Monday, 29 February 2016

डायबिटीज से बचाएंगी ये गुणकारी पत्तियां













डायबिटीज से बचाएंगी ये गुणकारी पत्तियां

डायबिटीज का नाम सुनते ही लोग इसे लाइलाज समझकर जीवन भर दवाईयों के भरोसे रहने की सोचते हैं। लेकिन आयुर्वेद में कुछ फलों और सब्जियों के पत्तियों को डायबिटीज से लड़ने में कारगर माना जाता है। इनका सेवन ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित रखने और इनसुलिन के इस्तेमाल की शरीर की क्षमता बढ़ाने में फायदेमंद साबित होता है।

जामुन की पत्ती
भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में हुए कई अध्ययनों में जामुन की पत्ती में मौजूद ‘माइरिलिन’ नामक तत्व खून में शुगर का स्तर घटाने में कारगर पाया गया है। विशेषज्ञ ब्लड शुगर बढ़ने पर सुबह जामुन की चार से पांच पत्तियां पीसकर पीने की सलाह देते हैं। और जब शुगर काबू में आ जाए तो इसका सेवन बंद कर दें।

करी पत्ता
करी पत्ते में मौजूद आयरन, जिंक और कॉपर जैसे मिनरल न सिर्फ अग्नाशय की बीटा-कोशिकाओं को सक्रिय करते हैं, बल्कि उन्हें नष्ट होने से भी बचाते हैं। इससे ये कोशिकाएं इंसुलिन का उत्पादन तेज कर देती हैं। डायबिटीज पीडितों के लिए रोज सुबह खाली पेट 8-10 करी पत्ते चबाना फायदेमंद है।

नीम की पत्ती
आंत को ग्लूकोज सोखने से रोकने के अलावा नीम की पत्ती इंसुलिन के इस्तेमाल की शरीर की क्षमता भी बढ़ाती है। इसके सेवन को डायबिटीज की दवाओं पर निर्भरता घटाने में कारगर माना गया है। विशेषज्ञ रोज सुबह खाली पेट नीम की ताजी पत्तियां पीसकर उनसे एक चम्मच रस निकालकर पीने की सलाह देते हैं।

आम की पत्तियां
डायबिटीज के मरीजों को आम के सेवन से बचने की सलाह देते हैं, लेकिन इसकी पत्तियां बीमारी की रोकथाम में अहम भूमिका निभा सकती हैं। दरअसल, आम की पत्तियां ग्लूकोज सोखने की आंत की क्षमता घटाती हैं। इससे खून में शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। आम की पत्तियां सुखाकर पाउडर बना लें। खाने से एक घंटे पहले पानी में आधा चम्मच घोलकर पीएं।

तुलसी की पत्तियां
पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने वाली तुलसी की पत्तियां अग्नाशय की बीटा-कोशिकाओं की गतिविधियों को सुचारु बनाए रखती हैं। इससे ये कोशिकाएं सही मात्रा में इनसुलिन का उत्पादन करती हैं और ब्लड शुगर का स्तर काबू में रहता है। डायबिटीज पीडितों के लिए रोज सुबह खाली पेट 2 से 4 तुलसी पत्तियां चबाना फायदेमंद है।

पपीते के पत्ते
एएलटी और एएसटी एंजाइम का स्तर घटाने में पपीते की पत्तियां कारगर हैं। इससे इनसुलिन के इस्तेमाल की शरीर की क्षमता बढ़ती है और ग्लूकोज तेजी से ऊर्जा में तब्दील होने लगता है। लिवर बढ़ने, किडनी खराब होने का खतरा कम करने में भी पपीते की पत्तियां असरदार हैं। रोज सुबह पपीते की 8 से 10 पत्तियां पानी में उबालकर पीएं।

डायबिटीज की समस्या से निजात पाने के लिए आप इन पत्तियों का सेवन कर सकते हैं। इन पत्तियों के सेवन से निश्चित ही आपको डायबिटीज को काबू करने में मदद मिलेगी।

देसी दवा: नीम










देसी दवा: नीम की छोटी-छोटी पत्तियों से करें इन बड़े रोगों का इलाज

नीम को आयुर्वेद में कई लाइलाज रोगों की दवा माना गया है।कहते हैं नीम के नीचे बैठने और सोने मात्र से भी कई बीमारियां ठीक हो जाती है। नीम के पेड़ की जड़ से लेकर छाल, तना, निंबोली और पत्तियां सभी कुछ उपयोगी है। कई शोधों में नीम के कई चमत्कारित गुण सामने आए हैं। आयुर्वेद में नीम को अमृत के समान माना जाता है।

नीम के खास देसी  नुस्खें....

शास्त्रों में भी नीम की मान्यता है। त्रिवेणी भी बड़ और पीपल के साथ तभी पूरी होती है जब उसमें नीम साथ लगाई जाए। गांव व शहरों में पुराने समय से ही त्रिवेणी रोपी जाती रही है और इसका मुख्य कारण नीम का गुणकारी होना है। शास्त्रों व आयुर्वेद से जुड़े साहित्य में नीम को गुणों की खान कहा गया है।

- नीम के पेड़ की जड़ से लेकर छाल, तना, निंबोली और पत्तियां सभी कुछ उपयोगी है। ईंधन से लेकर दवाई तक में नीम का इस्तेमाल हमेशा ही होता आया है। नीम को लेकर भारत सहित तमाम देशों में शोध होते रहे हैं और इन शोधों ने नीम के कई चमत्कारित गुण दुनिया को बताएं हैं। आयुर्वेद से जुड़े लोग नीम को अमृत के समान बताते हैं।

- नीम एक ऐसा पेड़ है जो सबसे ज्यादा कड़वा होता है परंतु अपने गुणों के कारण आयुर्वेद व चिकित्सा जगत में इसका अहम स्थान है। नीम रक्त साफ करता है। दाद, खाज, सफेद दाग और ब्लडप्रेशर में नीम की पत्ती लेना लाभदायक होता है।

- नीम कीड़ों को मारता है। इसलिए इसकी पत्तों को कपड़ों व अनाज में रखा जाता है। नीम की 10 पत्ते रोज खाने से रक्तदोष खत्म हो जाता है।नीम के पंचांग, जड़, छाल, टहनियां, फूल पत्ते और निंबोली बेहद उपयोगी हैं। इसलिए पुराणों में इसे अमृत के समान माना गया है। नीम आंख, कान, गला और चेहरे के लिए उपयोगी है। आंखों में मोतियाबिंद और रतौंधी हो जाने पर नीम के तेल को सलाई से आंखों में डालने से काफी लाभ होता है।

- नीम की दातुन से दांत साफ करना काफी फायदेमंद होता है।घर पर इसका मंजन भी बनाया जा सकता है।दस्त हो रहे हों तो नीम का काढा बनाकर लें। (नीम के किसी भी प्रयोग को करने से पहले चिकित्सक परामर्श अवश्य लें।

नीम के पत्ते को पीसकर अगर दाईं आंख में सूजन है तो बाएं पैर के अंगूठे पर लेप लगाएं। सूजन अगर बनाईं आंख में हो तो दाएं अंगूठे पर लेप करें। आंखों की लाली और सूजन ठीक हो जाती है।कान में दर्द या फोड़ा फुंसी हो गई हो तो नीम या निंबोली को पीसकर उसका रस कानों में टपकाए।

- अगर कान से पीप आ रहा है तो नीम के तेल में शहद मिलाकर कान साफ करें, पीप आना बंद हो जाएगा। सर्दी जुकाम हो गया हो तो नीम की पत्तियां शहद मिलाकर चाटें। खराश तुरंत ठीक हो जाएगी।ह्रदय रोगों में भी नीम लाभदायक है। ह्रदय रोगी नीम के तेल का सेवन करें तो काफी फायदा होगा।

सब्जियों को साथ बनाने के अनगिनत फायदे

















सब्जियों को साथ बनाने के अनगिनत फायदे

इंडिया में सब्जियों को तालमेल के साथ बनाने का रिवाज काफी पुराना है, जो खाने के जायके को कई गुना बढ़ा देते हैं। अक्सर दो या ज्यादा सब्जियों को मिला कर बनाने का रिवाज हर जगह है। इससे अनगिनत फायदे होते हैं।

आलू-पालक की सब्जी
हर मौसम में मिलने वाला पालक कई तरह से सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसमें आयरन और फाइबर भरपूर मात्रा में मौजूद होता है, जो डाइजेशन के लिए बहुत ही जरूरी है। साथ ही, आलू में मौजूद कार्बोहाइड्रेट बॉडी को एनर्जेटिक बनाए रखता है। जब इन दोनों को मिलाकर सब्जी तैयार की जाती है, तो दोनों में मौजूद न्यूट्रिएंट्स मिलकर और भी फायदेमंद हो जाते हैं। इस सब्जी में सैचुरेटेड फैट, सोडियम और कोलेस्ट्रॉल की बहुत कम मात्रा होती है, जो दिल की बीमारियों को दूर रखती है। साथ ही फाइबर, मैग्नीशियम, पोटैशियम, विटामिन ए, बी6 और विटामिन सी की भरपूर मात्रा चेहरे पर असमय दिखने वाली झुर्रियों को भी दूर रखती है।

आलू-टमाटर की सब्जी
आलू-टमाटर की सब्जी ज्यादातर घरों में बनने वाली सब्जियों में से एक है जो न सिर्फ मेहनत, बल्कि समय की भी बचत करती है और बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों तक को पसंद आती है। सिंपल सी इस सब्जी में आलू के लगभग सारे न्यूट्रिशंस घुल जाते हैं। साथ ही, टमाटर भी गुणों से भरपूर होता है। इन दोनों को मिलाकर बनी सब्जी में सैचुरेटेड फैट और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा न के बराबर होती है। ये दिल की बीमारियों से दूर रखती है। साथ ही, डाइजेशन के लिए जरूरी फाइबर की भरपूर मात्रा, पोटैशियम, विटामिन ए, बी6 और विटामिन सी भी उच्च मात्रा में मौजूद होते हैं। जो एंटी-एजिंग का काम करते हैं। लेकिन इसके साथ ही इन दोनों सब्जियों के मिलने से सोडियम की मात्रा भी बढ़ जाती है जो सेहत के लिए सही नहीं है।

