएं। लीवर की मरम्मत के लिए इस प्राकृतिक रस को रोजाना कम से कम एक बार जरूर पिएं

* सेब और पत्तेदार सब्जियों में मौजूद पेक्टिन पाचन तंत्र में उपस्थित विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर लीवर की रक्षा करता है। इसके अलावा, हरी सब्जियां पित्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं।

* एक पौधा और है जो अपने आप उग आता है , जिसकी पत्तियां आंवले जैसी होती है. इन्ही पत्तियों के नीचे की ओर छोटे छोटे फुल आते है जो बाद में छोटे छोटे आंवलों में बदल जाते है . इसे भुई आंवला कहते है. इस पौधे को भूमि आंवला या भू- धात्री भी कहा जाता है .यह पौधा लीवर के लिए बहुत उपयोगी है.इसका सम्पूर्ण भाग , जड़ समेत इस्तेमाल किया जा सकता है.तथा कई बाज़ीगर भुई आंवला के पत्ते चबाकर लोहे के ब्लेड तक को चबा जाते हैं . ये यकृत ( लीवर ) की यह सबसे अधिक प्रमाणिक औषधि है . लीवर बढ़ गया है या या उसमे सूजन है तो यह पौधा उसे बिलकुल ठीक कर देगा . बिलीरुबिन बढ़ गया है , पीलिया हो गया है तो इसके पूरे पढ़े को जड़ों समेत उखाडकर , उसका काढ़ा सुबह शाम लें . सूखे हुए पंचांग का 3 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम लेने से बढ़ा हुआ बाईलीरुबिन ठीक होगा और पीलिया की बीमारी से मुक्ति मिलेगी

विभिन्न रोगो के लिए विभिन्न जूस












विभिन्न रोगो के लिए विभिन्न जूस

हमको अक्सर ही विभिन्न प्रकार के रोग घेर लेते हैं, और हम दवाये खा खा कर परेशान होते रहते हैं। कितना अच्छा हो अगर हम बीमारी में भी मजे ले ले कर ठीक हो। इसी कड़ी में आज आपको बता रहे हैं के अगर हम को कोई बीमारी घेर लो तो ऐसे में कौन कौन से फल और सब्जिया हैं जिनका जूस पी कर हम अपनी सेहत को दोबारा पा सकते हैं।
तो आइये जानते हैं विभिन्न रोगो के लिए विभिन्न जूस।

भूख लगाने के हेतुः प्रातःकाल खाली पेट नींबू का पानी पियें। खाने से पहले अदरक का कचूमर सैंधव नमक के साथ लें।

रक्तशुद्धिः नींबू, गाजर, गोभी, चुकन्दर, पालक, सेव, तुलसी, नीम और बेल के पत्तों का रस।

दमाः लहसुन, अदरक, तुलसी, चुकन्दर, गोभी, गाजर, मीठी द्राक्ष का रस, भाजी का सूप अथवा मूँग का सूप और बकरी का शुद्ध दूध लाभदायक है। घी, तेल, मक्खन वर्जित है।

उच्च रक्तचापः गाजर, अंगूर, मोसम्मी और ज्वारों का रस। मानसिक तथा शारीरिक आराम आवश्यक है।

निम्न रक्तचापः मीठे फलों का रस लें, किन्तु खट्टे फलों का उपयोग न करें। अंगूर और मोसम्मी का रस अथवा दूध भी लाभदायक है।

पीलियाः अंगूर, सेव, रसभरी, मोसम्मी। अंगूर की अनुपलब्धि पर लाल मुनक्के तथा किसमिस का पानी। गन्ने को चूसकर उसका रस पियें। केले में 1.5 ग्राम चूना लगाकर कुछ समय रखकर फिर खायें।

मुहाँसों के दागः गाजर, तरबूज, प्याज, तुलसी और पालक का रस।

संधिवातः लहसुन, अदरक, गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी, हरा धनिया, नारियल का पानी तथा सेव और गेहूँ के ज्वारे।

एसीडिटीः गाजर, पालक, ककड़ी, तुलसी का रस, फलों का रस अधिक लें। अंगूर मोसम्मी तथा दूध भी लाभदायक है।

कैंसरः गेहूँ के ज्वारे, गाजर और अंगूर का रस।

सुन्दर बनने के लिएः सुबह-दोपहर नारियल का पानी या बबूल का रस लें। नारियल के पानी से चेहरा साफ करें।

फोड़े-फुन्सियाँ- गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी और नारियल का रस।

कोलाइटिसः गाजर, पालक, पत्ता गोभी और पाइनेपल का रस। 70 प्रतिशत गाजर के रस के साथ अन्य रस समप्राण। चुकन्दर, नारियल, ककड़ी, पत्ता गोभी के रस का मिश्रण भी उपयोगी है।

अल्सरः अंगूर, गाजर, पत्ता गोभी का रस। केवल दुग्धाहार पर रहना आवश्यक है।

सर्दी-कफः मूली, अदरक, लहसुन, तुलसी, गाजर का रस, मूँग अथवा भाजी का सूप।

ब्रोन्काइटिसः पपीता, गाजर, अदरक, तुलसी, पाइनेपल का रस, मूँग का पानी लेवे |

गैस और कब्ज













गैस और कब्ज एक ऐसी बीमारी हैं जो होती तो गलत खान पान से या गलत जीवन शैली से हैं। मगर एक बार हो जाए तो जिन्न की तरह पीछे पड़ जाती हैं और पीछा नहीं छोड़ती। और बड़े से बड़ा आदमी भी इस के आगे बेबस सा बन जाता हैं। तो आइये जाने इस से बचने का एक ऐसा रामबाण इलाज जो सफलता पूर्वक आजमाया हुआ हैं।

गैस और कब्ज से छुटकारा दिलाने वाला गैसहर चूर्ण।

छोटी हरड़ (हर्रे) एक किलो ले कर इसको साफ़ कर लीजिये। इसको दही की छाछ में फुलाइये। फूलने के लिए सुबह छाछ में डाल दीजिये। दूसरे दिन छाछ से निकले, साफ़ करे और छाया में एक कपडे के ऊपर डाल कर सुख लीजिये। जब सूख जाए तो ताज़ा छाछ में दोबारा डाल दीजिये। छाछ में डाल कर सुखाने को ‘दही की भावना’ देना कहते हैं। इस प्रकार इन हर्रो को दही की 3-4-6 तक भावनाए दीजिये। भावना देने के बाद, सूख जाने पर इनको पीस लीजिये। और बारीक चलनी से छान लीजिये।

इस प्रकार बनाये गए एक किलो छोटी हरड़ के चूर्ण में एक पाव अजवायन पीस कर मिला लीजिये। फिर इस चूर्ण में काला नमक रूचि के अनुसार मिला लीजिये। बस, उत्तम गैसहर चूर्ण तैयार हैं।

सेवन विधि – भोजन के बाद, सेहत के अनुसार, यह चूर्ण गुनगुने पानी से ले। (ठन्डे पानी से भी ले सकते हैं) ।

इसके सेवन के तीन फायदे होंगे।

1. गैस की तकलीफ कभी नहीं होगी।
2. तकलीफ होने पर 5-६ मिनट में आराम होता हैं।
3. पाचन शक्ति बढ़ेगी। दस्त साफ़ होंगे।

गैस का दर्द दूर करने के लिए ये अचूक, शर्तिया दवा हैं।

चूर्ण बनाने की दूसरी विधि।

इन हर्रो को रेत में भून लीजिये। बहुत फूलेंगी। फूलने के बाद इनको पीस कर चूर्ण कर लीजिये। और बाकी सामान वैसे ही डालिये, जैसा ऊपर बताया हैं।

इस चूर्ण में 60 ग्राम सनाय (सोनामुखी) की पत्ती को हल्का भूनकर चूर्ण बनाकर डालने से पुराने से पुराना बुद्धकोष्ठ (कब्ज) भी हफ्ते भर में ठीक हो जाता हैं। सनाय की पत्ती, बिना भून कर डालने से पेट में मरोड़ आती हैं।

