Monday, 30 June 2014

Home remedies for Uric Acid :


























Home remedies for Uric Acid :

Uric acid is a chemical, created in the body by the breaking down of substances known as purines. It is flushed out of the body by the kidneys, through urine, after it dissolves in the blood. If it is not flushed out of the body properly, high levels of uric acid gets accumulated which causes ailments like gout and kidney diseases. This build up results in the formation of sharp, needle like crystals. When they accumulate in the joints or surrounding tissues, it causes pain, inflammation and swelling. 
The excessive deposition of uric acid in the cartilages of the joints first affects the big toe causing it to swell and become very painful. In the next stages it spreads to the ankles, knees, joints of hands and feet, the wrist and elbow. 
High uric acid levels in the body, is known as 'hyperuricemia' and it may also worsen conditions like diabetes, leukemia and hypertension. Hyperuricemia is usually caused due to the regular intake of purine rich foods and conditions such as hypoparathyroidism, lead poisoning, renal failure and side effects of chemotherapy.
Studies have shown that foods high in uric acid play a major role in the development and aggravation of diseases such as gout. In conjunction with a healthy lifestyle and changes in diet, it can actually be easier to manage than many people believe, as long as the sufferer is willing to make some significant changes in their eating habits.

Home Remedies :
Swallow 2-3 fresh, peeled garlic buds with water on an empty stomach in the morning.

Eat 1 apple after every meal. Apples have malic acid, which neutralises uric acid.

Add the juice of half a lime to 1 glass of water. Drink 2 times a day. Citric acid in lime dissolves uric acid

Boil 10 rose petals in 4 tablespoons of vinegar until an ointment develops. Apply this ointment 3-4 times a day on the affected joint.

Take 1 cup of mustard oil. Add 10 gm of camphor. Heat till camphor dissolves completely. Massage the affected area with lukewarm oil

Drink 8-10 glasses of water every day. It washes out the uric acid deposits

Have 15-20 cherries every day. Anti-oxidants in cherries help relieve inflammation.

Amla is a rich source of vitamin – C and has high medicinal values. You can use amla juice, powder or capsules to control your uric acid levels.

बर्फ़ का औषधीय प्रयोग













"बर्फ़ का औषधीय प्रयोग "

१-गर्मी के मौसम में हिचकी की बीमारी पर रोगी के मुँह में बर्फ़ का टुकड़ा डालें और उसे चूसने दें | इससे हिचकी आना बंद हो जाती है | 

२-चोट लगने पर यदि खून अधिक बहे तो बर्फ़ मलें ख़ून तुरंत रुक जाएगा |

३-बार-बार उल्टी होने पर बर्फ़ चूसने से उल्टी होना बंद हो जाती है | हैजे की उल्टियों में भी यह प्रयोग लाभदायक है । 

४-घमौरियों पर बर्फ़ का टुकड़ा मलने से ठंडक मिलती है तथा घमौरियाँ सूख जाती हैं |

कान का दर्द














कान का दर्द -

गर्मियों में कान के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में संक्रमण होना आम बात है| अधिकतर तैराकों को ख़ास-तौर पर इस परेशानी का सामना करना पड़ता है | कान में फुंसी निकलने,पानी भरने या किसी प्रकार की चोट लगने की वजह से दर्द होने लगता है | कान में दर्द होने के कारण रोगी हर समय तड़पता रहता है तथा ठीक से सो भी नहीं पाता| बच्चों के लिए कान का दर्द अधिक पीड़ा भरा होता है | लगातार जुक़ाम रहने से भी कान का दर्द हो जाता है | 
आज हम आपको कान के दर्द के लिए कुछ घरेलू उपचार बताएंगे -

१- तुलसी के पत्तों का रस निकाल लें| कान में दर्द या मवाद होने पर रस को गर्म करके कुछ दिन तक लगातार डालने से आराम मिलता है | 

२- लगभग १० मिली सरसों के तेल में ३ ग्राम हींग डाल कर गर्म कर लें | इस तेल की १-१ बूँद कान में डालने से कफ के कारण पैदा हुआ कान का दर्द ठीक हो जाता है | 

३- कान में दर्द होने पर गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का रस निकालकर कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है | 

४- तिल के तेल में लहसुन की काली डालकर गर्म करें,जब लहसुन जल जाए तो यह तेल छानकर शीशी में भर लें | इस तेल की कुछ बूँदें कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है | 

५- अलसी के तेल को गुनगुना करके कान में १-२ बूँद डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है | 

६- बीस ग्राम शुध्द घी में बीस ग्राम कपूर डालकर गर्म कर लें | अच्छी तरह पकने के बाद ,ठंडा करके शीशी में भरकर रख लें | इसकी कुछ बूँद कान में डालने से दर्द में आराम मिलता है |

तेजपात (Indian Bay Leaf)













