Saturday, 13 September 2014

छाछ या मट्ठा :














छाछ या मट्ठा :

छाछ या मट्ठा शरीर में उपस्थित विजातीय तत्वों को बाहर निकालकर नया जीवन प्रदान करता है। यह शरीर में प्रतिरोधात्मक (रोगों से लड़ने की शक्ति) शक्ति पैदा करता है। छाछ में घी नहीं होना चाहिए। गाय के दूध से बनी छाछ सर्वोत्तम होती है। छाछ का सेवन करने से जो रोग नष्ट होते हैं। वे जीवन में फिर दुबारा कभी नहीं होते हैं। छाछ खट्टी नहीं होनी चाहिए। पेट के रोगों में छाछ को दिन में कई बार पीना चाहिए। गर्मी में छाछ पीने से शरीर तरोताजा रहता है। रोजाना नाश्ते और भोजन के बाद छाछ पीने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। छाछ को पीने से सिर के बाल असमय में सफेद नहीं होते हैं। भोजन के अन्त में छाछ, रात के मध्य दूध और रात के अन्त में पानी पीने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
दही को मथकर छाछ को बनाया जाता है। छाछ गरीबों की सस्ती औषधि है। छाछ गरीबों के अनेक शारीरिक दोषों को दूरकर उनकी तन्दुरुस्ती बढ़ाने में तथा आहार के रूप में महत्वपूर्ण है।
कई लोगों को छाछ नहीं पचती है। उनके लिए छाछ बहुत ही गुणकारी होती है। ताजा छाछ बहुत ही लाभकारी होती है। छाछ की कढ़ी स्वादिष्ट होती है और वह पाचक भी होती है। उत्तर भारत में तथा पंजाब में छाछ में चीनी मिलाकर उसकी लस्सी बनाकर उपयोग करते हैं। लस्सी में बर्फ का ठण्डा पानी डाला जाए तो यह बहुत ही लाभकारी हो जाती है। लस्सी जलन, प्यास और गर्मी को दूर करती है। लस्सी गर्मी के मौसम में शर्बत का काम करती है। छाछ में खटाई होने से यह भूख को बढ़ाती है। भोजन में रुचि पैदा करती है और भोजन का पाचन करती है जिन्हें भूख न लगती हो या भोजन न पचता हो, खट्टी-खट्टी डकारें आती हो और पेट फूलने से छाती में घबराहट होती हो तो उनके लिए छाछ का सेवन अमृत के समान लाभकारी होता है। इसके लिए सभी आहारों का सेवन बंद करके 6 किलो दूध की छाछ बनाकर सेवन करने से शारीरिक शक्ति बनी रहती है। केवल छाछ बनाकर सेवन करने से मलशुद्धि होती है तथा शरीर फूल सा हल्का हो जाता है। शरीर में स्फूर्ति आती है उत्साह उत्पन्न होता है तथा जठराग्नि और आंतों को ताजगी तथा आराम मिलता है। छाछ जठराग्नि को प्रदीप्त कर पाचन तन्त्र को सुचारू बनाती है। छाछ गैस को दूर करती है। अत: मल विकारों और पेट की गैस में छाछ का सेवन लाभकारी होता है।
छाछ पित्तनाशक होती है यह रोगी को ठण्डक और पोषण देती है। शरीर में प्रवेश करने के बाद छाछ महास्रोत (जठर, ग्रहणी और आंतों) पर जो प्रभाव करती है। उसमें पाचन तन्त्र में सुधार होता है तथा शरीर के आन्तरिक जहर नष्ट हो जाते हैं। छाछ दिल को शक्तिशाली बनाती है और खून को शुद्ध करती है। विशेषत: संग्रहणी (दस्त) रोग की क्रिया अधिक व्यवस्थित होती है। उससे महास्रोत के विभिन्न रोग जैसे- संग्रहणी रोग (दस्त), अर्श (बवासीर), अजीर्ण (भूख न लगना), उदर रोग (पेट के रोग), अरुचि (भोजन करने का मन न करना), शूल अतिसार (दस्तों का दर्द), पाखाना या पेशाब बंद होना, तृषा (प्यास), वायु गुल्म (पेट में गैस का गोला), उल्टी, तथा यकृत-प्लीहा (जिगर तथा तिल्ली) के