अनुभव – श्री जी. पी. पराड़कर, (बड़-बन) पंचवटी, छिंदवाड़ा का हैं। वो कहते हैं के वो हर साल चार पांच किलो हर्र का चूर्ण बना कर रख लेते हैं। घर और मोहल्ले वाले और रिश्तेदार विश्वस्त रूप से इस चूर्ण का उपयोग करते हैं।

अदरक की चाय के 8 फायदे (8 advantages of ginger tea)












अदरक की चाय के 8 फायदे (8 advantages of ginger tea)

● अदरक की चाय न सिर्फ आपको अच्छी लगेगी, बल्कि यह ठंड के दौरान होने वाली कई समस्याओं से भी आराम दिलाएगी। यानी कि अदरक की चाय को दवाई के रूप में भी देखा जा सकता है। एक बार चाय बना लेने के बाद आप अदरक के स्वाद को छिपाने के लिए इसमें पिपरमेंट, शहद और नींबू मिला सकते हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि क्यों आपको अदरक की चाय का सेवन करना चाहिए। अदरक वाली चाय के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ 

1) मतली से आराम पहुंचाए :- 
कहीं सफर करने से पहले एक कप अदरक की चाय पीने से मोशन सिकनेस से होने वाली उल्टी नहीं होगी। साथ ही आप मतली होने पर भी एक कप चाय से इससे आराम पा सकते हैं।

2) पेट को रखे दुरुस्त :- 
अदरक की चाय पाचन को बेहतर बनाने के साथ-साथ फूड के अब्सॉर्प्शन को बढ़ाती है और बहुत ज्यादा खाने के बाद ब्लोटिंग की समस्या से छुटकारा दिलाती है। 

3) जलन को कम करे :- 
अदरक में जलन को कम करने का गुण पाया जाता है, जिससे यह मसल और जोड़ों की समस्या का एक बेहतरीन घरेलू उपचार बन जाता है। इसके अलावा अदरक की चाय पीने से जोड़ों के जलन को सोखने में भी मदद मिलती है। 

4) सांस लेने संबंधी समस्या :- 
से निजात ठंड के समय नाक बंद होने पर अदरक की चाय काफी असरदार होती है। वातावरण की एलर्जी से होने वाले सांस संबंधी समस्या से छुटकारा पाने के लिए आप अदरक की चाय का सेवन करें। 

5) ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाए :- 
अदरक की चाय में पाए जाने वाले विटामिन, मिनरल्स और अमीनो एसिड ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाने में मदद करते हैं, जिससे कार्डियोवेस्कुलर समस्या की संभावना कम हो जाती है। साथ ही अदरक अर्टरी पर फैट को जमा होने से रोकता है। इससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा नहीं रहता है। 

6) मासिक धर्म की परेशानी से आराम दिलाए :- 
जो महिलाएं मासिक धर्म के क्रैंप से जूझ रहीं हैं, वह अदरक की चाय का सेवन कर सकती हैं। एक तौलिए को गर्म अदरक की चाय में डुबा कर लोअर एब्डोमेन पर लगाएं। इससे दर्द से निजात मिलेगा और मसल्स रीलैक्स होंगे। साथ ही शहद के साथ अदरक की चाय का सेवन करें। 

7) इम्यूनिटी को मजबूत करे :- 
अदरक में बड़ी मात्रा में एंटीआक्सीडेंट पाए जाते हैं, जिससे आपका इम्यूनिटी मजबूत होगा। 

8) तनाव से राहत दिलाए :- 
अदरक की चाय में शांत करने का गुण पाया जाता है, जिससे आपका तनाव कम होगा। ऐसा अदरक के स्ट्रांग एरोमा और हीलिंग प्रोपर्टीज के कारण होता है।

लहसुन की एक कली रोज सेवन करे














लहसुन की एक कली रोज सेवन करे -

लहसुन को वैसे तो तामसिक यानी काम व गुस्से की भावना बढ़ाने वाला माना गया है। लेकिन लहसुन के औषधिय गुण इन बुराईयों से कही अधिक बढ़कर हैं। ये गुण ऐसे हैं जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। हम आपको आज बताने जा रहे हैं लहसुन के ऐसे ही गुणों के बारे में-
लहसुन में पाए जाने वाले तत्व - लहसुन में प्रोटीन 6.3 प्रतिशत,वसा 0.1 प्रतिशत, कार्बोज 21 प्रतिशत, खनिज पदार्थ- 1 प्रतिशत, चूना 0.3 प्रतिशत तथा लोहा1.3 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम होता है। इसके अतिरिक्त वीटामिन ए, बी, सी एवं सल्फ्यूरिक एसिड विशेष मात्रा में पाई जाती है।
विटामिन सी की कमी होने पर- जिनके शरीर में रक्त की कमी है, उन्हें लहसुन का सेवन अवश्य करना चाहिए, इसमें पर्याप्त मात्रा में लौह तत्व होता है जो कि रक्त निर्माण में सहायक होता है। लहसुन में विटामिन सी होने से यह स्कर्वी रोग से भी बचाता है।
कॉलेस्ट्रोल को कम करता है- कॉलेस्ट्रोल की समस्या से परेशान लोगों के लिए लहसुन का नियमित सेवन अमृत साबित हो सकता है।
कैंसर से रक्षा करता है- कैंसर के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। लहसुन में कैंसर निरोधी तत्व होते हैं। यह शरीर में कैंसर बढऩे से रोकता है। लहसुन के सेवन से ट्यूमर को 50 से 70फीसदी तक कम किया जा सकता है।
गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद- गर्भवती महिलाओं को लहसुन का सेवन नियमित तौर पर करना चाहिए। गर्भवती महिला को अगर उच्च रक्तचाप की शिकायत हो तो, उसे पूरी गर्भावस्था के दौरान किसी न किसी रूप में लहसुन का सेवन करना चाहिए।
कफ में लहसुन लाभदायक - ठंड या बदलते मौसम में अक्सर किसी भी उम्र के लोगों को कफ और जुकाम जैसी परेशानी हो जाती हैं। ऐसे में अगर आप लहसुन का नियमित रूप से सेवन करते हैं तो आप ऐसी छोटी-छोटी समस्याओं से बड़ी ही आसानी से निजात पा सकते हैं।
एंटीबायोटिक की तरह असरदार- लहसुन में एंटीबायोटिक दवाओं से अधिक गुण हैं, जिसकी वजह से वह रोगाणुओं का नाश करती है। यही कारण है कि घाव धोने के लिए लहसुन के एक भाग रस में तीन भाग पानी मिलाकर काम में लिया जाता है।
लहसुन का इस्तेमाल दांत की हड्डियों के आसपास होने वाले संक्रमण से बचाता है.
लहसुन में पाया जाने वाला सल्फाइड हृदय वाहिनी तंत्र को भी ठीक रखता है. शोध में इस बात की पुष्टि हुई है कि लहसुन खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित करता है. लहसुन चिकित्सा के बारे में मास्को के नेशनल कार्डियोलॉजिकल रिसर्च सेंटर में भी काफी शोध किया गया. 12 सप्ताह तक 42 लोगों के परीक्षण के बाद ये बात साबित हुई है कि लहसुन खाने के बाद खून में 7.6 प्रतिशत तक कोलेस्ट्रॉल में गिरावट आई है. इसका मतलब ये हुआ कि अगर हर दिन लहसुन का सेवन किया जाए तो दिल की धमनियों के संकरे होने का खतरा कम हो जाता है. इससे हार्टअटैक की संभावना भी काफी कम हो जाती है.