गोभी-मटर की सब्जी
एंटी-ऑक्सीडेंट और विटामिन सी से भरपूर गोभी में मैग्नीशियम, कैरोटिनॉयड्स जैसे न्यूट्रिशंस होते हैं जो फ्री रैडिकल्स डैमेजिंग को रोकते हैं। ये कॉर्डियोवैस्कुलर और कैंसर जैसी बीमारियों से भी बचाते हैं। साथ ही, इनमें मौजूद विटामिन सी इम्यूनिटी सिस्टम को सही रखता है। मटर में पोटैशियम के साथ ही फाइबर की भी सर्वाधिक मात्रा पाई जाती है। इन दोनों की मिली-जुली सब्जी कोलेस्ट्रॉल और सोडियम फ्री होती है। वहीं मैग्नीशियम, पोटैशियम, विटामिन बी6 और विटामिन सी इनमें काफी मात्रा में मौजूद होते हैं, जो हर तरह से फायदेमंद हैं।

लौकी-चना दाल की सब्जी
लौकी में पानी की सर्वाधिक मात्रा पाई जाती है, जो शरीर के सारे टॉक्सिक एलिमेंट्स को बाहर निकालकर ब्लड प्यूरिफाई करती है। लौकी विटामिन्स, मिनरल्स, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और विटामिन ए, सी और फोलेट का खजाना होती है। वहीं, चना दाल में काफी फाइबर होता है। इन दोनों को मिलाकर तैयार सब्जी में प्रोटीन की सबसे ज्यादा मात्रा होती है। इसके साथ ही इसमें फोलिक एसिड, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और बॉडी को एक्टिव रखने के लिए ढेर सारी एनर्जी मौजूद होती है, जो कमजोरी और थकान दूर करके माइंड फ्रेश करती है।

तोरी-चने की सब्जी
काला चना फाइबर से भरपूर होता है। यह अपच, कब्ज और एसिडिटी जैसी तमाम समस्याओं को दूर रखता है। वहीं, तोरी में पानी की बहुत ज्यादा मात्रा होती है। तोरी शरीर को हाइड्रेट रखने का काम भी करती है। दोनों को मिलाकर तैयार की गई सब्जी सेहत के लिहाज से बहुत ही फायदेमंद होती है, क्योंकि विटामिन ए और सी बॉडी को ऑक्सीडाइज करने के साथ ही ब्लड वेसेल्स को सही रखता है, जो ब्लड के सही सर्कुलेशन के लिए जिम्मेदार होता है।

कान के रोग (Ear Diseases)



















कान के रोग (Ear Diseases)

परिचय:-
आज के समय में विभिन्न प्रकार के प्रदूषण वातावरण फैल रहे हैं जिनमें से आवाज का प्रदूषण मनुष्यों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। वैसे देखा जाए तो कान के रोग अक्सर शरीर में खून के दूषित हो जाने की वजह से हो जाते हैं।

कान के रोग कई प्रकार के होते हैं जिनके होने के कई कारण होते हैं-

बहरापन-
बहरापन रोग के कारण व्यक्ति को कान से कुछ भी सुनाई नहीं देता है। यह रोग कई प्रकार की दवाओं के प्रयोग करने के या बचपन के समय में कई प्रकार के गलत-खानपान के कारण होता है। वैसे जब यह रोग बचपन में होता है तो उसी समय यह रोग ठीक करने के लिए कई प्रकार के प्राकृतिक उपचार हैं जिनको करने से यह रोग ठीक हो जाता है लेकिन जब यह रोग बहुत अधिक पुराना हो जाता है तो उसे ठीक करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

कर्णनाद (कानों में घंटी बजने के जैसे आवाज होना)-
इस रोग के हो जाने के कारण कानों में सनसनाहट तथा कई प्रकार की तेज आवाजें सुनाई पड़ने लगती है। यह रोग कान की बाहरी नली में किसी प्रकार के मैल जमा हो जाने के कारण होता है या किसी प्रकार के दूषित द्रव्य या किसी फोड़े आदि के कारण कान की नली का बाहरी भाग बंद हो जाता है। नाक या गले का पुराना जुकाम या कई प्रकार की औषधियों का प्रयोग करने के कारण भी यह रोग हो जाता है। यह रोग कान में किसी प्रकार की जलन होने के कारण भी हो सकता है।

कर्णस्राव (कान का बहना)-
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके कान से पीव तथा मवाद निकलने लगती है। कान से पीव-मवाद निकलने से यह पता लग जाता है कि शरीर का खून शुद्ध नहीं है। यह किसी प्रकार से कानों को कुरेदने अर्थात कानों में कोई नुकीली चीजों को डालकर कान साफ करने के कारण होता है।

कान का दर्द-
इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति के कान में दर्द होने लगता है। यह दर्द कई कारणों से हो सकता है जो इस प्रकार हैं- कान पर किसी प्रकार से चोट लग जाना, कान के अन्दर फोड़ा होना या कान में किसी प्रकार के कीड़े का चला जाना आदि। कान में दर्द कब्ज के कारण भी हो सकता है।

कनफेड (मम्पस)-
कनफेड रोग कान का एक प्रकार का बहुत ही संक्रामक रोग है जो अधिकतर लार ग्रंथियों तथा जनन ग्रंथियों में दोषपूर्ण क्रिया उत्पन्न होने के कारण होता है। कनफेड रोग अधिकतर 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को होता है। वैसे देखा जाए तो यह रोग जीवन में एक बार होकर दोबारा बहुत ही कम होता है। जब कनफेड रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके कान के सामने तथा नीचे गर्दन और जबड़े तक सूजन और दर्द होता है तथा बुखार भी हो जाता है। फिर यह रोग दूसरी तरफ भी हो जाता है। कनफेड रोग के कारण रोगी व्यक्ति को खाना चबाना या निगलना मुश्किल हो जाता है। जब यह रोग किसी व्यस्क व्यक्ति को होता है तो रोगी को बहुत अधिक परेशान करता है। यह रोग कई प्रकार से प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है। कनफेड रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण संक्रमण का हो जाना है और यह संक्रमण खान-पान की गलतियों के कारण होता है। यह रोग शरीर में दूषित जल के फैलाव के कारण भी होता है।

कान में रोग होने का लक्षण-
किसी रोगी के कान में कोई रोग होने पर उसके कान में दर्द होता है तथा उसके कान के आसपास के भाग में सूजन आ जाती है तथा वहां पर लाली पड़ जाती है। इस रोग के कारण कान में फोड़ा हो जाता है। कभी-कभी तो कानों से पीव-तथा मवाद निकलने लगती है। कान के किसी रोग के कारण कान से सुनाई भी कम देने लगता है या बिल्कुल सुनाई नहीं देता है। इस रोग से पीड़ित रोगी की कानों से बदबू (दुर्गन्ध) आने लगती है।

कानों में अनेकों प्रकार के रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

बहरापन-
यदि कोई व्यक्ति बहरेपन के रोग से पीड़ित है तो रोगी व्यक्ति को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को रोग की शुरुआती अवस्था में ही इलाज कराना चाहिए नहीं तो यह रोग पुराना हो जाता है और उसे करने में बहुत अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

बहरेपन के रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी प्रत्यामिन और श्वेतसार वाले खाद्य-पदार्थ नहीं खाने चाहिए। यदि इन पदार्थों को खाने की आवश्यकता हो भी तो कम खाने चाहिए।

बहरेपन के रोग से पीड़ित रोगी को मांस, दाल, चीनी तथा अण्डा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

बहरेपन के रोगी को मीठा खाने की आवश्यकता हो तो उसे चीनी के स्थान पर गुड़ या शहद का प्रयोग करना चाहिए।

बहरेपन के रोग से पीड़ित रोगी को हमेशा सादा तथा क्षारधर्मी पदार्थों (रसीले पदार्थ) का अधिक सेवन करना चाहिए जिसके फलस्वरुप रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक फायदा मिलता है।

बहरेपन के रोग में रोगी को प्रतिदिन दिन में कम से कम 2 बार लगभग 20 मिनट तक अपने कानों तथा कान के आस-पास गर्म पानी की भाप देनी चाहिए और इसके साथ-साथ कानों के आस-पास उंगुलियों से हल्की-हल्की मालिश करनी चाहिए। इसके बाद कान को ठंडे पानी से धोना चाहिए और फिर सूखे हुए तौलिये से कानों को पोंछना चाहिए। इसके बाद नीम की पत्तियों को पानी में डालकर इस पानी को उबालना चाहिए। फिर इस पानी को ठण्डा करके कानों की धुलाई करनी चाहिए। इसके बाद कानों को हरी बोतल के सूर्यतप्त पानी से दुबारा धोना चाहिए। फिर कानों को साफ रूई से साफ करना चाहिए। इसके बाद कानों के अन्दर मदार के पत्तों के तेल की कम से कम 2 बूंदे डालनी चाहिए और सूखी हुई रूई के फाये से कानों को बंद करना चाहिए। फिर कानों के चारों तरफ गीली मिट्टी की पट्टी लगाकर ऊपर से एक-आधे घण्टे के लिए ऊनी कपड़ा बांधना चाहिए। इस प्रकार से बहरेपन का उपचार प्रतिदिन करें तो रोगी का यह रोग कुछ दिनों के अन्दर ही ठीक हो जाता है तथा कान के और भी रोग ठीक हो जाते हैं।