रोगों में छाछ पीना लाभकारी है। छाछ शीतलता प्रदान करने वाली, कषैला, मधुर रस उत्तेजित पित्त दोष को शान्तकर शरीर को मूल प्राकृतिक स्थिति में ले आता है। इसलिए पीलिया और पेचिश में भी छाछ का सेवन उपयोगी होता है। छाछ मोटापे को कम करती है। छाछ का सेवन करने वाले वृद्धावस्था (बुढ़ापे) से दूर रहते हैं। छाछ शरीर की चमक को बढ़ाती है। इससे चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती हैं। यदि पहले से होती हैं तो वे नष्ट हो जाती हैं। छाछ आंतों के रोगों में उपयोगी होती है। यह आंतों को संकुचित कर उन्हें क्रियाशील बनाती है और पुराने जमे हुए मल को बाहर निकालती है। छाछ के मलशोधन गुण के कारण मलोत्पत्ति तथा मलनिष्कासन सरल बनता है। इसलिए पुराने मल के इकट्ठा होने से उत्पन्न टायफाइड (मियादी बुखार) की बीमारी में छाछ सेवन के लिए दी जाती है। छाछ का सबसे अधिक महत्वपूर्ण गुण है आमजदोष को दूर करना। हम लोग जिस भोजन का सेवन करते हैं। उस भोजन में से पोषण के लिए उपयोगी रस अलग होकर बिना पचे पड़ा रहता है। उसे आम कहते हैं। आम अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है। इन आमज दोषों को दूर करने में छाछ बहुत उपयोगी होता है। आमज की चिकनाहट को तोड़ने के लिए खटाई की आवश्यकता पड़ती है। यह खटाईपन छाछ में उपलब्ध होती है। छाछ इस चिकनाहट को धीरे-धीरे आंतों से अलगकर उसे पकाकर शरीर से बाहर निकाल देती है। इसीलिए पेचिश में इन्द्रजौ के चूर्ण के साथ तथा बवासीर में हरड़ के साथ छाछ का सेवन करने से लाभ मिलता है।
तक्रकल्प : गाय का दूध जमाकर हल्की खट्टी दही में 3 गुना पानी मिलाकर मथकर मक्खन निकालकर उसकी छाछ तैयार कर लें। इसे सुबह-शाम भोजन के बाद 1 गिलास से लेकर अनुकूलता के अनुसार अधिक से अधिक मात्रा में निरन्तर 5-7 दिनों तक सेवन करें। प्यास लगने पर पानी के स्थान पर छाछ पियें। भोजन में चावल, खिचड़ी, उबली हुई तरकारी, मूंग की दाल तथा रोटी का सेवन करें और छाछ की मात्रा बढ़ाते जाएं तथा अनाज की मात्रा घटाते जाएं।
पाचन शक्ति की दुबर्लता, (भोजन पचाने की शक्ति कमजोर होना) जठराग्नि की मन्दता, संग्रहणी (पेचिश) आदि रोगों में इस तक्र कल्प का प्रयोग करने से नवजीवन प्राप्त होता है। अग्नि प्रबल होने पर रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ती है जिस रोग को लक्ष्यकर तक्रकल्प करना हो तो वह यदि वात जन्य हो तो छाछ में सेंधानमक और सोंठ डाले। पित्तजन्य हो तो उसमें थोड़ी सी इलायची व शक्कर डालें। कफजन्य हो तो उसमें त्रिकटु का चूर्ण मिलाएं।
वैज्ञानिक मतानुसार : छाछ में विटामिन `सी` होता है। अत: इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा त्वचा की आरोग्यता और सुन्दरता बरकरार रहती है। छाछ में लैक्टिड एसिड होने से वह पाचन तन्त्र के रोगों में लाभदायक सिद्ध होती है।
विशेष : छाछ के अन्दर रहे हुए मक्खन या उसमें से निकाले हुए मक्खन की मात्रा एवं छाछ में मिलाए हुए पानी की मात्रा के आधार पर छाछ 4 प्रकार के होती है।
1. घोल
2. मथित
3. तक्र
5. छच्छिका यानि छाछ
