एरंण्ड
एरंड का पौधा प्राय: सारे भारत में पाया जाता है। एरंड की खेती भी की जाती है और इसे खेतों के किनारे-किनारे लगाया जाता है। ऊंचाई में यह 2.4 से 4.5 मीटर होता है। एरंड का तना हरा और चिकना तथा छोटी-छोटी शाखाओं से युक्त होता है। एरंड के पत्ते हरे, खंडित, अंगुलियों के समान 5 से 11 खंडों में विभाजित होते हैं। इसके फूल लाल व बैंगनी रंग के 30 से 60 सेमी. लंबे पुष्पदंड पर लगते हैं। फल बैंगनी और लाल मिश्रित रंग के गुच्छे के रूप में लगते हैं। प्रत्येक फल में 3 बीज होते हैं, जो कड़े आवरण से ढके होते हैं। एरंड के पौधे के तने, पत्तों और टहनियों के ऊपर धूल जैसा आवरण रहता है, जो हाथ लगाने पर चिपक जाता है। ये दो प्रकार का होते हैं लाल रंग के तने और पत्ते वाले एरंड को लाल और सफेद रंग के होने पर सफेद एरंड कहते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत एरंड, गन्धर्वहस्त, वर्धमान, व्याघ्रपुच्छ, उत्तानपत्रक
हिंदी. अंडी, अरण्ड, एरंड
मराठी एरंडी
गुजराती एरंडो दिवेलेगों
बंगाली भेरेंडा, शादारेंडी
मलयालम अमन वक्कु
फारसी . वेद अंजीर
अरबी खिर्वअ
अंग्रेजी कैस्टर प्लांट
लैटिन रिसिनस कोम्युनिट्स
स्वाद : एरंड खाने में तीखा, बेस्वाद होता है।
स्वरूप : एरंड दो प्रकार का होता है पहला सफेद और दूसरा लाल। इसकी दो जातियां और भी होती हैं। एक मल एरंड और दूसरी वर्षा एरंड। वर्षा एरंड, बरसात के सीजन में उगता है। मल एरंड 15 वर्ष तक रह सकता है। वर्षा एरंड के बीज छोटे होते हैं, परन्तु उनमें मल एरंड से अधिक तेल निकलता है। एरंड का तेल पेट साफ करने वाला होता है, परन्तु अधिक तीव्र न होने के कारण बालकों को देने से कोई हानि नहीं होती है।
पेड़ : एरंड का पेड़ 2.4 से 4.5 मीटर, पतला, लम्बा और चिकना होता है।
फूल : इसका फूल एक लिंगी, लाल बैंगनी रंग के होते हैं।
फल : एरंड के फल के ऊपर हरे रंग का आवरण होता है। प्रत्येक फल में तीन बीज होते हैं।
बीज : इसके बीज सफेद चिकने होते हैं।
स्वभाव : एरंड गर्म प्रकृति का होता है।
हानिकारक : एरंड आमाशय को शिथिल करता है, गर्मी उत्पन्न करता है और उल्टी लाता है। इसके सेवन से जी घबराने लगता है। लाल एरंड के 20 बीजों की गिरी नशा पैदा करती है और ज्यादा खाने से बहुत उल्टी होता है एवं घबराहट या बेहोशी तक भी हो सकती है। यह आमाशय के लिए अहितकर होता है।
तुलना : इसकी तुलना जमालघोटा से की जा सकती है।
दोषों को दूर करने वाला : कतीरा और मस्तगी एरंड के गुणों को सुरक्षित रखकर इसके दोषों को दूर करता है।
नोट : लाल एरंड का तेल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ लेने से योनिदर्द, वायुगोला, वातरक्त, हृदय रोग, जीर्णज्वर (पुराना बुखार), कमर के दर्द, पीठ और कब्ज के दर्द को मिटाता है। यह दिमाग, रुचि, आरोग्यता, स्मृति (याददास्त), बल और आयु को बढ़ाता है और हृदय को बलवान करता है।
गुण : एरंड पुराने मल को निकालकर पेट को हल्का करती है। यह ठंडी प्रकृति वालों के लिए अच्छा है, अर्द्धांग वात, गृध्रसी झानक बाई (साइटिका के कारण उत्पन्न बाय का दर्द), जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) तथा समस्त वायुरोगों की नाशक है इसके पत्ते, जड़, बीज और तेल सभी औषधि के रूप में इस्तेमाल किए जाते है। यहां तक कि ज्योतिषी और तांत्रिक भी ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए एरंड का प्रयोग करते हैं।
सफेद एरंड : सफेद एरंड, बुखार, कफ, पेट दर्द, सूजन, बदन दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, मोटापा, प्रमेह और अंडवृद्धि का नाश करता है।
लाल एरंड : पेट के कीड़े, बवासीर, रक्तदोष (रक्तविकार), भूख कम लगना, और पीलिया रोग का नाश करता है। इसके अन्य गुण सफेद एरंड के जैसे हैं।
एरंड के पत्ते : एरंड के पत्ते वात पित्त को बढ़ाते हैं और मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कठिनाई होना), वायु, कफ और कीड़ों का नाश करते हैं।
एरंड के अंकुर : एरंड के अंकुर फोड़े, पेट के दर्द, खांसी, पेट के कीड़े आदि रोगों का नाश करते हैं।
एरंड के फूल : एरंड के फूल ठंड से उत्पन्न रोग जैसे खांसी, जुकाम और बलगम तथा पेट दर्द संबधी बीमारी का नाश करता है।
एरंड के बीजों का गूदा : एरंड के बीजों का गूदा बदन दर्द, पेट दर्द, फोड़े-फुंसी, भूख कम लगना तथा यकृत सम्बंधी बीमारी का नाश करता है।
एरंड का तेल : पेट की बीमारी, फोड़े-फुन्सी, सर्दी से होने वाले रोग, सूजन, कमर, पीठ, पेट और गुदा के दर्द का नाश करता है।
हानिकारक प्रभाव : राइसिन नामक विषैला तत्त्व होने के कारण एरंड के 40-50 दाने खाने से या 10 ग्राम बीजों के छिलकों का चूर्ण खाने से उल्टी होकर व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।
मात्रा : बीज 2 से 6 दाने। तेल 5 से 15 मिलीलीटर। पत्तों का चूर्ण 3 से 4 ग्राम। जड़ की पिसी लुगदी 10 से 20 ग्राम । जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम।
विभिन्न रोगों में उपयोगी :
1. चर्म (त्वचा) के रोग :
• एरंण्ड की जड़ 20 ग्राम को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इसे पिलाने से चर्म रोगों में लाभ होता है।
• एरंड के तेल की मालिश करते रहने से शरीर के किसी भी अंग की त्वचा फटने का कष्ट दूर होता है।
2. सिर पर बाल उगाने के लिए : ऐसे शिशु जिनके सिर पर बाल नहीं उगते हो या बहुत कम हो या ऐसे पुरुष-स्त्री जिनकी पलकों व भौंहों पर बहुत कम बाल हों तो उन्हें एरंड के तेल की मालिश नियमित रूप से सोते समय करना चाहिए। इससे कुछ ही हफ्तों में सुंदर, घने, लंबे, काले बाल पैदा हो जाएंगे।
3. सिर दर्द : एरंड के तेल की मालिश सिर में करने से सिर दर्द की पीड़ा दूर होती है। एरंड की जड़ को पानी में पीसकर माथे पर लगाने से भी सिर दर्द में राहत मिलती है।
4. जलने पर : एरंड का तेल थोड़े-से चूने में फेंटकर आग से जले घावों पर लगाने से वे शीघ्र भर जाते हैं। एरंड के पत्तों के रस में बराबर की मात्रा में सरसों का तेल फेंटकर लगाने से भी यही लाभ मिलता है।
5. पायरिया : एरंड के तेल में कपूर का चूर्ण मिलाकर दिन में 2 बार नियमित रूप से मसूढ़ों की मालिश करते रहने से पायरिया रोग में आराम मिलता है।
6. शिश्न (लिंग) की शक्ति बढ़ाने के लिए : मीठे तेल में एरंड के पीसे बीजों का चूर्ण औटाकर शिश्न (लिंग) पर नियमित रूप से मालिश करते रहने से उसकी शक्ति बढ़ती है।
7. मोटापा दूर करना :
• एरंड की जड़ का काढ़ा छानकर एक-एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार सेवन करें।
• एरंड के पत्ते, लाल चंदन, सहजन के पत्ते, निर्गुण्डी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, बाद में 2 कलियां लहसुन की डालकर पकाकर काढ़ा बनाकर रखा रहने दें इसमें से जो भाप निकले उसकी उस भाप से गला सेंकने और काढ़े से कुल्ला करना चाहिए।
• एरंड के पत्तों का खार (क्षार) को हींग डालकर पीये और ऊपर से भात (चावल) खायें। इससे लाभ हो जाता है।
• अरण्ड के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से मोटापा दूर हो जाता है।
8. स्तनों में दूध वृद्धि हेतु :
• एरंड के पत्तों का रस दो चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार कुछ दिनों तक नियमित पिलाएं। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
• अरण्ड (एरंड) पाक को 10 से लेकर 20 ग्राम की मात्रा में गुनगुने दूध के साथ प्रतिदिन सुबह और शाम को पिलाने से प्रसूता यानी बच्चे को जन्म देने वाली माता के स्तनों में दूध में वृद्धि होती है।
• मां के स्तनों पर एरंड के तेल की मालिश दिन में 2-3 बार करने से स्तनों में पर्याप्त मात्रा में दूध की वृद्धि होती है।
9. बालकों के पेट के कृमि (कीड़े) :
• एरंड का तेल गर्म पानी के साथ देना चाहिए अथवा एरंड का रस शहद में मिलाकर बच्चों को पिलाना चाहिए। इससे बच्चों के पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
• एरंड के पत्तों का रस नित्य 2-3 बार बच्चे की गुदा में लगाने से बच्चों के चुनने (पेट के कीड़े) मर जाते हैं।
10. बिच्छू के विष पर : एरंड के पत्तों का रस, शरीर के जिस भाग की ओर दंश न हुआ हो, उस ओर के कान में डालें और बहुत देर तक कान को ज्यों का त्यों रहने दें। इस प्रकार दो-तीन बार डालने से बिच्छू का विष उतर जाता है।
11. नींद कम आना : एरंड के अंकुर बारीक पीसकर उसमें थोड़ा सा दूध मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को कपाल (सिर) तथा कान के पास लेप करने से नींद का कम आना दूर हो जाता है।
12. पीनस रोग- एरण्ड के तेल को तपाकर रख लें और जिस ओर नाक में पीनस हो गया हो उस ओर के नथुने से एरण्ड के तेल को दिन में कई बार सूंघने से पीनस नष्ट हो जाती है।
• एरंड की जड़ और सोंठ को घिसकर योनि पर लेप करें। इससे योनि दर्द ठीक हो जाता है।
• एरंड तेल में रूई का फोहा भिगोकर योनि में धारण करने से योनि का दर्द मिट जाता है।
