Tuesday 24 June 2014

तुलसी


















१/ तुलसी एक अमृतबूटी है. इसके प्रयोगों से चमत्कारिक सफलता प्राप्त होती है. विभिन्न प्रकार के विषों को दूर करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है.

२/ केवल सर्प, बिच्छु, पागलकुत्ता आदि के काटने से ही शरीर में विष नहीं फैलता वरन शरीर में उत्पन्न फोड़े, फुंसियाँ, खुजली, कैंसर, मलेरिया, कालेरा आदि रोगों के रूप में यह विष अनेकानेक प्रकार से शरीर में प्रकट होता है. रक्त में मिला हुआ विष रक्तकणों का नाश करता है व नाना प्रकार के रक्तविकार उत्पन्न करता है. तुलसी इन सभी प्रकार के विषों को नष्ट कर शरीर को निरोगी बनाती है.

३/ उचित विधिविधान के साथ तुलसी मिश्रित औषधियों का सेवन करने से चमत्कारिक लाभ मिलते हैं.

मित्रों, हम यहाँ कुछ ऐसे सत्य उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनसे तुलसी की अमोघता पर प्रकाश पड़ेगा और हम तुलसी को सही ढंग से पहचान सकेंगे.

१/ चाय, काफी, शक्कर अत्यंत हानिकारक होने के कारण महात्मागाँधी द्वारा स्थापित उरूलिकांचन (पुणे) के निसर्गोपचार आश्रम में इनके सेवन की मनाही होने से, तुलसी व अदरक को उबालकर काढ़ा तैयार किया जाता है. उसमें शहद अथवा गुड़ की शहद जैसी चासनी तथा उचित मात्रा में दूध डालकर रोगियों को दिया जाता है. यह वनस्पति-चाय पूर्णतः निरापद व अपेक्षाकृत अत्यंत लाभ पहुँचाने वाली होती है.

२/ तुलसी किडनी की कार्यशक्ति में वृद्धि करती है. उरूलिकांचन में तुलसी के रस में शहद मिलाकर देने से एक रोगी की किडनी की पथरी छः माह के निरंतर उपचार से बाहर निकल गयी थी.

३/ इंट्राट्रेकियल कैंसर से पीड़ित एक रोगी पर ऑपरेशन तथा अन्य अनेक उपचार करने के बाद, अंत में आशा छोड़कर डाक्टरों ने घोषित किया कि रोगी का यकृत खराब हो गया है तथा यक्ष्मा में भी वृद्धि हो रही है अतः अब यह लाइलाज रोग ठीक नहीं हो सकता. तभी एक वैद्द ने डॉक्टरों के उक्त विधान के विरुद्ध चुनौती दी. रोगी को पाँच सप्ताह तक सिर्फ तुलसी का सेवन करवाया. वह इतना स्वस्थ हो गया कि एक-सवा माह में ही वह एक-डेढ़ किलोमीटर पैदल चलने लग गया.

४/ योनि-कैंसर वाली एक वृद्धा को डॉक्टरों ने जब रेडियम व कोबाल्ट चिकत्सा द्वारा भी रोगमुक्त होते हुये न देखा और आशा छोड़ दी तब तुलसी के मात्र दस दिवसीय उपचार से ही उसका रक्तस्त्राव और दर्द कम हो गया तथा एक माह बाद तो उसके श्लेष्मायुक्त रिसते घाव भी ठीक हो गये.

५/ तुलसी के उपचार द्वारा हृदयरोग से पीड़ित कई रोगियों के उच्च-रक्तचाप सामान्य होकर हृदय की दुर्बलता कम हो गयी तथा रोगी के रक्त में चर्बी की वृद्धि भी रुक गई. जिन्हें थोड़ा भी चलने-फिरने व ऊपर चढ़ने की मनाही थी ऐसे अनेक रोगी तुलसी के नियमित सेवन के बाद आनंद से पहाड़ी स्थानों पर सैर व हवाखोरी के लिये जाने में समर्थ हुये.

