शंख मुद्रा और उसके लाभ
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बाएं हाथ के अंगूठे को दोनों हाथ की मुट्ठी में बंद करके बाएं हाथ की तर्जनी उंगली को दाहिने हाथ के अंगूठे से मिलाने से शंख मुद्रा बनती है| इस मुद्रा में बाएं हाथ की बाकी तीन उंगलियों के पास में सटाकर दाएं हाथ की बंद उंगलियों पर हल्का-सा दबाव दिया जाता है| इसी प्रकार हाथ बदलकर अर्थात् दाएं हाथ के अंगूठे को बाएं हाथ की मुट्ठी में बंद करके शंख मुद्रा बनाई जाती है| इस मुद्रा में अंगूठे का दबाव हथेली के बीच के भाग पर और मुट्ठी की तीन उंगलियों का दबाव शुक्र पर्वत पर पड़ता है जिससे हथेली में स्थित नाभि और थाइरॉइड (पूल्लिका) ग्रंथि के केंद्र दबते हैं| परिणामस्वरूप नाभि और थाइरॉइड ग्रंथि के विकार ठीक होते हैं| यह मुद्रा पूजन में भी प्रयुक्त होती है| इसका प्रयोग लंबे समय तक किया जा सकता है| इस मुद्रा का नाभिचक्र से विशेष सम्बन्ध है जिसके कारण नाभि से संबंधित शरीर की नाड़ियों पर सूक्ष्म और स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव पड़ता है तथा स्नायुमण्डल शक्तिशाली बनती है|........................................................हर-हर महादेव
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