तेजपात (Indian Bay Leaf)-

भारत में उष्णकटिबंधीय एवं इसके अतिरिक्त उपउष्णकटिबन्धीय हिमालय से भूटान तक ९००-१५०० मी तक की ऊंचाई पर सिक्किम में २४०० मी तथा सिल्हट एवं खसिया के पहाड़ी क्षेत्रों में ९००-१२०० मी की ऊंचाई तक तेजपात के जंगली वृक्ष पाये जाते हैं | इसके पत्तों को धूप में सुखाकर प्रयोग में लिया जाता है | पत्तियों का रंग जैतूनी हरा तथा ३ स्पष्ट शिराओं युक्त तथा इसमें लौंग एवं दालचीनी की सम्मिलित मनोरम गंध पायी जाती है | यह सदा हरा रहने वाला वृक्ष है | आज हम तेजपात के औषधीय गुणों की चर्चा करेंगे -

१- तेजपात के ५-६ पत्तों को एक गिलास पानी में इतने उबालें की पानी आधा रह जाए | इस पानी से प्रतिदिन सिर की मालिश करने के बाद नहाएं | इससे सिर में जुएं नहीं होती हैं | 

२- चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम,छींकें आना ,नाक बहना,जलन ,सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है | 

३- तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह-शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है | 

४- तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है | 

५- एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है | 

६- तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है | 

७- इसके २-४ ग्राम चूर्ण का सेवन करने से उबकाई मिटती है |

Friday, 27 June 2014

जौ (BARLEY)













जौ (BARLEY) -

भारतवर्ष में अति प्राचीन काल से जौ का प्रयोग किया जाता रहा है | हमारे ऋषि मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था | प्राचीन वैदिक काल तथा आयुर्वेदीय निघण्टुओं एवं संहिताओं में इसका वर्णन प्राप्त होता है | भावप्रकाश निघण्टुमें तीन प्रकार के भेदों का वर्णन प्राप्त होता है | 
स्वाद एवं आकृति के दृष्टिकोण से जौ,गेहूँ से भिन्न दिखाई पड़ते हैं किन्तु यह गेहूँ की जाति का ही अन्न है | अगर गुण की दृष्टी से देखा जाए तो जौ गेहूं की अपेक्षा हल्का होता है | जौ को भूनकर,पीसकर उसका सत्तू बनता है | जौ में लैक्टिक एसिड,सैलिसिलिक एसिड,फॉस्फोरिक एसिड,पोटैशियम और कैल्शियम होता है | 
जौ के विभिन्न औषधीय उपयोग -

१- एक लीटर पानी में एक कप जौ को उबालकर इस पानी को ठंडा करके छानकर पीने से शरीर की की सूजन ख़त्म हो जाती है | 

२- जौ का सत्तू खाने या पीने से अधिक गर्मी में शरीर को ठंडक मिलती है | 

३- जौ को बारीक पीस कर तिल के तेल में मिलाकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से लाभ होता है | 

४- जौ का आटा ५० ग्राम और चने का आटा १० ग्राम मिलाकर रोटी बनाएं | इस आटे की रोटी से मधुहेह नियंत्रित हो जाता है | 

५- उबले हुए जौ का पानी प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से शरीर में खून बढ़ता है | जौ का पानी गर्मियों में पीने से अधिक लाभ मिलता है |

घमौरियां या प्रिकली हीट

















घमौरियां या प्रिकली हीट

गर्मी के मौसम में पसीना आना स्वाभाविक है | इस पसीने को यदि साफ़ न किया जाए तो यह शरीर में ही सूख जाता है और इसकी वजह से शरीर में छोटे -छोटे दाने निकल आते हैं जिन्हें हम घमौरियां या प्रिकली हीट कहते हैं | घमौरी एक प्रकार का चर्म रोग है जो गर्मियों तथा बरसात में त्वचा पर हो जाता है | इसमें त्वचा पर छोटे -छोटे दाने निकल आते हैं ,जिनमें हर समय खुजली होती रहती है | घमौरियों से निजात पाने के लिए हम आपको कुछ सरल उपाय बताते हैं -

१- मेंहदी के पत्तों को पीसकर नहाने के पानी में मिला लें | इस पानी से नहाने से घमौरियां ठीक हो जाती हैं | 

२- देसी घी की पूरे शरीर पर मालिश करने से घमौरियां मिटती हैं | 

३- शरीर पर मुल्तानी मिटटी का लेप करने से घमौरियां मिटती हैं और इनसे होने वाली जलन और खुजली में भी राहत मिलती है | 

४- नारियल के तेल में कपूर मिला लें | इस तेल से रोज़ पूरे शरीर की मालिश करने से घमौरियां दूर हो जाती हैं | 

५- नीम की पत्तियां पानी में उबाल लें | इस पानी से स्नान करने से घमौरियां मिटती हैं | 

६- तुलसी की लकड़ी पीस लें | इसे पानी में मिलकर शरीर पर मलने से घमौरियां समाप्त हो जाती हैं |

Here are the ten reasons to avoid instant noodles















Here are the ten reasons to avoid instant noodles...