घरेलू उपचार से तिल हटाये















घरेलू उपचार से तिल हटाये

चेहरे पर एक छोटा सा तिल किसी की भी खूबसूरती में चार चांद लगा सकता है। लेकिन तिल का बहुत अधिक संख्‍या में या बड़ा-बड़ा होना खूबसूरती को कम करने के अलावा परेशानी का सबब भी हो सकता है। अक्‍सर तिलों को हटाने के लिए सर्जरी की सलाह दी जाती है लेकिन आप घबराइए नहीं क्‍योंकि कुछ घरेलू उपायों को अपनाकर भी इस समस्‍या को दूर किया जा सकता है।

लहसुन के पेस्‍ट को रोज रात को सोने से पहले तिल पर लगाकर किसी बैंडेज से बांध कर छोड़ दें। सुबह त्‍वचा को हल्‍के गर्म पानी से धो लें। कुछ दिनों तक इस प्रक्रिया को दोहराने से चेहरे के तिल निकल जाते हैं।

तिलों को हटाने के लिए केले का छिलका बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए केले के छिलके को छिली हुई तरफ से तिल पर रखकर बांध लें। कुछ ही दिनों के इस्‍तेमाल के बाद तिल सूखकर निकल जाएगा।

एक चुटकी बेकिंग सोड़ा में कुछ बूंदें अरंडी के तेल की मिलाकर पेस्‍ट बना लें। इस पेस्‍ट को तिलों पर लगाकर रातभर के लिए छोड़ दें। और सुबह होते ही साफ करें। इस प्रक्रिया को कुछ दिन करने से ही आपको फर्क दिखने लगेगा।

फूलगोभी खाने में स्‍वादिष्ट और स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक होने के अलावा तिल को साफ करने में भी काफी कारगर होती है। घर में इसका रस बनाकर, नियमित रूप से तिल वाले स्‍थान पर लगाए। इससे कुछ ही दिनों में धीरे-धीरे तिल गायब हो जाएंगें।

धनिये की पत्तियों का पेस्‍ट बना कर उसे अपने तिल पर लगाए। इससे तिल को दूर होने में थोडा समय जरूर लगेगा। लेकिन यह आपके तिल को हमेशा के लिए मिटा देगा।

स्ट्रॉबेरी आइस‍क्रीम और शेक को स्‍वादिष्‍ट बनाने के अलावा तिल को दूर करने में भी मदद करती है। तिल को दूर करने के लिए स्ट्रॉबेरी को बीच से काटें और तिल पर लगाएं। कुछ दिनों तक इसे दोहराएं, फिर देखें कैसे आपके तिल निकलने लगते हैं।

सेब के सिरके का उपयोग कर बिना किसी निशान के तिल से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके लिए रूई के एक फोहे पर कुछ बूंद सेब साइडर सिरका डालें। अब इस फोहे को तरल के चारों तरफ लगाएं और पट्टी बांध दें। अब इसे लगभग एक घंटे के लिए ऐसे ही छोड़ दें। ऐसा तब तक करें जब तक कि तिल गायब नहीं हो जाते।

ताजा अंगूर लेकर उसका रस निकाल लें। अब कई दिनों तक दिन में कई बार जूस को निकालकर तिलों पर लगाएं। दो हफ्तों से एक महीने के भीतर तिल जाने लगते हैं।

थोडा सा शहद और सनबीज के तेल लेकर मिला लें। इस मिश्रण को नियमित रूप से 5 मिनट तिल पर रगड़ने से त्‍वचा के चमकने के साथ-साथ तिल भी गायब हो जाएगें।

गुडहल (फूल) के गुण














गुडहल एक आम सा फूल है जो कि देखने में सुंदर होता है। ऐसे कई गुडहल के फूल हैं जो कि अलग-अलग रंगों में पाये जाते हैं जैसे, लाल, सफेद , गुलाबी, पीला और बैगनी आदि। यह सुंदर सा गुडहल का फूल स्वास्थ्य के खजाने से भरा पड़ा है। इसका इस्तेमाल खाने- पीने या दवाओं लिए किया जाता है। इससे कॉलेस्ट्रॉल, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर और गले के संक्रमण जैसे रोगों का इलाज किया जाता है। यह विटामिन सी, कैल्शियम, वसा, फाइबर, आयरन का बढिया स्रोत है। 

गुडहल के ताजे फूलों को पीसकर लगाने से बालों का रंग सुंदर हो जाता है। 
मुंह के छाले में गुडहल के पते चबाने से लाभ होता है।

डायटिंग करने वाले या गुर्दे की समस्याओं से पीडित व्यक्ति अक्सर इसे बर्फ के साथ पर बिना चीनी मिलाए पीते हैं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं। 

क्या आप जानते हैं कि गुडहल की चाय भी बनती है। जी हां, गुडहल की चाय एक स्वास्थ्य हर्बल टी है। तो आइये जानते हैं गुडहल के स्वास्थ्य और औषधीय लाभ के बारे में-

गुडहल के गुण -

1. गुडहल से बनी चाय को प्रयोग सर्दी-जुखाम और बुखार आदि को ठीक करने के लिये प्रयोग की जाती है।

2. गुड़हल के फूल का अर्क दिल के लिए उतना ही फायदेमंद है जितना रेड वाइन और चाय।

3. - विज्ञानियों के मुताबिक चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि गुड़हल का अर्क कोलेस्ट्राल को कम करने में सहायक है। इसलिए यह इनसानों पर भी कारगर होगा।

4. - डायटिंग करने वाले या गुर्दे की समस्याओं से पीडित व्यक्ति अक्सर इसे बर्फ के साथ पर बिना चीनी मिलाए पीते हैं, क्योंकि इसमें प्राकृतिक मूत्रवर्धक गुण होते हैं।

5. - अगर गुडहल को गरम पानी के साथ या फिर उबाल कर फिर हर्बल टी के जैसे पिया जाए तो यह हाई ब्लड प्रेशर को कम करेगा और बढे कोलेस्ट्रॉल को घटाएगा क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट होता है। 

6. गुडहल का फूल काफी पौष्टिक होता है क्योंकि इसमें विटामिन सी, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंट होता है। यह पौष्टिक तत्व सांस संबन्धी तकलीफों को दूर करते हैं। यहां तक की गले के दर्द को और कफ को भी हर्बल टी सही कर देती है।

7. - गुडहल के फूलों का असर बालों को स्वस्थ्य बनाने के लिये भी होता है। इसे पानी में उबाला जाता है और फिर लगाया जाता है जिससे बालों का झड़ना रुक जाता है। यह एक आयुर्वेद उपचार है। इसका प्रयोग केश तेल बनाने मे
भी किया जाता है।

8. - गुडहल के पत्ते तथा फूलों को सुखाकर पीस लें। इस पावडर की एक चम्मच मात्रा को एक चम्मच मिश्री के साथ पानी से लेते रहने से स्मरण शक्ति तथा स्नायुविक शक्ति बढाती है।

9. - गुडहल के फूलों को सुखाकर बनाया गया पावडर दूध के साथ एक एक चम्मच लेते रहने से रक्त की कमी दूर होती है |

10. - यदि चेहरे पर बहुत मुंहसे हो गए हैं तो लाल गुडहल की पत्तियों को पानी में उबाल कर पीस लें और उसमें शहद मिला कर त्वचा पर लगाए |

रोगप्रतिकारक शक्ति बनाये रखने के उपाय व सावधानियाँ












रोगप्रतिकारक शक्ति बनाये रखने के उपाय व सावधानियाँ

1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।

2- कुल 13 असाधारणीय शारीरिक वेग होते हैं । उन्हें रोकना नहीं चाहिए ।।

3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है

4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।

5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।

6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।

7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।

8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।

9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ीआंत सिकुड़ जाती है।

10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।

11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।

13- दूध(चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।

14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।

15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।

16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिश्क हो हानि पहुँचती है।

17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में पीड़ा होती है।

18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।

19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।

20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।

21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।

22- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय(टीबी) होने का डर रहता है।

23- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।

24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।

25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।

26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।

27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी, सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औशधियां हैं।

28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।

29- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।

30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।

31- जल सदैव ताजा (चापाकल, कुएं आदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।

32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।

33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।

34- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।

35- भोजन पकने के 48 मिनट के अन्दर खा लेना चाहिए । उसके पश्चात् उसकी पोशकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।। 

36- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोशकता 100% कांसे के बर्तन में 97% पीतल के बर्तन में 93% अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।

37- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।

38- मनष्य को मैदे से बनीं वस्तुएं (बिस्कुट, ब्रेड, पीज़ा समोसा आदि)
कभी भी नहीं खाना चाहिए।

39- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेष्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।

40- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।

41- सरसों, तिल,मूंगफली या नारियल का तेल ही खाना चाहिए। देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और
वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।

42- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।

43- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।

44- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है।
हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।

45- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी (कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।

46- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।

47-बर्तन मिटटी के ही परयोग करन चाहिए।

48- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे ।
(आँखों के रोग में दातून नहीं करना)

Sunday 27 September 2015

जल और भोजन





























जल और भोजन, दो ऐसे तत्व हैं, जो हम ग्रहण करते हैं और इनको आयुर्वेद के सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक है। बहुधा जल पीने में हम प्यास को ही प्रेरक मानते हैं, जब प्यास लगी, पानी पी लिया। कब पीना, कितना पीना, कैसे पीना, इस पर कई प्रचलित मान्यतायें हैं जिन्हें सर्वभौमिक मान लिया जाता है, पर गुण और प्रकृति के अनुसार जल के प्रभाव का सम्यक ज्ञान लाभकारी है।

जलं जीवनम्
जल सभी रसों का उत्पादक है, पाचन प्रक्रिया में भोजन से जो पोषक तत्व सोखे जाते हैं, उन्हें रस कहते हैं, रसों से ही रक्त आदि का निर्माण होता है। जल वैसे तो जिसमें मिलाकर पिया जाता है, उसी के गुण ले लेता है, पर इसके अपने ६ गुण भी हैं, शीत, शुचि, शिव, मृष्ट, विमल, लघु। धरती पर आया जल वर्षा का ही होता है, समुद्र से वाष्पित जल अन्य जल स्रोतों से वाष्पित जल की तुलना में अधिक क्षारीय होता है। वर्षाकाल का प्रथम जल और अन्य ऋतु में बरसा जल नहीं पीना चाहिये। बहता जल पीने योग्य होता है, पहाड़ों और पत्थरों से गिरने से जल की अशुद्धियाँ बहुत कम हो जाती हैं। स्थिर जल के स्रोतों में वही जल श्रेष्ठ होता है जिसे सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श मिलता रहे। यदि जल मधुर है तो त्रिदोषशामक, लघु और पथ्य होता है। क्षारीय है तो कफवात शामक, पर पित्त को बढ़ाता है। कषाय हो तो कफपित्त शामक, पर वात को बढ़ाता है।
मन्दाग्नि, गुल्म, पाण्डु, उदररोग, अतिसार, अर्श और ग्रहणी रोग के लोगों को जल कम पीना चाहिये। स्वस्थ मनुष्य को भी अधिक जल नहीं पीना चाहिये, किन्तु ग्रीष्म और शरद में अधिक जल पिया जा सकता है। 

सामान्यतः शीतल जल का निषेध है, पर मदात्यय(मदिरा से होने वाले विकार), शरीर की ग्लानि, मूर्छा, वमन, परिश्रमजन्य थकावट, भ्रम, प्यास की वृद्धि, शरीर की ऊष्णता, आहार विहार जन्य दाह, रक्तपित्त और विषभक्षण जन्य विकार, इन सबके लिये शीतल जल पीना चाहिये। उष्ण जल, अग्निदीपक, पाचक, कण्ठशोधक, पचने में लघु, उष्ण, वस्ति का शोधक होता है। दक्षिण भारत के कई स्थानों पर भोजन के साथ गुनगुना पानी देते हैं, संभवतः उनकी परम्पराओं में यही गुण और सूत्र रहे होंगे। शीतल जल 6 घंटे में, गर्म कर ठंडा किया 3 घंटे में और गुनगुना जल 1 घंटे में पच जाता है। गर्म किया गया ठंडा जल कफकारक नहीं होता है।

90 प्रतिशत रोगों का कारण हमारा पेट है। पेट में भोजन और जल ही जाते हैं। कितना भोजन किया, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि कितने प्रतिशत भोजन पचा। समुचित पाचन ही स्वास्थ्य का साधन है। कोई भी अन्न पहले सूर्य के प्रकाश में पकता है, उसके बाद रसोई में अग्नि की आँच में पकता है और अन्त में आमाशय में भी जठराग्नि में पचता है। पेट में भोजन जाते ही जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है और तब तक रहती है, जब तक भोजन पच नहीं जाता है। श्रमशील व्यक्ति में एक घंटा, सामान्य व्यक्ति में डेढ़ घंटा और ठंडे स्थानों में रहने वालों के पेट में दो घंटे तक यह जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। इस समय यदि पेट में जल गया तो वह जठराग्नि को मन्द या ठण्डा कर देगा और भोजन अपच रह जायेगा। यही अपचा भोजन सारे रोगों की जड़ है, डकार से लेकर, एसिडिटी, मोटापा, रक्त अम्लता, जोड़ों का दर्द, हृदयाघात और कैंसर जैसे भीषण रोग इसके कारण होते हैं। यदि भोजन ठीक से पच गया तो कभी कोई रोग हो ही नहीं सकते हैं। भोजन के बाद वात बढ़ना संकेत है, उसे उपेक्षित न करें, वात सूक्ष्म होती है और हर अंग प्रभावित करने में सक्षम भी।

यही कारण है कि भोजन के तुरन्त बाद पिये जल को विष माना गया है। भोजन के एक घंटे पहले और डेढ़ घंटे बाद तक जल नहीं पीना चाहिये। भोजन के पहले पिया जल शरीर को कृशकाय बनाता है और बाद में पिया जल शरीर में स्थूलता लाता है। भोजन करते समय, भोजन अटकने पर एक दो घूँट जल लिया जा सकता है। दो अन्नों के सन्धिस्थान(रोटी और चावल के बीच में) पर भी एक दो घूँट जल लाभदायक होता है क्योंकि दोनों अन्नों के लिये भिन्न एन्जाइमों का स्राव होता है। यदि भोजन के साथ कुछ तरल लेना हो तो सुबह फलों का रस, दोपहर में छाछ और रात में दूध लिया जा सकता है। यद्यपि इनमें भी पर्याप्त जल होता है पर जल जिसमें मिलता है, उसके गुण ले लेता है।

पानी कैसे पियें? पानी को घूँट भर भर कर पानी पियें, जैसे गरम दूध पीते हैं। मुँह में क्षार बनता है, लगभग एक लाख ग्रन्थियाँ हैं और एक दिन में कई लीटर तक लार बनती है। पेट में अम्ल बनता है, जो पाचन में ही सहायक होता है। कहते हैं कि यदि पेट सामान्य रहे तो 100 वर्ष तक निरोग जीया जा सकता है। घूँट घूँट पिये पानी से अधिक लार अन्दर जायेगी जो पेट की अम्लता को शमित करेगी। तेज गति से पीने से भी अम्लता कम होगी पर उतनी मात्रा में नहीं। पशुओं को देखें कि वे भी ऐसे ही पीते हैं, चिड़िया बूँद बूँद पीती है, कुत्ता चाट चाट कर पीता है। लार विश्व की सबसे अच्छी औषधि है, इसको अन्दर जाते रहना आवश्यक है। पशुओं को देखिये, वे तो चाट कर अपने घाव तक ठीक लेते हैं। त्वचा के कई रोगों के लिये सुबह की लार अमृतसम है। जो लोग पान मसाला, गुटका, तम्बाकू आदि खाकर थूकते रहते हैं, उनसे बढ़ा अभागा कोई नहीं। एक ही स्थिति में थूक सकते हैं, जब कफ अधिक बढ़ा हो। तो पान खाने वाले क्या करें? पान बिना कत्था और सुपारी के साथ खायें और अन्दर ले लें। पान पित्त और कफ का नाशक है, चूना वात नाशक है, तो यह संयोग तीनों दोषों का निवारण करता है, पर पान देशी हो, तनिक कसैले स्वाद वाला।

