Sunday, 15 February 2015

धातु रोगों के लिए बड़ प्रयोग


















धातु रोगों के लिए बड़ प्रयोग

पुरुषों के धातु रोगों के लिए बड़ का वृक्ष सचमुच एक औषधालय है । जैसे प्रमेह, स्वप्नदोष, पेशाब में धातु का गिरना, नपुंसकता, वीर्य की न्यूनता - इन सब को दूर करने के लिए वट वृक्ष एक बहुमूल्य वनस्पति है । इसे धातु रोगों को दूर करने के लिए कल्पवृक्ष कह सकते हैं । किन्तु लोग इसे सामान्य वृक्ष समझकर कोई लाभ नहीं उठाते । धातु रोगों की चिकित्सार्थ कुछ योग नीचे देते हैं । धातु रोगों की चिकित्सा बड़ी कठिन है । प्रमेह आदि रोग बहुत कठिनाई से दूर होते हैं किन्तु भगवान् ने इन रोगों को दूर करने के लिए बड़ की वनस्पति में विशेष गुण भर दिये हैं । इसके द्वारा चिकित्सा करने में शीघ्र लाभ होता है ।

बड़ का घनसत्त्व - बड़ के जो पत्ते पककर पीले होने पर गिर जाते हैं, उन्हें इकट्ठे कर लें । उनमें से २० सेर पत्तों को ४८ घण्टे तक किसी मिट्टी के पात्र अथवा कली वाले बरतन में भिगोये रखें । फिर इसे कढ़ाई में चढ़ाकर उबालें और पकावें । जब पत्ते जल जायें तब नीचे उतारकर रखें । शीतल होने पर खूब मल छान लें । फिर उस जल को पकायें । मंदी आंच जलायें, पानी जलने पर जब गाढ़ी औषध रह जाये, उसे सुरक्षित रखें । यह बड़ का सत्त्व है । इसे मैंने अनेक बार तैयार करके सैंकड़ों रोगियों पर धातु रोगों में प्रयोग करके देखा है । स्वप्‍नदोषादि रोगों की अचूक औषध है । इसको अकेला भी प्रयुक्त किया जा सकता है तथा अन्य औषधों में मिलाकर भी प्रयोग करते हैं । इसके योग इस प्रकार हैं ।

१. बड़ का घनसत्त्व एक तोला, अश्वगंध नागौरी एक तोला, सितावर एक तोला, गोखरू एक तोला, विदारीकन्द एक तोला, विधारा के बीज (शुद्ध) एक तोला - सबको कूट छान लें, सबके समभाग मिश्री मिला लें । मात्रा एक माशा शीतल जल के साथ प्रातः सायं छात्र-छात्राओं को देवें । ब्रह्मचारिणियों को सदा थोड़ी मात्रा में तथा सदैव जल के साथ देने से धातु विकार, स्वप्‍नदोष, श्वेतप्रदर, प्रमेह रोग दूर होते हैं । सहस्रों रोगियों पर अनुभूत है । गृहस्थ तथा वीर्यहीन निर्बल व्यक्तियों को गाय के दूध के साथ तथा एक माशा से ५ माशे तक दे सकते हैं । यह औषध बहुत ही वीर्यवर्धक तथा पुष्टिकारक है, धातु के सभी विकारों को दूर करके शरीर को बलवान् बनाने वाली औषध है । मिर्च, खटाई, कच्चा मीठा, अचार, लहसुन प्याज आदि गर्म वस्तुओं का सेवन न करें तथा ब्रह्मचर्य से रहें । फिर इस विचित्र औषध का प्रयोग करें और इसका प्रभाव देखें ।

२. बड़ के पीले पत्तों का सत्त्व १ तोला, अश्वगन्ध १ तोला, सितावर १ तोला, कुरंड (बहुफली) १ तोला, गोखरू १ तोला, मूसली श्वेत १ तोला, विधारा के बीज १ तोला, वंशलोचन १ तोला, विदरीकन्द १ तोला, कलई भस्म १ तोला तथा अफीम शुद्ध छः माशे - सबको कपड़छान कर पीस कर ब्राह्मी के क्वाथ वा स्वरस से मूंग के समान गोली बनायें । मात्रा १ वा दो गोली जल वा दूध के साथ प्रातः सायं प्रयोग करं । स्वप्‍नदोष, प्रमेहादि धातु रोगों की अचूक जादूभरी औषध है । एक मास के प्रयोग से प्रमेह आदि धातुरोग समूल नष्ट हो जाते हैं । इसकी मात्रा ३ गोली तक बढ़ाई जा सकती है । यह औषध बाजीकरण स्तम्भक है । स्‍त्री-पुरुषों को सन्तान के योग्य बनाती है । औषध के प्रयोग के दिनों में गृहस्थ लोगों को भी ब्रह्मचर्य व्रत से रहना चाहिये ।

३. बरगद का सत्त्व ८ तोला, कलई भस्म १ तोला, अश्वगन्ध नागौरी २ तोला, बहुफली ४ तोले, सितावर २ तोले, वंशलोचन २ तोले - सब की दो-दो रत्ती की गोलियां बनायें । एक गोली से चार गोली तक जल वा दूध के साथ प्रयोग करने से प्रमेह समूल नष्ट हो जाता है । कमर की पीड़ा तथा प्रदररोग भी दूर होता है ।

४. बरगद का सत्त्व १ तोला, हरमल के बीज १ तोला, मिश्री दो तोला - सबको कपड़छान कर लें । मात्रा १ माशा जल वा दूध के साथ प्रयोग करने से प्रमेह, प्रदर होनों ही दूर होते हैं ।

५. बड़ की कोमल-कोमल कोंपलें १ पाव, अश्वगन्ध नागौरी १ छटांक, सितावर १ छटांक, कुरंड (बहुफली) आधा पाव - सबको बारीक पीसकर जल डालकर ठंडाई के समान घोंटें और कपड़छान कर लें । कलई वाले पात्र में पकायें । गाढ़ा होने पर वंशलोचन वा कौंच के बीजों का चूर्ण १ छटांक मिला लें तथा फिर २ रत्ती की गोलियां बनायें । मात्रा एक दो गोली खिलाकर गोमाता का धारोष्ण दूध पिलायें । प्रमेह, स्वप्‍नदोष, शीघ्रपतन, धातुक्षीणता, श्वेतप्रदर आदि सभी रोग नष्ट होते हैं । गर्म पदार्थों का सेवन न करें । ब्रह्मचर्य से रहें तो पूर्ण लाभ होगा ।

६. गाय का धारोष्ण ताजा दूध आधा सेर, इसमें १० बूंदें बड़ के दूध की डालें और दो वा तीन तोले शुद्ध मधु वा मिश्री डालकर प्रातः सायं पिलायें । पिलाने से पूर्व इन्हें अच्छी प्रकार मिला लें । इसके प्रयोग से स्वप्‍नदोष, प्रमेह, धातु की निर्बलता तथा श्वेतप्रदर सभी नष्ट होते हैं । सेवनकाल में ब्रह्मचर्य से रहें । इसके प्रयोग से गृहस्थ के फल सन्तान की प्राप्‍ति होती है ।

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