घोल : जब दही में थोड़ा-सा पानी डालकर उसे बिलोया (मथा) जाय तब यह घोल कहलाता है। यह ग्राही, उत्तेजक, पाचक और शीतल है तथा वायु नाशक (गैस को खत्म करने वाला) है परन्तु बलगम को बढ़ाता है। हींग, जीरा और सेंधानमक मिला हुआ घोल गैस का पूरी तरह नाश करने वाला तथा अतिसार (दस्त) और बवासीर को मिटाने वाला रुचिवर्द्धक, पुष्टिदायक, बलवर्द्धक और नाभि के नीचे के भाग के शूल मिटाने वाला है। गुड़ डाला हुआ घोल, मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) और चित्रक मिलाया हुआ घोल पाण्डु (पीलिया) रोग को नष्ट करता है। शर्करायुक्त घोल के गुण आम के रस के समान होते हैं।
मथित : दही के ऊपर वाली मलाई निकालकर बिलोया हुआ दही मथित (मट्ठा) कहलाता है। मट्ठा वायु तथा पित्तनाशक, आनन्द एवं उल्लास प्रदान करने वाला तथा कफ और गर्मी को दूर करने वाला होता है। यह गर्मी के कारण होने वाले दस्तों, अर्श (बवासीर) और संग्रहणी में लाभकारी होता है।
तक्र : दही में उसके चौथे हिस्से का पानी निकालकर मथा जाए तो उसे तक्र कहते हैं। तक्र खट्टा, कषैला, पाक तथा रस में मधुर, हल्का, गर्म, अग्नि प्रदीपक, मैथुनशक्तिवर्द्धक, तृप्तिदायक और वायुनाशक है। यह हल्का एवं कारण दस्त सम्बंधी रोगों के लिए लाभकारी होता है तथा यह पाक में मधुर होने के कारण पित्त प्रकोप नहीं करता है तथा यह कषैला, गर्म और रूक्ष होने के कारण कफ को तोड़ता भी है।
उद्क्षित : दही में आधा हिस्सा पानी मिलाकर जब मथा जाए तब उसे उद्क्षित कहते हैं। यह कफकारक, बलवर्द्धक और आमनाशक (दस्त में आंव आना) होता है।
छाछ : दही में जब ज्यादा पानी मिलाकर बिलोया (मथा) जाए और उसके ऊपर से मक्खन निकालकर फिर पानी मिलाया जाए, इस प्रकार खूब पतले बनाये गये दही को छाछ कहते हैं। जिसमें से सारा मक्खन निकाल लिया गया हो, वह छाछ हल्की तथा जिसमें से थोड़ा सा मक्खन निकाल गया हो वह कुछ भारी और कफकारक होती है और जिसमें से जरा सा भी मक्खन न निकाला गया हो वह छाछ भारी पुष्टदायक और कफकारक है। घोल की अपेक्षा मथित मट्ठा और मट्ठे की अपेक्षा छाछ पचने में हल्की, पित्त, थकान तथा तृषानाशक (प्यास दूर करना), वायुनाशक और कफकारक है। नमक के साथ छाछ को पीने से पाचनशक्ति बढ़ती है। छाछ जहर, उल्टी, लार के स्राव, विषमज्वर, पेचिश, मोटापे, बवासीर, मूत्रकृच्छ, भगन्दर, मधुमेह, वायु, गुल्म, अतिसार, दर्द, तिल्ली, प्लीहोदर, अरुचि, सफेद दाग, जठर के रोगों, कोढ़, सूजन, तृषा (अधिक प्यास) में लाभदायक और पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाली होती है।
वायु रोग : खट्टी (सोंठ तथा सेंधानमक से युक्त) छाछ पित्त पर, शक्कर मिला हुआ छाछ वात वृद्धि पर और सोंठ, कालीमिर्च एवं पीपरयुक्त छाछ कफवृद्धि पर उत्तम है। सर्दी के मौसम में, अग्निमान्द्य में (भूख का कम लगना), वायुविकारों में (गैस के रोग में), अरुचि में, रस वाहनियों के अवरोध में छाछ अमृत के समान लाभकारी होती है। `चरक` अरुचि मन्दाग्नि और अतिसार में छाछ को अमृत के समान मानते हैं। `सुश्रुत` छाछ को मधुर, खट्टी, कषैली, गर्म, लघु, रूक्ष, पाचनशक्तिवर्द्धक, जहर, सूजन, अतिसार, ग्रहणी, पाण्डुरोग (पीलिया), बवासीर, प्लीहा रोग, गैस, अरुचि, विषमज्वर, प्यास, लार के स्राव, दर्द, मोटापा, कफ और वायुनाशक मानते हैं।