पानी कैसा पियें? शीतल जल तो कभी न पियें, सामान्य तापमान का ही पियें, गुनगुना पानी पियें। पेट में ठंडा पानी जाने से शरीर का तापमान कम होता है और पेट में ऊष्मा पहुँचाने के लिये सारा रक्त पेट की ओर बहता है तो शरीर अपनी पूरी क्षमता से कार्य नहीं करता है। अधिक ठंडा पीने वालों को कब्ज की भी समस्या रहती है, क्योंकि ठंडे पानी का पृष्ठतनाव(सर्फेस टेंशन) अधिक रहता है, उससे आँतें संकुचित हो जाती है और मल का प्रवाह रोकती है।

सुबह उठते ही पानी पियें, बिना कुल्ला किये हुये, इसे ऊषापान कहते हैं। यदि ताँबे के बर्तन में रात भर का रखा जल हो तो अच्छा, नहीं तो जल गुनगुना कर लें। मात्रा लगभग एक लीटर, घूंट घूँट कर और धीरे धीरे। रात भर सोते समय सारी क्रियायें शिथिल हो जाती हैं, पर लार बनने की प्रक्रिया चलती रहती है, ब्रह्ममुहूर्त में बनी लार सर्वोत्तम होती है। इस लार का उपयोग चिकित्सा के लिये भी होता है। डायबिटीज के रोगियों के घाव ठीक करने में यह लार बड़ी उपयोगी होती है। चश्मे उतारने के लिये सुबह की लार आँखों में लगाने से अद्भुत लाभ हैं। लार में वह सब कुछ है जो माटी में है, जो शरीर में है, यही कारण है कि त्वचा में लगे दाग आदि भी इस लार से चले जाते हैं।

पानी खड़े होकर कभी न पियें, सदा ही बैठकर पियें, कहते हैं कि खड़े होकर जल पीने से गठिया आदि रोग हो जाते हैं। भार के अनुसार पानी पीना चाहिये। अपने वजन को दस से भाग देकर उसमें दो घटा दें, उतना लीटर पानी एक दिन में पिये, 70 किलो के व्यक्ति के लिये 5 लीटर। प्यास एक वेग भी है, कभी न रोकें, शरीर में जल की कमी होते ही वह रक्त से वह कमी पूरी करने लगता है।

जल जीवन है और जीवन का यह रूप जानना आवश्यक है।

एलर्जी

















एलर्जी शब्द से आज हर कोई परिचित है, इसे आधुनिक रहन-सहन से उत्पन्न रोग कहा जाता है, लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं माना जा सकता। एलर्जी का उल्लेख हमारे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में भी मिलता है, जिनमें कहा गया है कि एक व्यक्ति का भोजन किसी दूसरे व्यक्ति के लिए जहर भी हो सकता है। वास्तव में एलर्जी है क्या? सामान्य शब्दों में कहें तो एलर्जी किसी खास वस्तु, मौेसम या फिर कोई ऐसी चीज जिसके प्रति किसी व्यक्ति का शरीर अधिक संवेदनशील हो जाता है और उसके दुष्परिणाम उसके शरीर पर दिखने लगते हैं।

एलर्जी एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है परंतु कुछ विशेष लक्षणों से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। 

एलर्जी के लक्षण शरीर के प्रभावित अंगों के हिसाब से अलग-अलग होते हैं। 

एलर्जी से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले अंग हैं-आँखें, नाक, फेफड़े, चमड़ी व पेट (आँतें)।

आँख : आँखें लाल होना, खुजली चलना, आँखों से बहुत पानी आना आदि। 

नाक : बार-बार छीकें आना, नाक, कान गले में खुजली चलना, नाक से 
पानी बहना (जुकाम), नाक बंद हो जाना आदि। 

फेफड़े : बार-बार खाँसी होना, साँस चलना (दमा), बहुत बलगम आना, छाती में दर्द होना आदि। 

चमड़ी : ददोड़े (आर्टिकेरिया) होना, एक्जीमा, साबुन, डिटर्जेंट नकली जेवरों आदि का रिएक्शन, गाजरघास जनित चर्मरोग जिसमें बहुत खुजली होना व चमड़ी मोटी हो जाना आदि देखा जाता 

खान पान से एलर्जी - बहुत से लोगों को खाने पीने की चीजों जैसे दूध, अंडे, मछली ,चॉकलेट आदि से एलर्जी होती है l

सम्पूर्ण शरीर की एलर्जी - कभी कभी कुछ लोगों में एलर्जी से गंभीर स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और सारे शरीर में एक साथ गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी स्तिथि में तुरंत हॉस्पिटल लेकर जाना चाहिए l

अंग्रेजी दवाओं से एलर्जी- कई अंग्रेजी दवाएं भी एलर्जी का सबब बन जाती हैं जैसे पेनिसिलिन का इंजेक्शन जिसका रिएक्शन बहुत खतरनाक होता है और मौके पर ही मोत हो जाती है इसके अलावा दर्द की गोलियां, सल्फा ड्रग्स एवं कुछ एंटीबायोटिक दवाएं भी सामान्य से गंभीर एलर्जी के लक्षण उत्पन्न कर सकती हैं l

मधु मक्खी ततैया आदि का काटना – इनसे भी कुछ लोगों में सिर्फ त्वचा की सूजन और दर्द की परेशानी होती है जबकि कुछ लोगों को इमर्जेन्सी में जाना पड़ जाता है l

एलर्जी से बचाव ही एलर्जी का सर्वोत्तम इलाज है । इसलिए एलर्जी से बचने के लिए इन उपायों का पालन करना चाहिए ।

घर में अधिक से अधिक खुली और ताजा हवा आने का मार्ग प्रशस्त करें l
घर के आस पास गंदगी ना होने दें l

जिन खाद्य पदार्थों से एलर्जी है उन्हें न खाएं l

एकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं l

गद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि साफ रखें l

पालतू जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें l

ज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे l

घर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे l

धूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो मास्क पहन कर काम करेंl

नाक की एलर्जी - जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है,

सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश खाना भी नासिका एवं साँस की एलर्जी से बचने में सहायता करता है आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता है ।

जिन्हे बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 

कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी है इसे किसी आयुर्वेद चिकित्सक की राय से सेवन कर सकते हैं l

सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे । एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं 

हाइट बढ़ाने और कर्वी फिगर


















कुछ लोगों की हाइट समय से पहले ही बढ़ना रुक जाती है। इसका मुख्य कारण शरीर को पर्याप्त पोषक तत्व न मिलना और हार्मोन की गड़बड़ी है। दरअसल, हमारी लंबाई बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन यानी एचजीएच का होता है। एचजीएच पिट्युटरी ग्लैंड से निकलता है। यही कारण है कि सही प्रोटीन और न्यूट्रिशन न मिलने पर शरीर का विकास रुक जाता है। यदि आपके साथ भी यह समस्या है

हाइट बढ़ाने और कर्वी फिगर पाने के कुछ खास नुस्खे....