1. Nutrient Absorption : Noodles inhibit the absorption of nutrients for the children under 5.
2. Cancer Causing : The ingredient in the instant noodles called "Styrofoam', Which is a cancer causing agent.
3. Miscarriage : Women who are eating instant noodles during their pregnancy causes miscarriage, because it affect the development of a fetus.
4. Junk Food : instant noodles are enriched with full of carbohydrates,but no vitamins, fiber and minerals. This
makes the instant noodles considered as a junk food.
5. Sodium : Instant noodles are power packed with high amounts of sodium.
Excess consumption of sodium leads to heart disease, stroke, hypertension and kidney damage.
6. MSG : Monosodium Glutamate is used to enhance the flavour of instant noodles. People who are allergic to MSG consume it as part of their diet, then they end up suffering from headaches, facial flushing, pain, burning sensations.
7. Overweight : Eating Noodles is the leading cause of obesity. Noodles contains fat and large amounts of sodium, which causes water retention in the body and surely it leads to overweight.
8. Digestion : Instant noodles are bad for digestive system. Regular
consumption of instant noodles causes irregular bowl movements and bloating.
9. Propylene Glycol : The ingredient in the instant noodles called "Propylene Glycol" which has a anti-freeze property. This ingredient is used because it prevents the noodles from drying by retaining moisture. It weakens the immune system of our body. It is
easily absorbed by the body and it accumulates in the kidneys, heart and liver. It causes abnormalities anddamage to those areas.
10. Metabolism : Regular consumption of instant noodles affect the body's metabolism, because of the chemical substances like additives, coloring and preservatives inside the noodles.

REMOVE URIC ACID & REDUCE JOINT PAIN



























REMOVE URIC ACID & REDUCE JOINT PAIN

रक्ताल्पता या खून की कमी (ANAEMIA )













रक्ताल्पता या खून की कमी (ANAEMIA ) -

हमारे खून में दो तरह की कोशिका होती हैं -लाल व सफ़ेद | लाल रक्त कोशिका की कमी से शरीर में खून की कमी हो जाती है जिसे रक्ताल्पता या अनीमिया कहा जाता है | लाल रक्त कोशिका के लिए लौहतत्व (iron) आवश्यक है अतः हमारे हीमोग्लोबिन में लौह तत्व की कमी के कारण भी रक्ताल्पता होती है | 
रक्ताल्पता या खून की कमी होने से शरीर में कमज़ोरी उत्पन्न होना,काम में मन नहीं लगना,भूख न लगना,चेहरे की चमक ख़त्म होना,शरीर थका-थका लगना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण हैं | स्त्रियों में खून की कमी के कारण 'मासिक धर्म' समय से नहीं होता है | खून की कमी बच्चों में हो जाने से बच्चे शारीरिक रूप से कमज़ोर हो जाते हैं जिसके कारण उनका विकास नहीं हो पाता तथा दिमाग कमज़ोर होने के कारण याद्दाश्त पर भी असर पढता है | इस वजह से बच्चे पढाई में पिछड़ने लगते हैं | 
आइये जानते हैं रक्ताल्पता के कुछ उपचार -
१- खून की कमी को दूर करने के लिए,अनार के रस में थोड़ी सी काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है |
२- मेथी,पालक और बथुआ आदि का प्रतिदिन सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है | मेथी की सब्ज़ी खाने से भी बहुत लाभ होता है क्यूंकि मेथी में आयरन प्रचुर मात्रा में होता है |
३- गिलोय का रस सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है | आप यह अपने निकटवर्ती पतंजलि चिकित्सालय से प्राप्त कर सकते हैं |
४- रक्ताल्पता से पीड़ित रोगियों को २०० मिली गाजर के रस में १०० मिली पालक का रस मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है |
५- प्रतिदिन लगभग २००-२५० ग्राम पपीते के सेवन से खून की कमी दूर होती है | यह प्रयोग लगभग बीस दिन तक लगातार करना चाहिए |
६- दो टमाटर काट कर उस पर काली मिर्च और सेंधा नमक डालकर सेवन करना रक्ताल्पता में बहुत लाभकारी होता है |
७- उबले हुए काले चनों के प्रतिदिन सेवन से भी बहुत लाभ होता है |
८- गुड़ में भी लौह तत्व प्रचुर मात्रा में होता है अतः भोजन के बाद एक डली गुड़ अवश्य खाएं लाभ होगा |



15 FOODS TO FIGHT ANEMIA:  
1. Red Kidney beans: Rich in dietary Iron and phytochemicals like flavonoids.
2. Tofu: Low in Sodium, high in B-vitamins, Iron, Isoflavones, Genistein and Diadzein.
3. Oyster: Low glycemic index, rich in antioxidant nutrient Zinc and Vitamin B12.
4. Almond: Rich in Iron, Manganese, Riboflavin, Copper, Vitamin E and Omega-3-fatty acids.
5. Prune Juice: Dense in B-vitamins, Iron, Potassium, Magnesium, Boron and dietary fiber.
6. Romaine lettuce: Vitamins (A,B1,B2,C), Folate, Manganese, Chromium, dietary fiber, Potassium, Iron, and Phosphorus.
7. Blackstrap Molasses: Rich source of Iron, Potassium, Calcium, Selenium, Vitamin B6.
8. Spinach: Rich source of Calcium, Vitamins A, B9, E and C, Iron, fiber and Beta carotene.
9. Apricot: Rich in Beta-carotene, fiber, Vitamin A, E, and Iron.
10. Raw Broccoli: Vitamins (C, K, A, B6), Potassium, Selenium, Manganese, Tryptophan, and Phosphorus.
11. Beet root Juice: Rich in Iron content. Help in repairing and reactivating red blood cells.
12. Watercress leaves: Rich in fiber, anti-oxidants, vitamin C, beta-carotene, folate, potassium, calcium, phosphorous, iron and iodine.
13. Pomegranates: Rich source of Iron and Vitamin C.
14. Garlic: Rich in Iron. Effective in treatment of Sickle cell Anemia.

