भोजन के नियम - भोजन कैसे करें
आप क्या खाते हैं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना यह महत्वपूर्ण है कि आप किस भाव-दशा में, और कैसे खाते हैं। आप आनंदित खाते हैं, या दुखी, और चिंता से भरे हुए खाते हैं। अगर आप चिंता से खा रहे हैं, तो श्रेष्ठतम भोजन के परिणाम भी जहरीले होंगे। अगर आप आनंद से खा रहे हैं, तो इसकी बहुत संभावना है कि जहर भी जहरीले परिणाम न ला पाए।
यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हम जन्म से भोजन करते है लेकिन यह नहीं जानते है कि कब खाना, कितना, और क्या खाना है।
एक बार अरस्तु से उसके शिष्य ने पूछा, ‘‘सफलता का रहस्य क्या है ?’’ अरस्तु ने जवाब दिया, ‘‘सफलता का रहस्य मुँह में है।’’ शिष्य ने फिर पूछा, ‘‘कैसे?’’ तब गुरु ने बताया, ‘‘अपने आहार पर ध्यान दो और सफल होओ।’’जब आपका आहार संतुलित, पोैष्टिक व हल्का होगा तो आपकी कार्य क्षमता स्वतः ही बढ़ जाएगी। एवं जब आप गरिष्ठ व अधिक भोजन करते है तो आलस्य आपको घेर लेता है, तब आपकी कार्य क्षमता घट जाती है। इसलिए सफल होने में आहार की बड़ी भूमिका है। अच्छा आहार हमें प्राणवान बनाता है। तामसिक व अत्यधिक भोजन से व्यक्ति प्रमादी हो जाता है। मांसाहारी खाने की तुलना में शाकाहारी भोजन हमारे शरीर के लिए ज्यादा उपयुक्त है, और जल्दी पच भी जाता है।
बहुत ज्यादा पका हुआ या बासी खाने की तुलना में ताजा कच्चा भोजन ज्यादा प्राणयुक्त है।
प्रातः ऊर्जा युक्त नाश्ता लेना दिन भर क्रियाशील रहने के जिए जरुरी है। जैविक नाश्ता सर्वोंत्तम है। नाश्ते में अंकुरित अनाज व फल लें। तली-गली चीजें न लें। शाम का भोजन हल्का होना चाहिए। तभी तो कहावत है कि सम्राट की तरह नाश्ता करो, राजकुमार की तरह दोपहर का भोजन करो एवं भिखारी की तरह शाम का भोजन करो।
हमें ताजा फल और सब्जियां हर रोज खानी चाहिए, तला हुआ भोजन कम से कम और रेशायुक्त भोजन ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए। भोजन पर यदि हम थोड़ा सा ध्यान दें तो हम अपनी प्राणशक्ति उच्च स्तर पर बनाए रख सकते हैं।
भोजन के समय भाव-दशा--आनंदपूर्ण, प्रसादपूर्ण ही होनी चाहिए :
हिंसक भोजन यही नहीं है कि कोई आदमी मांसाहार करता हो। हिंसक भोजन यह भी है कि कोई आदमी क्रोध से आहार करता हो।
लेकिन हमारे घरों में हमारे भोजन की जो टेबल है या हमारा चौका जो है, वह सबसे ज्यादा विषादपूर्ण अवस्था में है। पत्नी दिन भर प्रतीक्षा करती है कि पति कब घर खाने आ जाए। चौबीस घंटे का जो भी रोग और बीमारी इकट्ठी हो गई है, वह पति की थाली पर ही उसकी निकलती है। और उसे पता नहीं कि वह दुश्मन का काम कर रही है। उसे पता नहीं, वह जहर डाल रही है थाली में।
और पति भी घबड़ाया हुआ, दिन भर की चिंता से भरा हुआ थाली पर किसी तरह भोजन को पेट में डाल कर हट जाता है! उसे पता नहीं है कि एक अत्यंत प्रार्थनापूर्ण कृत्य था, जो उसने इतनी जल्दी में किया है और भाग खड़ा हुआ है। यह कोई ऐसा कृत्य नहीं था कि जल्दी में किया जाए। यह उसी तरह किए जाने योग्य था, जैसे कोई मंदिर में प्रवेश करता है, जैसे कोई प्रार्थना करने बैठता है, जैसे कोई वीणा बजाने बैठता है। जैसे कोई किसी को प्रेम करता है और उसे एक गीत सुनाता है।
यह उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था। वह शरीर के लिए भोजन पहुंचा रहा था। यह अत्यंत आनंद की भाव-दशा में ही पहुंचाया जाना चाहिए। यह एक प्रेमपूर्ण और प्रार्थनापूर्ण कृत्य होना चाहिए।
जितने आनंद की, जितने निश्चिंत और जितने उल्लास से भरी भाव-दशा में कोई भोजन ले सकता है, उतना ही उसका भोजन सम्यक होता चला जाता है।
भोजन कैसे करें :
हाथ-पैर, मुँह धोकर आसन पर पूर्व उत्तर, या पूर्वोत्तर की ओर मुँह करके भोजन करने से यश एवं आयु बढ़ती है। खड़े-खड़े, जूते पहनकर सिर ढँककर भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन को अच्छी तरह चबाकर करना चाहिए। वरना दाँतों का काम (पीसने का) आँतों को करना पड़ेगा जिससे भोजन का पाचन सही नहीं हो पाएगा। भोजन करते समय मौन रहना चाहिए।
इससे भोजन में लार मिलने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। टीवी देखते या अखबार पढ़ते हुए खाना नहीं खाना चाहिए। स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए भोजन करना चाहिए। स्वादलोलुपता में भूख से अधिक खाना बीमारियों को आमंत्रण देना है। भोजन हमेशा शांत एवं प्रसन्नचित्त होकर करना चाहिए।
कृतज्ञता का भाव :
भोजन हम कर रहे हैं, पानी हम पी रहे हैं, श्वास हम ले रहे हैं, इस सबके प्रति अनुग्रह का बोध होना चाहिए। समस्त जीवन के प्रति, समस्त जगत के प्रति, समस्त सृष्टि के प्रति, समस्त प्रकृति के प्रति, परमात्मा के प्रति एक अनुग्रह का बोध होना चाहिए कि मुझे एक दिन और जीवन का मिला है। मुझे एक दिन और भोजन मिला है। मैंने एक दिन और सूरज देखा। मैंने आज और फूल खिले देखे। आज मैं और जीवित था।
यह जो भाव है, यह जो कृतज्ञता का भाव है, वह समस्त जीवन के साथ संयुक्त होना चाहिए। आहार के साथ तो बहुत विशेष रूप से। तो ही आहार सम्यक हो पाता है।
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