Wednesday, 12 August 2015

रोटावायरस यानि डायरिया का खतरा













हर माँ और जिन के घर में छोटे बच्चे हो उन के लिए महत्वपूर्ण जानकारी।

पांच साल तक के बच्चों में रोटावायरस यानि डायरिया का खतरा

रोटावायरस एक तरह का इनफेक्शन है (यह अतिसार यानि दस्त का बिगड़ा हुआ रूप होता है रोटावायरस जो ठंड में अधिकतर बच्चों में फैलता है। अगर एक बच्चे को हो जाय तो उसके संपर्क में रहने से दूसरे बच्चे को भी हो सकता है। यह विशेषकर गंदगी के कारण इंन्फेक्शन होता है इससे पीडित बच्चे का खिलौना भी यदि दूसरा बच्चा मुंह में डाले तो उसे भी हो सकता है । इस इन्फेक्शन के होते ही बच्चे को दस्त तथा उल्टियां लग जाती है यह एक तरह का डायरिया(बिगडा दस्त) जैसा होता है जो आम डायरिया से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है इसकी वजह से बच्चों में डिहाईड्रेशन तक हो जाता है उल्टी व दस्त की वजह से। वैसे तो पूरे साल इसका खतरा रहताहै परंतु ठंड में अधिक बढ जाता है ये बीमारी गोद के बच्चे से लेकर पांच साल तक के बच्चों में अधिक होता है। इस कारण गोद के बच्चों को उपर का दूध न दें। जहां तक संभव हो उन्हें स्तनपान ही करायें । लगभग एक या दो बार इस रोटावायरस की चपेट में हर बच्चा आ ही जाता है इसमें हालात बिगडने पर जान का खतरा भी हो सकता है।कुछ उपाय अपनाकर इस खतरे से कुछहद तक बच्चे को बचाया जा सकता है ।

यह बच्चों की आम परेशानी होती है।
जब बच्चा चार-पांच माह का हो जाता है, तो वह मां के दूध के साथ-साथ ऊपर के दूध तथा अन्य आहार पर भी निर्भर रहता है। उसे ठोस आहार देना शुरू किया जा चुका होता है। केवल स्तनपान पर रहने वाले शिशु को तो आप कई रोगों से बचा सकते हैं, परंतु जैसे ही ऊपरी दूध या अन्य ठोस आहार देना शुरू करते हैं, तो बच्चों में पाचन संबंधी तथा अन्य परेशानियां पैदा होने लगती हैं।

बच्चों में रोटावायरस (अतिसार) के कारण

•छोटे बच्चों की आंतें काफी नाजुक होती हैं। जरा भी आहार परिवर्तन किया गया, तो पाचन संस्थान पर उसका पूरा असर पड़ता है और उन्हें तकलीफ होने लगती हैं। बच्चों की पाचन शक्ति कमजोर होती है, इस कारण प्रारंभिक अवस्था में ऊपरी आहार ठीक से हजम नहीं कर पाता और उन्हें दस्त लग जाते हैं। इस कारण शुरू में 2-3 साल तक बच्चों की विशेष देखभाल करनी पड़ती है। अन्यथा बच्चे काफी कमजोर हो जाते हैं। अतिसार (पतले दस्त) यह पाचन संस्था का विकार है, जो पतले मल के रूप में बाहर आता है। इससे बच्चों को तुरंत डिहाइड्रेशन हो जाता है। अगर तुरंत उपचार मिले तो स्वास्थ्य लाभ हो जाता है

•ये परेशानियां गर्मी या बरसात तथा सर्दियों में भी अधिक होती हैं

•यदि बच्चा मां का दूध पीता है और मां गरिष्ठ भोजन लेती हो, तो बच्चों को अतिसार हो सकता है

•यदि माता दस्त से ग्रस्त हो, तो दूध पीने वाला बच्चा भी ग्रसित होगा

•बोतल से दूध पीने वाले बच्चों को अतिसार की संभावना अधिक हो सकती है इसका कारण बोतल की सफाई न होना होता है