15. Honey: Rich iron content. Copper and magnesium increase hemoglobin levels.

मुलेठी , ज्येष्ठी मधु














मुलेठी , ज्येष्ठी मधु ---

मुलेठी बहुत गुणकारी औषधि है। मुलेठी के प्रयोग करने से न सिर्फ आमाशय के विकार बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर के लिए फायदेमंद है। इसका पौधा 1 से 6 फुट तक होता है। यह मीठा होता है इसलिए इसे ज्येष्ठीमधु भी कहा जाता है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार एवं हल्की गंधवाली होती है। यह सूखने पर अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। मुलेठी की जड़ को उखाड़ने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण विद्यमान रहता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है।
मुलेठी के गुण -
- यह ठंडी प्रकृति की होती है और पित्त का शमन करती है .
- मुलेठी को काली-मिर्च के साथ खाने से कफ ढीला होता है। सूखी खांसी आने पर मुलेठी खाने से फायदा होता है। इससे खांसी तथा गले की सूजन ठीक होती है।
- अगर मुंह सूख रहा हो तो मुलेठी बहुत फायदा करती है। इसमें पानी की मात्रा 50 प्रतिशत तक होती है। मुंह सूखने पर बार-बार इसे चूसें। इससे प्‍यास शांत होगी।
- गले में खराश के लिए भी मुलेठी का प्रयोग किया जाता है। मुलेठी अच्‍छे स्‍वर के लिए भी प्रयोग की जाती है।
- मुलेठी महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। मुलेठी का एक ग्राम चूर्ण नियमित सेवन करने से वे अपनी सुंदरता को लंबे समय तक बनाये रख सकती हैं।
- लगभग एक महीने तक , आधा चम्मच मुलेठी का चूर्ण सुबह शाम शहद के साथ चाटने से मासिक सम्बन्धी सभी रोग दूर होते है.
- फोड़े होने पर मुलेठी का लेप लगाने से जल्दी ठीक हो जाते है.
- रोज़ ६ ग्रा. मुलेठी चूर्ण , ३० मि.ली. दूध के साथ पिने से शरीर में ताकत आती है.
- लगभग ४ ग्रा. मुलेठी का चूर्ण घी या शहद के साथ लेने से ह्रदय रोगों में लाभ होता है.
- इसके आधा ग्राम रोजाना सेवन से खून में वृद्धि होती है.
- जलने पर मुलेठी और चन्दन के लेप से शीतलता मिलती है.
- इसके चूर्ण को मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है.
- मुलेठी का टुकड़ा मुंह में रखने से कान का दर्द और सूजन ठीक होता है.
- उलटी होने पर मुलेठी का टुकडा मुंह में रखने पर लाभ होता है.
- मुलेठी की जड़ पेट के घावों को समाप्‍त करती है, इससे पेट के घाव जल्‍दी भर जाते हैं। पेट के घाव होने पर मुलेठी की जड़ का चूर्ण इस्‍तेमाल करना चाहिए।
- मुलेठी पेट के अल्‍सर के लिए फायदेमंद है। इससे न केवल गैस्ट्रिक अल्सर वरन छोटी आंत के प्रारम्भिक भाग ड्यूओडनल अल्सर में भी पूरी तरह से फायदा करती है। जब मुलेठी का चूर्ण ड्यूओडनल अल्सर के अपच, हाइपर एसिडिटी आदि पर लाभदायक प्रभाव डालता है। साथ ही अल्सर के घावों को भी तेजी से भरता है।
- खून की उल्टियां होने पर दूध के साथ मुलेठी का चूर्ण लेने से फायदा होता है। खूनी उल्‍टी होने पर मधु के साथ भी इसे लिया जा सकता है।
- हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।
- मुलेठी आंतों की टीबी के लिए भी फायदेमंद है।
- ये एक प्रकार की एंटीबायोटिक भी है इसमें बैक्टिरिया से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। यह शरीर के अन्‍दरूनी चोटो में भी लाभदायक होती है।
- मुलेठी के चूर्ण से आँखों की शक्ति भी बढ़ती है सुबह तीन या चार ग्राम खाना चाहिये।
- यदि भूख न लगती हो तो एक छोटा टुकड़ा मुलेठी कुछ देर चूसे, दिन में ३,४, बार इस प्रक्रिया को दोहरा ले ,भूख खुल जाएगी .
- कोई भी समस्या न हो तो भी कभी-कभी मुलेठी का सेवन कर लेना चाहिए आँतों के अल्सर ,कैंसर का खतरा कम हो जाता है तथा पाचनक्रिया भी एकदम ठीक रहती है

