Monday, 29 February 2016

शक्तिवर्धक व औषधीय स्नान







शक्तिवर्धक व औषधीय स्नान
Nutritive and medicinal bath

स्नान का अर्थ केवल त्वचा को साफ करना नहीं है बल्कि त्वचा में बने छोटे-छोटे छिद्रों को जिन्हें रोमकूप कहते हैं उन्हें स्वच्छ व खुले हुए बनाए रखना है। इन छिद्रों के स्वच्छ होने से ही अन्दर के अंग अपना काम स्वस्थ रूप से जल्दी-जल्दी करते हैं। कुछ लोग गर्म पानी से, कुछ लोग ठंडे पानी से और कुछ लोग गुनगुने पानी से स्नान करते हैं। परन्तु ठंडे पानी से स्नान करना ही सबसे अधिक लाभकारी होता है। ठंडे पानी से स्नान करने पर शरीर को शक्ति मिलती है और खून का बहाव पूरे शरीर में तेजी से होने लगता है, जिससे त्वचा के द्वारा अन्दर की गंदगी बाहर निकल जाती है। ठंडे पानी से स्नान वही कर सकता है, जिसका शारीरिक तापमान अधिक हो और वह ठंडे पानी को बर्दाश्त करने की क्षमता रखता हो। परन्तु कमजोर व्यक्ति को ठंडे पानी से स्नान कराने पर हानि होती है अत: कमजोर व्यक्ति को पहले गुनगुने पानी से स्नान करने की आदत बनानी चाहिए, फिर ठंडे पानी से स्नान करने का अभ्यास करना चाहिए। इससे रोगी के शरीर में उत्साह और स्फूर्ति आती है।

ठंडे पानी से स्नान करने से लाभ प्राप्त करने के लिए स्नान से पहले हल्का व्यायाम करना चाहिए। इसके बाद स्नान करना चाहिए। ठंडे पानी से स्नान करने के बाद शरीर को अच्छी तरह रगड़कर धोना चाहिए। इससे त्वचा साफ और कोमल होती है। यदि सर्दी अधिक लगती हो तो इससे शरीर में गर्मी पैदा होती है। ठंडे जल का स्नान गर्म जल की अपेक्षा कम समय तक ही करना चाहिए। अधिकतर ठंडे जल का स्नान लगभग 5-7 मिनट तक किया जाता है।

ठंडे जल का स्नान करने से अनेक लाभ मिलते हैं तथा जल का प्रयोग विभिन्न रोगों में विभिन्न प्रकार से किया जाता है-

शीतल जल स्नान-
पानी का प्रयोग कभी-कभी नशे को दूर करने के लिए भी किया जाता है। जब कोई व्यक्ति नशीले पदार्थ जैसे- भांग, शराब आदि का सेवन करता हैं तो उससे उत्पन्न होने वाले नशे को दूर करने के लिए उसे शीतल जल स्नान कराया जाता है। नशा उतारने के लिए एक टब में ठंडा पानी भरकर उसमें रोगी को बैठाने से नशा दूर होता है। यदि कोई व्यक्ति सुबह उठकर थोड़ा हल्का व्यायाम करके ठंडे जल का स्नान करे तो उसके शरीर में स्फूर्ति और ताजगी आती है और पूरे दिन उसका मन शांत रहता है।

उष्ण जल स्नान-
इस स्नान में टब में गर्म या गुनगुना पानी भरकर सिर बचाकर उसमें बैठा जाएं और फिर उसमें ठंडे पानी में भिगोए हुए तौलिये को अपने सिर पर रखें। इस स्नान को लगभग 5 से 10 मिनट तक ही करें। पानी से बाहर निकलते ही एक कम्बल से अपने शरीर को अच्छी तरह से ढक लें और यदि रोगी कमजोर हो और नींद आते हो तो उसे सुला दें।

इस प्रयोग से ज्ञानतंतु शांत होते हैं और मस्तिष्क तरोताजा रहता है। इस स्नान से पूरे शरीर में खून का बहाव तेज होता है, पसीना आता है और रक्त का संचालन ठीक-ठीक होने लगता है। पेट या मस्तिष्क में एकत्रित खून रक्तनलियों में प्रवाहित होने लगता है।