बहरेपन के रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह के समय में 10 से 15 मिनट तक उदरस्नान करना चाहिए और सप्ताह में एक बार रात को सोते समय पैरों पर गरम स्नान करना चाहिए।

बहरेपन से पीड़ित रोगी को कब्ज की शिकायत हो तो रोगी व्यक्ति को 1-2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए या फिर सिर्फ रस वाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए और इसके बाद एनिमा क्रिया के द्वारा पेट को साफ करना चाहिए।

बहरेपन तथा कान के कई रोगों को ठीक करने के लिए कई प्रकार के व्यायाम हैं जिनको करने से बहरेपन का रोग ठीक हो जाता है।

बहरेपन को ठीक करने के लिए कुछ व्यायाम-
व्यायाम के द्वारा बहरेपन के रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपने दोनों पैरों को मिलाकर खड़े हो जाना चाहिए। इस स्थिति में खड़े होने पर व्यक्ति को अपना सिर सीधा रखना चाहिए और फिर सिर को दांए से बाईं ओर फिर बाईं से दाईं ओर मोड़ना चाहिए।

व्यायाम करते समय रोगी को अपना सिर सीधा रखना चाहिए फिर रोगी व्यक्ति को अपना सिर दाईं ओर इतना झुकाना चाहिए कि सिर दाहिने कंधे से छू जाए। इसके बाद सिर को सीधा करना चाहिए और फिर से सिर को उसी प्रकार बाईं तरफ मोड़ना चाहिए और सिर को झुकाकर कान को बाएं कन्धे से स्पर्श कराएं। इस क्रिया को कई बार दोहराएं।

रोगी व्यक्ति को व्यायाम करते समय सीधे खड़े हो जाना चाहिए। फिर अपनी उंगुलियों से नासारन्ध्रों को दबाना चाहिए तथा मुंह से गहरी सांस लेनी चाहिए। फिर कुछ समय के बाद सांस को भीतर की ओर रोकें और हल्के धक्के के साथ कानों पर दबाव पड़ने दें।

रोगी को व्यायाम करने के लिए सिर को सीधा करके खड़े हो जाना चाहिए तथा इसके बाद अपने सीने को तानकर रखना चाहिए। फिर रोगी अपनी मध्यम उंगली से अपनी नाक के नासिकारन्ध्रों को और दूसरे हाथ के अंगूठे से नाक के छिद्रों को बंद कर लें। इसके बाद गहरी सांस लें और ठोड़ी को छाती पर दबाएं। कुछ समय तक इसी अवस्था में खड़े रहें और फिर ठोड़ी को ऊपर उठाएं और मुंह से सांस निकाल दें। इस क्रिया को 5 से 10 बार करना चाहिए। इस प्रकार के व्यायाम करने से रोगी का बहरेपन का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

कर्णनाद (कान में घंटियों की सी आवाज सुनाई देना) का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-

रोजाना 2 बार हरी बोतल के सूर्यतप्त जल से पिचकारी द्वारा कानों को धोना चाहिए। इसके बाद कानों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए और फिर रोगी को अपने कानों में मदार के पत्तों का तेल डालना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में कर्णनाद (कान में घंटियों की सी आवाज सुनाई देना) का रोग ठीक हो जाता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए व्यायाम करना भी काफी फायदेमंद होता है। व्यायाम करने के लिए नाक के नथूने से धीरे-धीरे लम्बी सांस लें फिर जिस प्रकार नाक साफ करते हैं ठीक उसी प्रकार जोर से नाक के नथुनों से हवा छोड़ें। प्रतिदिन सुबह तथा शाम नियमित रूप से इस प्रकार के व्यायाम करने से रोगी का यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

कर्णस्राव (कान से पीब निकलना) रोग को ठीक करने के लिए उपचार-
इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को अपने खून को शुद्ध करना चाहिए, क्योंकि यह रोग अधिकतर खून की गंदगी के कारण होता है। खून साफ होने पर यह रोग अपने आप ही ठीक हो जाता है। खून को साफ करने के लिए रोगी व्यक्ति को 1 से 2 दिन का उपवास रखना चाहिए और फलों का रस पीना चाहिए।

कर्णस्राव (कान से पीब निकलना) के रोग में रोगी को मौसमी का रस तथा सब्जियों का रस पिलाना बहुत ही लाभदायक रहता है।
कर्णस्राव (कान से पीब निकलना) से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन 10 से 15 मिनट तक उदर-स्नान करना चाहिए। इसके बाद दूसरे दिन रोगी को अपने पैरों को गर्म पानी से धोना चाहिए।

कर्णस्राव (कान से पीब निकलना) से पीड़ित रोगी को कब्ज की शिकायत हो तो कब्ज को दूर करने के लिए उसे एनिमा देना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन 2 बार जिस कान से पीब निकलती है उस पर कम से कम 7 मिनट तक भाप देनी चाहिए और इसके बाद उस भाग को ठंडे पानी से भीगे हुए कपड़े से पोंछ लेना चाहिए। फिर नीम के गर्म पानी और पिचकारी द्वारा अन्दर का मैल साफ कर लेना चाहिए। इसके बाद 2 बूंद बकरी का ताजा मूत्र कान में डालकर कान साफ करना चाहिए और साफ रूई के फाये से कान को बंद कर लेना चाहिए।

कान के दर्द को ठीक करने के लिए उपचार-
कान के दर्द को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दिन में 3-4 बार कान के ऊपर और उसके आस-पास के भाग में भाप देकर मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए।

कान का दर्द यदि कान के अन्दर कोई फोड़ा हो जाने के कारण हो रहा है तो सबसे पहले उसका इलाज करना चाहिए। कान के अन्दर के फोड़े को ठीक करने के लिए कान को दिन में 2 बार नीम के पानी से धोना चाहिए और रात को कान पर मिट्टी की गीली पट्टी लगानी चाहिए।

कान के दर्द से पीड़ित रोगी को कब्ज की शिकायत हो तो रोगी को अपने कब्ज को दूर करने के लिए पेट को साफ करना चाहिए। पेट को साफ करने के लिए रोगी को एनिमा क्रिया करनी चाहिए।

कान के दर्द को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन कटिस्नान और रात को सोते समय कपडे की गीली पट्टी अपने कान पर लगानी चाहिए।

कान के दर्द से पीड़ित रोगी को पीली और गहरी नीली बोतल का सूर्यतप्त जल प्रतिदिन 4-5 बार पीना चाहिए और इसी पानी को गर्म करके कान को धोना चाहिए।

कान के दर्द को ठीक करने के लिए हरी बोतल के द्वारा बनाए गए सूर्यतप्त तेल को कान में डालना चाहिए ताकि यदि कान में कोई फोड़ा हो तो वह ठीक हो जाए। इससे कुछ ही समय में कान में दर्द ठीक हो जाता है।

कनफे़ड का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
कनफेड रोग से पीड़ित रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए जब तक कि कनफेड के कारण आने वाला बुखार न उतर जाए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कुछ दिनों तक फलों का रस पीना चाहिए। इस रोग को ठीक करने के लिए सब्जियों का रस पीना भी बहुत अधिक लाभदायक होता है। इसके बाद रोगी व्यक्ति को फल तथा सलाद खानी चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम के समय में पानी को हल्का गर्म करके उसमे नमक डालकर गरारे करने चाहिए। इसके बाद गर्म पानी से एनिमा क्रिया करके पेट को साफ करना चाहिए।

कनफेड के रोगी को कान की सूजन वाली जगह पर गर्म तथा ठंडी सिकाई करनी चाहिए ताकि सूजन कम हो सके।

कनफेड रोग को ठीक करने के लिए रोगी को कुछ दिनों तक लगातार अदरक पीसकर सूजन पर लगानी चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में सूजन कम हो जाती है और रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

नीम के पत्तों को पीसकर इसमें हल्दी मिलाकर सूजन पर लगाने से सूजन ठीक हो जाती है और कनफेड रोग ठीक हो जाता है।

कनफेड रोग से पीड़ित रोगी को सूजन वाले भाग पर मिट्टी का लेप करने से भी सूजन ठीक होकर कनफेड रोग ठीक हो जाता है।

जानकारी-

कान के रोगों का इस प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करे तो ये सभी रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।

शक्तिवर्धक व औषधीय स्नान







शक्तिवर्धक व औषधीय स्नान
Nutritive and medicinal bath

स्नान का अर्थ केवल त्वचा को साफ करना नहीं है बल्कि त्वचा में बने छोटे-छोटे छिद्रों को जिन्हें रोमकूप कहते हैं उन्हें स्वच्छ व खुले हुए बनाए रखना है। इन छिद्रों के स्वच्छ होने से ही अन्दर के अंग अपना काम स्वस्थ रूप से जल्दी-जल्दी करते हैं। कुछ लोग गर्म पानी से, कुछ लोग ठंडे पानी से और कुछ लोग गुनगुने पानी से स्नान करते हैं। परन्तु ठंडे पानी से स्नान करना ही सबसे अधिक लाभकारी होता है। ठंडे पानी से स्नान करने पर शरीर को शक्ति मिलती है और खून का बहाव पूरे शरीर में तेजी से होने लगता है, जिससे त्वचा के द्वारा अन्दर की गंदगी बाहर निकल जाती है। ठंडे पानी से स्नान वही कर सकता है, जिसका शारीरिक तापमान अधिक हो और वह ठंडे पानी को बर्दाश्त करने की क्षमता रखता हो। परन्तु कमजोर व्यक्ति को ठंडे पानी से स्नान कराने पर हानि होती है अत: कमजोर व्यक्ति को पहले गुनगुने पानी से स्नान करने की आदत बनानी चाहिए, फिर ठंडे पानी से स्नान करने का अभ्यास करना चाहिए। इससे रोगी के शरीर में उत्साह और स्फूर्ति आती है।