13. पीठ के दर्द में : एरंड के तेल को गाय के पेशाब में मिलाकर देना चाहिए। इससे पीठ, कमर, कन्धे, पेट और पैरों का शूल (दर्द) नष्ट हो जाता है।
अंडरआर्म की डार्कनेस
लड़कियां स्लीवलेस कपड़े पहना बेहद पसंद करती हैं, लेकिन अंडरआर्म की डार्कनेस उन्हें ऐसा करने से कई बार रोक देती है। इसकी वजह से शादी-पार्टी में उनको अपना मन मार कर फुल स्लिव कपड़े पहनने पड़ते हैं। इस आर्टिकल में हम लड़कियों को अंडरआर्म की डार्कनेस दूर करने के कुछ घरेलू उपाय बता रहे हैं।
नींबू
नीबू के छिलके से अंडरआर्म की डार्कनेस दूर होती है।10 से 15 मिनट तक अंडरआर्म पर नींबू के छिलके से मसाज करें और उसके बाद ठंडे पानी से धो लें। 2-3 दिन तक लगातार ऐसा करते रहें। इसके बाद आपको फर्क खुद महसूस होने लगेगा। आप नींबू के साथ चीनी मिक्स कर भी मसाज कर सकती हैं।
चीनी
डार्क रंग की स्किन से छुटकारा पाने के लिये चीनी और पानी का यूज करें। इसके मिश्रण को अंडरआर्म पर लगाएं। आप चाहें तो दिन में दो बार इस मिश्रण को अंडरआर्म पर लगा सकती हैं। इससे अंडरआर्म की डार्कनेस दूर होने लगती है और स्किन में चमक आती है।
बेकिंग सोडा
बेकिंग सोडा और पानी के पेस्ट से अंडरआर्म की मसाज करें। इससे अंडरआर्म की डार्कनेस हल्की पड़ती है और स्किन चमकने लगती है। जल्दी रिजल्ट के लिए बेकिंग सोडा के साथ गुलाब जल का यूज करें।
दूध
दूध के साथ केसर का पेस्ट बनाकर उसे अंडरआर्म पर लगाने से वहां की डार्कनेस खत्म हो जाती है।
नारियल
नारियल तेल से अंडर आर्म की मसाज करें। आप इसके साथ नींबू का रस और दही भी मिक्स कर सकती हैं। इससे अंडरआर्म की डार्कनेस हल्की पड़ती है और स्किन में ग्लो आती है।
बेसन का पेस्ट
अंडरआर्म पर लगाने के लिए बेसन, दही और नींबू का पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट को एक-दो दिन तक लगातार अंडरआर्म पर लगाएं डार्कनेस खत्म हो जाएगी। ध्यान रखें कि पेस्ट लगाने के कुछ देर बाद उसे ठंडे पानी से धो लें।
आलू
आलू एक प्राकृतिक ब्लीचिंग एजेंट है। इससे अंडर आर्म का रंग हल्का हो जाता है।आलू की स्लाइस काट कर उसे दिन में दो बार 5 मिनट के लिये मसाज करें और अंडर आर्म को सफेद बनाएं।
Get Rid of Excess Water Weight In 3 Days with this Celery Cucumber Juice
Water Retention
lot of the time we’re carrying excess water weight – whether that be from biochemical and hormonal imbalances, toxicity, or poor cardiovascular and cellular health.
These symptoms are really just your body trying to tell you that you’re either a) too acidic or b) dehydrated. When your body is dehydrated, either because you simply aren’t drinking enough water or because you are eating too much sodium, you will hold onto water as a survival mode to ensure cells remain supple and plump.
If your feet are swollen at the end of the day, or you have sock marks on your ankles, then you definitely need to shed some excess water weight. Thankfully, this juice recipe will allow you to flush the body of excess sodium and rehydrate your cells.
It is also smart to avoid foods that make our bodies hold onto excess water weight like meat products, alcohol, caffeine, tobacco, dairy, deep-fried and processed foods, picked foods, condiments and sauces.
Ingredients:
– 1 bunch celery
– 1 large cucumber
– 1 lemon, peeled
– 1 inch fresh ginger root
– 2 apples
Method:
Run all of the above ingredients through a juicer, and enjoy immediately for maximum benefits. Enjoy!
Source: livelovefruit.com/
पान के फायदे
इसकी पत्तियों के कटु, उष्ण और क्षारीय गुण इसे औरों से अलग करते हैं तथा इसे खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
यह कफ का भी नाश करता है अक्सर आपने देखा होगा कि किसी भारी खाने के बाद आप पान खाने जाते है, क्योंकि इसे खाने से खाना जल्दी से पच जाता है।
यह भूख बढ़ाने के साथ ही खाने में रुचि को बढ़ाता है।
पुराने और नए पान के पत्तों में भी प्रभाव अलग-अलग होते है। पुराना पान रुचिकारक, सुगन्धित, कामोद्दीपक और मुंह को शुद्ध करने वाला होता है, जबकि नए पान के पत्ते स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जाते हैं।
-हृदय की दुर्बलता में इसका प्रयोग लाभदायक है।
-पान की जड़ को मुलेठी के चूर्ण के साथ शहद मिलाकर देने से सर्दी-जुखाम एवं गले की खराश में लाभ मिलता है। गाने में रूचि रखनेवालों के लिए यह श्रेष्ठ औषधि है।
-पान के पत्तों को चूसने पर यह लार (सलाइवा ) को निकालने में मददगार होती है ,जिससे भोजन का पाचन ठीक ढंग से होता है।
-पान का शरबत हृदय को बल देता है। यह कफ दोष का शमन करता है तथा अग्नि को दीप्त करता है अर्थात भूख को बढ़ाता है।
-इसे अधिक खाने से इसमें पाया जानेवाला हेपेक्साइन नुकसान पहुंचता है अधिक पान खाना भी एक व्यसन है और अहितकर भी।
-अगर पान के पत्ते को काली मिर्च के दानों के साथ खाएं, तो यह 8 हफ्तों में मोटापा कम कर देगा।
-पान के पत्ते बहुत शक्तिशाली गुणों से भरे होते हैं, यह और उचित हाजमें के लिये जाने जाते हैं।
-पान के पत्ते शरीर का मेटाबॉलिज्म बढाते हैं तथा पेट में एसिडिटी होने से रोकते हैं। खाने खाने के बाद आप पान के पत्ते को जैसे ही मुंह में डालते हैं, यह तुरंत अपना असर दिखाना शुरु कर देता है। इसे खाने से मुंह में थूक बनने लगता है और यह पेट को खाना पचाने के लिये दिमाग को सिगनल भेज देता है। यह शरीर से विषैले पदार्थों को भी निकालने में सहायक है। पान खाने से कब्ज की समस्या भी नहीं होती।
-पान की पत्तियाँ शरीर से मेधा धातुं यानी की बॉडी फैट को निकालती हैं, जिससे वजन कम होता है।
-सोने से थोड़ा पहले पान को नमक और अजवायन के साथ मुंह में रखने से नींद अच्छी आती है।
-काली मिर्च शरीर से मूत्र और पसीने को निकालती है जिससे शरीर से अत्यधिक पानी और गंदगी निकल जाती है।
कैसे करें प्रयोग:-
-एक पान का पत्ता लें और उसमें 5 साबुत काली मिर्च रखें। फिर इसे मोड़ कर चबाएं। इसे खाली पेट रोजाना 8 हफ्तों तक खाएं। यह खाने में तीखा लगेगा। इसे धीरे धीरे चबा कर खाएं जिससे इसके सभी पेाषण आपके थूक के साथ आराम से पेट के अंदर जाएं।
सावधानी:
पान की पत्ती हमेशा ताजी होनी चाहिये। यह हरे रंग की और नाजुक होनी चाहिये। अगर यह सूखी हुई और पीले रंग की पड़ गई है तो ऐस ना खाएं क्योंकि इसमें समाए सभी औषधीय मूल्य खो चुके होते हैं। इसके अलावा सड़ी हुई पत्ती जिसका रंग काला पड़ चुका है उसे भी ना खाएं नहीं तो पेट खराब होने का डर रहता है।
-पान में दो ग्राम कपूर को लेकर दिन में तीन-चार बार चबाने से पायरिया दूर हो जाता है। लेकिन पान की पीक पेट में जानी नहीं चाहिए।
-खांसी आने पर पान में अजवाइन डालकर चबाने से लाभ होता है। गर्म हल्दी को पान में लपेटकर चबाएं, फायदा होगा।
-किडनी खराब होने पर पान का सेवन करना लाभकारी होता है। इस दौरान तेज मसाले, शराब एवं मांसाहार से परहेज करना चाहिए।
-चोट पर पान को गर्म करके परत-परत करके चोट वाली जगह पर बांध लेना चाहिए। इससे दर्द में आराम मिलता है।
-जले पर पान लगाने से भी फायदा मिलता है। जल जाने पर पान को गर्म करके लगाने से दर्द कम होता है।
-मुंह के छालों के लिए पान बहुत फायेदेमंद होता है। छाले पड़ने पर पान के रस को देशी घी से लगाने पर प्रयोग करने से फायदा होता है।
-जुकाम होने पर पान को लौंग में डालकर खाना चाहिए।
-पान के तेल को गर्म करके सोते वक्त सीने पर लगाने से श्वास नली की बीमारियां समाप्त होती हैं।
-कब्ज होने पर पान का सेवन काफी फायदा करता है।
-माथे पर पान के पत्तों का लेप लगाने से सिरदर्द दूर हो जाता है।
-पान के पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से अंदरूनी दर्द व थकावट और कमजोरी को दूर किया जा सकता है।
-धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं, तो पान के ताजा पत्ते चबायें। इससे आपको धूम्रपान छोड़ने में मदद मिलेगी।
-कमर दर्द से राहत पाने के लिए उस पर पान के पत्तों से मसाज करें, लाभ होगा।
-पान के पत्ते चबाने से डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता है।
-मसूड़ों से खून आने पर पान के पत्तों को पानी में उबालकर उन्हें मैश कर लें। इन्हें मसूड़ों पर लगाने से खून बहना बंद हो जाता है।
HOMEMADE REMEDY THAT IMPROVES VISION AND LOWER INTRAOCULAR PRESSURE
Vladimir Petrovich Filatov is Russian physician, surgeon and ophthalmologist. He treat the patients with this medical treatment- the recipe on alternative medicine was able to successfully treated people with vision problems and high eye pressure.
