श्लीपद या हाथी पांव
जिस रोग के प्रभाव से एक या दोनों पैर हाथी के पैर जैसे मोटे हो जाएं, उस रोग को श्लीपद रोग कहते हैं। अंग्रेजी में इसे एलिफेण्टिएसिस या फाइलेरिया कहते हैं।
दुनिया भर में करीब 12 करोड़ लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं, जिनमें करीब 65 फीसदी भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों में रहते हैं.
यह रोग उन स्थानों के निवासियों में ज्यादातर होता है, जिन स्थानों में जल का प्रभाव ज्यादा हो, जहां वर्षा ज्यादा समय तक ज्यादा मात्रा में होती हो, शीतलता ज्यादा रहती हो, जहां के जलाशय गन्दे हों।
भले ही इस बीमारी में दर्द न हो लेकिन यह ऐसा मर्ज है, जिसका इलाज बहुत मुश्किल है. छोटे कीड़ों के लार्वा की वजह से यह बीमारी होती है. ये लार्वा चमड़ी के अंदर से होते हुए लसिका तंत्र तक पहुंच जाते हैं और वहां अपनी संख्या बढ़ाते हैं. फिर वे बरसों वहीं जमा रहते हैं.
संक्रमण के शुरू में इसका कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता हैं। संक्रमण के कुछ सालो बाद बुखार रहने लगता हैं। कुछ सालो के बाद यह बुखार जल्दी-जल्दी दर्द के साथ आने लगता है। इसके बाद पैरो पर सूजन आने लगती हैं। इस बीमारी का ठीक से उपचार नहीं होने पर यह सूजन स्थायी हो जाती हैं।
Filaria का संक्रमण होने के कुछ वर्षो बाद यह स्पष्टत: प्रकट होती हैं।
मच्छरों से बचाव फाइलेरिया को रोकने का एक प्रमुख उपाय है। क्यूलेक्स मच्छर जिसके कारण फाइलेरिया का संक्रमण फैलता है आम तौर पर शाम और सुबह के वक्त काटता है।
किसी ऐसे क्षेत्र में जहां फाइलेरिया फैला हुआ है वहां खुद को मच्छर के काटने से बचाना चाहिए।
सामान्य या स्वस्थ दिखने वाले व्यक्ति को कुछ सालो बाद टांगो, हाथो एवं शरीर के अन्य भागो में सूजन उत्पन्न होने लगती हैं।
इस प्रभावित अस्वस्थ चमड़ी पर विभिन्न प्रकार के जीवाणु तेजी से पनपते लगते हैं। साथ ही प्रभावित अंगो की लसीका ग्रन्थियां इन अधिकाधिक संख्या पनपे जीवाणुओ को मार नहीं पाते हैं।
इसके कारण प्रभावित अंगो में दर्द, लालपन एवं रोगी को बुखार हो जाता हैं।
हाथ-पैर, अंडकोष व शरीर के अन्य अंगो में सूजन के लक्षण होते हैं। प्रारंभ में यह सूजन अस्थायी हो सकता हैं, किन्तु बाद में स्थायी और लाइलाज हो जाता हैं।
इस रोग को उत्पन्न करने में फाइलेरिया नाम का एक कीटाणु कारण होता है अतः इस रोग को फाइलेरिया भी कहते हैं। यह रोग मुख्यतः बिहार, बंगाल, पूर्वी प्रान्तों, केरल और मलाबार प्रदेशों में ज्यादातर होता पाया गया है। आयुर्वेद ने इसके तीन प्रकार बताए हैं-
वातज श्लीपद : वात के कुपित होने पर हुए श्लीपद रोग में त्वचा रूखी, मटमैली, काली और फटी हुई हो जाती है, तीव्र पीड़ा होती है, अकारण दर्द होता रहता है एवं तेज बुखार होता है।
पित्तज श्लीपद : इसमें कुपित पित्त का प्रभाव रहता है। रोगी की त्वचा पीली व सफेद हो जाती है, नरम रहती है और मन्द-मन्द ज्वर होता रहता है।
कफज श्लीपद : इसमें कफ कुपित होने का प्रभाव होता है। त्वचा चिकनी, पीली, सफेद हो जाती है, पैर भारी और कठोर हो जाता है। ज्वर होता भी है और नहीं भी होता।