ठंडे पानी से स्नान करने से लाभ प्राप्त करने के लिए स्नान से पहले हल्का व्यायाम करना चाहिए। इसके बाद स्नान करना चाहिए। ठंडे पानी से स्नान करने के बाद शरीर को अच्छी तरह रगड़कर धोना चाहिए। इससे त्वचा साफ और कोमल होती है। यदि सर्दी अधिक लगती हो तो इससे शरीर में गर्मी पैदा होती है। ठंडे जल का स्नान गर्म जल की अपेक्षा कम समय तक ही करना चाहिए। अधिकतर ठंडे जल का स्नान लगभग 5-7 मिनट तक किया जाता है।

ठंडे जल का स्नान करने से अनेक लाभ मिलते हैं तथा जल का प्रयोग विभिन्न रोगों में विभिन्न प्रकार से किया जाता है-

शीतल जल स्नान-
पानी का प्रयोग कभी-कभी नशे को दूर करने के लिए भी किया जाता है। जब कोई व्यक्ति नशीले पदार्थ जैसे- भांग, शराब आदि का सेवन करता हैं तो उससे उत्पन्न होने वाले नशे को दूर करने के लिए उसे शीतल जल स्नान कराया जाता है। नशा उतारने के लिए एक टब में ठंडा पानी भरकर उसमें रोगी को बैठाने से नशा दूर होता है। यदि कोई व्यक्ति सुबह उठकर थोड़ा हल्का व्यायाम करके ठंडे जल का स्नान करे तो उसके शरीर में स्फूर्ति और ताजगी आती है और पूरे दिन उसका मन शांत रहता है।

उष्ण जल स्नान-
इस स्नान में टब में गर्म या गुनगुना पानी भरकर सिर बचाकर उसमें बैठा जाएं और फिर उसमें ठंडे पानी में भिगोए हुए तौलिये को अपने सिर पर रखें। इस स्नान को लगभग 5 से 10 मिनट तक ही करें। पानी से बाहर निकलते ही एक कम्बल से अपने शरीर को अच्छी तरह से ढक लें और यदि रोगी कमजोर हो और नींद आते हो तो उसे सुला दें।

इस प्रयोग से ज्ञानतंतु शांत होते हैं और मस्तिष्क तरोताजा रहता है। इस स्नान से पूरे शरीर में खून का बहाव तेज होता है, पसीना आता है और रक्त का संचालन ठीक-ठीक होने लगता है। पेट या मस्तिष्क में एकत्रित खून रक्तनलियों में प्रवाहित होने लगता है।

रोगी का रोग दूर करने के लिए उसे गर्म जल स्नान कराया जाता है। यह स्नान बन्द कमरे में कराया जाता है ताकि बाहर की ठंडी हवा रोगी को न लगे। इसमें एक कुर्सी पर रोगी को बैठाकर उसके पूरे शरीर व कुर्सी को कम्बल से ढक दिया जाता है। इसके बाद रोगी के सिर पर एक कपड़े को भिगोकर रख दिया जाता है। इसके बाद 7-8 लीटर पानी को उबालकर चौड़े मुंह के बर्तन में रखकर रोगी जिस कुर्सी पर बैठा है उसके नीचे रख दिया जाता है। फिर एक गर्म ईंट को उस पानी में रखा जाता है। ईंट रखते ही कम्बल से रोगी समेत पूरी कुर्सी को ढक दिया जाता है। इससे पानी से निकलने वाली भाप रोगी को अच्छी तरह से मिलती है और उसे पसीना अधिक आता है जो रोग को दूर करने में लाभकारी होता है। यदि रोगी के रोग के अनुसार उसे अधिक पसीने की आवश्यकता हो तो रोगी को हल्का ठंडा पानी पिला दें। इस तरह 10 से 15 मिनट तक स्नान कराएं। स्नान की शुरुआत में जितनी गर्म भाप निकलकर ठंडी हवा अन्दर आएगी रोगी को उतनी ही गर्मी से शांति मिलेगी।

इस स्नान को करने से अधिक ठंड लगना, शारीरिक थकान, शरीर का दर्द, जलोदर आदि रोग दूर होते हैं और रोगी शांत व स्वस्थ होता है।

औषधि मिश्रित स्नान-
कुछ रोगों को जल्दी दूर करने के लिए कभी-कभी शुद्ध पानी में औषधियों को मिलाकर रोगी को स्नान कराया जाता है। रोगों को ठीक करने के लिए स्नान के पानी में विभिन्न औषधियों को मिलाया जाता है। स्नान के लिए तैयार पानी में मिलाने के लिए आवश्यक औषधियां-

स्नान के लिए पहले 10 लीटर पानी में 4 किलो गेहूं की भूसी को डालकर अच्छी तरह आग पर पकाएं। यदि पानी में और पानी डालने की आवश्यकता पड़े तो और पानी मिला लें। इससे स्नान करने से त्वचा की खुजली दूर होती है और शरीर से निकलने वाला मैल छूट जाता है।

स्नान के लिए 10 लीटर पानी में 20 ग्रेन सल्फेट ऑफ पोटाश डालकर रोगी को स्नान कराने से त्वचा के सभी रोग नष्ट होते हैं और जोड़ों का दर्द भी दूर होता है।

औषधि वाष्प स्नान-
इस स्नान के लिए पानी तैयार करते समय पानी में नीम और गोमा (गूमा) के पत्तों को मिलाकर उस पानी को आग पर गर्म किया जाता है। फिर रोगी को एक कुर्सी पर बैठाकर उस कुर्सी के नीचे गर्म किये हुए पानी को एक चौड़े मुंह के बर्तन में रखकर कुर्सी के नीचे रखकर ढक दिया जाता है। 

इसके बाद रोगी के सिर को छोड़कर उसके पूरे शरीर को कुर्सी समेत अच्छी तरह से ढक दिया जाता है और फिर धीरे-धीरे बर्तन से ढक्कन हटाया जाता है। यदि रोगी कमजोर हो तो इस क्रिया को रस्सी से बुनी हुई खाट पर लेटकर भी किया जा सकता है। इसमें रोगी के समेत खाट को भी ढक दिया जाता है और आवश्यकता के अनुसार बर्तन से ढक्कन हटाकर रोगी को भाप दी जाती है। इस स्नान से तेज बुखार समाप्त होता है और सिर का दर्द ठीक होता है।

इसके अतिरिक्त पानी में गोमा, नीम के पत्ते और बकरी की मींगनी मिलाकर अच्छी तरह से उबालकर रोगी को भाप दी जाती है। इससे सन्निपात ज्वर में भी बहुत लाभ होता है।

जल औषधोपचार केवल पीने और स्नान करने के लिए ही काम नहीं आता बल्कि अन्य क्रियाओं में भी होता है, जैसे- वस्ति क्रिया, पिचकारी, एनिमा क्रिया आदि। इन वस्तुओं का प्रयोग पानी में मिलाकर कोष्ठबद्धता (कब्ज) को दूर करने के लिए एनिमा या डूश या वस्ति क्रिया में किया जाता है। इस तरह पानी में औषधि को मिलाकर यंत्र द्वारा आंतों में पानी भरने की क्रिया की जाती है। लगभग 400 मिलीलीटर पानी में 1 चम्मच पाव डालकर गुदा में पिचकारी देने से पेट के कीड़े तुरंत निकल आते हैं और रोग में लाभ होता है।

Best Cure for Fighting All Types of Cancer











Best Cure for Fighting All Types of Cancer!

This cure was made by the Bulgarian scientist, Professor Hristo Mermerski, and many consider it to be a revolutionary remedy, that has cured thousands of cancer-sufferers. The remedy contains all the essential vitamins, mineral salts, proteins, bioactive substances, carbohydrates and vegetable fats.
“It’s a food that treats the entire body, and the cancer in such an organism simply disappears”, Prof. Mermerski has said in his lectures.

This remedy has the ability to supposedly cure spider veins, heal heart diseases, restore the immune system, clean the liver and kidneys, etc. It also improves brain function and memory, protects from heart attacks and helps heal people who have suffered a heart attack or stroke. Many claim that this is the best cure for fighting all types of cancer!

Scientist claims to cure cancer

 Ingredients:

15 fresh organic lemons
12 fresh garlic bulbs
1 kg organic honey
400 g of sprouted grains (green wheat)
400 g fresh walnuts

How to make sprouted grains: put the 400 g of wheat in a glass container and pour some water on it, until you cover it by a couple of inches. Leave it overnight. After 10 – 12 hours, drain the grains, rinse them, and drain them again. Leave the drained wheat in a bowl for 24 hours. Soon you will have wheat sprouts, 1-2 millimeters long.

Preparation of the cure:

Grind the sprouted grains, walnuts and peeled garlic. Then grind 5 lemons and mix everything together. Squeeze the juice of the remaining 10 lemons and add it to the rest of the mixture, until it becomes homogenous.

Add the honey and stir with a wooden spoon, then pour the mixture into a glass container. Leave it in the fridge for 3 days, and then you can start consuming it.

 Consuming:

The cure should be consumed 30 minutes before breakfast, lunch, dinner and before bedtime. If you use it to treat cancer, take 1 – 2 tablespoons every 2 hours.  Professor Mermerski says that the recipe guarantees health and longevity, cures cancer, keeps the body fresh, youthful and energetic.

“This cure contains all the essential vitamins, mineral salts, bioactive substances, proteins, carbohydrates and vegetable fats. Therefore, it improves performances of all internal organs and glands, which keep the body healthy and cures cancer completely”, said the doctor.