This homemade remedy prevents further visual loss and restores vision.
People began to use it because they have very positive experience.
Ingredients:
Lemon juice (3-4 lemons)
300 g honey
500 g ground walnuts
100 g of aloe juice
Instructions:
Mix all ingredients in a blender.
Eat 1 tablespoon of this mixture, 30 min. before a meal, 3 times a day.
This vitamin bomb will also boost the entire body to regenerate.
Aloe vera juice has a counter effect in cardiovascular problems, hemorrhoids, tuberculosis, inflammation of the female reproductive organs, digestive tract issues, kidney disease.
Aloe vera may not be older than 2-3 years.
Source: thebesthealthyhabits.com
सत्तू : स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार
चना, मकई या जौ वगैरह को बालू में भूनने के बाद उसको आटा-चक्की में पीसकर बनाए गए चूर्ण (पावडर) को सत्तू कहा जाता है। ग्रीष्मकाल शुरू होते ही भारत में अधिकांश लोग सत्तू का प्रयोग करते हैं। खासकर दूर-दराज के छोटे क्षेत्रों व कस्बों में यह भोजन का काम करता है।
चने वाले सत्तू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और मकई वाले सत्तू में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। इन दोनों प्रकार के सत्तू का अकेले-अकेले या दोनों को किसी भी अनुपात में मिलाकर सेवन किया जा सकता है।
सत्तू के विभिन्न नाम
भारत की लगभग सभी आर्य भाषाओं में सत्तू शब्द का प्रयोग मिलता है, जैसे पाली प्राकृत में सत्तू, प्राकृत और भोजपुरी में सतुआ, कश्मीरी में सोतु, कुमाउनी में सातु-सत्तू, पंजाबी में सत्तू, सिन्धी में सांतू, गुजराती में सातु तथा हिन्दी में सत्तू एवं सतुआ।
यह इसी नाम से बना बनाया बाजार में मिलता है। गुड़ का सत्तू व शकर का सत्तू दोनों अपने स्वाद के अनुसार लोगों में प्रसिद्ध हैं। सत्तू एक ऐसा आहार है जो बनाने, खाने में सरल है, सस्ता है, शरीर व स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और निरापद भी है।
विभिन्न प्रकार के सत्तू
जौ का सत्तू : जौ का सत्तू शीतल, अग्नि प्रदीपक, हलका, दस्तावर (कब्जनाशक), कफ तथा पित्त का शमन करने वाला, रूखा और लेखन होता है। इसे जल में घोलकर पीने से यह बलवर्द्धक, पोषक, पुष्टिकारक, मल भेदक, तृप्तिकारक, मधुर, रुचिकारक और पचने के बाद तुरन्त शक्ति दायक होता है। यह कफ, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और नेत्र विकार नाशक होता है।
जौ-चने का सत्तू : चने को भूनकर, छिलका हटाकर पिसवा लेते हैं और चौथाई भाग जौ का सत्तू मिला लेते हैं। यह जौ चने का सत्तू है। इस सत्तू को पानी में घोलकर, घी-शकर मिलाकर पीना ग्रीष्मकाल में बहुत हितकारी, तृप्ति दायक, शीतलता देने वाला होता है।
चावल का सत्तू : चावल का सत्तू अग्निवर्द्धक, हलका, शीतल, मधुर ग्राही, रुचिकारी, बलवीर्यवर्द्धक, ग्रीष्म काल में सेवन योग्य उत्तम पथ्य आहार है।
जौ-गेहूँ चने का सत्तू : चने की दाल एक किलो, गेहूँ आधा किलो और जौ 200 ग्राम। तीनों को 7-8 घंटे पानी में गलाकर सुखा लेते हैं और जौ को साफ करके तीनों को अलग- अलग घर में या भड़भूंजे के यहां भुनवा कर, तीनों को मिला लेते हैं और पिसवा लेते हैं। यह गेहूँ, जौ, चने का सत्तू है।
सेवन विधि : इनमें से किसी भी सत्तू को पतला पेय बनाकर पी सकते हैं या लप्सी की तरह गाढ़ा रखकर चम्मच से खा सकते हैं। इसे मीठा करना हो तो उचित मात्रा में शकर या गुड़ पानी में घोलकर सत्तू इसी पानी से घोलें।
नमकीन करना हो तो उचित मात्रा में पिसा जीरा व नमक पानी में डालकर इसी पानी में सत्तू घोलें। इच्छा के अनुसार इसे पतला या गाढ़ा रख सकते हैं। सत्तू अपने आप में पूरा भोजन है, यह एक सुपाच्य, हलका, पौष्टिक और तृप्तिदायक शीतल आहार है, इसीलिए इसका सेवन ग्रीष्म काल में किया जाता है।
जौ के लाभ
हमारे ऋषियों-मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था। वेदों द्वारा यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। जौ को भूनकर, पीसकर, उस आटे में थोड़ा-सा नमक और पानी मिलाने पर सत्तू बनता है। कुछ लोग सत्तू में नमक के स्थान पर गुड़ डालते हैं व सत्तू में घी और शक्कर मिलाकर भी खाया जाता है। गेंहू , जौ और चने को बराबर मात्रा में पीसकर आटा बनाने से मोटापा कम होता है और ये बहुत पौष्टिक भी होता है .राजस्थान में भीषण गर्मी से निजात पाने के लिए सुबह सुबह जौ की राबड़ी का सेवन किया जाता है .