नुुस्खा- अश्वगंधा और सूखी नागौरी दोनों को ही आयुर्वेद में शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।

सामग्री - 20 ग्राम सूखी नागौरी।
20 ग्राम अश्वगंधा।
20 ग्राम चीनी।

बनाने की विधि- सूखी नागौरी और अश्वगंधा की जड़ को बारीक पीस लें। इस चूर्ण में बराबर मात्रा में चीनी मिला लें। यह मिश्रण कांच की बोतल में भर लें। 

ऐसे करें सेवन- रात को सोते समय रोज दो चम्मच चूर्ण लें। फिर गाय का दूध पिएं। इससे हाइट बढ़ने के साथ ही हेल्थ भी बन जाती है। इस चूर्ण को लगातार 40 दिन तक लें। सर्दियों में यह चूर्ण अधिक फायदा करता है।

2. नुस्खा- काले तिल और अश्वगंधा का यह योग नियमित रूप से सेवन करने पर हाइट बढ़ने लगती है।

सामग्री- 1.अश्वगंधा चूर्ण।
2. काले तिल।
3. खजूर।
4. गाय का घी।

बनाने की विधि- 1 से 2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण और 1 से 2 ग्राम काले तिल को पीसकर चूर्ण बना लें। 

ऐसे करें सेवन- इस चूर्ण को 3 से 5 खजूर में मिलाकर 5 से 20 ग्राम गाय के घी में एक महीने तक खाने से लाभ होता है। 

3.नुस्खा- केवल अश्वगंधा का पाउडर लेने से भी कद बढ़ने लगता है।

सामग्री- 1. अश्वगंधा की जड़ 
2. चीनी 
3. दूध 

बनाने की विधि- थोड़ी सी मात्रा में अश्वगंधा की जड़ लेकर उसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में बराबर मात्रा में चीनी मिलाकर रख लें।

ऐसे करें सेवन- इस मिश्रण को 2 चम्मच मात्रा में एक गिलास दूध में डालकर पिएं। रात को सोने से पहले 45 दिनों तक इस योग का सेवन करने से शरीर सुडौल बनता है और कद बढ़ जाता है।

सावधानियां- फास्ट फूड या जंक फूड का सेवन न करें।
- खटाई न खाएं।
- ज्यादा मिर्च-मसाले से परहेज करें।
- इन दवाओं का सेवन गाय के दूध से करें तो बेहतर है। 

ये भी करें- 
जिन लोगों का कद नहीं बढ़ रहा हो उन्हें रोज ताड़ आसन और भुजंगासन करना चाहिए। 

ताड़ आसन विधि- ताड़ आसन करने के लिए सबसे पहले अपने दोनों हाथ ऊपर उठाएं। हाथ उठाकर सांस अंदर लें। अपने पैर के पंजों पर कुछ समय के लिए खड़े हो जाएं।
दोनों हाथों को मिलाएं और अपने शरीर को ऊपर की तरफ खीचें। कुछ देर उसी अवस्था में रहें। फिर सांस बाहर छोड़ें और दोनों पैर के पंजों को सामान्य अवस्था में ले आएं। यह क्रिया 10 से 15 बार करें। 

भुजंगासन विधि- पेट के बल लेट जाएं। दोनों पैरों को मिलाकर रखिए। सिर जमीन पर, आंखें खुली हुई और दोनों बाजू को कोहनी से मोड़ें। हाथों को कंधों के नीचे रखें। कोहनी बाहर की ओर न हो, बल्कि शरीर के साथ लगाकर रखें।
एक ही बार में सांस नहीं भरेंगे, बल्कि आसन करते हुए धीरे-धीरे सांस भरें।
धीरे-धीरे सांस लेना शुरू करें और फिर सिर को उठाएं। गर्दन को पीछे की ओर मोड़ें। पीठ की मांसपेशियों का बल लगाते हुए आप कंधे भी उठाएं। हथेलियों पर थोड़ा दबाव रखते हुए छाती और नाभि तक का भार उठाएं।
हर स्थिति में नाभि को जमीन से 30 सेंटीमीटर ही ऊपर उठाना चाहिए। ज़्यादा नहीं, अन्यथा कमर भी उठ जाएगी। इस स्थिति में कोहनी सीधी नहीं होगी। इसके बाद आकाश की ओर देखें। इस अवस्था में सांस रोंके। कमर के निचले भाग पर खिंचाव आएगा, जिसे आप महसूस कर पाएंगे। इस स्थिति में 3-4 सेकंड तक रहें और फिर सामान्य अवस्था में आ जाएं।
इसके साथ ही अपने डाइट चार्ट में ज्यादा से ज्यादा फल और मेवे शामिल करें। कद बढ़ने लगेगा।

सौंठ जबरदस्त आयुर्वेद औषधि














अदरक सुखाकर खाएंगे तो मिट जाएंगे ये रोग

भारत में चाय को खुशबूदार बनाने व सब्जी को मसालेदार बनाने में सदियों से अदरक का उपयोग किया जाता रहा है। यदि अदरक सिर्फ एक मसाला ही नहीं है, ये एक गजब की औषधि भी है। इसका उपयोग भी दो रूपों में किया जाता है। ताजा अदरक के रूप में व इसे सुखाकर सौंठ के रूप में। सिर्फ ताजा अदरक ही नहीं सौंठ को भी आयुर्वेद में जबरदस्त औषधि माना गया है।सौंठ में कफ नाशक गुण होने के कारण यह खांसी और कफ रोगों में उपयोगी है।

इसमें 1.6 से 2.44 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है। इसके अलावा सौंठ में मुक्त अमीनो अम्ल जैसे - ग्लूटेमिक एसिड, एस्पार्टिक एसिड, सीरीन, प्लाइसीन थ्रीयोविन, ऐलेनीन अर्जीनीन, बेलीन, फिनाइल एलेन, एस्पेरेजीन, लायसीन, सीस्टीन, हिस्टीडीन, ल्यूसीन्स प्रोलीन और पाइकोलिक एसिड आदि मौजूद होते हैं। साथ ही, कार्बोहाइड्रेट, प्राेटीन, स्टार्च व ग्लूकोस, फ्रूक्टोस, सुक्रोस, रैफीनील भी पाए जाते हैं।

1. कमर दर्द
आधा चम्मच सौंठ का चूर्ण दो कप पानी में उबाल लें। जब पानी आधा कप रह जाए तब छानकर ठंडा कर उसमें दो चम्मच अरण्डी तेल मिलाकर उबालकर पिएं। ऐसा नियमित रूप से कुछ दिन करें कमर दर्द में ये उपाय रामबाण है।

2. आधा सिर दर्द
सौंठ को चंदन की तरह घिसकर उसका सिर पर लेप करें। कुछ देर रहने दें सिर दर्द गायब हो जाएगा।

3. आंखों में दर्द
सौंठ व नीम के पत्ते या निंबोली पीसकर उसमें थोड़ा सा सेंधा नमक डालकर गोलियां बना लें। गोली को मामूली गर्म कर आंखों पर बांधने से आंखों का दर्द कम हो जाता है।

4. पीलिया
सौंठ और गुड़ को पानी में मिलाकर नाक में उसकी बूंदे डालने से हिचकी दूर होती है। सौंठ और गुड़ साथ खाने से पीलिया भी मिटता है। सौंठ, आंवले और मिश्री का बारीक चूर्ण बनाकर सेवन करने से एसिडिटी खत्म होती है।

5. गर्भपात रोकने के लिए
महिलाओं को गर्भपात रोकने के लिए सौंठ, मुलहठी और देवदारू का दूध के साथ सेवन करना चाहिए। इससे गर्भ पुष्ट होता है।

6. पेट के कृमि खत्म करने के लिए
अदरक के रस की एक-एक चम्मच मात्रा दिन में दो बार नियमित रूप से लेने से पेट के कृमि दूर हो जाते हैं। अदरक का रस कान में डालने पर कान का दर्द ठीक हो जाता है।

7. कब्ज
कब्ज होने पर एक चम्मच सौंठ का पाउडर पानी में 

गंजेपन का सफल इलाज














गंजेपन का सफल इलाज

लोग बालो कि समसया से काफ़ी परेशान हैं. 
जैसे की बाल झड़ना या बाल रहना ही ना, तो उन सबके लिए एक बहुत ही आसान सा उपाय 

कनेर के 60-70 ग्राम पत्ते (लाल या पीली दोनों में से कोई भी या दोनों ही एक साथ ) ले के उन्हें पहले अच्छे से सूखे कपडे से साफ़ कर लें ताकि उनपे जो मिटटी है वो निकल जाये.,. अब एक लीटर सरसों का तेल या नारियल का तेल या जेतून का तेल ले के उसमे पत्ते काट काट के डाल दें. अब तेल को गरम करने के लिए रख दें. जब सारे पत्ते जल कर काले पड़ जाएँ तो उन्हें निकाल कर फेंक दें और तेल को ठण्डा कर के छान लें और किसी बोटल में भर के रख लें.....