इन तीन भेदों के अलावा एक भेद और होता है, जिसे 'असाध्य श्लीपद' कहते हैं। रोग दो वर्ष से अधिक पुराना हो गया हो, बहुत बढ़ चुका हो और पैर से स्राव निकलता हो तो ऐसी स्थिति में इसे 'असाध्य श्लीपद' यानी लाइलाज कहा जाएगा, ऐसा आयुर्वेद का मत है।
इसकी चिकित्सा सरल नहीं है, इस रोग के प्रारम्भिक लक्षण प्रकट होते ही उचित उपाय शुरू कर देना चाहिए।
घरेलू उपचार
(1) धतूरा, एरण्ड की जड़, सम्हालू, सफेद पुनर्नवा, सहिजन की छाल और सरसों, इन सबको समान मात्रा में पानी के साथ पीसकर गाढ़ा लेप तैयार करें। इस लेप को श्लीपद रोग से प्रभावित अंग पर प्रतिदिन लगाएं। इस लेप से धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।
(2) चित्रक की जड़, देवदार, सफेद सरसों, सहिजन की जड़ की छाल, इन सबको समान मात्रा में, गोमूत्र के साथ, पीसकर लेप करने से धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।
(3) बड़ी हरड़ को एरण्ड (अरण्डी) के तेल में भून लें। इन्हें गोमूत्र में डालकर रखें। यह 1-1 हरड़ सुबह-शाम खूब चबा-चबाकर खाने से धीेरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है। यह प्रयोग ऊपर बताए हुए किसी भी लेप को लगाते हुए किया जा सकता है।
(4) नित्यानंद रस, आरोग्यवर्द्धिनी और मेदोहर गुग्गुलु, तीनों की 1-1 गोली सुबह, दोपहर और शाम को पानी के साथ लें और निम्नलिखित लेप तैयार कर प्रतिदिन लेप करें-
(5) आक की जड़ से श्लीपद या हाथी पाँव की बीमारी का इलाज :-
इस बीमारी में आक की जड़ की छाल में कांजी के साथ अडूसा की छाल मिलाकर बारीक़ पीस कर लेप बनाये । इस लेप को लगाने से श्लीपद की बीमारी ठीक हो जाती है ।
(6) आधी किलो पानी में त्रिफला का 10 ग्राम चूर्ण और आक के पौधे की जड़ की छाल को मिलाकर इसे ठंडा कर ले । इस तैयार औषधि को 3 ग्राम मिश्री और 1 ग्राम शहद के साथ खाने से श्लीपद की बीमारी ठीक हो जाती है और अधिक लाभ पाने के लिए आक की जड़ की छाल को पीस कर लेप लगाये । 40 दिनों में ही श्लीपद की बीमारी दूर हो जाती है और मनुष्य जल्दी ही स्वस्थ हो जाता है ।
हल्दी, आंवला, अमरबेल, सरसों, अपामार्ग, रसोई घर की दीवारों पर जमा हुआ धुआं, सबको समभाग मिलाकर पीस लें, इस लेप को श्लीपद पर लगाएं। उत्तम गुणकारी लेप है। इन उपायों में से कोई भी एक लेप और खाने की औषधियों को धैर्यपूर्वक सेवन करने से यह रोग मिटाया जा सकता है।
Filaria से प्रभावित इलाको में Filaria की रोकथाम के लिए वर्ष में एक बार Diethylcarbamazine (DEC) एवं Albendazole की एक खुराक प्रत्येक व्यक्ति को दी जाती हैं। Filaria से प्रभावित इलाको में प्रत्येक स्वस्थ मनुष्य को प्रत्येक वर्ष एक बार यह खुराक लेना आवश्यक हैं। यह खुराक सरकारी स्वास्थ्य कर्मचारी / आशा / आंगनवाडी / कार्यकर्ता /स्वयंसेवकों के पास मुफ्त मिलती हैं।
सिर्फ इन लोगो को यह खुराक नहीं लेनी हैं :
दो साल से कम आयु वाले बच्चो को
गर्भवती महिलाओ को
गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति
पथ्य :- लहसुन, पुराने चावल, कुल्थी, परबल, सहिजन की फली, अरण्डी का तेल, गोमूत्र तथा सादा-सुपाच्य ताजा भोजन। उपवास, पेट साफ रखना।
परहेज : दूध से बने पदार्थ, गुड़, मांस, अंडे तथा भारी गरिष्ट व बासे पदार्थों का सेवन न करें। आलस्य, देर तक सोए रहना, दिन में सोना आदि से बचें।
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