अगर आपको ब्लड प्रेशर की शिकायत है और आपका पारा तुरंत चढ़ता है तो फिर जौ को दवा की तरह खाएँ। हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जौ से ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है।कच्चा या पकाया हुआ जौ नहीं बल्कि पके हुए जौ का छिलका ब्लड प्रेशर से बहुत ही कारगर तरीके से लड़ता है।
यह नाइट्रिक ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे रसायनिक पदार्थे के निर्माण को बढ़ा देता है और उनसे खून की नसें तनाव मुक्त हो जाती हैं।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद स्थित नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने इस नयी किस्म नरेंद्र जौ अथवा उपासना को विकसित किया है और हाल ही में उत्तर भारत के किसानों के लिए जारी किया गया है। नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉक्टर सियाराम विश्वकर्मा ने बताया कि इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह छिलका रहित है। उपासना में बीटाग्लूकोन ग्लूटेन की कम मात्रा सुपाच्य रेशो एसिटिल कोलाइन (कार्बोहाइड्रेट पदार्थ) पाया जाता है।
इसमें फोलिक विटामिन भी पाया जाता है। यही कारण है कि इसके सेवन से रक्तचाप मधुमेह पेट एवं मूष संबंधी बीमारी गुर्दे की पथरी याद्दाश्त की समस्या आदि से निजात दिलाता है।
इसमें एंटी कोलेस्ट्रॉल तत्व भी पाया जाता है।
यह उत्तर भारत के मैदानी इलाकों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और गुजरात की एक महत्वपूर्ण रबी फसल है।
इसका उपयोग औषधि के रूप मे किया जा सकता है । जौ के निम्न औषधीय गुण है :
- कंठ माला- जौ के आटे में धनिये की हरी पत्तियों का रस मिलाकर रोगी स्थान पर लगाने से कंठ माला ठीक हो जाती है।
- मधुमेह (डायबटीज)- छिलका रहित जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दूध व घी के साथ दलिया का सेवन पथ्यपूर्वक कुछ दिनों तक लगातार करते करते रहने से मधूमेह की व्याधि से छूटकारा पाया जा सकता है।
- जलन- गर्मी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग सी निकलती हो तो जौ का सत्तू खाने चाहिये। यह गर्मी को शान्त करके ठंडक पहूचाता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
- मूत्रावरोध- जौ का दलिया दूध के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बन्धि अनेक विकार समाप्त हो जाते है।
- गले की सूजन- थोड़ा सा जौ कूट कर पानी में भिगो दें। कुछ समय के बाद पानी निथर जाने पर उसे गरम करके उसके कूल्ले करे। इससे शीघ्र ही गले की सूजन दूर हो जायेगी।
- ज्वर- अधपके या कच्चे जौ (खेत में पूर्णतः न पके ) को कूटकर दूध में पकाकर उसमें जौ का सत्तू मिश्री, घी शहद तथा थोड़ा सा दूघ और मिलाकर पीने से ज्वर की गर्मी शांत हो जाती है।
- मस्तिष्क का प्रहार- जौ का आटा पानी में घोलकर मस्तक पर लेप करने से मस्तिष्क की पित्त के कारण हूई पीड़ा शांत हो जाती है।
- अतिसार- जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आंतों की गर्मी शांत हो जाती है। यह सूप लघू, पाचक एंव संग्राही होने से उरःक्षत में होने वाले अतिसार (पतले दस्त) या राजयक्ष्मा (टी. बी.) में हितकर होता है।
- मोटापा बढ़ाने के लिये- जौ को पानी भीगोकर, कूटकर, छिलका रहित करके उसे दूध में खीर की भांति पकाकर सेवन करने से शरीर पर्यात हूष्ट पुष्ट और मोटा हो जाता है।
- धातु-पुष्टिकर योग- छिलके रहित जौ, गेहू और उड़द समान मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण में चार गुना गाय का दूध लेकर उसमे इस लुगदी को डालकर धीमी अग्नि पर पकायें। गाढ़ा हो जाने पर देशी घी डालकर भून लें। तत्पश्चात् चीनी मिलाकर लड्डू या चीनी की चाशनी मिलाकर पाक जमा लें। मात्रा 10 से 50 ग्राम। यह पाक चीनी व पीतल-चूर्ण मिलाकर गरम गाय के दूध के साथ प्रातःकाल कुछ दिनों तक नियमित लेने से धातु सम्बन्धी अनेक दोष समाप्त हो जाते हैं ।
- पथरी- जौ का पानी पीने से पथरी निकल जायेगी। पथरी के रोगी जौ से बने पदार्थ लें।
- गर्भपात- जौ का छना आटा, तिल तथा चीनी-तीनों सममात्रा में लेकर महीन पीस लें। उसमें शहद मिलाकर चाटें।
- कर्ण शोध व पित्त- पित्त की सूजन अथवा कान की सूजन होने पर जौ के आटे में ईसबगोल की भूसी व सिरका मिलाकर लेप करना लाभप्रद रहता है।
- आग से जलना- तिल के तेल में जौ के दानों को भूनकर जला लें। तत्पश्चात् पीसकर जलने से उत्पन्न हुए घाव या छालों पर इसे लगायें, आराम हो जायेगा। अथवा जौ के दाने अग्नि में जलाकर पीस लें। वह भस्म तिल के तेल में मिलाकर रोगी स्थान पर लगानी चाहियें।
- जौ की राख को शहद के साथ चाताने से खांसी ठीक हो जाती है |
- जौ की राख को पानी में खूब उबालने से यवक्षार बनता है जो किडनी को ठीक कर देता है |
डकार में पेट की गैस को मुंह से निकाला जाता है, जिसमें कभी कभी अजीब सी आवाज़ और गंध होती है। अधिकतर डकार आना किसी बीमारी का संकेत नहीं है। फिर भी समाज में इसे स्वीकार नहीं किया जाता।
भारतीय और चायनीज़ संस्कृति में कुछ स्थितियों में इसे स्वीकार नहीं किया जाता। जापान में इसे शिष्टाचार के विरुद्ध समझा जाता है। पश्चिमी सभ्यता जैसे उत्तरी अमेरिका, फ्रेंच और जर्मन में भी डकार को उचित नहीं समझा जाता तथा ऐसा माना जाता है कि डकार आने पर आपको आवाज़ दबाने का प्रयत्न करना चाहिए तथा माफ़ी मांगनी चाहिए।
कभी कभी आधे खाने के बीच ही डकार आ जाती है, कभी ठूंस ठूंस के खा लो तब भी डकार नहीं आती। और कभी तो खाली पेट ही डकार आने लगती है। ऐसे में समझ नहीं आता कितना खाया जाए। आज हम आपको बताते हैं चार तरह की डकारों के बारे में ।
पहली है तृप्ति डकार....
हमारा आमाशय जिसे सरल भाषा में पेट कहा जाता है, एक बलून जैसा होता है। जब हम खाना खाते हैं तो खाना आमाशय (पेट) में जाता है, पेट भोजन के कारण फूल जाता है और जब खाना आमाशय से नीचे चला जाता है तो यह सिकुड़ जाता है।
जब हमारा पेट खाली होता है तब इसमें कुछ शुद्ध वायु रहती है। हम खाना खाते है, जब हमारा पेट आधा भर जाता है तो यह शुद्ध वायु हमारे मुंह में आती है। जब ये बाहर निकलती है तो इस वायु को हम तृप्ति डकार कहते हैं।
इसका मतलब अब और नहीं खाना। वास्तव में खाना पचाने के लिए आमाशय का एक चौथाई भाग पाचक रस, एंजाइम्स और एसिड से भरता है और बाकी 1/4 भाग खाली रहना चाहिए। अब आप पूछेंगे खाली क्यूँ ? जब खा ही रहे हैं तो पूरा ही भर लें।
जिस तरह दही को मथकर मक्खन निकाला जाता है, उसी तरह यह एंजाइम्स और एसिड मंथन के द्वारा खाना पचता है। मंथन के लिए आमाशय में कम से कम एक चौथाई जगह खाली होनी चाहिए, नहीं तो मंथन सुचारू रूप से नहीं हो सकेगा।
पूरक डकार......
तृप्ति डकार से ज्यादा खाने पर हमारा आमाशय पूरा भर जाता है और आमाशय की वायु हमारे मुंह में आती है जिसे हम पूरक डकार कहते है। पूरक डकार का अर्थ है कि अब अमाशय खाने को पचा नहीं सकता।
इस परिस्थिति में हमारा आमाशय खाने से पूरा भर जाता है, शरीर में निकले हुए पाचक रस व एसिड के लिए आमाशय में जगह नहीं रहती, वे बेचारा छाती के पास भोजन नली में पड़ा रहता है। फिर आप बेचारे कहते हैं मुझे छाटी में जलन हो रही हैं, एसिडिटी हो रही है।
खट्टी डकार......
इसके बारे में तो आपको बताने के आवश्यकता ही नहीं, इसका कारण तो आप खुद बहुत अच्छे से जानते हैं। जब खाना पचता नहीं, सड़ता ही रहता है और खाना सड़ने पर, खाने में से कुछ गैस ऊपर से और कुछ गैस नीचे से निकलती है। ऊपर से निकलने वाली गैस के रास्ते में एसिड पड़ा होता है और हमें खट्टी डकार का अनुभव होता हैं।
भूख डकार......
भोजन के 5-6 घंटे के बाद जब आमाशय खाने को पचा कर नीचे भेज देता है, तब भूख डकार आती है। भूख डकार का अर्थ है कि आमाशय को अब 1-2 घंटे का आराम चाहिए। इस डकार में कोई कोई सुगंध या दुर्गन्ध नहीं होती और इसके आने पर हमें हल्कापन अनुभव होता है। कुल मिलाकर एक स्वस्थ व्यक्ति को भोजन पचाने में 6 से 8 घंटे लगते है और बीमार व्यक्ति को ज्यादा भी लग सकते है।
इसलिए हिंदुस्तान में कहा जाता है जो एक दफा खाए वो योगी, दो दफा खाए वो भोगी, तीन दफा खाए वो रोगी और चार दफा खाना जल्द मृत्यु कारक होता है। इन चार डकारों में से एक स्वस्थ व्यक्ति को केवल तृप्ति डकार और भूख डकार आनी चाहिए और पूरक डकार तथा खट्टी डकार नहीं आनी चाहिए।
उपाय......