Source: fitbodycenter

Sleeping ‪‎Benefits















Sleeping ‪‎Benefits -

People of today seem to be ignoring the amazing health benefits of sleeping. Perhaps, it is because of their very hectic schedule due to work and so many other factors. Great sleeping benefits are the following:

1. Sleeping can improve your memory health and status.

2. You can live a longer happy life through sleeping.

3. It prevents inflammation from occurring within your body.

4. It can activate your creative mind.

5. You can be a winner in everything you do.

6. It can help improve your grades in school, or help you perform better in the office.

Lose Weight with Ginger Water












Lose Weight with Ginger Water: The Healthiest Drink to Successfully Burn Excess Fat on Your Waist, Hips and Thighs! (Recipe)

Ginger is well known for it’s medicinal properties among the alternative treatments. It helps in the weight loss process and ensure the overall well-being. It has anti-bacterial properties which protect us from the infection. It promotes the fat burning process and thus you will be able to reduce the built up on your hips, waist and thighs.

Check out the benefits of ginger and why it is so useful in order to stay healthy.

1. Ginger water is a powerful antioxidant

You want to fight free radicals in your body, well then ginger is the best option which is a rich source of antioxidants. The consumption  of ginger will prevent the damage caused by unstable molecules to the healthy cells. If the damage is not prevented then the free radicals can lead to many serious health issues like cancer.

2. Strong anti-inflammatory effects

Recently “Journal of Medicinal Food” has published an article which claims that ginger has powerful anti-inflammatory properties. Thus, intake of ginger water can provide relief from pain and swelling in joints along with the diseases like rheumatism and osteoarthritis.

3. Ginger water can regulate your cholesterol levels

Consumption of ginger water regulates the cholesterol levels and reduce it in a drastic form. It helps to get rid of obesity-related disorders such as high blood pressure, heart diseases as well as cancer.

Ginger helps to lower the hepatic and serum cholesterol levels which leads to a reduction of cholesterol level in the body. It also regulates blood pressure and make the blood thin which helps in blood circulation.

4. Ginger water can protect against cancer

As per the research article published in British Journal of Nutrition, ginger water has an ability to inhibit and prevent the cancer development in the body. It has antioxidant and anti-inflammatory properties which slow down the spread of cancer and sometimes prevent cancer development as well.

How To Prepare Ginger- Infused Water?

t is very easy to prepare ginger water for the daily treatment. Just follow the given steps and your solution will be ready in no time
Things you need

Ginger root- 3-4 (thin slices)
Water- 1-1.5 litre
Process

Take 1-1.5 litre of water and start boiling it on low flame.
Add 3-4 thin slices of ginger in the boiling water.
Cook the ginger in the water on low flame for 15 minutes.
Remove the heat and let the solution cool down.
Strain the liquid and your ginger infused water is ready.
How to Use Ginger Infused Water?

The ginger water treatment should be used on the daily basis. Thus, you should drink 1 liter or 34 oz of ginger infused water every day. Use this treatment regularly for 6 months to get all the health benefits of ginger and keep your body free from toxins.

Extra tip:

Do not store the ginger water it is always better to make fresh ginger infused water every day. You can store it in a thermos and carry it everywhere throughout the day. Make sure you consume it within a day time only. Don’t use the leftover solution for next day treatment.

Just a simple addition of ginger water in your everyday life can help you stay healthy and free from infection. Also, it acts as a great tool to reduce weight and burn the accumulated fat in the body. Don’t think much, just go for it from today!


Source: letsgohealthy.net/

Sunday, 28 February 2016

दादी नानी के बताये घरेलू उपचार


















बीमारियों के लिए रामबाण हैं दादी नानी के बताये घरेलू उपचार

नीम के पानी की भाप लेने से मुंहासे धीरे-धीरे कम हो जाते हैं।

तिल का तेल बालों को काला करने में कारगर होता है।

मुंहासों के लिए अजवाइन पाउडर को दही में मिलाकर लगाये।

सांस की बदबू दूर करने के लिए रोज तुलसी के पत्ते चबाएं।

जल्द से जल्द आराम पाने की चाह ने दवाओं पर हमारी निर्भरता को इस कदर बढ़ाया दिया है कि मामूली सर्दी जुकाम होने पर भी हम डाक्टर के पास भागते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके घर में ही कई ऐसी चीजें मौजूद होती हैं जिनके प्रयोग से आप छोटी-छोटी स्वास्थ्य समस्याओं पर काबू पा सकते हैं।

जब सताए मुंहासे
आज मुंहासे सिर्फ किशोरों की समस्या नहीं रह गई। बढ़ते प्रदूषण, तनाव, असंतुलित आहार, कम पानी पीने और नशे की आदत के चलते यह आजकल हर उम्र के लोगों की समस्या बन चुका है। इनसे निजात पाने के लिए बाजार में उपलब्ध किसी पिंपल क्रीम को आजमाने के बजाय यह उपाय अपना कर देखें।

मुंहासों पर चंदन का पेस्ट लगाने से यह बैठ जाते हैं। इसके लगातार इस्तेमाल से इनके निशान भी खत्म हो जाते हैं।

नीम के पानी की भाप लेने से मुंहासे धीरे-धीरे कम हो जाते हैं।

बेसन और मट्ठे का पेस्ट व जाय फल और दूध का पेस्ट चेहरे पर लगाने से भी मुंहासे कम होते हैं।

नींबू, टमाटर का रस या कच्चा पपीता लगाने से भी फायदा होता है।

अजवाइन पाउडर को दही में मिला कर चेहरे पर लगाएं। मुंहासों से छुटकारा मिलेगा।

सफेद बालों के लिए नुस्खे
तनाव, भाग दौड़ भरी जिंदगी, बालों की ठीक से देखभाल न हो पाने और प्रदूषण के कारण बालों का सफेद होना एक आम समस्या बन गया है। बाल डाई करना या कलर करना इस समस्या का एकमात्र विकल्प नहीं। कुछ घरेलू उपचार आजमा कर भी सफेद बालों को काला किया जा सकता है।

कुछ दिनों तक, नहाने से पहले रोजाना सिर में प्याज का पेस्ट लगाएं। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।

नीबू के रस में आंवला पाउडर मिलाकर सिर पर लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।

तिल खाएं। इसका तेल भी बालों को काला करने में कारगर है।

आधा कप दही में चुटकी भर काली मिर्च और चम्मच भर नींबू रस मिलाकर बालों में लगाए। 15 मिनट बाद बाल धो लें। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।

प्रतिदिन घी से सिर की मालिश करके भी बालों के सफेद होने की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

बाल झड़ने की समस्या
अगर आप झड़ते बालों से परेशान हैं तो आप दादी नानी के सुझाएं इन घरेलू उपायों को अजमा सकते हैं।

नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।

चाय पत्ती के उबले पानी से बाल धोएं। बाल कम गिरेंगे।

बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा।

दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी।

कफ और सर्दी जुकाम में
सर्दी जुकाम, कफ आए दिन की समस्या है। आप ये घरेलू उपाय आजमाकर इनसे बचे रह सकते हैं।

नाक बह रही हो तो काली मिर्च, अदरक, तुलसी को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार लें। नाक बहना रुक जाएगा।

गले में खराश या सूखा कफ होने पर अदरक के पेस्ट में गुड़ और घी मिलाकर खाएं। आराम मिलेगा।

नहाते समय शरीर पर नमक रगड़ने से भी जुकाम या नाक बहना बंद हो जाता है।

तुलसी के साथ शहद हर दो घंटे में खाएं। कफ से छुटकारा मिलेगा।

शरीर व सांस की दुर्गध कैसे रोकें
शरीर व सांस की दुर्गध एक बहुत बुरी समस्या है, दादी नानी द्वारा बताये घरेलू उपायों को अपनाकर इसे अपने जीवन से दूर भगाये।

नहाने से पहले शरीर पर बेसन और दही का पेस्ट लगाएं। इससे त्वचा साफ हो जाती है और बंद रोम छिद्र भी खुल जाते हैं।

गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है।

पान के पत्ते और आंवला को बराबर मात्रा में पीसे। नहाने के पहले इसका पेस्ट लगाएं। फायदा होगा।

सांस की बदबू दूर करने के लिए रोज तुलसी के पत्ते चबाएं।

इलाइची और लौंग चूसने से भी सांस की बदबू से निजात मिलता है।

नकसीर का इलाज
















आयुर्वेदिक उपायों से करें नकसीर का इलाज
नाक से खून बहने की समस्या को नकसीर कहते हैं।

गर्मी के दिनों में नाक से खून बहने की समस्या हममें से कई लोगों को परेशान करती है। इस समस्या को नकसीर के नाम से भी जाना जाता है। अगर आपके नाक की एक तरफ से बिना चेतावनी के, खून बहने लगता है, तो वह मौसम, शारीरिक व्यायाम, छींकें, और सर्दी-जुकाम के कारण होता है। अगर आपकी उम्र 50 से अधिक है और आप अनवरत रूप से रक्तस्राव के शिकार हैं तो अपने रक्तचाप का परिक्षण कराएँ, क्योंकि उच्च रक्तचाप रक्त पात्रों को हानि पहुँचाता है, जिससे प्रचुर मात्रा में रक्तस्राव होने लगता है।

नकसीर के लक्षण और कारण

कारण: संक्रमण, उच्च रक्तचाप, रक्त को पतला करने की औषधि का सेवन करना, मदिरापान, नाक में हल्की सी चोट, नाक को ज़ोर लगाकर साफ़ करना, सर्दी-ज़ुकाम या फ्लू, कोकेन का अधिक मात्रा में प्रयोग करना, साइनस संक्रमण वगैरह। 

लक्षण: एक या दोनों नथुनियों से रक्तस्राव, उनींदापन, नकसीर के कारण सदमा या असमंजस।