रोगी का रोग दूर करने के लिए उसे गर्म जल स्नान कराया जाता है। यह स्नान बन्द कमरे में कराया जाता है ताकि बाहर की ठंडी हवा रोगी को न लगे। इसमें एक कुर्सी पर रोगी को बैठाकर उसके पूरे शरीर व कुर्सी को कम्बल से ढक दिया जाता है। इसके बाद रोगी के सिर पर एक कपड़े को भिगोकर रख दिया जाता है। इसके बाद 7-8 लीटर पानी को उबालकर चौड़े मुंह के बर्तन में रखकर रोगी जिस कुर्सी पर बैठा है उसके नीचे रख दिया जाता है। फिर एक गर्म ईंट को उस पानी में रखा जाता है। ईंट रखते ही कम्बल से रोगी समेत पूरी कुर्सी को ढक दिया जाता है। इससे पानी से निकलने वाली भाप रोगी को अच्छी तरह से मिलती है और उसे पसीना अधिक आता है जो रोग को दूर करने में लाभकारी होता है। यदि रोगी के रोग के अनुसार उसे अधिक पसीने की आवश्यकता हो तो रोगी को हल्का ठंडा पानी पिला दें। इस तरह 10 से 15 मिनट तक स्नान कराएं। स्नान की शुरुआत में जितनी गर्म भाप निकलकर ठंडी हवा अन्दर आएगी रोगी को उतनी ही गर्मी से शांति मिलेगी।

इस स्नान को करने से अधिक ठंड लगना, शारीरिक थकान, शरीर का दर्द, जलोदर आदि रोग दूर होते हैं और रोगी शांत व स्वस्थ होता है।

औषधि मिश्रित स्नान-
कुछ रोगों को जल्दी दूर करने के लिए कभी-कभी शुद्ध पानी में औषधियों को मिलाकर रोगी को स्नान कराया जाता है। रोगों को ठीक करने के लिए स्नान के पानी में विभिन्न औषधियों को मिलाया जाता है। स्नान के लिए तैयार पानी में मिलाने के लिए आवश्यक औषधियां-

स्नान के लिए पहले 10 लीटर पानी में 4 किलो गेहूं की भूसी को डालकर अच्छी तरह आग पर पकाएं। यदि पानी में और पानी डालने की आवश्यकता पड़े तो और पानी मिला लें। इससे स्नान करने से त्वचा की खुजली दूर होती है और शरीर से निकलने वाला मैल छूट जाता है।

स्नान के लिए 10 लीटर पानी में 20 ग्रेन सल्फेट ऑफ पोटाश डालकर रोगी को स्नान कराने से त्वचा के सभी रोग नष्ट होते हैं और जोड़ों का दर्द भी दूर होता है।

औषधि वाष्प स्नान-
इस स्नान के लिए पानी तैयार करते समय पानी में नीम और गोमा (गूमा) के पत्तों को मिलाकर उस पानी को आग पर गर्म किया जाता है। फिर रोगी को एक कुर्सी पर बैठाकर उस कुर्सी के नीचे गर्म किये हुए पानी को एक चौड़े मुंह के बर्तन में रखकर कुर्सी के नीचे रखकर ढक दिया जाता है। 

इसके बाद रोगी के सिर को छोड़कर उसके पूरे शरीर को कुर्सी समेत अच्छी तरह से ढक दिया जाता है और फिर धीरे-धीरे बर्तन से ढक्कन हटाया जाता है। यदि रोगी कमजोर हो तो इस क्रिया को रस्सी से बुनी हुई खाट पर लेटकर भी किया जा सकता है। इसमें रोगी के समेत खाट को भी ढक दिया जाता है और आवश्यकता के अनुसार बर्तन से ढक्कन हटाकर रोगी को भाप दी जाती है। इस स्नान से तेज बुखार समाप्त होता है और सिर का दर्द ठीक होता है।

इसके अतिरिक्त पानी में गोमा, नीम के पत्ते और बकरी की मींगनी मिलाकर अच्छी तरह से उबालकर रोगी को भाप दी जाती है। इससे सन्निपात ज्वर में भी बहुत लाभ होता है।

जल औषधोपचार केवल पीने और स्नान करने के लिए ही काम नहीं आता बल्कि अन्य क्रियाओं में भी होता है, जैसे- वस्ति क्रिया, पिचकारी, एनिमा क्रिया आदि। इन वस्तुओं का प्रयोग पानी में मिलाकर कोष्ठबद्धता (कब्ज) को दूर करने के लिए एनिमा या डूश या वस्ति क्रिया में किया जाता है। इस तरह पानी में औषधि को मिलाकर यंत्र द्वारा आंतों में पानी भरने की क्रिया की जाती है। लगभग 400 मिलीलीटर पानी में 1 चम्मच पाव डालकर गुदा में पिचकारी देने से पेट के कीड़े तुरंत निकल आते हैं और रोग में लाभ होता है।

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