पर्योग विधि :- रोज़ जहाँ जहाँ पर भी बाल नहीं हैं वहां वहां थोडा सा तेल ले के बस 2 मिनट मालिश करनी है और बस फिर भूल जाएँ अगले दिन तक. ये आप रात को सोते हुए भी लगा सकते हैं और दिन में काम पे जाने से पहले भी... 
बस एक महीने में आपको असर दिखना शुरू हो जायेगा. सिर्फ 10 दिन के अन्दर अन्दर बाल झड़ने बंद हो जायेंगे या बहुत ही कम. और नए बाल भी एक महीने तक आने शुरू हो जायेंगे.

नोट : ये उपाय पूरी तरह से tested है.. हमने कम से कम भी 10 लोगो पे इसका सफल परीक्षण किया है. एक औरत के 14 साल से बाल झड़ने बंद नहीं हो रहे थे. इस तेल से मात्र 6 दिन में बाल झड़ने बंद हो गये. 65 साल तक के आदमियों के बाल आते देखे हैं इस प्रयोग से जिनका के हमारे पास data भी पड़ा है.. आप भी लाभ उठायें और अगर किसी को फरक पड़े तो जरुर बताये.

धन्यवाद ...
नोट :- पीले पत्ते वही ले जो पेड़ पर पक कर पीले हो जाये . पीले होने के बाद वो थोड़ा लाल भी हो जाते है , वो भी ले सकते है.

पथरी का परीक्षित इलाज कुलथी की दाल














पथरी का परीक्षित इलाज कुलथी की दाल :-

● पथरी की समस्या अब हर घर की समस्या बनती जा रही है। वैसे तो इस रोग में मैंने कई आयुवेर्दिक उपाय बताये हैं लेकिन सबसे ज्यादा कारगर उपाय है कुलथी की दाल जिसे गैथ भी कहा जाता है। उत्तराखंड में इस दाल का काफी प्रचलन है। यह दाल पथरी को खत्म करने का एक कारगर औषधि है। कुथली की दाल आपको किसी भी दुकान में मिल जाती है। यदि नहीं मिलती है तो यह दाल आप किसी उत्तराखंड निवासी से मंगवा सकते हैं।

कैसे करें कुलथी का इस्तेमाल
कुथली की दाल को 250 ग्राम मात्रा में लें और इसे अच्छे से साफ कर लें। और रात को 3 लीटर पानी में भिगों कर रख दें। सुबह होते ही इस भीगी हुई दाल को पानी सहित हल्की आग में 4 घंटे तक पकाएं। और जब पानी 1 लीटर रह जाए तब उसमें 30 ग्राम देशी घी का छोंक लगा दें। और उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक, जीरा और हल्दी डाल सकते हो।

कब करें कुलथी का सेवन
कुलथी के पानी को दिन में दोपहर के खाने की जगह ले सकते हो। इसे सूप की तरह पीएं। 1 से 2 सप्ताह तक नियमित एैसा करने से मूत्राशय और गुर्दे की पथरी गल कर बाहर आ जाती है। गुर्दे में यदि सूजन हो तो कुथली के इस पानी को अधिक से अधिक पीएं। सूप के साथ रोटी का सेवन भी कर सकते हो।

कुथली की दाल का सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।

पथरी में और क्या खांए
पथरी में कुलथी के अलावा आप खरबूजे के बीज, मूली, आंवला, जौ, मूंग की दाल और चोलाई की सब्जी भी खा सकते हो। साथ ही रोज 5 से 8 गिलास सादा पानी रोज पीएं।

किस चीज से परहेज करें :-
पथरी के रोगी को उड़द की दाल, मेवे, चाकलेट, मांसाहार, चाय, बैगन, टमाटर और चावल नहीं खाने चाहिए।

कुलथी का पानी बनाने का तरीका
250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुलथी की दाल को डालें। और रात में ढक कर रख लें। सुबह इस पानी को अच्छे से मिलाकर खाली पेट पी लें।

शरीर जब सुन्न हो जाये
















शरीर जब सुन्न हो जाये करे ये उपाय-

कभी-कभी बैठे-बैठे या काम करते हुए शरीर का कोई अंग या त्वचा सुन्न हो जाती है| कुछ लोग देर तक एक ही मुद्रा में बैठकर काम करते या पढ़ते-लिखते रहते हैं | इस कारण रक्त-वाहिनीयों तथा मांसपेशियों में शिथिलता आ जाने से शरीर सुन्न हो जाता है |

शरीर के किसी अंग के सुन्न होने का प्रमुख कारण वायु का कुपित होना है| इसी से वह अंग भाव शून्य हो जाता है| ये खून के संचरण में रुकावट पैदा होने से सुन्नता आती है| यदि शरीर के किसी विशेष भाग को पूरी मात्रा में शुद्ध वायु नहीं मिलती तो भी शरीर का वह भाग सुन्न पड़ जाता है|

जो अंग सुन्न हो जाता है, उसमें हल्की झनझनाहट होती है| उसके बाद लगता है कि वह अंग सुन्न हो गया है| सुई चुभने की तरह उस अंग में धीरे-धीरे लपकन-सी पड़ती है, लेकिन दर्द नहीं मालूम पड़ता -

करे ये उपाय :-
========
सुबह के समय शौच आदि से निपट कर सोंठ तथा लहसुन की दो कलियों को चबाकर ऊपर से पानी पी लें| यह प्रयोग आठ-दस दिनों तक लगातर करने से सुन्न स्थान ठीक हो जाता है |

पपीते या शरीफे के बीजों को पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर सुन्न होने वाले अंगों पर धीरे-धीरे मालिश करें |

पीपल के पेड़ की चार कोंपलें सरसों के तेल में मिलाकर आंच पर पकाएं| फिर छानकर इस तेल को काम में लाएं |

तिली के तेल में एक चम्मच अजवायन तथा लहसुन की दो पूतियां कुचलकर डालें| फिर तेल को पका-छानकर शीशी में भर लें| इस तेल से सुन्न स्थान की मालिश करें|

बादाम का तेल मलने से सुन्न स्थान ठीक हो जाता है|

सोंठ, पीपल तथा लहसुन - सभी बराबर की मात्रा में लेकर सिल पर पानी के साथ पीस लें| फिर इसे लेप की तरह सुन्न स्थान पर लगाएं |

बादाम घिसकर लगाने से त्वचा स्वाभाविक हो जाती है |

कालीमिर्च तथा लाल इलायची को पानी में पीसकर त्वचा पर लगाएं |

100 ग्राम नारियल के तेल में 5 ग्राम जायफल का चूर्ण मिलाकर त्वचा या अंग विशेष पर लगाएं |

एक गांठ लहसुन और एक गांठ शुंठी पीस लें | इसके बाद पानी में घोलकर लेप बना लें| इस लेप को त्वचा पर लगाएं |

रात को सोते समय तलवों पर देशी घी की मालिश करें| इससे पैर का सुन्नपन खत्म हो जाएगा |

5 ग्राम चोपचीनी, 2 ग्राम पीपरामूल और 4 ग्राम मक्खन - तीनों को मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करें|

आयुर्वेदिक चाय


















आयुर्वेदिक चाय

लाभ-- इस पेय के सेवन से शरीर में स्फूर्ति व मस्तिष्क में शक्ति आती है। पाचनक्रिया में सुधार होता है और भूख बढ़ती है । सर्दी, बलगम, खांसी, दमा, श्वास, कफजन्य ज्वर और न्युमोनिया जैसे रोग होने की सम्भावना कम हो जाती है । इसे ओजस्वी चाय नाम दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

सामग्री
(१) गुलबनपशा २५ ग्राम
(२) छाया में सुखाये हुए तुलसी के पत्ते २५ ग्राम
(३) तज २५ ग्राम
(४) छोटी इलायची १२ ग्राम
(५) सोंफ १२ ग्राम
(६) ब्राह्मी के सूखे पत्ते १२ ग्राम
(७) छिली हुई जेठीमधु १२ ग्राम