आँखों की असह्य पीड़ा( Stye) मिटाने हेतु



















आँखों की असह्य पीड़ा मिटाने हेतु -----

(1)आँखों से पानी आना :- आँखों से पानी आता हो तो सूखे धनिये का काड़ा २-२ बूंद आँखों में डाल लीजिये, आँखों
से पानी आना बंद हो जायेगा ।

(2)सौंधी (रात को न दिखना) (Night Blindness)- पहला प्रयोगः बेलपत्र का 20 से 50 मि.ली. रस पीने और 3 से 5 बूँद आँखों से आँजने से रतौंधी रोग में आराम होता है।
दूसरा प्रयोगः श्याम तुलसी के पत्तों का दो-दो बूँद रस 14 दिन तक आँखों में डालने से रतौंधी रोग में लाभ होता है। इस प्रयोग से आँखों का पीलापन भी मिटता है।
तीसरा प्रयोगः 1 से 2 ग्राम मिश्री तथा जीरे को 2 से 5 ग्राम गाय के घी के साथ खाने से एवं लेंडीपीपर को छाछ में घिसकर आँजने से रतौंधी में फायदा होता है।
चौथा प्रयोगः जीरा, आँवला एवं कपास के पत्तों को समान मात्रा में लेकर पीसकर सिर पर 21 दिन तक पट्टी बाँधने से लाभ होता है।

(3) आँखों की गर्मी या आँख आने परः नींबू एवं गुलाबजल का समान मात्रा का मिश्रण एक-एक घण्टे के अंतर से आँखों में डालने से एवं हल्का-हल्का सेंक करते रहने से एक दिन में ही आयी हुई आँखें ठीक होती हैं।

(4) आँख की अंजनी (मुहेरी या बिलनी) (Stye)- हल्दी एवं लौंग को पानी में घिसकर गर्म करके अथवा चने की दाल को पीसकर पलकों पर लगाने से तीन दिन में ही गुहेरी मिट जाती है।

(5) आँख में कचरा जाने परः पहला प्रयोगः सौ ग्राम पानी में एक नींबू का रस डालकर आँखे धोने से कचरा निकल जाता है। दूसरा प्रयोगः आँख में चूना जाने पर घी अथवा दही का तोर (पानी) आँजें।

(6) आँख दुखने परः गर्मी की वजह से आँखें दुखती हो तो लौकी को कद्दूकस करके उसकी पट्टी बाँधने से लाभ होता है।

(7) आँखों से पानी बहने परः पहला प्रयोगः आँखें बन्द करके बंद पलको पर नीम के पत्तों की लुगदी रखने से लाभ होता है। इससे आँखों का तेज भी बढ़ता है।
दूसरा प्रयोगः रोज जलनेति करें। 15 दिन तक केवल उबले हुए मूँग ही खायें। त्रिफला गुगल की 3-3 गोली दिन में तीन बार चबा-चबाकर खायें तथा रात्रि को सोते समय त्रिफला की तीन गोली गर्म पानी के साथ सेवन करें। बोरिक पावडर के पानी से आँखें धोयें इससे लाभ होता है।

(8) सर्वप्रकार के नेत्ररोगः पहला प्रयोगः पैर के तलवे तथा अँगूठे की सरसों के तेल से मालिश करने से नेत्ररोग नहीं होते।
दूसरा प्रयोगः ॐ अरुणाय हूँ फट् स्वाहा। इस मंत्र के जप के साथ-साथ आँखें धोने से अर्थात् आँख में धीरे-धीरे पानी छाँटने से असह्य पीड़ा मिटती है।
तीसरा प्रयोगः हरड़, बहेड़ा और आँवला तीनों को समान मात्रा में लेकर त्रिफलाचूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 2 से 5 ग्राम मात्रा को घी एवं मिश्री के साथ मिलाकर कुछ महीनों तक सेवन करने से नेत्ररोग में लाभ होता है।

(9) आँखों की सुरक्षाः रात्रि में 1 से 5 ग्राम आँवला चूर्ण पानी के साथ लेने से, हरियाली देखने तथा कड़ी धूप से बचने से आँखों की सुरक्षा होती है।

Benefits of Fruits


Thursday, 26 June 2014

How Soda Affects Weight

















How Soda Affects Weight

Drinking one soda a day equates to consuming 39 pounds of sugar per year. Regularly consuming sugary drinks interacts with the genes that affect weight. Sugar-sweetened beverages are linked to more than 180,000 obesity-related deaths per year.

How Soda Affects Your Brain

Having too much sugar in your diet reduces production of a brain chemical that helps us learn, store memories and process insulin. Consuming too much sugar also dulls the brain’s mechanisms for telling you to stop eating.

How Soda Affects Your Kidneys

The high levels of phosphoric acid in colas have been linked directly to kidney stones and other renal problems. Diet cola is increased with a two fold risk – especially when more than two servings a day are consumed.

How Soda Affects Your Digestive System

The carbonation in soft drinks can cause gas, bloating, cramping and exacerbate the effects of irritable bowel syndrome. Caffeine can also worsen episodes of diarrhea or contribute to constipation.

How Soda Affects Your Bones

Soda consumption has been linked to osteoporosis and bone density loss, likely due to the phosphoric acid and caffeine in soda.

