Thursday, 25 February 2016

सूर्य किरण चिकित्सा











सूर्य किरण चिकित्सा :

सूर्य हमारे जीवन का आधार है | सूर्य रश्मियों में रोगनिवारक गुण होते हैं ,इस पर आधरित एक चिकित्सा पद्धति है जिसे सूर्य किरण चिकित्सा कहते हैं | 
इस आलेख में हम सूर्य तप्त जल से रोगनिवारण की जानकारी दे रहे हैं |सूर्य की रोशनी में सात रंग शामिल हैं | 
इन सब रंगो के गुण और लाभ निम्न हैं

1. लाल रंग
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यह दमा, खाँसी, मलेरिया, सर्दी, ज़ुकाम, सिर दर्दऔर पेट के विकार आदि में लाभ कारक है |

2. हरा रंग
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यह स्नायुरोग, नाडी संस्थान के रोग, लिवर के रोग, श्वास रोग आदि को दूर करने में सहायक है |

3. पीला रंग
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चोट ,घाव रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग, अतिसार आदि में फ़ायदा करता है |

4. नीला रंग
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दाह, अपच, मधुमेह आदि में लाभकारी है

5. बैंगनी रंग
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श्वास रोग, सर्दी, खाँसी, मिर् गी, दाँतो के रोग में सहायक है |

6. नारंगी रंग
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वात रोग . अम्लपित्त, अनिद्रा, कान के रोग दूर करता है |

7. आसमानी रंग
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स्नायु रोग, यौनरोग, सरदर्द, सर्दी- जुकाम आदि में सहायक है |

जल को सूर्यतप्त करने की विधि :
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किसी भी रंग की कांच की बोतल में जल भरकर व ढक्कन बंद करके उस बोतल को लकडी के किसी तख्ते पर रखकर सात— आठ घंटे तक सूर्य के प्रकाश (धूप) में रखा जाये और सात दिन के बाद उस सूर्य तापित जल को सुबह के वक्त खाली पेट आधा गिलास मात्रा में लेकर व शेष आधा गिलास उसमें सादा पानी मिलाकर इसका कुछ दिन नियमित सेवन किया जाए तो विभिन्न गंभीर रोगों से मुक्ति पायी जा सकती है | यदि रंगीन कांच की बोतलें न मिलें तो बाजार में मिलने वाले इन्हीं रंगों के सेलोफिन पेपर को रबरबैंड की मदद से सादी सफेद कांच की बोतल पर लगाकर भी यदि धूप में रखा जाए तो सूर्य तप्त जल के पूरे लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं ।

सावधानियां :

* सूर्य अस्त होने पर बोतल को उठाकर घर में किसी

* लकड़ी के पटिये पर रखें एवं प्रातः सूर्य उदय होन पर पुनः धूप में रखें |

* सूर्य तप्त जल के सेवन के आधा घंटे पहले एवं आधा घंटे बाद कुछ न खाएं-पियें |

* जल की यह मात्रा वयस्क के लिए है 8 से 15 वर्ष के बच्चे को इसकी आधी मात्रा दें एवं 5-7 वर्ष के बच्चे को 50 मिली व 1-4 वर्ष के लिए 20 मिली. तथा 1 वर्ष से कम उम्र में 10 मिली. सूर्य तप्त जल देना चाहिए |

* प्रातः खाली पेट सूर्य तप्त जल लेने का सबसे अच्छा समय है 

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