•यदि ऊपर का दूध पचाने में बच्चा असमर्थ हो, तो अतिसार हो सकता है

•गर्मी में गर्मी के कारण बच्चा दूध हजम नहीं कर पाता हैजिससे अतिसार, दस्त हो सकता है

•दांत निकलते समय बच्चा मुंह में आसपास की चीजें डाल लेता है, तो बच्चे को इन्फेक्शन हो जाता है

•गंदे वातावरण में रहने वाले बच्चों में अतिसार की संभावना अधिक होती है

•यदि बच्चे को दस्त के साथ-साथ आंव, झागयुक्त, बदबूदार, पीला या हरा दस्त हो, तो बच्चे में पानी की अत्यधिक कमी हो जाती है। इसपर तुरंत ध्यान दें डॉक्टर से परामर्श लें और सिर्फ घरेलू इलाज में न पड़ें

•यदि अतिसार के साथ उल्टी भी हो

•साथ में बुखार भी हो

•बच्चा बिल्कुल सुस्त हो

•आंखें भीतर धंस गयी हों इसकी चिकित्सा में सबसे पहले तीन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

•बच्चे के शरीर में डिहाइड्रेशन न होने पाये

•इस समय सही व उचित आहार दिया जाये

•दस्त होने के कारणों को दूर करना

इस समय सबसे बड़ी समस्या होती है, डिहाइड्रेशन, इस समस्या का समाधान आप अवश्य कर सकते हैं। जैसे, जीवनरक्षक घोल, इसे बार-बार देना जरूरी है।

जीवनरक्षक घोल बनाने की विधि

•एक गिलास पानी ले, जो उबाल कर ठंडा किया गया हो। इसमें एक चुटकी नमक, एक चम्मच चीनी,चार,पाँच बूंद नीबू मिलायें, इस घोल को अच्छी तरह मिला कर रखें। दिन में इसे बार-बार पिलाते रहें। साथ ही अन्य पेय पदार्थ अवश्य दें, जैसे- दही, छाछ, साबूदाना, दाल का पानी, नारियल पानी। साथ ही हल्का-फुल्का आहार अवश्य देते रहें।

•जैसे पतली खिचड़ी,दाल का पानी।

•डॉक्टर को अवश्य दिखायें, इसमें बिल्कुल देर न करें।

उपाय-

•इसके लिये सबसे पहले जरूरी है साफ सफाई, जब बच्चा गोद से उतरने लायक बड़ा हो जाता है तो वह हर चीज उठाकर मुंह में डाल लेता है सबसे पहला कारण डायरिया का यही होता है उस समय बच्चों के दांत निकल रहे होते है और उनके दांतो में चुनचुनाहट होती है जिसकी वजह से हर चीज मुंह मे डाल लेते हैं।बच्चों को फर यानि बाल वाले कोई भी खिलौने न दें कारण उसमें छिपे जीवाणु बच्चे के नाक तथा मुंह से शीघ्र उनके पेट में चले जाते हैं।बच्चे को सस्ते प्लास्टिक के खिलौने न दें कारण सेकेंड प्लास्टिक में गंदे कलर तथा खतरनाक केमिकल्स डाले जाते हैं। इससे अच्छा बिना रंग वाले लकड़ी के खिलौने दें।

•शिशुओं को केवल स्तनपान कराकर बचाया जा सकता हैकारण उपर का दूध यानि गाय,भैंस आदि बीमार हो आपको पता नहीं चलता आप उस दूध को बच्चे को जाने अंजाने पिला देते हैं या उनकी दूध की बोतल जरा भी गंदी रह गई हो तो इससे इन्फेक्शन जल्दी फैलता है बच्चों की हर चीजों की साफ सफाई पर विशेष ध्यान रखें।

•अगर माँ का दूध नहीं आता तो बच्चो को ऊपर का दूध ना दे कर सिर्फ दाल या चावल का पानी ही पिलाये।

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