वातान्तक बटीः--
यह वातान्तक वटी वात विकृत होने से उत्पन्न होने वाले 80 प्रकार के वात रोगों में लाभ पहुचाती है..शरीर के जोड़ो में दर्द हो या पेट में गैस बनती हो यह लाभ अवश्य करती है आमवात की समस्या के लिए यह वटी एक परीक्षित उपाय है.
आयुर्वेदिक ग्रन्थों के अनुसार वात 80 प्रकार का होता है एवं इसी से सामंजस्य रखता हुआ एक और रोग है जिसे बाय या वायु कहते हैं। यह 84 प्रकार का होता है। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि जब वात एवं वायु के इतने प्रकार हैं, तो, यह कैसे पता लगाया जाय कि यह वात रोग है या बाय एवं यह किस प्रकार का है ? यह कठिन समस्या है और यही कारण है कि इस रोग की उपयुक्त चिकित्सा नहीं हो पाती है, जिससे इस रोग से पीड़ित 50 प्रतिशत व्यक्ति सदैव परेशान रहते हैं। उन्हें कुछ दिन के लिए इस रोग में राहत तो जरूर मिलती है, परन्तु पूर्णतया सही नहीं हो पाता है। इस रोग की चिकित्सा एलोपैथी के माध्यम से पूर्णतया सम्भव नहीं है, जबकि आयुर्वेद के माध्यम से इसे आज कल 90 प्रतिशत तक जरूर सही किया जा सकता है
सामग्री-----
(1)सोंठ 30 ग्राम
(2)सुहागा 30 ग्राम
(3)सोंचर (काला नमक) 30 ग्राम
(4) हीरा हींग 30 ग्राम
(5) सहिजन की अंतरछाल का रस आवश्यकतानुसार,
निर्माण विधि-----
(1)सर्वप्रथम कच्चे सुहागे को जौकुट कर लोहे के तवे पर भून लें भूनने पर कच्चा सुहागा लाई की तरह फूल जायेगा, फूला हुआ सुहागा ही प्रयोग करना है..
(2) अब एक बर्तन में सहिजन की छाल का रस लेकर इसमें हींग घोल लें। हींग के घुल जाने पर इस घोल में चूर्ण किया हुआ सोंठ, फुलाया सुहागा एवं काला नमक को मिला दें और ठीक से घुटाई करें कुछ देर में समस्त द्रव्य आपस में चिपकने लगेंगे तब उसकी चने के आकार की गोलियां बना लें और छाया में सुखाकर बन्द कांच के ढक्कन बंद बर्तन में रख लें।
सेवन विधि ----- एक से दो गोली नाश्ते व् भोजन के बाद गरम पानी से लें.. बच्चों को ये गोलियां नही देनी है
अपथ्य --- वातकारक और शीतल प्रकृति के भोजन का परहेज करें
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