अब आप सब कुछ जानने के बाद भी केवल जीभ की ही सुनते हैं तो फिर उपाय भी जान लीजिये।
अजवायन, सेंधानमक, संचरनमक, यवक्षार, हींग और सूखे आंवले का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर बना लें। 1 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से खट्टी डकारे आना बंद हो जाती हैं।
बाजरे के दाने के बराबर हींग लेकर गुड़ या केले के साथ खाने से डकार में आराम मिलता है।
एक चम्मच सिका पिसा जीरा एक चम्मच शहद में मिलाकर खाना खाने के बाद चाटने से डकारों में लाभ होता है।
देशी घी में भुनी हुई हींग, काला नमक और अजवायन के साथ सुबह-शाम सेवन करने से डकार, गैस और भोजन के न पचने के रोगों में लाभ मिलता है।
दालचीनी का तेल एक से तीन बूंद को बतासे या चीनी पर डालकर सुबह-शाम सेवन करने से डकार और पेट में गैस बनने में लाभ पहुंचता है।
थोड़ा सा पुदीना और थोड़ा सा सूखा धनिया, बड़ी इलायची, अजवायन और काला नमक इन सबको पीसकर या तो टिकिया बना लें या चूर्ण बना लें। फिर इसे दो घंटे बाद गर्म पानी से लेना चाहिए। थोड़ी देर में डकारे बंद हो जाएंगी।
मेथी के हरे पत्ते उबालकर, दही में रायता बनाकर सुबह और दोपहर में खाने से खट्टी डकारे, अपच, गैस और आंव में लाभ होता है।
और अंत में सबसे बड़ा उपाय है बिना भूख के खाना न खाएं, ज़रूरत से ज्यादा खाना न खाएं, सम्यक और सादा भोजन ही खाएं, चबा चबा के खाएं। और मन अशांत हो तब तो बिलकुल न खाएं।
गुलकंद (Gulkand) से उपचार एव बनाने की विधि
गुलकंद एक आयुर्वेदिक टॉनिक है। गुलाब के फूल की भीनी-भीनी खुशबू और पंखुड़ियों के औषधीय गुण से भरपूर गुलकंद को नियमित खाने पर पित्त के दोष दूर होते हैं तथा इससे कफ में भी राहत मिलती है। गर्मियों के मौसम में गुलकंद कई तरह के फायदे पहुंचाता है। गुलकंद कील मुहांसो को दूर करता है अरु रक्त शुद्ध करता है, हाजमा दुरुस्त रखता है और आलस्य दूर करता है। गुलकंद शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है और कब्ज को भी दूर करता है।सीने की जलन और हड्डियो के रोगो में लाभकारी है, सुबह-शाम एक-एक चम्मच गुलकंद खाने पर मसूढ़ों में सूजन या खून आने की समस्या दूर हो जाती है। पीरियड के दौरान गुलकंद खाने से पेट दर्द में आराम मिलता है। मुंह का अल्सर दूर करने के लिए भी गुलकंद खाना फायदेमंद होता है।
गुलकंद बनाने की विधि:
सामग्री: ताजी गुलाब की पंखुडियां, बराबर मात्रा में चीनी, एक छोटा चम्मच पिसी छोटी इलायची तथा पिसा सौंफ
विधि: गुलाब की ताजी व खुली पंखुडियॉं लें ,अब कांच की बडे मुंह की बोतल लें इसमें थोडी पंखुडियां डालें अब चीनी डालें फिर पंखुडियां फिर चीनी अब एक छोटा चम्मच पिसी छोटी इलायची तथा पिसा सौंफ डालें फिर उपर से पंखुडियां डालें फिर चीनी इस तरह से डब्बा भर जाने तक करते रहें इसे धूप में रख दें आठ दस दिन के लिये बीच- बीच में इसे चलाते रहें चीनी पानी छोडेगी और उसी चीनी पानी में पंखुडियां गलेंगी। (अलग से पानी नहीं डालना है) पंखुडियां पूरी तरह गल जाय यानि सब एक सार हो जाय । लीजिये तैयार हो गया आपका गुलकंद।
अपामार्ग यानी कि लटजीरा का सेवन कितनी बिमारियों के लिए रामबाण है और साथ ही ये आपके शरीर के बढे हुए फैट को भी कम करता है। जानिए इसके क्या क्या फायदे हैं ।
ये एक सर्वविदित क्षुपजातीय औषधि है जो चिरचिटा नाम से भी जानी जाती है। वर्षा के साथ ही यह अंकुरित होती है, ऋतु के अंत तक बढ़ती है तथा शीत ऋतु में पुष्प फलों से शोभित होती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में यह पौधा परिपक्व होकर फलों के साथ ही शुष्क हो जाता है। इसके पुष्प हरी गुलाबी आभा युक्त तथा बीज चावल सदृश होते हैं, जिन्हें ताण्डूल कहते हैं तथा इसे एक वर्ष तक प्रयुक्त किया जा सकता है।
लटजीरे के बीजों को एकत्र करके मिटटी के बर्तन में भूनकर उसे पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग आधा चम्मच इसे खाया जाये तो भूख कम लगती है तथा यह शरीर की वसा को भी कम करता है। इस प्रकार यह कम करने में भी मदद करता है इसके कोई दुष्परिणाम भी नहीं है। ये आसानी से आयुर्वेद दवा बेचने वाले पंसारी से मिल जाता है। इसका पेड़ सड़क के आसपास देखने को आसानी से मिल जाता है।
इसके तने को साफ़ करकर दातुन की तरह उपयोग करें तो दांतों से जो खून बहने की समस्या होती है, वह भी धीरे-धीरे इससे समाप्त हो जाती है।
अगर आपको भस्मक रोग है यानि कि जिसमे खूब खाने के बाद भी आपकी भूख नही मिटती और खाने के इच्छा होती ही रहती है, उसके निदान के लिए इसके बीजों को खीर में मिलाकर देने से लाभ मिलता है।
बाहरी प्रयोग के रूप में भी इसका चूर्ण मात्र सूँघने से आधा शीशी का दर्द, बेहोशी, मिर्गी में आराम मिलता है।
इसके पत्तों का स्वरस दाँतों के दर्द में लाभ करता है तथा पुराने से पुरानी केविटी को भरने में मदद करता है।
कुत्ते के काटे स्थान पर तथा सर्पदंश-वृश्चिक दंश अन्य जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर ताजा स्वरस तुरन्त लगा देने से जहर उतर जाता है। यह घरेलू ग्रामीण उपचार के रूप में प्रयुक्त एक सिद्ध प्रयोग है। काटे गए स्थान पर बाद में पत्तों को पीसकर उनकी लुगदी बाँध देते हैं। व्रण दूषित नहीं हो पाता तथा विष के संस्थानिक प्रभाव भी नहीं होते है।
बर्र आदि के काटने पर भी अपामार्ग को कूटकर व पीसकर उस लुगदी का लेप करते हैं तो सूजन नहीं आती है।
लगभग एक से तीन ग्राम चिरचिटा के पंचांग का क्षार बकरी के दूध के साथ दिन में दो बार लेते हैं। इससे गुर्दे की पथरी गलकर नष्ट हो जाती है।
चिरचिटा की 25 ग्राम जड़ों को चावल के पानी में पीसकर बकरी के दूध के साथ दिन में तीन बार लेने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है।
चिरचिटा के पंचांग का काढ़ा लगभग 14 से 28 मिलीलीटर दिन में तीन बार सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
चिरचिटा की जड़ों को 3 से 6 ग्राम तक की मात्रा में बारीक पीसकर दिन में तीन बार देने से हैजा में लाभ मिलता है।
चिरचिटा की लगभग एक से तीन ग्राम पंचांग का क्षार नींबू के रस में या शहद के साथ दिन में तीन बार देने से शारीरिक दर्द में लाभ मिलता है।
चिरचिटा को जलाकर, छानकर उसमें उसके बराबर वजन की चीनी मिलाकर एक चुटकी दवा मां के दूध के साथ बच्चे को देने से खांसी बंद हो जाती है।
चिरचिटा के कोमल पत्तों को मिश्री के साथ मिलाकर अच्छी तरह पीसकर मक्खन के साथ धीमी आग पर रखे। जब यह गाढ़ा हो जाये तब इसको खाने से ऑवयुक्त दस्त में लाभ मिलता है।
250 ग्राम चिरचिड़ा का रस, 50 ग्राम लहसुन का रस, 50 ग्राम प्याज का रस और 125 ग्राम सरसों का तेल इन सबको मिलाकर आग पर पकायें। पके हुए रस में 6 ग्राम मैनसिल को पीसकर डालें और 20 ग्राम मोम डालकर महीन मलहम बनायें। इस मलहम को मस्सों पर लगाकर पान या धतूरे का पत्ता ऊपर से चिपकाने से बवासीर के मस्से सूखकर ठीक हो जाते हैं।
5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ का काढ़ा एक से 50 ग्राम सुबह-शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है। इसकी क्षार अगर भेड़ के पेशाब के साथ खायें तो गुर्दे की पथरी में ज्यादा लाभ होता है।
एक ग्राम कालीमिर्च के साथ चिरचिटा की जड़ को दूध में पीसकर नाक में टपकाने से लकवा या पक्षाघात ठीक हो जाता है।
चिरचिटा। का चूर्ण लगभग एक ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में लेकर पीने से जलोदर (पेट में पानी भरना) की सूजन कम होकर समाप्त हो जाती है।
अपामार्ग (चिरचिटा) के पत्तों के रस में कपूर और चन्दन का तेल मिलाकर शरीर पर मालिश करने से शीतपित्त की खुजली और जलन खत्म होती है।
फोड़े की सूजन व दर्द कम करने के लिए चिरचिटा, सज्जीखार अथवा जवाखार का लेप बनाकर फोड़े पर लगाने से फोड़ा फूट जाता है, जिससे दर्द व जलन में रोगी को आराम मिलता है।
चिरचिटा की धूनी देने से उपदंश के घाव मिट जाते हैं। 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ के रस को सफेद जीरे के 8 ग्राम चूर्ण के साथ मिलाकर पीने से उपदंश में बहुत लाभ होता है। इसके साथ रोगी को मक्खन भी साथ में खिलाना चाहिए।
घर पर ENO बनाये
सामग्री :: 100 ग्राम एनो बनाने के लिए –
40 ग्राम निम्बू सत्व
55 ग्राम मीठा खाने वाला सोडा
05 ग्राम सेंधा नमक
दोनों को मिलकर कांच की बोतल में रख देवे |
जब प्रयोग में लेना हो तो …
एक गिलास पानी 3-4 ग्राम में डाल के पिए….
