बांझपन की चिकित्सा
लगभग 12 ग्राम खाने वाले सोडे को 2 लीटर गर्म पानी में मिलाकर स्त्री की योनी में पिचकारी मारे। इसके अलावा स्त्री की योनि में मूषक के तेल का फाहा रखना भी बांझपन के रोग में फायदेमंद होता है।
3 ग्राम मालकांगनी के पत्ते, 1 ग्राम सज्जीखार, 2 ग्राम वर्च और 2 ग्राम विजयसार, इन सबको मिलाकर चूर्ण बनाकर आधा सुबह तथा आधा शाम के समय दूध के साथ लें। इस चूर्ण का सेवन करते समय रोगी को घी, तिल, कांजी, उड़द, छाछ, नारियल और छुहारे लेनी चाहिए।
तगर, छोटी कंटकारी, कुठ, सेंधानमक और देवदार के बूरे में इन सबको पकाकर इनके तेल का फोहा लेकर यानि के अंदर रखना चाहिए। हरमल, सोया और मालकांगनी के बीज इन सबको मिलाकर कोयले के ऊपर रखकर तथा ऊपर से कपड़ा ढककर पैरो के बल बैठ जाए और स्त्री को योनि के अंदर धुआ लेना चाहिए तथा वे खुली हवा में बाहर न निकले।
रोगी स्त्री को सोते समय घुटनों के बल बैठना चाहिए और फिर धरती पर इस तरह से लेटे कि उनकी छाती नीचे धरती से स्पर्श करती रहें। उनकी निचली कमर ज्यादा से ज्यादा ऊपर की तरफ उठी रहे। जब वे थक जाये तो वे दाई करवट लेट सकती है। अगर वे चारपाई पर भी इस क्रिया को कर सकती है। मूषक के तेल का फाहा योनि के अंदर रखना चाहिए। बांझपन के रोग में दूध की भार लेना भी अति उपयोगी और लाभदायक होता है।
1 ग्राम नीम का रस, 1 ग्राम सज्जी और 1 ग्राम सौंठ इन सबको मिलाकर इलायची के अर्क के साथ लेना चाहिए। बांझपन के रोग में दशमूल के काढ़ा की पिचकारी करना भी लाभकारी होता है।
रोगी स्त्री को गर्भ ठहरने के शुरुआत में ही मोती-सीप की भस्म और फौलाद की भस्म 125-125 ग्राम सुबह-शाम मक्खन, गाजर या सेब के मुरब्बे के साथ लेना चाहिए। यदि स्राव आना शुरु हो जाए तो रसौंत आधा ग्राम 50 ग्राम पानी से या माखन के साथ लेना चाहिए तथा नाभि पर बड़ के मुलायम पत्ते, गेरु और हरी काई का लेप करना चाहिए। अगर ये तीनों चीजे न मिल सके तो काई भी एक चीज ले सकते है। स्त्री को पीठ के बल सीधा लेटना चाहिए।
4-4 ग्राम समुद्र सोख, 3-3 ग्राम सूखे अनार का छिलका इन दोनों को मिलाकर सुबह के समय तीन बार खांड के कच्चे तथा पके शरबत या अनार के रस के साथ देने से बांझ स्त्री को बहुत ही फायदा तथा लाभ मिलता है।
बांझपन से ग्रस्त रोगी स्त्री को दूध तथा चावल गर्म नहीं खाने चाहिए। बांझपन स्त्री को घीया, मूली, शलजम, कद्दू, ठंडी लस्सी, मक्खन, हरी तोरी या कुल्फे के साग से रोटी देनी चाहिए।
मलमल के पतले बारिक कपड़े में पोटली बनाकर और उसे पानी में काफी ऊपर तक डुबो कर गर्भाशय के मुंह के अंदर रख दें। इसे सुबह और शाम दो बार रखना चाहिए। यदि इस तरह से भी खून का रुकना बंद ना हो तो किसी अच्छे लेडी चिकित्सक या वैध से इलाज कराना चाहिए।
अधिकतर गर्भपात खाना-पीना सही ढ़ग से न होना, बहुत ज्यादा मेहनत करने से, ज्यादा भारी सामान के उठाने से, टेढे-मेढे रास्ते पर कार या गाड़ी के सफर करने से, पेट के अंदर चोट लगने से, गलत तरीके से संभोग करने से, सूजाक के रोग होने से और बच्चेदानी के अंदर से बार-बार स्राव होने से गर्भपात हो जाता है,