How Soda Affects Your Heart

Chronic diet and regular soda consumption leads to an increase risk of heart disease, including heart attack and stroke.

How Soda Affects Your Lungs

The more soda you drink, the more likely you are to develop asthma or COPD.

How Soda Affects Your Teeth

The high levels of acid in soda corrode your teeth – almost as badly as drinking battery acid.

Wednesday, 25 June 2014

25 USES for EPSOM SALT

















25 USES for EPSOM SALT......

1. Lawn and garden — Studies show that the magnesium and sulfur that comprise Epsom salt may help your plants grow greener, produce higher yields and have more blooms!

2. Pedicure — Combine 1/2 cup Epsom salt and warm soapy water, then soak your feet for 5 minutes to soften skin. Remove nail polish, push back cuticles, then cut and file your nails. Soak an additional 5 minutes in a warm Epsom bath for super soft feet.

3. Hair volumizer — Combine equal parts conditioner and Epsom salt. Work the mixture through your hair and leave for 20 minutes. The result? Hair full of va-va-voom and volume!

4. Facial scrub — This is one of my favorite Epsom salt uses. Mix 1/2 tsp of Epsom salt with your favorite cleanser; massage into skin using small circles to give your pores a deep-cleaning. Rinse your face with cool water, pat dry. This is one of the most refreshing Epsom salt uses!

5. Relax — Add two cups of Epsom salt to your very-warm bath water and soak for 15 minutes. You can purchase Epsom salt with lavender or eucalyptus for an extra-soothing bath experience. Be careful when standing up, you’ll find that you are VERY relaxed after your Epsom salt bath.

6. Sea salt texturizing hair spray — Combine 1 cup of hot water, 2 tablespoons Epsom salt, 1 teaspoon aloe vera gel and 1/2 tsp conditioner in a spray bottle. Spray salt mixture into hair and scrunch hair with your hand for pretty beachy-waves.

7. Fabric softener crystals — Mix 4 cups of Epsom salt and 20 drops of essential oil to make DIY fabric softener crystals. Use 1/4 cup per load and add at beginning of wash. What a clever way to use Epsom salt, and also a way to save money!

8. Splinter removal — Soak your finger in an Epsom salt bath for easy splinter extraction.

9. Body scrub — After showering, massage handfuls of Epsom salt over wet skin to exfoliate the body. Get a spa treatment at home! Get more facial scrub recipes here.

10. Exfoliation — For exfoliation, mix 2 cups of Epsom salt with 1/4 cup of petroleum jelly and a few drops of lavender essential oil. Gently massage into dry patches for smoother skin.

11. Mosquito bites — Epsom salt can ease the symptoms of mosquito bites. Make a compress by soaking a washcloth in cold water that has been mixed with Epsom salt (2 tablespoons per cup of water), then gently apply to the bite area. This is yet another one of my favorite Epsom salt uses.

12. Sore muscles and arthritis — If your muscles or joints ache, an Epsom salt bath is a great way to find relief. Add 2 cups of Epsom salt to your very-warm bath water, agitate the water with your hands to dissolve it then soak for 15 minutes.

13. Tile cleaner — Mix equal parts of dish soap and Epsom salt for a super easy and effective tile cleaner. Rinse with clear water. This is one of the most frugal Epsom salt uses, a great way to save on cleaning supplies and to use a natural alternative to harsh chemical cleaners!

14. Bedtime bath for kids — Add one cup of Epsom salt to your kids’ evening bath to help them sleep more peacefully.

15. Headache relief — Evidence shows that that soaking in an Epsom salt bath can relieve headache symptoms.

16. Acne — Epsom salt has antibacterial, antifungal and antiviral properties making it a fantastic natural treatment for acne.

17. Remove odor on hands and feet — Add 3 Tablespoons of Epsom salt to 1 quart of warm water and soak your hands or feet for 15 minutes. This will makes your skin soft, your nails shine, and also help remove foul odors.

18. Relieve constipation — Pour 8 oz. of drinking water into a glass, mix with 1 to 2 tsp. of Epsom salt and drink the mixture for immediate relief of constipation. Mixing directions are also found on most Epsom salt packages, consult your physician before trying this.

19. Sunburn relief — Dissolve two tablespoons of Epsom salt in 1 cups of water and spray on minor sunburns.

20. Draw out infection — For simple infections on hands or feet, soak in a hot Epsom salt bath for 10 minutes to help clear the area. Note, some staph infections are worsened by soaking in hot water, consult your physician.

21. Cure for common cold — Did you know that Epsom salt baths can speed healing by detoxifying your body and increasing your white blood cell count? Try an Epsom salt bath the next time you feel those first symptoms of a cold.

22. Reduce swelling — Epsom salt baths can help the appearance of bruises and reduce swelling.

23. Deter slugs — Sprinkle a trail of Epsom salt around the area you want to be free of slugs.

24. Blackhead removal — Mix a teaspoon of Epsom salt, 3 drops iodine and half a cup of boiling water. Dab this solution to your blackheads with a cotton ball to help naturally extract them.

