Monday 22 December 2014

प्राणायाम से लाभ













प्राणायाम से लाभ 
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प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है। पहला शब्द ‘प्राण’ है दूसरा ‘आयाम’। प्राण का अर्थ जो हमें शक्ति देता है या बल देता है। आयाम का अर्थ होता है विस्तार। प्राणायाम यानी सांस का विस्तार तथा संकुचन।  श्वास और निःश्वास की गति को नियंत्रित करने और उसे एक खास लय में लेने की प्रक्रिया को प्राणायाम कहा जाता है। योग की ऐसी मान्यता है कि जब हम सांस लेते हैं तो सिर्फ हवा नही खींचते बल्कि उसके साथ ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा को उसमें खींचते हैं। हम जो सांस फेफड़ों में खींचते हैं, वह सिर्फ सांस नही रहती उसमें सारे ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा  रहती है।  जो सांस आपके पूरे शरीर को चलाना जानती है, वह आपके शरीर को दुरुस्त करने की भी ताकत रखती है।

सावधानियां

* प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अंदर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।

*बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए।

* बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए।

* सुखासन,सिद्धासन,पद्मासन, वज्रासन किसी भी ऐसे आसन में बैठें जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं।

* प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।

* प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए। यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।

* प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण न करें। सांस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।


* खाने के तुरंत बाद प्राणायाम नहीं करना चाहिए और न ही प्राणायाम करने के तुरंत बाद खाना चाहिए। सुबह का समय प्राणायाम के लिए सबसे मुफीद होता है। इसे खाली पेट करना चाहिए। 

प्राणायाम मनुष्य की शारीरिक प्रकृति के कारण होने वाले अनेक रोगों अथवा निर्बलताओं को दूर करने में सक्षम है |इसके अलावा शरीर को स्वस्थ और प्रक्रितिष्थ बनाकर उसे कष्ट सहन करने की शक्ति भी प्रदान करता है |प्राणायाम के सतत अभ्यास से शरीरांगों की शक्ति ,बुद्धि ,तेज तथा कान्ति की वृद्धि होती है |नियमित रूप से प्राणायाम करने पर साधक में इतना बल आ जाता है की वह चलती गाड़ियों को रोक सकता है ,जंजीरों को तोड़ सकता है और सलाखों को मोड़ सकता है |

हमारे शरीर ,मन और आत्मा का मैल बीमारियों ,दुर्भावनाओं ,ईर्ष्याओं एवं कुंठाओं आदि के रूप में होता है |यह मैल प्राणायाम करने से नष्ट हो जाता है |इस प्रकार हमारी आत्मा पवित्र बनती है तथा निर्मल बुद्धि विकसित होती है |कुछ वर्षों तक प्राणायाम के सतत अभ्यास से साधक की इच्छा शक्ति इतनी बढ़ जाती है की वह बड़े से बड़े चुनौतीपूर्ण कार्य को चुटकी बजाते ही हल करने में समर्थ हो जाता है |प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से ह्रदय रोग ,क्षय रोंग ,रक्तचाप ,दमा ,न्युमोनिया तथा चर्मरोग आदि दूर हो जाते हैं |ये रोग कहीं न कहीं श्वाश -प्रश्वास से जुड़े होते हैं |प्राणायाम द्वारा साधक की श्वास-प्रश्वास क्रिया सुधरती है और उपर्युक्त रोगों की सहज ही निवृत्ति हो जाती है |

प्राणायाम से शरीरस्थ सभी प्रकार के मल नष्ट हो जाते हैं |मूलतः छोटी आंत ,बड़ी आंत ,गुर्दे और फेफड़े शरीरस्थ मालों को बाहर निकालते हैं |प्राणायाम करने से अन्दर की वायु में उष्णता उत्पन्न होती है जिससे उत्सर्जक अंग सक्रीय हो जाते हैं और शरीरस्थ मल का निष्कासन भली भाँती करने लगते हैं |

प्राणायाम करने से बुद्धि ,विवेक ,ज्ञान ,कौशल ,इच्छाशक्ति ,चतुराई ,धैर्य ,साहस ,एवं क्षमता आदि मानसिक शक्तियों को बढावा मिलता है |प्राणायाम दीर्घायु प्राप्त करने की निश्चित कुंजी है |एक-एक श्वास से मनुष्य की आयु का निर्धारण होता है अर्थात आयु श्वासों पर निर्भर होती है |हम जितने धीरे और कम श्वास लेंगे हमारी आयु उतनी ही बढ़ेगी |

सामान्यतः व्यक्ति दिन -रात में २१६०० बार श्वास लेता और छोड़ता है |इस हिसाब से वह एक मिनट में लगभग ७ बार सांस लेता तथा ७ बार छोड़ता है |प्राणायाम करने से हमारे श्वास-प्रश्वास धीरे धीरे लम्बे एवं गहरे होते जाते हैं |इनकी संख्या घटकर एक- दो तक रह जाती है जिसके कारण दीर्घायु की प्राप्ति होती है |

प्राणायाम से स्वभाव में सौम्यता आती है |ईर्ष्या, द्वेष ,वैर भाव समाप्त होते हैं |सर्व धर्म समभाव की भावना जाग्रत होती है ||ईच्छाओं और लालसाओं पर नियंत्रण होता है |आचरण में दृढ़ता आती है |एकाग्रता बढ़ जाती है |जितेन्द्रियता की प्राप्ति होती है |आध्यात्मिक विकास होता है |ध्यान और साधना में मन रमने लगता है |साधक को चिर संतुष्टि प्राप्त होती है |

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