लगभग 12 ग्राम खाने वाले सोडे को 2 लीटर गर्म पानी में मिलाकर स्त्री की योनी में पिचकारी मारे। इसके अलावा स्त्री की योनि में मूषक के तेल का फाहा रखना भी बांझपन के रोग में फायदेमंद होता है।
3 ग्राम मालकांगनी के पत्ते, 1 ग्राम सज्जीखार, 2 ग्राम वर्च और 2 ग्राम विजयसार, इन सबको मिलाकर चूर्ण बनाकर आधा सुबह तथा आधा शाम के समय दूध के साथ लें। इस चूर्ण का सेवन करते समय रोगी को घी, तिल, कांजी, उड़द, छाछ, नारियल और छुहारे लेनी चाहिए।
तगर, छोटी कंटकारी, कुठ, सेंधानमक और देवदार के बूरे में इन सबको पकाकर इनके तेल का फोहा लेकर यानि के अंदर रखना चाहिए। हरमल, सोया और मालकांगनी के बीज इन सबको मिलाकर कोयले के ऊपर रखकर तथा ऊपर से कपड़ा ढककर पैरो के बल बैठ जाए और स्त्री को योनि के अंदर धुआ लेना चाहिए तथा वे खुली हवा में बाहर न निकले।
रोगी स्त्री को सोते समय घुटनों के बल बैठना चाहिए और फिर धरती पर इस तरह से लेटे कि उनकी छाती नीचे धरती से स्पर्श करती रहें। उनकी निचली कमर ज्यादा से ज्यादा ऊपर की तरफ उठी रहे। जब वे थक जाये तो वे दाई करवट लेट सकती है। अगर वे चारपाई पर भी इस क्रिया को कर सकती है। मूषक के तेल का फाहा योनि के अंदर रखना चाहिए। बांझपन के रोग में दूध की भार लेना भी अति उपयोगी और लाभदायक होता है।
1 ग्राम नीम का रस, 1 ग्राम सज्जी और 1 ग्राम सौंठ इन सबको मिलाकर इलायची के अर्क के साथ लेना चाहिए। बांझपन के रोग में दशमूल के काढ़ा की पिचकारी करना भी लाभकारी होता है।
रोगी स्त्री को गर्भ ठहरने के शुरुआत में ही मोती-सीप की भस्म और फौलाद की भस्म 125-125 ग्राम सुबह-शाम मक्खन, गाजर या सेब के मुरब्बे के साथ लेना चाहिए। यदि स्राव आना शुरु हो जाए तो रसौंत आधा ग्राम 50 ग्राम पानी से या माखन के साथ लेना चाहिए तथा नाभि पर बड़ के मुलायम पत्ते, गेरु और हरी काई का लेप करना चाहिए। अगर ये तीनों चीजे न मिल सके तो काई भी एक चीज ले सकते है। स्त्री को पीठ के बल सीधा लेटना चाहिए।
4-4 ग्राम समुद्र सोख, 3-3 ग्राम सूखे अनार का छिलका इन दोनों को मिलाकर सुबह के समय तीन बार खांड के कच्चे तथा पके शरबत या अनार के रस के साथ देने से बांझ स्त्री को बहुत ही फायदा तथा लाभ मिलता है।
बांझपन से ग्रस्त रोगी स्त्री को दूध तथा चावल गर्म नहीं खाने चाहिए। बांझपन स्त्री को घीया, मूली, शलजम, कद्दू, ठंडी लस्सी, मक्खन, हरी तोरी या कुल्फे के साग से रोटी देनी चाहिए।
मलमल के पतले बारिक कपड़े में पोटली बनाकर और उसे पानी में काफी ऊपर तक डुबो कर गर्भाशय के मुंह के अंदर रख दें। इसे सुबह और शाम दो बार रखना चाहिए। यदि इस तरह से भी खून का रुकना बंद ना हो तो किसी अच्छे लेडी चिकित्सक या वैध से इलाज कराना चाहिए।
अधिकतर गर्भपात खाना-पीना सही ढ़ग से न होना, बहुत ज्यादा मेहनत करने से, ज्यादा भारी सामान के उठाने से, टेढे-मेढे रास्ते पर कार या गाड़ी के सफर करने से, पेट के अंदर चोट लगने से, गलत तरीके से संभोग करने से, सूजाक के रोग होने से और बच्चेदानी के अंदर से बार-बार स्राव होने से गर्भपात हो जाता है,
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