25. Insecticide — Mix Epson salt with water, add to a spray bottle and spray on plants to naturally deter insects.
(Photo ©iStockphoto/AdrianaCahova)

टमाटर (रक्तवृन्ताक)













टमाटर (रक्तवृन्ताक) -

टमाटर मूलतः उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्रों में पाया जाता है,परन्तु अब सर्वत्र भारत में इसकी खेती की जाती है | टमाटर में कई प्रकार के पौष्टिक गुण पाये जाते हैं | टमाटर में पाये जाने वाले विटामिन गर्म करने से ख़त्म नहीं होते हैं | टमाटर में विटामिन A ,B और C तथा B काम्प्लेक्स पाया जाता है | २०० ग्राम टमाटर से लगभग ४० कैलोरी ऊर्जा शरीर को प्राप्त होती है | टमाटर में कैल्शियम भी अन्य फल सब्ज़ियों की तुलना में अधिक पाया जाता है | दांतों व हड्डियों की कमज़ोरी दूर करने के लिए टमाटर का सेवन बहुत उपयोगी है | इसमें लौह,पोटाश,चूना,लवण तथा मैग्नीस जैसे तत्व भी होते हैं इसलिए इसके सेवन से शरीर में रक्त की वृद्धि होती है | टमाटर लीवर,गुर्दा और अन्य रोगों को ठीक करने में लाभकारी है | 
टमाटर के कुछ औषधीय प्रयोग -
१- मधुमेह की बीमारी में टमाटर का सेवन अति लाभकारी है | इसके सेवन से रोगी के मूत्र में शक्कर आना धीरे-धीरे कम हो जाता है |
२- टमाटर के सेवन से चिड़चिड़ापन और मानसिक कमज़ोरी दूर होती है | यह मानसिक थकान को दूर करके मस्तिष्क को संतुलित बनाए रखता है |
३- प्रतिदिन लगभग २०० ग्राम टमाटर के सेवन से रतौंधी और अल्पदृष्टि (आँखों से कम दिखाई देना) में लाभ होता है | इस प्रयोग से पेट के कीड़े भी मर जाते हैं |
४- दिन में दो बार टमाटर या उसके रस के सेवन से कब्ज़ ख़त्म होती है तथा आमाशय व आँतों की सफाई हो जाती है |
५- जिन लोगों को मुँह में बार-बार छाले होते हों उन्हें टमाटर का सेवन अधिक करना चाहिए | टमाटर के रस में पानी मिलाकर कुल्ला करें,इससे भी मुँह के छाले ख़त्म होते हैं|
६- अगर चेहरे पर काले दाग या धब्बे हों तो टमाटर के रस में रुई भिगोकर लगाने से काले दाग-धब्बे ख़त्म हो जाते हैं | 
टमाटर का उपयोग आमवात,अम्लपित्त,सूजन,संधिवात और पथरी के रोगियों को नहीं करना चाहिए,क्यूंकि यह उनके लिए हानिकारक होता है | मांसपेशियों में दर्द तथा शरीर में सूजन हो तो टमाटर नहीं खाना चाहिए |

स्वस्थ्य शरीर के लिए प्राणायाम












स्वस्थ्य शरीर के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम बहुत उपयोगी प्राणायाम है.

DATES TONIC














DATES TONIC :

Take 2-3 dry dates and soak them in water every morning. In the evening boil them in 250ml milk until half the quantity of milk remains. Cool and add one teaspoon honey as a sweetener. Eat the dates and drink the milk. This can be taken one hour before going to bed. Do not drink water for 2 hours after taking this tonic. This tonic strength to lungs, increases blood circulation, cleans the bowels.

Tuesday, 24 June 2014

तुलसी
















१/ तुलसी प्रत्येक हिंदू घर के आँगन में लगाई जाती है और इसे एक पवित्र वृक्ष माना जाता है.

२/ तुलसी में लगने वाली मंजरियों में तुलसी के बीज लगते हैं. मंजरियों और तुलसीदल का उपयोग पूजा-पाठ में होता है.

३/ मरुवा भी तुलसी की ही भांति एक पौधा होता है, इसके गुण तुलसी की भांति होने के कारण इसे 'मरुवा-तुलसी' भी कहा जाता है.

४/ श्यामा (कृष्ण) तुलसी, सफेद (राम) तुलसी की तुलना में ज्यादा गुणकारी होती है.

५/ घर की हवा को शुद्ध रखने हेतु तुलसी के पौधे को गमलों में लगाना चाहिये. इन गमलों को नित्य, दिन में कमरों के अंदर व संध्या समय बाहर आँगन या बरामदे में (रातभर के लिये) रखना चाहिये. ऐसा करने से घर-परिवार में रोग-शोक नहीं होते हैं.

६/ तुलसी वायु, कफ, सूजन, कृमि एवं वमन का नाश करती है.

[B] आयुर्वेद में तुलसी से बनने वाली प्रमुख औषधियाँ एवं उनके उपयोग इस प्रकार हैं:

(a) लघुराजमृगांक व (b) तुलसी तेल.

(a) लघुराजमृगांक: तुलसी का रस, गाय का घी व कालीमिर्च को समभाग में मिलाने से यह औषधि तैयार हो जाती है.

