शीतपित्त
* इसे साधारण भाषा में पित्ती उछलना कहते हैं| इसमें रोगी के शरीर में खुजली मचती रहती है, दर्द होता है तथा व्याकुलता बढ़ जाती है| कभी- कभी ठंडी हवा लगने या दूषित वातावरण में जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है|
* शीतपित्त पेट की गड़बड़ी तथा खून में गरमी बढ़ जाने के कारण होता है| वैसे साधारणतया यह रोग पाचन क्रिया की खराबी, शरीर को ठंड के बाद गरमी लगने, पित्त न निकलने, अजीर्ण, कब्ज, भोजन ठीक से न पचने, गैस और डकारें बनने तथा एलोपैथी की दवाएं अधिक मात्रा में सेवन करने से भी हो जाता है| कई बार अधिक क्रोध, चिन्ता, भय, बर्रै या मधुमक्खी के डंक मारने, जरायु रोग (स्त्रियों को), खटमल या किसी जहरीले कीड़े के
काटने से भी इसकी उत्पत्ति हो जाती है|
* पित्त बढ़ जाने के कारण हाथ, पैर, पेट, गरदन, मुंह, जांघ आदि पर लाल-लाल चकत्ते या ददोरे पड़ जाते हैं| उस स्थान का मांस उभर आता है| जलन और खुजली होती है| कान, होंठ तथा माथे पर सूजन आ जाती है| कभी-कभी बुखार की भी शिकायत हो जाती है|
* करे ये उपाय --
* सबसे पहले रात को दो से चार चम्मच एक एरण्ड का तेल दूध में पीकर सुबह दस्तों के द्वारा पेट साफ कर लें| फिर छोटी इलायची के दाने 5 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम और पीपल 10 ग्राम - सबको कूट-पीसकर चूर्ण बना लें| इसमें से आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन सुबह मक्खन या शहद के साथ चाटें|
* पित्ती वाले रोगी के शरीर में गेरू पीसकर मलें तथा गेरू के परांठे या पुए खिलाएं| गाय के घी में दो चुटकी गेरू मिलाकर खिलाने से भी लाभ होता है (कई बार ये प्रयोग हमने आजमाया है और सफल रहा )..
* शीतपित्त में चिरौंजी का सेवन करें|
* 2 ग्राम नागकेसर को शहद में मिलाकर चाटें|
* एक चम्मच हल्दी, एक चम्मच गेरू तथा दो चम्मच शक्कर - सबको सूजी में मिलाकर हलवा बनाकर खाएं|
* एक चम्मच त्रिफला चूर्ण शहद में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करें|
* आंवले के चूर्ण में गुड़ मिलाकर खाने से गरमी के कारण उछली पित्ती ठीक हो जाती है|
* 5 ग्राम सोंठ तथा 5 ग्राम गेरू - दोनों को शहद में मिलाकर चाटें|
* नीम की चार निबौलियों का गूदा शहद में मिलाकर सेवन करें|
* एक चम्मच अदरक का रस तथा शहद इस रोग में काफी लाभकारी है|
* आधा चम्मच हल्दी तवे पर भूनकर उसे दूध या शहद के साथ लें|
* पित्ती उछलने पर घी में हींग को मिलाकर ददोरों पर मलें|
* पानी में नीबू निचोड़कर स्नान करने से भी काफी लाभ होता है|
* नारियल के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करें|
* सरसों के तेल में अदरक का रस मिलाकर मालिश करें|
* 10 ग्राम गुड़ में एक चम्मच अजवायन तथा 10 दाने पीपरमेंट मिलाकर सेवन करें|
* यदि पित्ती गरमी से उत्पन्न हुई हो तो शरीर पर चंदन का तेल मलें|
* आधा चम्मच गिलोय के चूर्ण में आधा चम्मच चंदन का बुरादा मिलाकर शहद के साथ सेवन करें|
* पानी में पिसी हुई फिटकिरी मिलाकर स्नान करें| नागर बेल के पत्तों के रस में फिटकिरी मिलाकर शरीर
पर लगाएं|
* थोड़े से मेथी के दाने, एक चम्मच हल्दी तथा चार-पांच पिसी हुई कालीमिर्च - सबको मिश्री में मिलाकर चूर्ण बना लें| सुबह आधा चम्मच चूर्ण शहद या दूध के साथ सेवन करें|
* पटोल, नीम की छाल, त्रिफला तथा अड़ूसा - सभी 4-4 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करें|
* बकायन की छाल को धूप में सुखाकर पीस डालें| फिर 2 रत्ती इस चूर्ण को शहद के साथ लें|
* भोजन के बाद 6 माशा हरिद्राखण्ड को दूध के साथ सेवन करें|
परहेज ---
* साग-सब्जी, मौसमी फल तथा रेशेदार सब्जियों का सेवन करें| गरम पदार्थ, गरम मेवे, गरम फल तथा गरम मसालों का प्रयोग न करें| साग- सब्जी तथा दालों में नाममात्र नमक डालें| खटाई, तेल, घी आदि का प्रयोग कम करें| पित्त को कुपित करने वाली चीजें, जैसे-सिगरेट, शराब तथा कब्ज पैदा करने वाले गरिष्ठ पदार्थ बिलकुल न खाएं| पुराने चावल, जौ, मूंग की दाल, चना आदि लाभकारी हैं| प्याज, लहसुन, अंडा, मांस, मछली आदि शीतपित्त में नुकसान पहुंचाते हैं, अत: इनका भी सेवन न करें| जाड़ों में गुनगुना तथा गरमियों में ताजे जल का प्रयोग करें|
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