Friday, 12 December 2014

अदरक












अदरक रूखा, तीखा, उष्ण-तीक्ष्ण होने के कारण कफ तथा वात का नाश करता है, पित्त को बढ़ाता है। इसका अधिक सेवन रक्त की पुष्टि करता है। यह उत्तम आमपाचक है। भारतवासियों को यह सात्म्य होने के कारण भोजन में रूचि बढ़ाने के लिए इसका सार्वजनिक उपयोग किया जाता है। आम से उत्पन्न होने वाले अजीर्ण, अफरा, शूल, उलटी आदि में तथा कफजन्य सर्दी-खाँसी में अदरक बहुत उपयोगी है।

सावधानीः रक्तपित्त, उच्च रक्तचाप, अल्सर, रक्तस्राव व कोढ़ में अदरक का सेवन नहीं करना चाहिए। अदरक साक्षात अग्निरूप है। इसलिए इसे कभी फ्रिज में नहीं रखना चाहिए ऐसा करने से इसका अग्नितत्त्व नष्ट हो जाता है।

औषधि-प्रयोगः
उलटीः अदरक व प्याज का रस समान मात्रा में मिलाकर 3-3 घंटे के अंतर से 1-1 चम्मच लेने से अथवा अदरक के रस में मिश्री में मिलाकर पीने से उलटी होना व जौ मिचलाना बन्द होता है।

हृदयरोगः अदरक के रस व पानी समभाग मिलाकर पीने से हृदयरोग में लाभ होता है।

मंदाग्निः अदरक के रस में नींबू व सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से जठराग्नि तीव्र होती है।

उदरशूलः 5 ग्राम अदरक, 5 ग्राम पुदीने के रस में थोड़ा-सा सेंधा नमक डालक पीने से उदरशूल मिटता है।

शीतज्वरः अदरक व पुदीने का काढ़ा देने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है। शीतज्वर में लाभप्रद है।

पेट की गैसः आधा-चम्मच अदरक के रस में हींग और काला नमक मिलाकर खाने से गैस की तकलीफ दूर होती है।

सर्दी-खाँसीः 20 ग्राम अदरक का रस 2 चम्मच शहद के साथ सुबह शाम लें। वात-कफ प्रकृतिवाले के लिए अदरक व पुदीना विशेष लाभदायक है।
खाँसी एवं श्वास के रोगः अदरक और तुलसी के रस में शहद मिलाकर लें।

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.