६/ कलकत्ता की 'मॉडर्न-रिव्यू' नामक पत्रिका में सर्पदंश पर तुलसी के अद्भुत प्रभाव की एक घटना प्रकाशित हुई थी. एक व्यक्ति को साँप ने काट लिया था. वह सुदूर गाँव में रहता था. अतः आठ घंटे तक वहाँ कोई भी वैद्द या डॉक्टर नहीं पहुँच सका. आठ घंटे के बाद एक वैद्द पहुँचा. उसने तुलसी की पत्तियों को पीसकर स्वरस निकाला व इस स्वरस से बेहोश पड़े रोगी के सीने, चेहरे और कपाल की खूब मालिश की. साथ ही केले के तने का रस व तुलसी के पत्तों का रस दस-दस ग्राम की मात्रा में मिला-मिलाकर, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से रोगी को पिलाता रहा. इस चिकित्सा के परिणामस्वरूप रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो गया. यही प्रयोग रामकृष्ण मिशन आश्रम सहित अन्य स्थानों पर भी, इसी प्रकार सफल हुआ है.

७/ 'चिकित्सा-प्रकाश' नामक पत्रिका में एक बार प्रसिद्द चिकित्साशास्त्री श्री नलनीनाथ मजूमदार ने लिखा था कि देश की गुलामी के दौर में उनके एक मित्र के मकान में बिजली के तार डाले जाने वाले थे. अतः आवश्यक पूछताछ के लिये वे कलकत्ता के विद्युत विभाग के चीफ इंजीनियर के यहाँ गये. यह देखकर उन्हें अत्यंत आश्चर्य हुआ कि उस अंग्रेज अधिकारी के यहाँ तमाम गमलों में यत्र-तत्र तुलसी के अनेक पौधे लगे हुये थे. एक अंग्रेज के बँगले में सजावट के फूलों और लताओं के स्थान पर तुलसी-वाटिका देखकर उनसे रहा न गया और उन्होंने उस अंग्रेज अधिकारी से इसका कारण पूछा...!!! अधिकारी महोदय ने प्रत्युत्तर प्रश्न किया कि "तुमसे ज्यादा आश्चर्य तो तुम्हारी बात सुनकर मुझे हो रहा है कि तुम एक हिंदू होकर भी तुलसी का महत्व नहीं जानते? उन्होंने कहा कि हमारे यहाँ इंग्लैंड में 'तुलसी' पर विपुल साहित्य प्रकाशित हुआ है. क्या आपके हिस्दुस्तान में तुलसी पर कोई पुस्तक नहीं है? उन्होंने आगे कहा कि वास्तव में जितनी विद्दुतशक्ति तुलसी में है उतनी विश्व के अन्य किसी पौधे में नहीं है. जहाँ भी तुलसी-वाटिका होती है, उसके आसपास छः सौ फीट के क्षेत्र की हवा उससे प्रभावित होती है. परिणामस्वरूप मलेरिया, प्लेग तथा यक्ष्मा के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं. रोग के कीटाणुओं के आक्रमण से बचने के लिये मैं अपनी कमर में सदैव तुलसी के डंठल बाँधकर रखता हूँ तथा मैं नियमित रूप से सुबह-शाम तुलसी के बगीचे में टहलता रहता हूँ. इन्हीं कारणों से मैं सदैव स्वस्थ रहता हूँ."

८/ 'जीवनसखा' नामक पत्र के नवंबर १९४० के अंक में श्री विश्वनाथप्रताप द्वारा लिखित तुलसी के प्रभाव से संबंधित एक लेख प्रकाशित हुआ था. उनके ३५ वर्षीय मित्र बीमार पड़ गये. दिन-प्रतिदिन उनका स्वास्थ्य क्षीण होने लगा. अनेकानेक इलाज किये गये किन्तु रोग नहीं मिटा. अंत में उन्हें पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया. वहाँ डॉक्टरों ने बताया कि उनका कलेजा दुर्बल है. अस्पताल में मछली का तेल व अन्य मूल्यवान औषधियों का सेवन कराया गया किन्तु परिणाम शून्य रहा. चिकित्सकों ने उनके रोग को असाध्य घोषित कर दिया. घर के सभी लोग भी निराश हो गये. सभी ने मान लिया कि उनका अंत-समय आ गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार अपने अंत-समय में उन्होंने गंगा मैया की गोद में ही शेष दिन बिताकर शरीर त्याग करने का निश्चय कर लिया. संयोगवश, सौभाग्य से एक महात्मा घूमते फिरते वहाँ आ पहुँचे. उन्होंने रोगी की पूरी स्थिति को अच्छी तरह जानने समझने के बाद रोगी से नित्य प्रातःकाल खाली पेट तुलसीपत्र एवं गंगाजल सेवन करने की सलाह दी. रोगी द्वारा तदनुसार पालन किया गया. सच मानें... जिस रोग को चिकित्सा-जगत ने असाध्य घोषित कर दिया था वही रोग एक माह के भीतर ही निर्मूल हो गया.