हानिकारक प्रभाव : क्षत विक्षत दुर्बलों तथा बेहोशी, भ्रम और रक्तपित्त के रोगियों को गर्मियों में छाछ का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि चोट लगने से घाव पड़ गया हो, जख्म हो गया हो, सूजन आ गई हो, शरीर सूखकर कमजोर हो गया हो तथा जिन्हें बेहोशी, भ्रम या तृषा रोग हो यदि वे छाछ का सेवन करें तो कई अन्य रोग होने की संभावना रहती है।
छाछ या मट्ठा से उपचार
"1 बवासीर: -*1 गिलास छाछ में नमक और 1 चम्मच पिसी हुई अजवायन मिलाकर पीने से बवासीर रोग में लाभ मिलता है। छाछ के उपयोग से बवासीर दुबारा नहीं होती है। छाछ में कालानमक मिलाना लाभकारी होता है। छाछ में भुना हुआ जीरा मिलाकर पीना बवासीर के रोग में लाभकारी होता है।
*भोजन करने के बाद छाछ में सेंधानमक मिलाकर पीयें अथवा छाछ में सौंठ या पीपल या प्याज का साग मिलाकर रोज पीने से बवासीर का रोग दूर होता है।
*ताजी छाछ में चित्रक की जड़ का चूर्ण मिलाकर रोजाना पीने से लम्बे समय का बवासीर ठीक हो जाता है। छाछ के प्रयोग से दूर होने वाली बवासीर दुबारा नहीं होती है।
*गाय की छाछ में कालीमिर्च सोंठ, पीपर और बीड़ लवण का चूर्ण मिलाकर पीने से बवासीर में लाभ होता है।"
2 अजीर्ण:-घी, तेल और मूंगफली अधिक खाने से अजीर्ण का कष्ट होने पर छाछ पीने से लाभ मिलता है।
3 भांग का नशा:-खट्टी छाछ पीने से भांग का नशा उतर जाता है।
4 मोटापा:-*छाछ पीने से मोटापा कम हो जाता है।
*छाछ में काला नमक और अजवाइन मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।"
5 अपच:-अपच (भोजन का न पचना) के रोग में छाछ एक सर्वोत्तम औषधि है। 
तली, भुनी, गरिष्ठ चीजों को पचाने में छाछ बहुत ही लाभकारी होती है। छाछ आंतों में स्वास्थ्यवर्द्धक कीटाणुओं की वृद्धि करता है। यह आंतों में सड़ान्ध को रोकती है। छाछ में सेंधानमक, भुना हुआ जीरा तथा कालीमिर्च पीसकर मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण (भूख न लगना) दूर हो जाता है।
6 शक्तिवर्द्धक:-छाछ पीने से पाचन संस्थान की शुद्धि होकर रस का भलीप्रकार संचार होने लगता है तथा आंतों से संबन्धित कोई रोग नहीं होता है। रोजाना छाछ पीने से शरीर की पुष्टि, बल, प्रसन्नता, चेहरे की चमक बढ़ती है। पिसी हुई अजवायन, कालानमक और छाछ तीनों को मिलाकर भोजन के अन्त में रोजाना कुछ दिन तक पीने से लाभ होता है। छाछ में कालीमिर्च और नमक मिलाकर भी पी सकते हैं।
7 सौंदर्यवर्द्धक:-छाछ से चेहरा धोने से चेहरे की कालिमा, मुंहासे के दाग और चिकनाहट दूर होती है और चेहरा सौंदर्यवान (चमकदार) बनता है।
8 संग्रहणी:-संग्रहणी सदृश्य (दस्त) रोगों में रोगियों को गाय के दूध की छाछ में सोंठ और पीपर का चूर्ण डालकर पिलाने से लाभ होता है। इस प्रयोग काल में आहार में केवल छाछ और चावल का ही प्रयोग करें।
9 रक्तविकार:-गाय की ताजा, फीकी छाछ पीने से रक्तवाहनियों (खून की नलियों) का खून साफ हो जाता है और रस बल तथा पुष्टि बढ़ती है तथा शरीर की चमक बढ़ जाती है। इससे मन प्रसन्न होता है तथा यह वात, कफ संबन्धी रोगों को नष्ट करती है।