नकसीर के आयुर्वेदिक उपचार

फिटकरी के पाउडर को गाय के घी के साथ मिलाकर नोज़ ड्रॉप्स की तरह 
नाक में डालने से नकसीर को रोकने में सहायता मिलती है।

थोडा सा कपूर, धनिये के पत्तों के रस में मिला दें और इस मिश्रण को नाक में डालें। इस मिश्रण को नाक में डालने से नाक से खून बहना जल्दी बंद हो जाता है।

20 ग्राम आंवले को पूरी रात पानी में सोख कर रखें, और सुबह उस पानी को छान कर पी लें और आमला की लेई को अपने माथे और नाक के आसपास मल दें। इससे भी नाक का ख़ून रुकने में आपको काफी मदद मिलेगी। 

लाल चन्दन, मुलेठी, और नाग केसर को समान मात्रा में मिलाकर चूरा बना लें और उसमे से 3 ग्राम चूरा दूध के साथ लेने से भी आपको नकसीर में लाभ मिलेगा।

अनार के सूखे पत्तों का चूरा बनाकर सूंघने से भी नाक से रक्त का बहना काफी हद तक रुक सकता है।

आम की गुठली के रस को सूंघने से भी नकसीर में लाभ मिलता है।
2 ग्राम केले के पेड़ के पत्ते, 20 ग्राम क्रिस्टल शुगर और 1-1/2 लीटर पानी का मिश्रण दिन में एक बार पीने से गंभी से गम्भीर नकसीर में भी लाभ मिलता है।

एक दो बूँदें नींबू का रस नथुने में डालने से भी नाक से रक्तस्राव काफी हद तक रुक जाता है।

एक ग्लास पानी में एक चुटकी नमक डाल दें और इस पानी को नाक में स्प्रे करें। ऐसा करने से नाक में से रक्तस्राव कम हो जाता है।
जब नकसीर होता है तब यह पक्का कर लें आस पास का वातावरण शुष्क तो नहीं है। अगर है तो किसी अच्छे एयर ह्यूमिडीफायर से वातावरण को नम रखें जिससे आपके नाक की कार्यशीलता हल्की हो जायेगी और नाक से रक्तस्राव नहीं होगा।

नाक के बाहरी हिस्से पर आइस पैक लगायें। यह बहुत ही सरल और असरदार तरीका है नाक से रक्तस्राव रोकने का।
गीला तौलिया अपने सर पर रखने से भी नकसीर में लाभ मिलता है।

नकसीर के अन्य उपचार
कुर्सी पर शांत रूप से बैठें और अपना सिर पीछे की तरफ न झुकायें, और सामान्य स्थिति में रहने दें, ताकि रक्तस्राव गले के पीछे से नहीं बल्कि नाक से आसानी से हो सके।

आइस पैक या आइस क्यूब नाक पर लगाने से भी रक्तस्राव को रोकने में सहायता मिलती है।

अगर आप धूम्रपान के आदि हैं, तो उसे तुरंत रोक दें।

शुष्क वातावारण में रहने से बचें। एयर कंडिशनर और एयर कूलर उत्तम होते हैं क्योंकि वे हवा में नमी को बनाये रखते हैं।

गर्भनिरोधक गोलियों के प्रयोग में सावधानी बरतें, क्योंकि गलत गोलियों के प्रयोग से नाक से रक्तस्राव शुरू हो सकता है।

सिर की खुजली और गेंदे का फूल














घरेलू नुस्खे: सिर की ‪खुजली‬ दूर करने में मददगार है ‪गेंदे‬ का फूल

कई बार ड्राई स्‍कैल्‍प, ‎रूसी‬, ‪शैंपू‬, गलत खान-पान और ‪स्‬‍कैल्‍प ‪फंगस‬ के कारण सिर में खुजली होने लगती है, जब सिर में खुजली होती है तो समझ में नहीं आता कि इसे कैसे रोका जाये। कई बार जलन और खुजाने से इसमें लाली और चकत्‍ते भी पड़ने लगते है। लेकिन अब परेशान न हो क्‍योंकि घरेलू उपचार के माध्‍यम से इस उपाय की जानकारी लेते हैं।

सिर की खुजली और गेंदे का फूल
समस्‍या से बचने के लिए महंगे उत्‍पादों को इस्‍तेमाल करने की बजाय आप गेंदे के फूल का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। गेंदे के फूल हानिकारक मुक्‍त कणों के खिलाफ रक्षा में मददगार ‪फलकोनोइड्स‬ की उच्‍च मात्रा होती है। इसके अलावा गेंदा का फूल एंटी-इंफ्लेमेंटरी, ‪‎एंटीवायरल‬ और ‪एंटीबैक्‬‍टीरियल गुणों के लिए जाना जाता है। यहां सिर में खुजली दूर करने के लिए इसके इस्‍तेमाल का तरीका बताया गया है।

स्‍कैल्‍प के लिए गेंदे का अर्क
गेंदा का अर्क तैयार करने के लिए आपको 4 गेंदा के फूल, 500 मिलीलीटर पानी और आधे नींबू की जरूरत होती है। अब अर्क को बनाने के लिए पानी में गेंदे के फूल को मिलाकर कुछ देर के लिए उबालें। फिर इस पानी में ‪नींबू‬ के रस को मिला लें। ‎अर्क‬ तैयार होने के बाद, शैम्‍पू से पहले इससे अपने स्‍कैल्‍प पर अच्‍छे से मसाज करें। इसके बाद स्‍कैल्‍प को रूसी से दूर करने के लिए आप अपने बालों को सेब साइडर सिरके से भी धो सकते हैं।
बाद में किसी हल्‍के शैंपू से बालों को धो कर प्राकृतिक रूप से सूखने दें। बालों में हेयर ड्रायर के इस्‍तेमाल से बचें क्‍योंकि यह खुजली को बढ़ा सकता है। सर्वोत्‍तम परिणाम पाने के लिए इस अर्क का उपयोग नियमित आधार पर करें। इस उपाय से स्‍कैल्‍प ‪‎सोरायसिस‬ के लक्षणों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है।

अन्‍य उपाय
प्राकृतिक तेल की मदद से भी सिर की खुजली को दूर किया जा सकता है। ड्राई स्‍कैल्‍प में भी खुजली होती है। इसलिए सिर पर ‪टीट्री‬ ‪ऑयल‬, ‪नारियल‬ का तेल, ‎ऑलिव‬ ऑयल, ‪बादाम‬ का तेल और ‪एवोकाडो‬ तेल को मिक्‍स करके लगाना चाहिए। जब तक खुजली की समस्‍या दूर नहीं हो जाती इस उपाय का इस्‍तेमाल नियमित रूप से करें।
इसके अलावा नींबू का रस भी बालों के लिए अच्छा है। सिर पर थोड़ा सा नींबू का रस मले और कुछ मिनटों के बाद बाल धो लें।

POWERFUL POTION THAT CURES MANY DISEASES











THIS POWERFUL POTION THAT CURES MANY DISEASES! YOU’LL BE SURPRISED!!!

This medicine is great for the whole body and health, but it is particularly effective in the case of ulcers, colds, asthma, arthritis, impotence, cancer, high blood pressure and many other diseases.

In fact, this medicine is excellent for whole body health, but is especially effective in the case of ulcers, colds, asthma, arthritis, impotence, cancer, high blood pressure and many other diseases.

This drug has anti-carcinogenic, anti-viral and antibacterial properties. On is the most powerful, natural ingredients: vinegar, lemon, garlic, ginger and honey. They are able to combat a variety of diseases, and to significantly improve the immune system.

In addition, this very natural blend can reduce cholesterol levels, strengthen the immune system and reduce blood sugar levels. If you eat two weeks, you can significantly reduce high blood pressure and cholesterol levels.

Recipe:

ingredients:

1 clove garlic (finely chopped)
1 piece fresh ginger size cloves garlic (minced)
1 teaspoon fresh lemon juice
1 teaspoon of raw organic apple cider vinegar
1 teaspoon of organic honey
Remark:

This is a recipe for the preparation of a single dose.

Method of preparation:

Mix all ingredients together and add half a cup of water. It can be kept in the refrigerator up to 5 days, but it is recommended that you always prepare a new dose and immediately drink because you will not lose all the properties.

With a view to safeguarding the effectiveness of this drug, do not heat.
Using:
Drink on an empty stomach in the morning and before dinner. Note that you should not consume more than 3 times a day.


Source: /healthherbs365.com/

सहजन के फ़ायदे












सहजन के फ़ायदे

कमाल की दवा है सहजन, इन बड़ी बीमारियों में करती है रामबाण का काम

सहजन या सुजना एक बहुत उपयोगी पेड़ है। इस सेंजन और मुनगा आदि नामों से भी जाना जाता है। इसे अंगे्रजी में ड्रमस्टिक भी कहा जाता है। इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है। सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं। इसमें दूध की तुलना में 4 गुना कैल्शियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है। आयुर्वेद में 300 रोगों का सहजन से उपचार बताया गया है। इसीलिए आज हम आपको परिचित करवाने जा रहे हैं सहजन की कुछ खास उपयोगिताओं व इसके गुणों से ..

1- सहजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्सियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार इसमें दूध की तुलना में 4 गुना कैल्सियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है। प्राकृतिक गुणों से भरपूर सहजन इतने औषधीय गुणों से भरपूर है कि उसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं। यह सिर्फ खाने वाले के लिए ही नहीं बल्कि जिस जमीन पर यह लगाया जाता है। उसके लिए भी लाभप्रद है। यह जमीन को उपजाऊ बनाता है।

2- सहजन पाचन से जुड़ी समस्याओं को खत्म कर देता है। हैजा, दस्त, पेचिश, पीलिया और कोलाइटिस होने पर इसके पत्ते का ताजा रस, एक चम्मच शहद, और नारियल पानी मिलाकर लें, यह एक उत्कृष्ट हर्बल दवाई है।

- सहजन के पत्ते का पाउडर कैंसर और दिल के रोगियों के लिए एक बेहतरीन दवा है। यह ब्लडप्रेशर कंट्रोल करता है।इसका प्रयोग पेट में अल्सर के इलाज के लिए किया जा सकता है। यह पेट की दीवार के अस्तर की मरम्मत करने में सक्षम है। यह शरीर की ऊर्जा का स्तर बढ़ा देता है।

3- सहजन की पत्ती इसके बीज में पानी को साफ करने का गुण होता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है ।

4- कुपोषण पीड़ित लोगों के आहार के रूप में सहजन का प्रयोग करने की सलाह दी गई है। एक से तीन साल के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए यह वरदान माना गया है। सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। इसका काढ़ा साइटिका रोग के साथ ही, पैरों के दर्द व सूजन में भी बहुत लाभकारी है।

5- इसका जूस प्रसूता स्त्री को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है। सहजन की पत्तियों के साथ ही सजहन का फल विटामिन्स से भरा होता है। सहजन में विटामिन ए होता है इसीलिए यह सौन्दर्यवर्धक के रूप में काम करता है। साथ ही, यह आंखों के लिए भी लाभदायक होता है।

6- पिंपल्स की प्रॉब्लम हो तो सहजन का सेवन करना चाहिए। इसके सूप से शरीर का खून साफ होता है। चेहरे पर लालिमा आती है और पिंपल्स की समस्या खत्म हो जाती है। सहजन की पत्तियों से तैयार किया गया सूप तपेदिक, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस आदि रोगों में भी दवा का काम करता है।

7-इसमें कैल्सियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आयरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है। इसीलिए महिलाओं व बच्चों को इसका सेवन जरूर करना चाहिए। इसमें जिंक भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो कि पुरुषों की कमजोरी दूर करने में अचूक दवा का काम करता है। इसकी छाल का काढ़ा और शहद के प्रयोग से शीघ्र पतन की बीमारी ठीक हो जाती है और यौन दुर्बलता भी समाप्त हो जाती है।

8- सहजन में ओलिक एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह एक तरह का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। साथ ही सहजन में विटामिन सी बहुत मात्रा में होता है। यह कफ की समस्या में भी रामबाण दवा की तरह काम करता है। जुकाम में सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकडऩ कम होगी।

बेली फैट कम करने के घरेलू उपाय













बेली फैट कम करने के घरेलू उपाय

हमारी अनियमित जीवनशैली, अस्त-व्यस्त खान-पान और कुछ भी खा लेने की आदत का ही नतीजा है कि आज हर दूसरा शख्स बढ़े हुए पेट के साथ दिख जाता है.

ये न केवल आपकी पर्सनैलिटी को बेअसर करता है बल्कि धीरे-धीरे कई बीमारियों को भी न्योता देता है. यूं तो बढ़े हुएपेट को कम करने के लिए कई तरह की सर्जरी और दवाइयां बाजार में मौजूद हैं लेकिन आप चाहें तो घरेलू उपाय अपनाकर भी बढ़े हुए पेट से मुक्ति पा सकते हैं.

1. लेमन जूस के साथ करें दिन की शुरुआत
बेली फैट कम करने के लिए ये एक अचूक उपाय है. सुबह उठकर गुनगुने पानी में कुछ बूंदें नींबू के रस की डाल दें. आप चाहें तो इसमें चुटकीभर नमक भी डाल सकते हैं. सुबह उठकर इस पेय का सेवन करने से उपापचय की क्रिया तो अच्छी रहती ही है साथ ही बढ़ा हुआ फैट भी कम होता है.

2. सफेद चावल खाने से परहेज
आप चाहें तो सफेद चावल की जगह कोई दूसरा अनाज इस्तेमाल कर सकते हैं. आप चाहें तो सफेद चावल की जगह ब्राउन राइस, ब्राउन ब्रेड और ओट्स को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं.

3. बहुत अधिक मीठा खाने से करें परहेज
अगर आपने ये तय कर लिया है कि आपको बढ़े हुए पेट से राहत चाहिए तो ये भी फैसला कर लें कि अब आपको मीठे खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों को हाथ नहीं लगाना है. साथ ही बहुत अधिक तैलीय चीजों से भी दूर रहने की कोशिश करें. इस तरह का खाना खाने से शरीर के कई हिस्सों में फैट जमा हो जाता है.

4. खूब पिएं पानी
अगर आपको अपना पेट कम करना है तो कोशिश कीजिए कि जितना अधिक पानी हो सके आप पिएं. एक निश्चित अंतराल पर पानी पीने से उपापचय की क्रिया तो अच्छी रहती है ही साथ ही रक्त का संचार भी सही बना रहता है.

5. कच्चे लहसुन को सेवन
रोज सुबह उठकर खाली पेट दो से तीन कली कच्ची लहसुन का सेवन करने और उसके बाद एक गिलास लेमन वॉटर पीने से भी बेली फैट कम हो जाता है.

6. मांसाहार से दूर रहने की कोशिश करें
बढ़े हुए पेट को कम करने के लिए नॉन-वेज खाने से परहेज करना ही बेहतर होगा.

7. फलों और सब्जियों का अधिकतम सेवन
हर रोज कोशिश करें कि सुबह और शाम एक फल जरूर खाएं. साथ ही सब्जियों का सेवन भी वजन को नियंत्रित करने में फायदेमंद रहेगा.

8. मसालों के इस्तेमाल में रखें ध्यान
खाना बनाते वक्त अगर मसालों का ध्यान रखा जाए तो ये भी वजन कम करने में सहायक साबित हो सकता है. खाना बनाते समय अदरक और काली मिर्च के इस्तेमाल पर ध्यान देकर भी आप बढ़े हुए पेट को कम कर सकते हैं.

मलेरिया बुखार का चमत्कारिक रामबाण घरेलु नुस्खा
















मलेरिया बुखार का चमत्कारिक रामबाण घरेलु नुस्खा

विशव युद 1914 में जर्मनी, हंगरी, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, के फौजियों ने मलेरिया फैलने पर उपरोक्त प्रकार से नमक का प्रयाग किया, वे सभी लोग मलेरिया से बचे और दूसरे लोग जो अन्य दवाइयों पर निर्भर रहे उनमे से बहुतायत से लोग मर गये। इसलिए भारत के गरीब तबके के लोगो को बुखार निवरणर्थ भुने नमक का प्रयोग सस्ता और अमोघ है। इससे नब्बे प्रतिशत रोगियों को बुखार दोबारा चढ़ेगा नही और यदि किसी कारण बुखार न उतरे तो नमक का यही इलाज करें। तीसरी मात्रा की बिलकुल आवश्यकता नही पड़ेगी। हाँ, रोगी को सर्दी से बचाने की और अधिक ध्यान देना चाहिए।

सादा खाने का नमक लेकर तवे पर (धीमी आंच पर) इतना सेंके की उसका रंग काला भूरा (कॉफ़ी के समान) हो जाएँ। ठंडा होने पर शीशी में भर लें। बस दवा तैयार है जो की मलेरिया, विषम-ज्वर, एकांतरा-पारी, तिजारी, चौथारी की खास दवा है। ज्वर आने से पहले, छ: ग्राम (एक चाय का चम्मच या अधिक मगर कम न हो) भुना नमक एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर लें तथा ज्वर उतर जाने पर भी छ: ग्राम भुना नमक गर्म पानी से सेवन करना जरूरी है। बस इन दो खुराकों के लेने मात्र से बुखार उतर जायेगा और फिर नही लौटेगा। अगर दूसरी बार बुखार फिर आ जाए तो भी यही प्रयोग किया जाये, तीसरी बार बुखार कतई नही आता है।

ये अनुभव बहुत पुराना है, उस समय नमक का जो स्वरुप आज कल आता है ऐसा नहीं था। मतलब आज कल जो इसको आयोडाईज़ेड करने के लिए जिस विधि से निकाला जाता है, वो नहीं था। आज भी पंसारी के पास या किराने वाले के पास मोटा डली वाला नमक मिल जाता है, उसको पीसकर उसको इस्तेमाल करें।

मलेरिया बुखार का अनुभव
डा. मोहनलाल जैन, अँधेरी मुम्बई द्वारा स्वानुभूत है। वे लिखते है, बहुत वर्ष पहले जब मुझे 1934-35 में जब 15 दिनों तक मलेरिया बुखार ने घेरा और डाकटरो के एल्गा और कुनीन मिक्स्चरों से कोई फायदा न हुआ हो तो मेरा ध्यान एक लेख पर गया जिसमे लिखा था की विशव युद 1914 में जर्मनी, हंगरी, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, के फौजियों ने मलेरिया फैलने पर उपरोक्त प्रकार से नमक का प्रयाग किया, वे सभी लोग मलेरिया से बचे और दूसरे लोग जो अन्य दवाइयों पर निर्भर रहे उनमे से बहुतायत से लोग मर गये। इसलिए भारत के गरीब तबके के लोगो को बुखार निवरणर्थ भुने नमक का प्रयोग सस्ता और अमोघ है। मैंने चढ़े हुए बुखार में 6 ग्राम उपरोक्त तैयार नमक (थोड़ा अजवायन थोड़ी हल्दी चूर्ण मैंने उसमे मिला दिया ताकि कोष्ठस्थ वायु निकले और संचित मल खिसके) को गर्म पानी से लिया। दो मिनट में उलटी हुयी। खूब चिकना पानी निकला। कुछ राहत लगी। फिर छः ग्राम चूर्ण पानी से लिया तो पाखाने की हाजत हुयी और २-२ घंटे से चार बार पाखाना हुआ। खूब नींद आई। इसके पश्चात कभी बुखार नहीं आया, 50 साल हो गए हैं। "मेरे प्रयोग कई मरीजों पर और मेरे खुद पर आजमाएं हुए हैं।"

