वरुण मुद्रा और उसके लाभ
वरुण मुद्रा दो प्रकार की होती है |सामान्यतया सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठिका) को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाने पर वरुण मुद्रा बनती है| इस तत्व की कमी से जहां त्वच में रूखापन आता है, वहीं स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन बन जाता है| एक अजीब-सा तनाव हमेशा तन-मन में बना रहता है| परिणामस्वरूप अपने सामाजिक ढांचे को भी ऐसा व्यक्ति बिगाड़ लेता है| इस प्रकार की समस्या में यह मुद्रा बहुत लाभकर होती है | इसके विपरीत अर्थात् जल तत्व की वृद्धि होने से कल्पना की उड़ान ऊंचाइया छूने लगती हैं| व्यक्ति यथार्थ के धरातल की बजाय कल्पना के आसमान में उड़ता रहता है|जल तत्व की अधिकता से अनेकानेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं |इसे नियंत्रित करने के लिए दुसरे मुद्रा को किया जाता है ,अर्थात कमी में पहली मुद्रा और अधिकता में दूसरी मुद्रा से लाभ होता है|..................................................हर-हर महादेव
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