९/ एक वृद्ध व्यक्ति श्वास-रोग (Asthma), बृद्धआंत्रशोथ (Colitis) एवं श्वेतकोषवृद्धि (Leucocytosis) इन तीन गंभीर रोगों से पीड़ित था. रोगी की आँते भी खराब हो चुकी थीं. तुलसी के इलाज से उसके स्वास्थ्य में तीव्रगति से सुधार हुआ.

१०/ सात वर्ष की एक लड़की को दवाओं की एलर्जी थी. किसी भी दवा का सेवन करते ही उसके पूरे शरीर पर नीले रंग के चकत्ते उभर आते थे. जब उसे अनेक प्रकार के इलाजों से लाभ न मिल सका तब तुलसी के नियमित उपचार से उस रोगी की एलर्जी समूल नष्ट हो गई.

११/ एक प्रौढ़ व्यक्ति को जन्म से ही एलर्जी वाली सर्दी थी. तुलसी के सेवन से वह बिल्कुल स्वस्थ हो गया.

१२/ एक युवक को वर्षों से हर माह छः-सात दिनों के लिये ज्वर आ जाता था. उसने तीन माह तक लगातार तुलसी के काढ़े का प्रयोग किया, उसका ज्वर आना बिल्कुल बंद हो गया.

१३/ एक सज्जन को करीब पन्द्रह वर्षों से सिरदर्द रहता था. तुलसी के नियमित उपचार से उनका दर्द दूर हो गया.

१४/ एक लड़का बचपन से ही मंद्बुद्धि था. सोलह वर्षों तक उसके अनेक उपचार हुये किन्तु उसकी बौद्धिक मंदता दूर नहीं हुई. तुलसी के नियमित सेवन से दो ही महीनों के भीतर उसमें बुद्धिमत्ता के लक्षण दिखाई देने लगे. समय के साथ-साथ वह सामान्य व प्रखर बुद्धिशाली हो गया.

१५/ 'सायनस' की तकलीफ़ वाले एक युवक को डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी. वह इस हेतु तैयार भी हो गया था, किन्तु एक वैद्य की सलाह से उसने दो सप्ताह तक तुलसी का सेवन किया. उसके सर्दी-ज़ुकाम सब दूर हो गये और वह सर्ज़री से बच गया.

१६/ एक रोगी को किडनी की पथरी थी. चूँकि 'दही' रोगी की प्रकृति के अनुकूल नहीं था अतः उसे तुलसी, शहद के साथ दी गई.
छः माह के उपचार के बाद पथरी चूर-चूर होकर बाहर निकल गई.

१७/ सफेद दाग या कोढ़ के अनेक रोगियों को तुलसी के उपचार से अद्भुत लाभ हुआ है. उनके दाग कम हो गये और उनकी त्वचा सामान्य हो गई.

१८/ प्रोस्टेट-ग्रंथि के दर्द को दूर करने में भी तुलसी सहायक सिद्ध हुई है.

उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि तुलसी से असाध्य कैंसर तथा अनेक कष्टदायी व्याधियों से मुक्ति प्राप्त होती है.

ऐसे तो अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं जिनमें डॉक्टरों के असफल होने के बाद किये गये तुलसी के उपयोग से अनेक रोगी स्वस्थ्य हो गये. हम यहाँ कुछ अनुभूत प्रयोग प्रस्तुत कर रहे हैं. आप इन्हें SAVE करके अपने पास रखें और वक़्त-ज़रूरत, आवश्यकतानुसार आज़माते रहें.

१/ प्रातःकाल खाली पेट तुलसी की पत्तियों का रस पानी के साथ मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से बल, तेज और स्मरणशक्ति बढ़ती है. 

२/ तुलसी के काढ़े में थोड़ा सा गुड़ तथा गाय का दूध मिलाकर पीने से स्फूर्ति आती है और थकावट दूर होती है.

३/ नित्य तुलसी के रस का सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है.

४/ तुलसी के रस में नमक मिलाकर उसकी बूँदे नाक में डालने से मूर्छा दूर होती है व हिचकियाँ भी शांत होती हैं.