एक दम ENO जैसा बन जाएगा.|
ये सब पंसारी या किरणे की शॉप में मिल जायेगा |
निम्बू सत्व 100 /- किलो और मीठा सोडा 60/- किलो मिल जायेगा |
कुल मिला कर 8/- में 100 ग्राम एनो तैयार हो जायेगा |
तुलसी- कई बीमारियों का एक साथ छोटा सा प्रयोग
* तुलसी की 21 से 35 पत्तियाँ स्वच्छ खरल या सिलबट्टे (जिस पर मसाला न पीसा गया हो) पर चटनी की भांति पीस लें और 10 से 30 ग्राम मीठी दही में मिलाकर नित्य प्रातः खाली पेट तीन मास तक खायें।
* ध्यान रहे दही खट्टा न हो और यदि दही माफिक न आये तो एक-दो चम्मच शहद मिलाकर लें।
* छोटे बच्चों को आधा ग्राम दवा शहद में मिलाकर दें। दूध के साथ भुलकर भी न दें। औषधि प्रातः खाली पेट लें। आधा एक घंटे पश्चात नाश्ता ले सकते हैं। दवा दिनभर में एक बार ही लें
* कैंसर जैसे असह्य दर्द और कष्टप्रद रोगो में २-३ बार भी ले सकते हैं।
* इसके तीन महीने तक सेवन करने से खांसी, सर्दी, ताजा जुकाम या जुकाम की प्रवृत्ति, जन्मजात जुकाम, श्वास रोग, स्मरण शक्ति का अभाव, पुराना से पुराना सिरदर्द, नेत्र-पीड़ा, उच्च अथवा निम्न रक्तचाप, ह्रदय रोग, शरीर का मोटापा, अम्लता, पेचिश, मन्दाग्नि, कब्ज, गैस, गुर्दे का ठीक से काम न करना, गुर्दे की पथरी तथा अन्य बीमारियां, गठिया का दर्द, वृद्धावस्था की कमजोरी, विटामिन ए और सी की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग, सफेद दाग, कुष्ठ तथा चर्म रोग, शरीर की झुर्रियां, पुरानी बिवाइयां, महिलाओं की बहुत सारी बीमारियां, बुखार, खसरा आदि रोग दूर होते हैं।यह प्रयोग कैंसर में भी बहुत लाभप्रद है।
तिल अथवा नारियल का तेल 250 ग्राम लें। सवा किलोग्राम लौकी (दूधी) लेकर उसको छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर पीसें और महीन कपड़े से मजबूती से छानकर उसका पानी निकाल लें।
तेल को एक बर्तन में धीमी आँच पर उबालें। जब थोड़ा गर्म हो जाय तब उसमें लौकी का निकाला हुआ पानी धीरे-धीरे डाल दें। अब दोनों को उबलने दें। जब सारा पानी जल जाय तब तेल को उतारकर ठण्डा होने के लिए रख दें। ठण्डा होने पर उसे एक बोतल में भरकर रख लें।
यह तेल बादाम रोगन (बादाम का तेल) का छोटा भाई कहलाता है। सप्ताह में एक दो बार शरीर पर इस तेल की मालिश करने से बहुत लाभ होते हैं। संक्षेप में, इससे स्मरणशक्ति बढ़ती है, मस्तिष्क में ठण्डक रहती है और दिमाग को बल मिलता है।
You Should Drink HOT WATER With LEMON
Dehydration can cause fatigue and weakening of the immune system, which leads to high blood pressure and insomnia.
Water cleanses the body of toxins, stimulates the kidneys and helps in the normal functioning of the liver.
Immunity strengthening – Lemons contain vitamin C, potassium (that controls blood pressure) and it is perfect in a fight against asthma and other respiratory diseases
Acts as an oxidizer – warm water with lemon cleanses the body of toxins.
Clears skin – acts against bacteria that cause acne, but also revitalizes the skin.
The citric acid acts well on digestion, prevents cramps and balances the acids in the stomach.
Helps with depression fighting- it improves the
Restores the skin cells and thus helps in healing and recovery of wounds (if there are any on the skin).
Helps with bad breath, helps with sore tooth and treat wounds in the mouth.
Drinking hot water with lemon should be your everyday habit.
This potion should be drunk every morning!
Source: healthexpertgroup
ग्रीष्म ऋतु में क्या खाएं क्या नहीं
बदलती ऋतुओं के अनुसार शरीर में स्वाभाविक रासायनिक परिवर्तन होते हैं और इस परिवर्तन में ऋतूचर्यानुसार खाध्य पदार्थों का सेवन किया जाए तो वात-पित्त-कफ के उभार से होने वाले रोगों से बचा जा सकता है|
सुबह उठते ही २-३ गिलास पानी पीना चाहिए| इसके बाद शौच,दन्त सफाई,आसान और प्राणायाम नियमित रूप से करें| अब रात को पानी भिगोये हुए ११ बादाम को छिलके उतारकर पीसकर एक गिलास दूध के साथ पीएं| इसके नियमित प्रयोग से शारीरिक तंदुरुस्ती मिलती है और आंतरिक उष्मा शांत होती है| गर्मी के मौसम में तले भुने,गरिष्ठ और ज्यादा मसालेदार पदार्थों की बजाय फल फ्रूट ,हरी सब्जियों के सलाद और जूस का ज्यादा इस्तेमाल करना बेहद फायदेमंद रहता है| इससे गर्मी की वजह से पसीना होने से होने वाली पानी कमी का पुनर्भरण भी होता रहता है|
ग्रीष्म ऋतु में बाजारू चीजें खाने से बचने की सलाह दी जाती है| इस मौसम में शारीरिक कमजोरी ,अपच,दाद,पेचिश,सीने में जलन.खूनी बवासीर ,मुहं की बदबू आदि रोगों से बचने का सरल उपचार भी लिख देता हूँ| खाली पेट,नींबू का रस आंवले का रस और हरे धनिये का रस मिश्री मिलाकर पीने से कई रोगों से बचाव हो सकता है| दोपहर और सांयकालीन भोजन में चावल के साथ अरहर,मूंग,उडद की दाल और हरी पत्तीदार सब्जियों का समावेश करें| छाछ व् दही का सेवन करना हितकारी है| रात का भोजन ना करें तो ज्यादा अच्छा|
गर्मी में घर से बाहर निकलने के पाहिले २ गिलास पानी जरूर पी लेना चाहिए| टमाटर,तरबूज,खरबूज,खीरा ककड़ी,गन्ने का रस और प्याज का उपयोग करते रहना चाहिए| इन चीजों से पेट की सफाई होती है और अंदरूनी गर्मी शांत होती है|
गर्मी दूर भगाने के कारगर तरीके-
१) नींबू पानी- यह गर्मी के मौसन का देसी टानिक है| शरीर में विटामिन सी की मात्रा कम हो जाने पर एनीमिया,जोड़ों का दर्द,दांतों के रोग,पायरिया और दमा जैसी दिक्कते हो सकती हैं| नींबू में भरपूर विटामिन सी होता है| अत; इन बीमारियों से दूरी बनाए रखने में यह उपाय सफल रहता है| पेट में खराबी होना,कब्ज,दस्त होना में नींबू के रस में थौड़ी सी हींग,काली मिर्च,अजवाइन ,नमक ,जीरा मिलाकर पीने से काफी राहत मिलती है|
२) तरबूज का रस- तरबूज के रस से एसीडीटी का निवारण होता है| यह दिल के रोगों डायबीटीज व् केंसर रोग से शरीर की रक्षा करता है|
३) पुदीने का शरबत- गर्मी में पुदीना बेहद फायदेमंद रहता है| पुदीने को पीसकर स्वाद अनुसार नमक,चीनी जीरा मिलाएं| इस तरह पुदीने का शरबत बनाकर पीने से लू.जलन,बुखार ,उल्टी व गैस जैसी समस्याओं में काफी लाभ होता है|
४) ठंडाई- गर्मी में ठंडाई काफी लाभ दायक होती है| इसे बनाने के लिये खस खस और बादाम रात को भिगो दें|सुबह इन्हें मिक्सर में पीसकर ठन्डे दूध में मिलाएं| स्वाद अनुसार शकर मिलाकर पीएं| गर्मी से मुक्ति मिलेगी|
५) गन्ने का रस- गर्मी में गन्ने का रस सेहत के लिये बहुत अच्छा होता है| इसमें विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं| इसे पीने से ताजगी बनी रहती है| लू नहीं लगती है| बुखार होने पर गन्ने का रस पीने से बुखार जल्दी उतर जाता है| एसीडीटी की वजह से होने वाली जलन में गन्ने का रस राहत पहुंचाता है| गन्ने के रस में नीम्बू मिलाकर पीने से पीलिया जल्दी ठीक होता है| गन्ने के रस में बर्फ मिलाना ठीक नहीं है|
६) छाछ - गर्मी के दिनों में छाछ का प्रयोग हितकारी है| आयुर्वेद शास्त्र में छाछ के लाभ बताए गए हैं| भोजन के बाद आधा गिलास छाछ पीने से फायदा होता है| छाछ में पुदीना ,काला नमक,जीरा मिलाकर पीने से एसीडीटी की समस्या से निजात मिलती है|
