Monday, 8 September 2014

अपान मुद्रा और उसके लाभ













अपान मुद्रा और उसके लाभ
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मध्यमा तथा अनामिका, दोनों उंगलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिला देने से अपान मुद्रा बनती है| इस मुद्रा में कनिष्ठिका और तर्जनी उंगलियां सहज एवं सीधी रहती हैं| मानव स्वास्थ्य-रक्षा के लिए अपान मुद्रा बहुत महत्वपूर्ण क्रिया है| क्योंकि यह स्वस्थ शरीर की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता-विसर्जन क्रिया को नियमित करती है और शरीर को निर्मल बनाती है| यद्यपि योगासनों द्वारा भी शारीरिक निर्मलता प्राप्त होती है, फिर भी साधक के शरीर को योग की उच्च स्थिति में पहुंचने के लिए जिस सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्वच्छ स्थिति की आवश्यकता रहती है, वह हठयोग की क्रियाओं के पश्‍चात्, अपान मुद्रा के निरंतर अभ्यास द्वारा ही सम्भव हो पाती है| साधना में प्राण एवं अपान को सम करके मिला देने का नाम ही एक प्रकार से योग है| दूसरे शब्दों में, योग की ऊंची उड़ान के लिए प्राण-अपान का संयोग होना परम आवश्यक है| प्राण एवं अपान मुद्रा को प्रतिदिन बार-बार करते रहने से प्राण व अपान वायु की स्थिति शरीर को समत्व प्रदान करती है| इस मुद्रा की कोई समय-सीमा नहीं है| इस मुद्रा का अभ्यास जितना अधिक किया जाए, उतना ही अधिक लाभदायक रहेगा| अपान मुद्रा के प्रभाव से शरीर निर्मल होता है और सम्पूर्ण विजातीय द्रव्य या मल सरलतापूर्वक शरीर से बाहर निकल जाते हैं| इसके अभ्यास से सात्विक भाव उत्पन्न होते हैं और इनमें वृद्धि भी होती है|............................................................................हर-हर महादेव |
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