५/ तुलसी, ब्लडकोलेस्ट्राल को बहुत तेजी के साथ सामान्य बना देती है. तुलसी के सेवन से एसिडिटी दूर होती है. पेचिश, कोलाईटिस आदि मिट जाते हैं. स्नायुदर्द, सर्दी, जुकाम, सफ़ेद दाग, मंदबुद्धि, सिरदर्द आदि में यह गुणकारी है. बच्चों के कुछ रोगों में विशेषकर सर्दी, दस्त-उल्टी, और कफ़ में तुलसी अकसीर है.

६/ आहार-विहार का विशेष ध्यान न रखने से अनेक प्रकार की वात-व्याधियाँ हो जाती हैं, जिनमें 'गृघ्सीवात' (Sciatica) भी एक है. इस रोग में एक नाड़ी विशेष में पीड़ा होती है. कूल्हे की संधियाँ, कमर, पीठ, पेट, जाँघ तथा पैर में शूल चुभने की सी वेदना होती है.कूल्हे की शिराएँ एवं संधियाँ बार-बार काँपती हैं. इस रोग में दर्द प्रायः कमर से घुटने तक होता है व कभी-कभी टखने तक भी जाता है. तुलसी की पत्तियों को पानी में उबालकर दर्द वाले भाग पर उसकी भाप देने से इस रोग में लाभ होता है.

७/ तुलसी का नियमित सेवन करने वाले वृद्ध व्यक्ति दुर्बलता का अनुभव नहीं करते. वे शक्ति तथा उत्साह का अनुभव करते हैं व उनकी रोगनिरोधक शक्ति भी बढ़ती है.

८/ तुलसी-उपचार की पद्दति बिल्कुल सरल है. बच्चों के लिये पाँच से पच्चीस पत्तियाँ पर्याप्त हैं. वयस्कों के लिये उनके रोग, प्रकृति, क्षमता तथा ऋतु के अनुसार (शीतऋतु में अधिक व ग्रीष्मऋतु में कम) पच्चीस से एकसौ पत्तियाँ तक दी जाती हैं.

९/ पत्तियों को स्वच्छ पत्थर पर पीसकर उसके रस का उपयोग किया जाता है. रोगी की प्रकृति व स्थिति के अनुसार ५ से १० ग्राम तक रस पिलाया जा सकता है. तुलसी की मंजरियाँ भी एक ग्राम तक साथ में ली जा सकती हैं. मंजरियाँ पेशाब को साफ़ करती हैं और शक्ति बढ़ाती हैं. ताजी पत्तियाँ न मिलने पर सूखी पत्तियों के चूर्ण से भी काम चल सकता है.

१०/ तुलसी की दवा प्रातःकाल शौचादि से निवृत्त होकर कुछ भी खाने-पीने से पहले खाली पेट दिन में एक बार लेना ही ज्यादा कारगर सिद्ध होती है.

११/ प्रातःकाल खाली पेट तुलसी की पत्तियों का रस दो-तीन चम्मच लेने से बल, तेज और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है, लेकिन तकलीफ अधिक हो तो दिन में दो-तीन बार इसका सेवन किया जा सकता है.

१२/ जो लोग चाय और तंबाकू के व्यसनों से मुक्त होना चाहते हैं, उन्हें चाय तंबाकू के बदले तुलसी के काढ़े का उपयोग करना चाहिये. इसके अलावा तुलसी के साथ कालीमिर्च भी चबाएँ. इस प्रकार तुलसी के सेवन से शराब की लत से भी मुक्ति मिल जाती है.

१३/ तुलसी के उपयोग के साथ प्राणायाम, योगासन आदि भी किये जाएँ तो वे अधिक प्रभावशाली बन जाते हैं. तुलसी के इलाज़ के साथ प्राकृतिक चिकित्सा तथा होमियोपेथी भी प्रभावशाली रहती है. 

१४/ तुलसी का सेवन करते समय भगवान का नाम स्मरण करने से भी इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अति प्रिय है. 

१५/ तुलसी की पत्तियाँ, बीज तथा टहनियाँ औषधि का काम करती हैं. इसकी जड़ से ज्वर का प्रकोप शांत हो जाता है. इसके बीज वीर्य को गाढ़ा करते हैं. इसमें पाचन शक्ति बढ़ाने का अद्भुत गुण है.

१६/ वजन बढ़ाना हो या घटाना हो, तुलसी का सेवन करें. इससे शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है.

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