७) खस का शरबत - गर्मी में खस का शरबत बहुत ठंडक देने वाला होता है| इसके शरबत से दिमाग को ठंडक मिलती है| इसका शरबत बनाने के लिये खस को धोकर सुखालें| इसके बाद इसे पानी में उबालें| और स्वाद अनुसार शकर मिलाएं| ठंडा होने पर छानकर बोतल में भर लें|
८) सत्तू - यह एक प्रकार का व्यंजन है| इसे भुने हुए चने , जोऊं और गेहूं पीसकर बनाया जाता है| बिहार में यह काफी लोकप्रिय है| सत्तू पेट की गर्मी शांत करता है| कुछ लोग इसमें शकर मिलाकर तो कुछ लोग नमक और मसाले मिलाकर खाते हैं|
९) आम पन्ना - कच्चे आम को पानी में उबालकर उसका गूदा निकाल लें| इसमें शकर,भुना जीरा,धनिया,पुदीना,नमक मिलाकर पीयें| गर्मी की बीमारियाँ दूर होंगी|
थायराइड के लक्षण और घरेलू उपचार
थायराइड की समस्या आजकल एक गंभीर समस्या बनी हुई है। थाइराइड गर्दन के सामने और स्वर तंत्र के दोनों तरफ होती है। ये तितली के आकार की होती है।
थायराइड दो तरह का होता है। हाइपरथायराइडिज्म और हाइपोथायराइड। पुरूषों में आजकल थायराइड की दिक्कत बढ़ती जा रही है। थायराइड में वजन अचानक से बढ़ जाता है या कभी अचानक से कम हो जाता है। इस
रोग में काफी दिक्कत होती है।
आयुर्वेद में थायराइड को बढ़ने से रोकने के बेहद सफल प्रयोग बताएं गए हैं।
पुरूषों में थायराइड के लक्षण ( Thyriod Symptoms for men ) :
सामान्यत पुरूषों में थायराइड की समस्या के कुछ लक्षणों में सबसे पहला लक्षण है अचानक से वजन का बढ़ना या फिर अचानक से वजन का कम होना।
दूसरा मुख्य लक्षण है जल्दी ही थकान का लगना।
तीसरा लक्षण गर्दन में दर्द या सूजन का होना।
चौथा लक्षण है भूख न लगना और पसीना अधिक आना आदि।
थायराइड के मुख्य कारण:-
थाइराइड कई कारणों से हो सकता है। जिसके मुख्य कारण हैं।
बेवजह की दवाओं का सेवन करना और उनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से थाइराइड हो सकता है।
टोंसिल्स, सिर और थाइमस ग्रंथि की परेशानी में एक्स रे कराना भी थाइराइड का कारण बन सकता है।
अधिक तनाव या टेंशन लेने का असर थायराइड ग्रंथि पर पड़ता है। जिस वजह से हार्मोन निकलने लगता है।
परिवार में किसी को पहले से ही थायराइड की समस्या हो तो यह भी एक मुख्य कारण बन सकता है।
अन्य लक्षण जैसे नींद अधिक आना, आंखों में सूजन होना, जोड़ों में दर्द बने रहना, आवाज का भारी होना और लगातार कब्ज बने रहना आदि।
थायराइड की वजह से हड्डियां सिकुडने लगती हैं और मांसपेशियां भी कमजोर होने लगती हैं। ऐसे में खून की नियमित जांच करवानी चाहिए। अपने खाने में जितना हो सके हरी सब्जियों का सेवन करें।
थायराइड की समस्या को ठीक करने के प्राचीन आयुवेर्दिक उपाय:-
* अदरक
अदरक में मौजूद गुण जैसे पोटेशियम, मैग्नीश्यिम आदि थायराइड की समस्या से निजात दिलवाते हैं। अदरक में एंटी-इंफलेमेटरी गुण थायराइड को बढ़ने से रोकता है और उसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाता है।
* दही और दूध का सेवन
थायराइड की समस्या वाले लोगों को दही और दूध का इस्तेमाल अधिक से अधिक करना चाहिए। दूध और दही में मौजूद कैल्शियम, मिनरल्स और विटामिन्स थायराइड से ग्रसित पुरूषों को स्वस्थ बनाए रखने का काम करते हैं।
* मुलेठी का सेवन
थायराइड के मरीजों को थकान बड़ी जल्दी लगने लगती है और वे जल्दी ही थक जाते हैं। एैसे में मुलेठी का सेवन करना बेहद फायदेमंद होता है। मुलेठी में मौजूद तत्व थायराइड ग्रंथी को संतुलित बनाते हैं। और थकान को उर्जा में बदल देते हैं। मुलेठी थायराइड में कैंसर को बढ़ने से भी रोकता है।
* गेहूं और ज्वार का इस्तेमाल
थायराइड ग्रंथी को बढ़ने से रोकने के लिए आप गेहूं के ज्वार का सेवन कर सकते हो। गेहूं का ज्वार आयुर्वेद में थायराइड की समस्या को दूर करने का बेहतर और सरल प्राकृतिक उपाय है। इसके अलावा यह साइनस, उच्च रक्तचाप और खून की कमी जैसी समस्याओं को रोकने में भी प्रभावी रूप से काम करता है।
* साबुत अनाज
जौ, पास्ता और ब्रेड़ आदि साबुत अनाज का सेवन करने से थायराइड की समस्या नहीं होती है क्योंकि साबुत अनाज में फाइबर, प्रोटीन और विटामिन्स आदि भरपूर मात्रा होता है जो थायराइड को बढ़ने से रोकता है।
* फलों और सब्जियों का सेवन
थायराइड की परेशानी में जितना हो सके फलों और सब्जियों का इस्तेमाल करना चाहिए। फल और सब्जियों में एंटीआक्सिडेंटस होता है। जो थायराइड को कभी बढ़ने नहीं देता है। सब्जियों में टमाटर, हरि मिर्च आदि का सेवन करें।
* आयोडीन का प्रयोग
हाल ही में हुए नए शोध में यह बात सामने आई है कि आयोडिन में मौजूद पोषक तत्व थायराइड ग्रंथी की कार्यप्रणाली को ठीक रखता है।
थायराइड एक गंभीर समस्या है सही समय पर पता चलने से इसका बचाव किया जा सकता है। पुरूषों के पास समय का आभाव कम होता है लेकिन वे थायराइड के लक्षणों को नजरअंदाज न करें। समय पर जांच करवाते रहें और अपने खान पान में ध्यान दें। READ: साइलेंट हार्ट अटैक - कारण और इलाज
* गले को दें ठंडी गर्म सेंक
थायरइड की समस्या में गले को ठंडी-गर्म सेंक देने से फायदा मिलता है। इसके लिए आप गर्म पानी को एक बोतल में भर लें और अलग से ठंडे पानी को किसी बर्तन में भर लें। ठंडे पानी में एक तौलिया भी भिगों लें।और इसे इस तरह से गर्दन की सिकाई करें।
तीन मिनट गर्म पानी से सिकाई और फिर एक मिनट तक ठंण्डे पानी से सिकाई। एैसा आप तीन बार करें। और चौथी बारी में तीन मिनट ठण्डी और तीन मिनट गर्म पानी की सेंक करें।
इस उपाय को आप दिन में कम से कम दो बारी जरूर करें।
* योग
योग के जरिए भी थाइराइड की समस्या से निजात पाया जा सकता है। आपको भुजंगासन, ध्यान लगाना, नाड़ीशोधन, मत्स्यासन, सर्वांगासन और बृहमद्रा आदि करना चाहिए।
* बृहमद्रासन
इस आसन में सीधा बैठकर अपनी गर्दन को दांए-बाएं और उपर-नीचें चलाएं।
* परहेज
आप जितना हो सके चावल, मैदा, मिर्च-मसाले, खटाई, मलाई, अंडा, अधिक नमक का सेवन बंद कर दें। आप नमक में सेंधा नमक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
पेट दर्द और गैस का इलाज जिसे आप घर पर बना कर रख सकते है और जरुरत पड़ने पर प्रयोग कर सकते हैं ।
इसके लिए निम्नलिखित सामग्री इकट्ठी कीजिये
हींग :- 10 ग्राम ।
कालीमिर्च :- 10 ग्राम ।
अजवाइन :- 10 ग्राम ।
छोटी हरड़ :- 10 ग्राम ।
शुद्ध सज्जीखार :- 10 ग्राम ।
सेंधा नमक :- 10 ग्राम ।
मात्रा व सेवन विधि :-
इन सभी चीजो को बारीक कूट-पीसकर एक महीन कपडे से छान कर कांच की शीशी में सुरक्षित रख ले ।
एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ सुबह शाम सेवन करें ।
लाभ :-
यह चूर्ण वायु तथा वात के छोटे-मोटे रोगों को दूर करता है । इसके सेवन से पेट की अग्नि ठीक होती है । अपान वायु बाहर निकल जाती है और कब्ज दूर होता है । यह बच्चों के लिए भी उपयोगी है । बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार कम मात्रा में दें ।
Health Benefits of Dry Body Brushing
You can get your Dry Skin Body Brush - Improves Skin's Health And Beauty - Natural Bristle - Remove Dead Skin And Toxins, Cellulite Treatment , Improves Lymphatic Functions, Exfoliates, Stimulates Blood Circulation
तेल मालिश से लाभ और उपचार