10 पेट का भारीपन: -सोंठ, कालीमिर्च, पीपल और कालानमक को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छाछ में मिलाकर पीने से पेट का भारीपन और अजीर्ण रोग (भूख न लगना) समाप्त हो जाता है।
11 रक्तातिसार (खूनी दस्त):-छाछ में चित्रक की जड़ का चूर्ण मिलाकर पीने से पेचिश (खूनी दस्त) में लाभ मिलता है।
12 अतिसार:-ताजी छाछ में बेल के गूदे को मिलाकर पीने से अतिसार (दस्त) और पेचिश (खूनी दस्त) बंद हो जाते हैं।
13 मलस्तम्भन: -छाछ में अजवायन और नमक मिलाकर पीने से मलावरोध मिट जाता है।
14 मूत्रकृच्छ:-छाछ में गुड़ मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) का रोग मिट जाता है।
15 दाद:-गाय की छाछ में ग्वारपाठे के बीजों को मिलाकर दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
16 दांत निकलना:-*गर्मी में बच्चे को दांत निकालते समय दिन में 2 से 3 बार छाछ पिलायें। इससे दांत निकलते समय बच्चों को दर्द नहीं होता है।*बच्चों के दांत निकलते समय छाछ में कालानमक मिलाकर दिन में 2 से 4 बार पिलाएं। इससे दांत निकलते समय दर्द नहीं होता तथा पेट का दर्द भी नष्ट होता है।*छोटे बच्चों को रोजाना छाछ पिलाने से दांत निकलने में उनको अधिक दर्द नहीं होता है और बच्चों को दांतों का रोग भी नहीं होता है।
17 कब्ज:-*छाछ में पिसी हुई अजवाइन को मिलाकर पीने से कब्ज दूर हो जाती है।*125 ग्राम दही की छाछ में 2 ग्राम अजवाइन और आधा ग्राम कालानमक मिलाकर खाना खाने के बाद लेने से पेट की गैस कम हो जाती है। इसको आवश्यकतानुसार 1 से 2 सप्ताह तक दिन में भोजन के बाद में ले सकते हैं।*छाछ पीने से कब्ज, दस्त, पेचिश, खुजली, चौथे दिन आने वाला मलेरिया बुखार, तिल्ली (प्लीहा), जलोदर (पेट में पानी भरना), रक्तचाप की कमी या अधिकता दमा, गठिया, अर्धांगवात, गर्भाशय के रोग, मलेरियाजनित जिगर के रोग और मूत्राशय की पथरी में लाभ होता है।
18 मुंह के छाले:-दही के पानी या मट्ठे से कुल्ले करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
19 मूत्ररोग :-*360 मिलीग्राम से 480 मिलीग्राम पुराने गुड़ को छाछ के साथ खाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) और सुजाक रोग में लाभ होता है। 
*ककड़ी के बीज को छाछ के साथ या सुहागा 240 से 360 मिलीग्राम चूर्ण करके छाछ के साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) में लाभ करता है। *जवाखार के साथ छाछ पीने से मूत्रकृच्छ और पथरी में लाभ होता है। भटकटैया का रस छाछ के साथ पीने से पेशाब के साथ आने वाला धातु बंद हो जाता है। 
*इन्द्रजौ का छिलका दही में घिसकर रोगी को पिलाने से पथरी दूर होती है।"
20 दस्त: -*जीरे और चीनी को पीसकर बने चूर्ण को छाछ के साथ पीने से अतिसार (दस्त) का आना बंद हो जाता है।
*125 ग्राम छाछ में 12 ग्राम शहद को मिलाकर 1 दिन में सुबह, दोपहर और शाम को पीने से दस्त का लगातार आना रुक जाता है।
*लगभग 250 ग्राम छाछ में 1 चम्मच शहद मिलाकर रोजाना दिन में 3 बार पीने से दस्त बंद हो जाते हैं।"
21 जिगर की खराबी:-1-1 गिलास छाछ को दिन में 2-3 बार पीने से और कुछ न खाने से जिगर की खराबी दूर हो जाती है।
22 अग्निमांद्यता होने पर:-*लगभग 100 मिलीलीटर छाछ में 360 मिलीग्राम से 480 मिलीग्राम कालीमिर्च मिलाकर पीने से अग्निमांद्यता (भूख का कम लगना) में लाभ होता है।
