Friday 4 September 2015

गठिया (Rheumatism)










गठिया (Rheumatism)

परिचय:-
मनुष्यों के शरीर के कई भाग होते हैं तथा उम्र के अनुसार गठिया रोग कई प्रकार का होता है-

ऑस्टियो आर्थराईटिस-
इस प्रकार का गठिया रोग उम्र के बढ़ने के साथ होने वाला एक सामान्य रोग है जो हडि्डयों के जोड़ों के घिस जाने के कारण होता है। इस रोग के कारण रोगी के नितम्ब, रीढ़ की हड्डी, घुटने अधिक प्रभावित होते हैं। कभी-कभी यह रोग उंगुलियों के जोड़ों में भी हो जाता हैं। इस रोग के कारण इन अंगों में तेज दर्द होता है।

रूमेटाइड आर्थराईटिस-
इस गठिया रोग के कारण छोटी उंगुलियों के जोड़, उंगलियां, कोहनियों, कलाइयों, घुटनों, टखनों आदि में दर्द होने लगता है तथा इन अंगों में अकड़न हो जाती है। हडि्डयों के जोड़ों में सूजन आ जाने के कारण उपस्थियां तो क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तथा इसके साथ में जो मांसपेशियां, कंडराएं तथा कोशिकाएं होती हैं उनमें विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं जिसके कारण रोगी व्यक्ति में विकलांगपन जैसी समस्या हो जाती है। यह रोग पुरुषों से अधिक महिलाओं को होता है।

गाउटी आर्थराईटिस-
इस गठिया रोग के हो जाने के कारण पैर के पंजों में बहुत तेज दर्द होता है और यह दर्द इतना अधिक होता है कि पंजों को हल्के से छूने पर रोगी अपना पंजा एक ओर को हटाने लगता है। जब यह रोग अधिक पुराना हो जाता है तो इससे संबन्धित हडि्डयां धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगती हैं जिसके कारण व्यक्ति में विकलांगता उत्पन्न हो जाती है। गाऊट गठिया रोग से पीड़ित लगभग 10 प्रतिशत रोगी पथरी रोग के शिकार (रोगी हो जाना) हो जाते हैं। यह रोग पुरुषों को अधिक होता है।

सर्वाकल स्पोंडिलाईसिस-
इस रोग के कारण गर्दन की हडि्डयों और कमर के निचले भाग में तेज दर्द तथा अकड़न हो जाती है।

इन सभी गठिया रोगों की पहचान:-
इन रोगों के कारण हडि्डयों के जोड़ों के पास तेज दर्द, सूजन तथा अकड़न हो जाती है। जब मौसम में बदलाव होता है तो इस रोग के कारण और भी तेज दर्द होना शुरू हो जाता है तथा सूजन भी अधिक बढ़ जाती है।

गठिया रोग होने का कारण:-
इस रोग के होने का सबसे मुख्य कारण हडि्डयों के जोड़ों में यूरिक एसिड का जमा हो जाना है।

भोजन में अधिक प्रोटीन का सेवन करने से भी यह रोग हो जाता है।

अधिक दवाईयों का सेवन करने के कारण भी गठिया का रोग हो सकता है।

श्रम तथा व्यायाम की कमी होने के कारण भी गठिया रोग हो जाता है।

शरीर में कब्ज तथा गैस बनाने वाले पदार्थों का खाने में अधिक सेवन करने के कारण भी गठिया रोग हो सकता है जैसे- मिर्च-मसाले, नमक, दाल, मछली, अण्डे तथा मांस आदि।

गठिया रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

गठिया रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले शरीर में जमा यूरिक एसिड को घुलाकर शरीर से बाहर निकालने वाले पदार्थ जैसे- पोटाशियम प्रधान खाद्य पदार्थ लौकी, तरबूज, ककड़ी, खीरा, पत्तागोभी, पालक, सफेद पेठा आदि के रस को प्रतिदिन पीना चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए।

नींबू, अनन्नास, आंवला तथा संतरे का रस पीकर उपवास रखने से भी गठिया रोग में बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कुछ सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को मौसम के अनुसार फल तथा सलाद और हरी सब्जियों का रस पीना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन नारियल का पानी पिये तो उसे बहुत अधिक लाभ मिलता है।