इसके अतिरिक्त उपरोक्त चूर्ण (अर्थात भुना नमक + अजवायन + हल्दी) उदरशूल, पुरानी कब्जियत, कृमि-दोष आदि में लाभदायक पाया गया है।

विशेष

1. अधिक उच्च रक्तचाप के रोगी और वृद्धो के लिए उपरोक्त नमक का प्रयोग न करे या सावधानी पूर्वक करे।

2. यह ओषधि खाली पेट गुण करती है अत: इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए की रोगी कुछ न खायें और उसे ठंड न लगने पाये। अधिक प्यास लगने पर उबाल कर ठंडा किया हुआ थोड़ा सा पानी दिया जा सकता है। यथा सम्भव नमक की पहली खुराक लेने के 48 घंटे बाद दूध या चाय या पटोलिया लेकर धीरे-धीरे बुखार का उचित परहेज करते हुए साधरण खुराक पर आएं।

3. पेट में हवा भर जाने पर पीसी हुई हल्दी एक ग्राम और नमक एक ग्राम मिलाकर गर्म पानी से लेने से भी हवा ख़ारिज होकर पेट हल्का हो जाता है।

भुने नमक की अन्य विधि द्वारा मलेरिया निवारण

रोजाना इस्तमाल में लाये जाने वाले नमक को साफ़-सुथरी लोहे की कड़ाई या तवे पर अच्छी तरह भून लिया जाये, इतना की वह भूरे रंग का हो जाये। बच्चे के लिए आधा और जवान व्यक्ति के लिए पूरा चम्मच यह नमक लेकर एक गिलास पानी में उबाल लें। जब नमक पानी में भली प्रकार घुल जाये तो ऐसे गुनगुना ही रोगी को उस समय पिला देना चाहिए जबकि उसे बुखार न चढ़ा हुआ हो। इससे नब्बे प्रतिशत रोगियों को बुखार दोबारा चढ़ेगा नही और यदि किसी कारण बुखार न उतरे तो नमक का यही इलाज करें। तीसरी मात्रा की बिलकुल आवश्यकता नही पड़ेगी। हाँ, रोगी को सर्दी से बचाने की और अधिक ध्यान देना चाहिए।

इस दवा का वास्तविक लाभ भूखे पेट सेवन करने से ही होता है। इसलिए इसका सेवन हमेशा खाली पेट ही करना चाहिए। पिछले 17 वर्षो में सैंकड़ों रोगियों पर इस दवा का प्रयोग हो चूका है। जिन लोगो ने नियमानुसार इस दवा का सेवन किया और उचित परहेज रखा उनमे से शायद ही कोई निराश हुआ हो।

सभी ज्वरों में पथ्यापथ्य

ज्वर के प्रारंम्भ में रोगी को अन्न न देकर केवल तरल पदार्थ या फल देना अच्छा रहता है। जैसे-दूध, चाय मौसमी या मौसमी का रस नारियल का पानी, निम्बू पानी, चीकू, पपीता, आलूबुखारा आदि। आयुर्वेदानुसार मैदे की बनी वस्तुएं, बिस्कुट, डबल रोटी आदि भी बुखार की हालत में देना ठीक नही है। इनकी जगह मूंग की दाल का पानी, साबूदाना-दूध दे सकते है। या फिर भुने हुए गेहूं के आटे का घोल बनाकर रूचि के अनुसार आधा कप की मात्रा में एक-दो बार दे सकते है।

पटोलिया बनाने की विधि-

थोड़े से गेंहू के आटे में कुछ बुँदे देशी घी की डालकर हल्की आंच पर गुलाबी-गुलाबी भुने आटे में गर्म पानी मिलाते समय किसी कड़छी से अच्छी तरह हिलाते रहें ताकि आटे की डलियां न रहने पाएं और घोल गाड़ा और एक सर बन जाये। फिर इसमें आवश्यकता अनुसार दूध शककर या अकेली शककर या नमक मिलाकर लें। यही सुपाच्य पटोलिया है।

बुखार कम हो जाने पर खिचड़ी, गेंहू का दलिया अंगूर, सेव आदि सुपाच्य आहार दे। बुखार के दौरान पानी खूब पिलायें लेकिन उबाल कर ठंडा किया हुआ और थोड़ी थोड़ी मात्रा में घूंट-घूंट करके बार-बर देना चाहिए। बुखार उतर जाने के बाद धीरे-धीरे तरल के स्थान पर ठोस पदार्थ दें जो की 
पौष्टिक हो। ध्यान रहे की बुखार रोगी को कोई भी खाद्य पदार्थ भर पेट न खिलाएं बल्कि थोड़ी थोड़ी मात्रा में कई बार करके खिलाएं। बुखार में पुदीना के 10 पाते और 10 मुनक्का शाम को 200 ग्राम पानी में भिगो देने के बाद प्रात: मसल छानकर पीना बहुत लाभप्रद है। इससे से उदर विकार, अपच और मंदाग्नि में लाभ होता है। बुखार के बाद कमजोरी दूर करने के लिए, दूध में खजूर (4-5 दाने) उबालकर अथवा शहद एक-दो चम्मच की मात्रा में दो बार देना चाहिए।

खाली पेट थोड़ा कच्चा लहसुन खाने के जबरदस्त फायदे











रोजाना खाली पेट थोड़ा सा कच्चा लहसुन खाने के जबरदस्त फायदे
Benefits of Garlic Daily Eating 

लहसुन सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता, बल्कि इसे खाने के अनेक हेल्दी फायदे भी हैं। आप सोच भी नहीं सकते कि लहसुन की एक कली कितने रोगों को खत्म कर सकती है। यह कई बीमारियों की रोकथाम और उपचार में प्रभावी है। कुछ भी खाने या पीने से पहले लहसुन खाने से ताकत बढ़ती है। यह एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक एंटीबायोटिक की तरह काम करता है। आयुर्वेद में लहसुन को जवान बनाए रखने वाली औषधि माना गया है। साथ ही, यह जोड़ों के दर्द की भी अचूक दवा है। 
आज हम आपको बताने जा रहे हैं लहसुन खाने से होने वाले ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में…..


1. हाई बीपी से बचाए
कई लोगों का मानना है कि लहसुन खाने से हाइपरटेंशन के लक्षणों से आराम मिलता है। यह न केवल ब्लड सर्कुलेशन को नियमित करता है, बल्कि दिल से संबंधित समस्याओं को भी दूर करता है। साथ ही, लीवर और मूत्राशय को भी सुचारू रूप से काम करने में सहायक होता है।

2. डायरिया दूर करे
पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे डायरिया आदि के उपचार में भी लहसुन रामबाण का काम करता है। कुछ लोग तो यह दावा भी करते हैं कि लहसुन तंत्रिकाओं से संबंधित बीमारियों को दूर करने में बहुत लाभकारी होता है, लेकिन केवल तभी जब इसे खाली पेट खाया जाए।

3. भूख बढाए
यह डाइजेस्टिव सिस्टम को ठीक करता है और भूख भी बढ़ाता है। जब भी आपको घबराहट होती है तो पेट में एसिड बनता है। लहसुन इस एसिड को बनने से रोकता है। यह तनाव को कम करने में भी सहायक होता है।

4. वैकल्पिक उपचार
जब डिटॉक्सिफिकेशन की बात आती है तो वैकल्पिक उपचार के रूप में लहसुन बहुत प्रभावी होता है। लहसुन शरीर को सूक्ष्मजीवों और कीड़ों से बचाता है। अनेक तरह की बीमारियों जैसे डाइबिटीज़, ट्युफ्स, डिप्रेशन और कुछ प्रकार के कैंसर की रोकथाम में भी यह सहायक होता है।

5. श्वसन तंत्र को मजबूत बनाएं
लहसुन श्वसन तंत्र के लिए बहुत लाभदायक होता है। यह अस्थमा, निमोनिया, ज़ुकाम, ब्रोंकाइटिस, पुरानी सर्दी, फेफड़ों में जमाव और कफ आदि की रोकथाम व उपचार में बहुत प्रभावशाली होता है।

6. ट्यूबरकुलोसिस में लाभकारी
ट्यूबरकुलोसिस (तपेदिक) में लहसुन पर आधारित इस उपचार को अपनाएं। एक दिन में लहसुन की एक पूरी गांठ खाएं। टी.बी में यह उपाय बहुत असरदार साबित होता है।

Friday, 26 February 2016

Get Rid Of The Annoying Fat Stomach


















Want To Get Rid Of The Annoying Fat Stomach? 

This Is The Right Drink For You! 

The popular “Sassy water” is a good way of detoxifying your body and has had great success recently. It got its name thanks to Cynthia Sass, a nutritionist who claims that after only four days of consuming this water you will see a decrease in your pounds and waist circumference. The “Sassy water” has a pleasant taste and aroma which will help you get fit right before the summer. Here’s how to prepare it:

Ingredients
8 cups of water
Small ginger root
8 mint leaves
1 cucumber
1 lemon

Preparation

Peel all the ingredient and chop them, then mix them with water. Prepare the drink overnight and drink it the following morning.

Many nutritionists and aroma therapists recommend “Sassy water” to reduce excess weight and detoxify your body. 
However, they also stress that it should be consumed moderately, and you need to take a break after some time.

You need to learn to listen to your body and see how it reacts to certain foods. If ginger is too strong for you, substitute it for peppers. Create a personal combination by adding your favorite spices and fruits.

Source: Weekly Healthy Life