*छाछ में सेंधानमक, कालीमिर्च और चित्रक की जड़ को पीसकर पीने से अग्निमांद्यता (भूख का कम लगना) का रोग दूर होकर भूख लगने लगती है।
*डालडा, घी, तैलीय और भारी पाक को मिलाकर पका लें। फिर इसे छाछ में मिलाकर उसमें थोड़ा-सा नमक डालकर सेवन करने से अग्निमांद्यता (भूख का कम लगना) के रोग में लाभ होता है।"
23 पथरी:-गाय के दूध की छाछ में 10 ग्राम जवाखार मिलाकर पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।
24 लू का लगना:-छाछ में नमक डालकर पीने से लू लगने से बचा जा सकता है।
25 जलोदर:-*छाछ में सोंठ, कालीमिर्च और पीपल का 240 मिलीग्राम पिसा हुआ चूर्ण और 1 ग्राम सेंधानमक डालकर पीने से जलोदर (पेट मे पानी भरना) ठीक हो जाता है।
*चित्रकूट के चूर्ण को छाछ के साथ पीने से जलोदर (पेट में पानी भरना) का रोग दूर हो जाता है।"
26 पेट के कीड़े:-*नमक और कालीमिर्च को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को छाछ में मिलाकर रोजाना 4 दिन तक पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
*छाछ में अजवायन का चूर्ण मिलाकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। छाछ में सेंधानमक मिलाकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
*सेंधानमक, किरमानी अजवायन, वायविण्डग आदि को मिलाकर बारीक चूर्ण बनाकर 240 मिलीलीटर से लेकर 960 मिलीलीटर की ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ सुबह और शाम सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
*गाय की छाछ में नमक मिलाकर सुबह के समय सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।"
27 पेट में दर्द: -*खाली पेट होने के कारण होने वाले पेट के दर्द में छाछ पीने से लाभ होता है।
*250 मिलीलीटर छाछ, 5 ग्राम भुना हुआ जीरा और 5 ग्राम कालानमक को मिलाकर पीने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
*छाछ में शक्कर (चीनी) और कालीमिर्च को मिलाकर पीने से पित्त के कारण होने वाला पेट का दर्द शांत हो जाता है।"
28 निम्नरक्तचाप:-रोजाना सुबह-शाम 200-200 मिलीलीटर छाछ पीने से निम्नरक्तचाप सामान्य हो जाता है।
29 पीलिया:-*पीलिया रोग में लगभग 1 ग्राम चिमक की जड़ का चूर्ण, आधा ग्राम फिरमानी अजवाइन (चौर) के चूर्ण को छाछ में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
*10 कालीमिर्च को पीसकर 1 गिलास छाछ में मिलाकर रोजाना 1 बार जब तक पीलिया का रोग रहे, पिलाते रहने से आराम आता है।"
30 सफेद दाग होने पर:-सफेद दागों के रोग में रोजाना 2 बार छाछ पीने से बहुत ही लाभ मिलता है।
31 सिर का दर्द:-छाछ में कूठ रेण्डी की जड़ और सौंठ को पीसकर करके हल्का गर्म करके माथे पर लेप की तरह से लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है। 240 मिलीग्राम से 360 मिलीग्राम जायफल को छाछ में मिलाकर पीने से सिर का दर्द खत्म हो जाता है।
32 अरुंषिका (वराही) :-छाछ के काढ़े से सिर को बार-बार धोकर किसी भी चीज का लेप लगायें जो इस बीमारी में लाभदायक हो।

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