अंगूर तथा शरीफा फलों को कुछ दिनों तक खाने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को कच्चे आलू का रस पिलाना अधिक लाभदायक होता है।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में 2-3 अंजीर, 10 मुनक्का तथा 1 खुबानी को भिगोने के लिए रख दें और सुबह के समय में उठकर इसे खा लें। इससे गठिया रोग में बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में दाल, दही, दूध, तली-भुनी चीजें तथा चीनी का सेवन नहीं करना चाहिए।

इस रोग से पीड़ित रोगी को पानी अधिक से अधिक मात्रा में पीना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में तांबे के बर्तन में पानी को रखना चाहिए। इस पानी को सुबह उठकर पीने से गठिया रोग को ठीक होने में बहुत लाभ मिलता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को लहसुन अधिक खाने चाहिए।

सुबह के समय में अंकुरित मेथीदाना तथा शहद का सेवन करने से गठिया रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन खजूर तथा तिलों से बने लड्डुओं का सेवन करे तो उसका यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अदरक तथा तुलसी का रस हल्के गर्म पानी में डालकर पीना चाहिए। यह रोगी के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1 बार उपवास अवश्य रखना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन सुबह के समय में लगभग 240 मिलीलीटर सूर्यतप्त द्वारा बनाया गया हरी बोतल का पानी पिये और गठिया रोग से प्रभावित भाग पर इस जल को लगाए तो उसका यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को सूर्य की रोशनी में अपने शरीर की प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट तक सिंकाई करनी चाहिए क्योंकि सूर्य की किरणों में लाल रोशनी इस रोग को बहुत जल्दी ठीक कर देती है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को गठिये से प्रभावित भाग पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को एनिमा क्रिया करके अपने पेट की सफाई करनी चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को कटिस्नान, मेहनस्नान, धूपस्नान तथा भापस्नान करना चाहिए और इसके बाद शरीर पर सूखा घर्षण स्नान (सूखे तौलिये से शरीर को पोंछना) करना चाहिए।

इस रोग को ठीक करने के लिए गर्म पानी से पैरों को धोना चाहिए जिसके फलस्वरूप गठिया रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

गठिया रोग से प्रभावित भाग पर गर्म पट्टी करने तथा गर्म मिट्टी की पट्टी करने या गर्म-ठंडी सिंकाई करने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

प्रतिदिन योगनिद्रा करने से भी गठिया के रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को अपने जोड़ों की हल्की शुष्क मालिश करनी चाहिए तथा नींबू के रस को गठिया से प्रभावित भाग पर लगाकर मालिश करने से गठिया रोग जल्दी ठीक हो जाता है।

गठिया रोग के कारण प्रभावित स्थान पर जो सूजन पड़ जाती है उस पर बर्फ की ठण्डे पानी की पट्टी करने से सूजन कम हो जाती है और रोगी को इस रोग की वजह से जो दर्द होता है वह कम हो जाता है।

गठिया रोग से प्रभावित भाग पर नारियल या सरसों के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करने से जोड़ों की अकड़न कम हो जाती है और दर्द भी कम हो जाता है।

गठिया रोग से पीड़ित रोगी को 1 चुटकी हल्दी खाकर ऊपर से पानी पीने से दर्द में आराम मिलता है।

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति यदि हारसिंगार की 4-5 पत्तियों को पीसकर 1 गिलास पानी में मिलाकर सुबह तथा शाम लगातार 2-3 सप्ताह तक पिये तो उसका गठिया रोग जल्दी ठीक हो जाता है।

टब के पानी में नमक डालकर 30 मिनट तक पानी में लेटे रहने से गठिया रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।

इस रोग को ठीक करने के लिए कई आसन हैं जिन्हें प्रतिदिन करने से गठिया रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है ये आसन इस प्रकार हैं- पद्मासन, वज्रासन, उज्जायी, सूर्यभेदी, प्राणायाम, भस्त्रिका-नाड़ीशोधन, सिद्धासन, गोमुखासन, गोरक्षासन, सिंहासन तथा भुजंगासन आदि।

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