Saturday 19 September 2015

आयुर्वेद की अनुपम औषधि: शतधौत घृत











आयुर्वेद की अनुपम औषधि: शतधौत घृत

लाभ ------

(1) इस घी में जरा सा देशी कपूर मिलाकर मालिश करने पर हाथ पैर की जलन और सिर की गर्मी चमत्कारिक रूप से शांत होती है. ज्वर की अवस्था में इसकी मालिश शरीर की गर्मी को दूर भगाती है. जिन्हें ब्लड प्रेशर की समस्या हो वो कपूर मिला हुआ घी मस्तक आदि पर न लगाएं

(2). एक्जिमा,दाद,खुजली व् अन्य चर्मरोगों में भी यह घृत अच्छे परिणाम देता है.पुरानी दाद एक्जिमा,खुजली आदि की समस्या में इसके साथ गंधक मिलाकर लगायें..

(3) बिलकुल छोटे बच्चों, को अक्सर त्वचा पर दाने खुजली आदि हो जाती है . उन पर इस शतधौत घृत का प्रयोग निश्चित रूप से अच्छे परिणाम देगा.इस घृत का उपयोग diaper rash क्रीम की तरह भी किया जा सकता है . बड़े से बड़े ब्रांड की क्रीम इसकेसमक्ष नहीं टिक पायेगी

(4)कोई पुराना घाव न ठीक हो रहा हो. नासूर हो यह घृत असफल नहीं होगा.

निर्माण विधिः एक काँसे की थाली या तांबे की थाली में लगभग 250 ग्राम गाय का घी लें। उसमें लगभग 2 लीटर शुद्ध शीतल जल डालें अब हाथों में पोलीथीन के ग्लव्स पहन लें.( बेहतर होगा इस घी को बनाने के लिए कांसे या तांबे के गोल चिकनी पेंदी वाले लोटे का इस्तेमाल किया जाये.यदि न मिले तो ग्लव्स पहने हाथों का प्रयोग करें. ) 

घी और पानी को आपस में इस तरह मिलाएं (अर्थात औटे ) जैसे की घी और पानी को मिश्रित कर रहे हों. कुछ ही देर में यह घी और पानी मिलकर क्रीम जैसा बन जायेंगे.लेकिन धीरे धीरे यह घी पानी छोड़ देगा.

पानी जब घी से अलग हो जाय तब सावधानीपूर्वक इस पानी को फेंक दें। इस प्रकार से सौ बार ताजा पानी लेकर घी को धोएं और फिर पानी को निकाल दें. आप देखेंगे घी का पीलापन बिलकुल समाप्त हो चुका है और बिलकुल सफ़ेद मक्खन जैसा घी प्राप्त होता है यही शतधौत घृत है. बनाने के बाद इसे कुछ तिरछा करके रख दें जिससे इसका समस्त जलीय अंश उड़ निकल जाये तत्पश्चात इसे मिटटी या कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें. हालांकि कुछ वैद्य घी को 121 बार भी धोते हैं।

सावधानीः 
(1) इस घी का उपयोग खाने के लिए कदापि न करें. 

(2) सुबह शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहन कर बिना कुछ खाए पिए इस घी का निर्माण करना चाहिए. 

(3) बनाते समय लिए गए घी की मात्रा का तीन से चार गुना तक बढ़ जाता है अतः बड़ी थाल लें या घी की मात्रा कम रखें जिससे ठीक से औट सकें.
प्राचीन काल में शतधौत घृत का निर्माण करते समय पवित्रमन्त्रों का उच्चारण किया जाता था और पवित्र नदियों के जल का उपयोग होता था. ग्रंथों में तो यहाँ तक बताया गया है की किस नदी,सरोवर आदि के जल का उपयोग करने पर क्या परिणाम होगा. हालांकि आधुनिक समय में इतना कर पाना सबके लिए संभव नहीं.

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