अपामार्ग यानी कि लटजीरा का सेवन कितनी बिमारियों के लिए रामबाण है और साथ ही ये आपके शरीर के बढे हुए फैट को भी कम करता है। जानिए इसके क्या क्या फायदे हैं ।
ये एक सर्वविदित क्षुपजातीय औषधि है जो चिरचिटा नाम से भी जानी जाती है। वर्षा के साथ ही यह अंकुरित होती है, ऋतु के अंत तक बढ़ती है तथा शीत ऋतु में पुष्प फलों से शोभित होती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में यह पौधा परिपक्व होकर फलों के साथ ही शुष्क हो जाता है। इसके पुष्प हरी गुलाबी आभा युक्त तथा बीज चावल सदृश होते हैं, जिन्हें ताण्डूल कहते हैं तथा इसे एक वर्ष तक प्रयुक्त किया जा सकता है।
लटजीरे के बीजों को एकत्र करके मिटटी के बर्तन में भूनकर उसे पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग आधा चम्मच इसे खाया जाये तो भूख कम लगती है तथा यह शरीर की वसा को भी कम करता है। इस प्रकार यह कम करने में भी मदद करता है इसके कोई दुष्परिणाम भी नहीं है। ये आसानी से आयुर्वेद दवा बेचने वाले पंसारी से मिल जाता है। इसका पेड़ सड़क के आसपास देखने को आसानी से मिल जाता है।
इसके तने को साफ़ करकर दातुन की तरह उपयोग करें तो दांतों से जो खून बहने की समस्या होती है, वह भी धीरे-धीरे इससे समाप्त हो जाती है।
अगर आपको भस्मक रोग है यानि कि जिसमे खूब खाने के बाद भी आपकी भूख नही मिटती और खाने के इच्छा होती ही रहती है, उसके निदान के लिए इसके बीजों को खीर में मिलाकर देने से लाभ मिलता है।
बाहरी प्रयोग के रूप में भी इसका चूर्ण मात्र सूँघने से आधा शीशी का दर्द, बेहोशी, मिर्गी में आराम मिलता है।
इसके पत्तों का स्वरस दाँतों के दर्द में लाभ करता है तथा पुराने से पुरानी केविटी को भरने में मदद करता है।
कुत्ते के काटे स्थान पर तथा सर्पदंश-वृश्चिक दंश अन्य जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर ताजा स्वरस तुरन्त लगा देने से जहर उतर जाता है। यह घरेलू ग्रामीण उपचार के रूप में प्रयुक्त एक सिद्ध प्रयोग है। काटे गए स्थान पर बाद में पत्तों को पीसकर उनकी लुगदी बाँध देते हैं। व्रण दूषित नहीं हो पाता तथा विष के संस्थानिक प्रभाव भी नहीं होते है।
बर्र आदि के काटने पर भी अपामार्ग को कूटकर व पीसकर उस लुगदी का लेप करते हैं तो सूजन नहीं आती है।
लगभग एक से तीन ग्राम चिरचिटा के पंचांग का क्षार बकरी के दूध के साथ दिन में दो बार लेते हैं। इससे गुर्दे की पथरी गलकर नष्ट हो जाती है।
चिरचिटा की 25 ग्राम जड़ों को चावल के पानी में पीसकर बकरी के दूध के साथ दिन में तीन बार लेने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है।
चिरचिटा के पंचांग का काढ़ा लगभग 14 से 28 मिलीलीटर दिन में तीन बार सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
चिरचिटा की जड़ों को 3 से 6 ग्राम तक की मात्रा में बारीक पीसकर दिन में तीन बार देने से हैजा में लाभ मिलता है।
चिरचिटा की लगभग एक से तीन ग्राम पंचांग का क्षार नींबू के रस में या शहद के साथ दिन में तीन बार देने से शारीरिक दर्द में लाभ मिलता है।
चिरचिटा को जलाकर, छानकर उसमें उसके बराबर वजन की चीनी मिलाकर एक चुटकी दवा मां के दूध के साथ बच्चे को देने से खांसी बंद हो जाती है।
चिरचिटा के कोमल पत्तों को मिश्री के साथ मिलाकर अच्छी तरह पीसकर मक्खन के साथ धीमी आग पर रखे। जब यह गाढ़ा हो जाये तब इसको खाने से ऑवयुक्त दस्त में लाभ मिलता है।
250 ग्राम चिरचिड़ा का रस, 50 ग्राम लहसुन का रस, 50 ग्राम प्याज का रस और 125 ग्राम सरसों का तेल इन सबको मिलाकर आग पर पकायें। पके हुए रस में 6 ग्राम मैनसिल को पीसकर डालें और 20 ग्राम मोम डालकर महीन मलहम बनायें। इस मलहम को मस्सों पर लगाकर पान या धतूरे का पत्ता ऊपर से चिपकाने से बवासीर के मस्से सूखकर ठीक हो जाते हैं।
5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ का काढ़ा एक से 50 ग्राम सुबह-शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है। इसकी क्षार अगर भेड़ के पेशाब के साथ खायें तो गुर्दे की पथरी में ज्यादा लाभ होता है।
एक ग्राम कालीमिर्च के साथ चिरचिटा की जड़ को दूध में पीसकर नाक में टपकाने से लकवा या पक्षाघात ठीक हो जाता है।
चिरचिटा। का चूर्ण लगभग एक ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में लेकर पीने से जलोदर (पेट में पानी भरना) की सूजन कम होकर समाप्त हो जाती है।
अपामार्ग (चिरचिटा) के पत्तों के रस में कपूर और चन्दन का तेल मिलाकर शरीर पर मालिश करने से शीतपित्त की खुजली और जलन खत्म होती है।
फोड़े की सूजन व दर्द कम करने के लिए चिरचिटा, सज्जीखार अथवा जवाखार का लेप बनाकर फोड़े पर लगाने से फोड़ा फूट जाता है, जिससे दर्द व जलन में रोगी को आराम मिलता है।
चिरचिटा की धूनी देने से उपदंश के घाव मिट जाते हैं। 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ के रस को सफेद जीरे के 8 ग्राम चूर्ण के साथ मिलाकर पीने से उपदंश में बहुत लाभ होता है। इसके साथ रोगी को मक्खन भी साथ में खिलाना चाहिए।
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