Monday, 28 March 2016

डकार













डकार में पेट की गैस को मुंह से निकाला जाता है, जिसमें कभी कभी अजीब सी आवाज़ और गंध होती है। अधिकतर डकार आना किसी बीमारी का संकेत नहीं है। फिर भी समाज में इसे स्वीकार नहीं किया जाता। 
भारतीय और चायनीज़ संस्कृति में कुछ स्थितियों में इसे स्वीकार नहीं किया जाता। जापान में इसे शिष्टाचार के विरुद्ध समझा जाता है। पश्चिमी सभ्यता जैसे उत्तरी अमेरिका, फ्रेंच और जर्मन में भी डकार को उचित नहीं समझा जाता तथा ऐसा माना जाता है कि डकार आने पर आपको आवाज़ दबाने का प्रयत्न करना चाहिए तथा माफ़ी मांगनी चाहिए।

कभी कभी आधे खाने के बीच ही डकार आ जाती है, कभी ठूंस ठूंस के खा लो तब भी डकार नहीं आती। और कभी तो खाली पेट ही डकार आने लगती है। ऐसे में समझ नहीं आता कितना खाया जाए। आज हम आपको बताते हैं चार तरह की डकारों के बारे में ।

पहली है तृप्ति डकार....
हमारा आमाशय जिसे सरल भाषा में पेट कहा जाता है, एक बलून जैसा होता है। जब हम खाना खाते हैं तो खाना आमाशय (पेट) में जाता है, पेट भोजन के कारण फूल जाता है और जब खाना आमाशय से नीचे चला जाता है तो यह सिकुड़ जाता है।

जब हमारा पेट खाली होता है तब इसमें कुछ शुद्ध वायु रहती है। हम खाना खाते है, जब हमारा पेट आधा भर जाता है तो यह शुद्ध वायु हमारे मुंह में आती है। जब ये बाहर निकलती है तो इस वायु को हम तृप्ति डकार कहते हैं।

इसका मतलब अब और नहीं खाना। वास्तव में खाना पचाने के लिए आमाशय का एक चौथाई भाग पाचक रस, एंजाइम्स और एसिड से भरता है और बाकी 1/4 भाग खाली रहना चाहिए। अब आप पूछेंगे खाली क्यूँ ? जब खा ही रहे हैं तो पूरा ही भर लें।

जिस तरह दही को मथकर मक्खन निकाला जाता है, उसी तरह यह एंजाइम्स और एसिड मंथन के द्वारा खाना पचता है। मंथन के लिए आमाशय में कम से कम एक चौथाई जगह खाली होनी चाहिए, नहीं तो मंथन सुचारू रूप से नहीं हो सकेगा।

पूरक डकार......
तृप्ति डकार से ज्यादा खाने पर हमारा आमाशय पूरा भर जाता है और आमाशय की वायु हमारे मुंह में आती है जिसे हम पूरक डकार कहते है। पूरक डकार का अर्थ है कि अब अमाशय खाने को पचा नहीं सकता।
इस परिस्थिति में हमारा आमाशय खाने से पूरा भर जाता है, शरीर में निकले हुए पाचक रस व एसिड के लिए आमाशय में जगह नहीं रहती, वे बेचारा छाती के पास भोजन नली में पड़ा रहता है। फिर आप बेचारे कहते हैं मुझे छाटी में जलन हो रही हैं, एसिडिटी हो रही है।

खट्टी डकार......
इसके बारे में तो आपको बताने के आवश्यकता ही नहीं, इसका कारण तो आप खुद बहुत अच्छे से जानते हैं। जब खाना पचता नहीं, सड़ता ही रहता है और खाना सड़ने पर, खाने में से कुछ गैस ऊपर से और कुछ गैस नीचे से निकलती है। ऊपर से निकलने वाली गैस के रास्ते में एसिड पड़ा होता है और हमें खट्टी डकार का अनुभव होता हैं।

भूख डकार......
भोजन के 5-6 घंटे के बाद जब आमाशय खाने को पचा कर नीचे भेज देता है, तब भूख डकार आती है। भूख डकार का अर्थ है कि आमाशय को अब 1-2 घंटे का आराम चाहिए। इस डकार में कोई कोई सुगंध या दुर्गन्ध नहीं होती और इसके आने पर हमें हल्कापन अनुभव होता है। कुल मिलाकर एक स्वस्थ व्यक्ति को भोजन पचाने में 6 से 8 घंटे लगते है और बीमार व्यक्ति को ज्यादा भी लग सकते है।

इसलिए हिंदुस्तान में कहा जाता है जो एक दफा खाए वो योगी, दो दफा खाए वो भोगी, तीन दफा खाए वो रोगी और चार दफा खाना जल्द मृत्यु कारक होता है। इन चार डकारों में से एक स्वस्थ व्यक्ति को केवल तृप्ति डकार और भूख डकार आनी चाहिए और पूरक डकार तथा खट्टी डकार नहीं आनी चाहिए।

उपाय......
अब आप सब कुछ जानने के बाद भी केवल जीभ की ही सुनते हैं तो फिर उपाय भी जान लीजिये।

अजवायन, सेंधानमक, संचरनमक, यवक्षार, हींग और सूखे आंवले का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर बना लें। 1 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से खट्टी डकारे आना बंद हो जाती हैं।

बाजरे के दाने के बराबर हींग लेकर गुड़ या केले के साथ खाने से डकार में आराम मिलता है।

एक चम्मच सिका पिसा जीरा एक चम्मच शहद में मिलाकर खाना खाने के बाद चाटने से डकारों में लाभ होता है।

देशी घी में भुनी हुई हींग, काला नमक और अजवायन के साथ सुबह-शाम सेवन करने से डकार, गैस और भोजन के न पचने के रोगों में लाभ मिलता है।

दालचीनी का तेल एक से तीन बूंद को बतासे या चीनी पर डालकर सुबह-शाम सेवन करने से डकार और पेट में गैस बनने में लाभ पहुंचता है।

थोड़ा सा पुदीना और थोड़ा सा सूखा धनिया, बड़ी इलायची, अजवायन और काला नमक इन सबको पीसकर या तो टिकिया बना लें या चूर्ण बना लें। फिर इसे दो घंटे बाद गर्म पानी से लेना चाहिए। थोड़ी देर में डकारे बंद हो जाएंगी।

मेथी के हरे पत्ते उबालकर, दही में रायता बनाकर सुबह और दोपहर में खाने से खट्टी डकारे, अपच, गैस और आंव में लाभ होता है।

और अंत में सबसे बड़ा उपाय है बिना भूख के खाना न खाएं, ज़रूरत से ज्यादा खाना न खाएं, सम्यक और सादा भोजन ही खाएं, चबा चबा के खाएं। और मन अशांत हो तब तो बिलकुल न खाएं।

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