विधि-- उपर्युक्त प्रत्येक वस्तु को अलग-अलग कूटकर चूर्ण बना के मिश्रित कर लें । जब चाय-कॉफी पीने की आवश्यकता महसूस हो, तब मिश्रण में से ५-६ ग्राम चूर्ण लेकर ४०० ग्राम पानी में उबालें । जब आधा पानी बाकी रहे तब नीचे उतारकर छान लें । उसमें दूध-खांड मिलाकर धीरे-धीरे पियें । चीन जैसे देशों में तो आयुर्वेदिक चाय का प्रचलन बढ़ रहा है, 

कब्ज (कांस्टीपेशन) से मुक्ति पाने के सरल उपचार















कब्ज (कांस्टीपेशन) से मुक्ति पाने के सरल उपचार

अनियमित खान-पान के चलते लोगों में कब्ज एक आम बीमारी की तरह प्रचलित है। यह पाचन तन्त्र का प्रमुख विकार है। कब्ज सिर्फ भूख ही कम नहीं करती बल्कि गेस ,एसिडिटी व् शरीर में होने वाली अन्य कई समस्याएं पैदा कर सकती है| बच्चों से लेकर वृद्ध तक इस रोग से पीड़ित रहते हैं|

मनुष्यों मे मल निष्कासन की फ़्रिक्वेन्सी अलग-अलग पाई जाती है। किसी को दिन में एक बार मल विसर्जन होता है तो किसी को दिन में २-३ बार होता है। कुछ लोग हफ़्ते में २ य ३ बार मल विसर्जन करते हैं। ज्यादा कठोर,गाढा और सूखा मल जिसको बाहर धकेलने के लिये जोर लगाना पडे यह कब्ज रोग का प्रमुख लक्षण है।ऐसा मल हफ़्ते में ३ से कम दफ़ा आता है और यह इस रोग का दूसरा लक्षण है। कब्ज रोगियों में पेट फ़ूलने की शिकायत भी साथ में देखने को मिलती है। यह रोग किसी व्यक्ति को किसी भी आयु में हो सकता है हो सकता है लेकिन महिलाओं और बुजुर्गों में कब्ज रोग की प्राधानता पाई जाती है।

कुछ ऐसे कब्ज निवारक उपचार, जिनके समुचित उपयोग से कब्ज का निवारण होता है और कब्ज से होने वाले रोगों से भी बचाव हो जाता है

१) कब्ज का मूल कारण शरीर मे तरल की कमी होना है। पानी की कमी से आंतों में मल सूख जाता है और मल निष्कासन में जोर लगाना पडता है। अत: कब्ज से परेशान रोगी को दिन मे २४ घंटे मे मौसम के मुताबिक ३ से ५ लिटर पानी पीने की आदत डालना चाहिये। इससे कब्ज रोग निवारण मे बहुत मदद मिलती है।

२) भोजन में रेशे की मात्रा ज्यादा रखने से कब्ज निवारण होता है।हरी पत्तेदार सब्जियों और फ़लों में प्रचुर रेशा पाया जाता है। मेरा सुझाव है कि अपने भोजन मे करीब ७०० ग्राम हरी शाक या फ़ल या दोनो चीजे शामिल करें।

३) सूखा भोजन ना लें। अपने भोजन में तेल और घी की मात्रा का उचित स्तर बनाये रखें। चिकनाई वाले पदार्थ से दस्त साफ़ आती है।

४) पका हुआ बिल्व फ़ल कब्ज के लिये श्रेष्ठ औषधि है। इसे पानी में उबालें। फ़िर मसलकर रस निकालकर नित्य ७ दिन तक पियें। कज मिटेगी।

५) रात को सोते समय एक गिलास गरम दूध पियें। मल आंतों में चिपक रहा हो तो दूध में ३ -४ चम्मच केस्टर आईल (अरंडी तेल) मिलाकर पीना चाहिये। हमेशा कब्ज से पीड़ित लोगों के लिए बादाम का तेल बेहतर विकल्प है| इससे आंत की कार्य क्षमता बढ़ती है | रात को सोते वक्त गुन गुने दूध में बादाम का तेल ३ ग्राम मिलाकर सेवन करें|| तेल की मात्रा धीरे - धीरे बढ़ाक्र ६ ग्राम तक ले जाएँ| | ३०-४० दिन तक यह प्रयोग करने से वर्षों से चली आ रही कब्ज भी जड से खत्म हो जाती है|

६) इसबगोल की की भूसी कब्ज में परम हितकारी है। दूध या पानी के साथ २-३ चम्मच इसबगोल की भूसी रात को सोते वक्त लेना फ़ायदे मंद है। दस्त खुलासा होने लगता है।यह एक कुदरती रेशा है और आंतों की सक्रियता बढाता है।

७) नींबू कब्ज में गुण्कारी है। मामुली गरम जल में एक नींबू निचोडकर दिन में २-३बार पियें। जरूर लाभ होगा।
नीम्‍बू का रस गर्म पानी के साथ रात्रि‍ में लेने से दस्‍त खुलकर आता हैं। नीम्‍बू का रस और शक्‍कर प्रत्‍येक 12 ग्राम एक गि‍लास पानी में मि‍लाकर रात को पीने से कुछ ही दि‍नों में पुरानी से पुरानी कब्‍ज दूर हो जाती है।

८) एक गिलास दूध में १-२ चाम्मच घी मिलाकर रात को सोते समय पीने से भी कब्ज रोग का समाधान होता है।

९) एक कप गरम जल मे १ चम्म्च शहद मिलाकर पीने से कब्ज मिटती है। यह मिश्रण दिन मे ३ बार पीना हितकर है।

१०) जल्दी सुबह उठकर एक लिटर मामूली गरम पानी पीकर २-३ किलोमीटर घूमने जाएं। कब्ज का बेहतरीन उपचार है।

११) दो सेवफ़ल प्रतिदिन खाने से कब्ज में लाभ होता है।

१२) अमरूद और पपीता ये दोनो फ़ल कब्ज रोगी के लिये अमॄत समान है। ये फ़ल दिन मे किसी भी समय खाये जा सकते हैं। इन फ़लों में पर्याप्त रेशा होता है और आंतों को शक्ति देते हैं। मल आसानी से विसर्जीत होता है।

१३) अंगूर मे कब्ज निवारण के गुण हैं । सूखे अंगूर याने किश्मिश पानी में ३ घन्टे गलाकर खाने से आंतों को ताकत मिलती है और दस्त आसानी से आती है। जब तक बाजार मे अंगूर मिलें नियमित रूप से उपयोग करते रहें।

१४) अलसी के बीज का मिक्सर में पावडर बनालें। एक गिलास पानी मे २० ग्राम के करीब यह पावडर डालें और ३-४ घन्टे तक गलने के बाद छानकर यह पानी पी जाएं। बेहद उपकारी ईलाज है। अलसी में प्रचुर ओमेगा फ़ेटी एसिड्स होते हैं जो कब्ज निवारण में महती भूमिका निभाते हैं।

१५) पालक का रस या पालक कच्चा खाने से कब्ज नाश होता है। एक गिलास पालक का रस रोज पीना उत्तम है। पुरानी से पुरानी कब्ज भी इस सरल उपचार से मिट जाती है।

१६) अंजीर कब्ज हरण फ़ल है। ३-४ अंजीर फ़ल रात भर पानी में गलावें। सुबह खाएं। आंतों को गतिमान कर कब्ज का निवारण होता है।

१७) बड़ी मुनक्का पेट के लिए बहुत लाभप्रद होती है| मुनका में कब्ज नष्ट करने के तत्व हैं। ७ नग मुनक्का रोजाना रात को सोते वक्त लेने से कब्ज रोग का स्थाई समाधान हो जाता है। एक तरीका ये है कि मुनक्का को दूध में उबालें कि दूध आधा रह जाए | गुन गुना दूध सोने के आधे घंटे पाहिले सेवन करें | मुनक्का में पर्याप्त लोह तत्व होता है और दूध में आयरन नहीं होता है इसलिए दूध में मुनक्का डालकर पीया जाय तो आयरन की भी पूर्ती हो जाती है|