आज हम यहाँ पर आप को तेल और मालिश से होने वाले लाभ के बारे में विस्तार से बतायेंगे | तेल मालिश करना एक आयुर्वेदिक प्रक्रिया है मालिस से हमारे पूरे शरीर में खून का दौरा बढ़ जाता है और पाचन शक्ति तेज हो जाती है, पेट साफ हो जाता है तथा आंते, दिल, फेफड़े और यकृत आदि शक्तिवान हो जाते है | इसके अलावा मालिक से शरीर के मृत कोष शरीर से बाहर निकल जाते हे, और उनके स्थान पर नए कोष आज आते है जिसे पूरा शरीर नई शक्ति से भर उठता है |
नियमित रुप से प्रतिदिन तेल की मालिश करने से कम वजन वाले व्यक्ति के शरीर का वजन बढ़ जाता है और बुढ़ापा दूर भागने लगता है| बहुत से पुराने रोग जैसे कि अपच, वायु पित्त विकार, बवासीर, अनिद्रा, पुराना मलेरिया, उच्च रक्तचाप आदि रोगोँ मेँ मालिस से काफी फायदा होता है |
जो व्यक्ति शारीरिक रुप से दुर्बल है और वजन स्वाभाविक रुप से कम है, उनको तेल मालिश की करने से बहुत लाभ होता है | उनका शरीर जल्दी-जल्दी तेल सोखने मेँ सक्षम होता है | थोड़े ही दिनोँ के बाद ऐसे लोगोँ का वजन बढ़ने लगता है|
बच्चो व बूढों को भी तेल मालिश से बहुत लाभ होता है | सर्दी के दिनोँ मेँ प्रतिदिन धूप मेँ बैठकर तेल मालिश करने से हमारे शरीर को विटामिन डी प्राप्त होता है |
गर्भवती स्त्रियोँ को प्रतिदिन कुछ समय धूप मेँ बैठकर तेल की मालिश करनी चाहिए जिससे उनके शरीर से बच्चो की हड्डी को मजबूत करने के लिए काल्सियम की कमी पूर्ण हो जाती है | किंतु गर्भवती को पेट पर मालिश नहीँ करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से पेट मेँ पल रहे शिशु को चोट पहुंचने का खतरा होता है |
तेल मालिश करने का तरीका
स्नान के पहले तेल को हाथ से शरीर मेँ 2-4 चपाटे लगाकर स्नानघर मे चले जाना ही ठीक नहीँ है | तेल मालिश का ठीक तरीका यह है कि हर रोज एक घंटे के लिए तेल मालिश एवम साथ-साथ व्यायाम करना चाहिए|
जिन व्यक्तियोँ को इतना समय नहीँ मिल पाता है उनको यह चाहिए कि जो भी प्रात काल समय मिले तो वे इस काम को करेँ| तेल मालिश के लिए कुछ समय तो अवश्य चाहिए तभी तो तेल हमारे शरीर मेँ पूर्णतया अब्जार्ब हो पायेगा|
तेल मालिश का हमारा उद्देश्य यहाँ रहना चाहिए की शरीर मेँ तेल अच्छी तरह हे रम जाये और शरीर तेल को पूरी तरह से सोख ले | इसलिए मालिश करते समय मुख्य रुप से घर्षण या रगड़ द्वारा ही यह क्रिया की जाती है | मालिस में साधारणतया सरसो, नारियल, तिल, तथा जैतून के तेल प्रयोग मेँ लाया जाता है | जो व्यक्ति शारीरिक तौर पर दुर्बल हों उनको पहले २-३ माह जैतून के तेल से मालिश करनी चाहिए इसे बहुत लाभ होता है | यह शरीर मेँ आसानी से सोख जाता है | सरसो का तेल सभी अवस्थाओं मेँ प्रयोग मेँ लाया जा सकता है किंतु यदि आप स्नायु से संबंधित रोग से ग्रस्त हो या जिनका स्वभाव हमेशा चिडचिडा रहता हो उनको नारियल का तेल प्रयोग करना चाहिए |
जो लोग कफ़ प्रधान है उनको नारियल के तेल का उपयोग करना उचित नहीँ है | जिनके शरीर मेँ रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है अगर वे नारियल के तेल का उपयोग करते हें तो दो-तीन दिन मेँ ही उन लोगोँ को सर्दी लगने लगेगी और उनका गला बैठ जाएगा | एसे व्यक्तियोँ को सरसो का तेल हल्का गर्म करके धूप मेँ बैठकर मालिश करना चाहिए| तेल मालिस के बाद लगभग 15 मिनट खुली हवा मेँ टहलना चाहिए इससे कुछ समय मेँ तेल शरीर मेँ सोख जाता है और चमड़ी शुस्ख हो जाती है|
तेल मालिश से निवृत्त होकर हमेशा साबुन लगा कर नहाना चाहिए| ऐसा देखा गया है की बहुत से व्यक्ति इस कारण साबुन नहीँ लगाते कि साबुन लगाने से तेल का असर ख़त्म हो जाएगा | लेकिन इस प्रकार सोचना गलत है, क्यूंकि मालिस के बाद तेल शरीर मेँ शोषित हो जाता है और वह बाहर नहीँ आता |
मोटापा घटाने के लिए मालिश करना काफी उपयोगी है यदि आपका पेट और तोंद भर गई है तो आप मालिस करने के बाद उठक-बैठक अवश्य करेँ |
मसाज से बढाएं सेक्स पावर
मालिस करने से लोगों की सेक्स पावर भी काफी बढ़ जाते है | यह स्त्री और पुरुष दोनों के लिए लाभकारी होता है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मालिस करने से पूरे शरीर के रक्त संचार सुचारू रूप से होने लगता और यह ही सेक्स पावर बढ़ाने में अधिक सहयोगी होता है |
तेल मालिश से दमकाएँ चेहरा
मालिस करने से शरीर त्वचा के सभी बंद रोम क्षिद्र खुलने लागतें है | इसके साथ ही त्वचा में रक्त का संचार सुचारू रूप से होने लगता है | जिसके कारण मालिस प्रतिदिन मालिस करने से आपका चेहरा निखरेगा
रीढ़ की हड्डी में दर्द के कारण व उपचार
आज महानगरों की आपाधापी भरी तनावपूर्ण जीवनशैली, गलत रहन-सहन, शारीरिक श्रम की कमी, बैठने व सोने के गलत ढंग, भीड़ भरी सड़कों पर गाड़ी चलाने आदि के कारण लोगों में रीढ़ (स्पाइन) संबंधी बीमारी तेजी से फैल रही है । इन दिनों बड़ी संख्या में युवा भी रीढ़ के विकारों से ग्रस्त हैं । इन विकारों में स्लिप्ड डिस्क की समस्या प्रमुख है । रीढ़ की हड्डी में खराबी के कारण या तो पीठ या कमर में असहनीय दर्द होता है या स्थिति बिगड़ने पर मरीज के पैर विकारग्रस्त हो सकते हैं ।
रोग का स्वरूप और कारण
स्लिप्ड डिस्क की समस्या से हर व्यक्ति अपने जीवन-काल में कभी न कभी ग्रस्त हो सकता है, लेकिन पहली बार स्लिप्ड डिस्क होने वाले 10 लोगों में से केवल एक व्यक्ति को सर्जरी की जरुरत पड़ती है और नौ लोग बेडरेस्ट व दवाओं से ठीक हो जाते हैं |
वस्तुतः रीढ़ की हड्डी के कारण ही हम सीधा चल पाते हैं | शरीर को अत्यधिक मोड़ने या गलत तरीके से झुकने से भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है | कभी-कभी अपनी सामर्थ्य से अधिक बोझ उठाने के कारण भी हम स्लिप्ड डिस्क को बुलावा देते हैं । इससे हमारी कमर, गर्दन व कूल्हों पर बुरा प्रभाव पड़ता है । शरीर में सुन्नपन या लकवा भी इस समस्या के दुष्प्रभाव से हो सकते हैं । इसके अलावा जिम में गलत तरीके से वजन उठाना या अन्य व्यायामों को समुचित रूप से न करना भी स्लिप्ड डिस्क की समस्या पैदा कर सकता है ।
स्पाइन की बनावट
रीढ़ की हड्डी प्रायः 33 हड्डियों के जोड़ों से बनती है । प्रत्येक दो हड्डियां आगे की तरफ एक डिस्क के द्वारा और पीछे की तरफ दो जोड़ों के द्वारा जुड़ी रहती हैं । ये डिस्क प्रायः रबड़ की तरह होती हैं, जो इन हड्डियों को जोड़ने के साथ-साथ उन्हें लचीलापन प्रदान करती हैं। इन्हीं डिस्क में उत्पन्न हुए विकारों को स्लिप्ड डिस्क कहते हैं |
स्लिप्ड डिस्क के लक्षण
1. स्लिप्ड डिस्क की समस्या में कमर दर्द एक प्रमुख लक्षण है । यह दर्द कमर से लेकर पैरों तक जाता है ।
2. दर्द के साथ ही साथ पैरों में सुन्नपन महसूस होता या पैर भारी महसूस होते हैं ।
3. कई बार लेटे-लेटे भी कमर से पैर तक असहनीय दर्द होता रहता है
4. नसों में एक अजीब प्रकार का खिंचाव व झनझनाहट होना स्लिप्ड डिस्क का एक अन्य लक्षण है । यह झनझनाहट पूरी नस में दर्द उत्पन्न करती है ।
5. डिस्क के प्रभावित भाग पर सूजन होना ।
इस समस्या से निजात पाने के लिए चार से छह सप्ताह का समय लगता है । कई बार व्यायाम व दवाओं से भी राहत मिलती है । यदि मरीज को अत्यधिक पीड़ा हो, तो दो से तीन दिनों तक बेड रेस्ट करने की सलाह दी जाती है । ऐसी अवस्था तब उत्पन्न होती है, जब डिस्क का अंदरूनी भाग बाहर की तरफ झुकने लगता है । स्लिप्ड डिस्क के लक्षण और इसमें होने वाला नुकसान इस पर निर्भर करता है कि डिस्क का झुकाव कितना हुआ है।