(b) तुलसी तेल: 'तुलसी की पत्तियों का कल्क, भटकटैया की जड़, दंतमूल, बच, सहजन की छाल, कालीमिर्च और सैंधा नमक' इन सबको समभाग में लेकर उस मात्रा के कुल वजन से चार गुना तिल्ली का तेल और सोलह गुना पानी डालकर विधिवत सिद्ध करके तुलसी तेल का निर्माण किया जाता है.

१/ इन औषधियों की प्रकृति कफघ्न एवं उष्ण होती है.

२/ आयुर्वेद में तुलसी की पत्तियों का उपयोग श्लेष्म, खाँसी व पार्श्वशूल में बहुतायात रूप से किया जाता है. जमे हुये बलगम को तोड़ने के लिये तुलसी का उपयोग किया जाता है. बच्चों की खाँसी एवं बलगम का जमाव तथा प्रौढ़ की खाँसी, दमा, श्वास आदि में जो दवाएँ दी जाती हैं, उनमें सामान्यतया तुलसी की पत्तियों का प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता है.

३/ तुलसी उष्ण-वीर्य होती है, अतः जब भी शरीर में वायु-प्रकोप हो तुलसी का सेवन करना चाहिये. वातज्वर के उपचार में अन्य औषधियों के साथ साथ तुलसी मिलाई जाती है.

४/ तुलसी-सेवन से तन्द्रा दूर होती है, नशे का प्रभाव कम होता है व बड़बड़ानेवाले रोगी की बेहोशी दूर होकर वह होश में आ जाता है.

५/ तुलसी में दीप्ति का गुण होता है अतः उससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है.

६/ तुलसी से पेट की वायु, शूल और अफरा आदि दूर होते हैं.

७/ दाँतदर्द में कुचले हुये अदरक के टुकड़े को तुलसी की पत्तियों के मध्य रखकर इसे दर्द वाले दाँत के मध्य रखकर दबाने से पीड़ा दूर होती है. दंतशूल में दाँत की पोली जगह के अंदर इस संयोग को रखने से काफी लाभ होता है.

८/ कालीमिर्च के साथ तुलसी स्वरस का सेवन करने से मलेरिया में आराम मिलता है.

९/ लघुराजमृगांक नामक औषधि के सेवन से सभी प्रकार के वायुरोग नष्ट होते हैं व शरीर तेजस्वी बनता है.

१०/ नाक के रोग में यदि नाक से पपड़ी निकलती हो तो तुलसी की सूखी पत्तियों का चूर्ण रूमाल में रखकर सूँघने से पीनस का प्रभाव क्षीण पड़ जाता है. तुलसी-तेल की बूँदें नासिका में डालने से नासिका की सड़न दूर हो जाती है. इस हेतु २० ग्राम तुलसी स्वरस व २० ग्राम लघुराजमृगांक औषधि का संयोग अत्यंत लाभप्रद होता है.

[C] सुश्रूत आयुर्वेद:

१/ सुश्रुत के अनुसार सफेद मंजरीवाली तथा हरी पत्तियों वाली तुलसी कफ, वायु, विष, स्वास, खाँसी तथा दुर्गन्ध को नष्ट करने वाली है. यह पित्तकारक व पार्श्वशूल-मारक है.

२/ जंगली तुलसी भी ऐसे ही गुणों वाली व विष को नष्ट करने वाली होती है.

३/ काली मंजरी वाली तुलसी कफनाशक है.

[D] घरेलू उपचार: "रोगानुसार अनुपात" (तुलसी का अकेले उपयोग के स्थान पर अन्य संयोग के साथ रोगानुसार अनुपात में उपयोग करने पर ज्यादा लाभ मिलता है, अतः यथासंभव तुलसी का सेवन रोगानुसार अनुपात में ही करना चाहिये.)

१/ किसी भी प्रकार के ज्वर में तुलसी तथा बेल के पत्तों का काढ़ा, तुलसी, बेल व सौंठ का काढ़ा तथा तुलसी की पत्तियों का रस और शहद काफी लाभप्रद हैं.

२/ सन्निपात-ज्वर - तुलसी का रस व तुलसी, अदरक का मिश्र रस.

३/ कफ़ और दमा में - तुलसीरस + मिश्री.

४/ प्रमेह में - बंगभस्म व तुलसीपत्र.

५/ वायुप्रकोप में - प्रभालभस्म + तुलसीपत्र.

६/ रतौंधी - 'प्रबालभस्म + चूहे की लेंडी' पीसकर शहद के साथ मिलाकर आँखों में आँजें.

७/ 'तुलसी-काढ़ा' - लगभग १० ग्राम तुलसी की पत्तियों को ५० ग्राम पानी में उबालकर 'आधा याकि एक चौथाई' पानी शेष रहने पर उसे पीने से ज्वर, सुस्ती, अरुचि, दाह तथा वायु एवं पित्त का शमन होता है.

[E] भावप्रकाश: "तुलसी के विविध नामकरण"

१/ तुलसी - स्वयं की तुलना या उपमा को दूर करने के कारण 'तुलसी' कहलाती है.

२/ सुरसा - तुलसी उत्तम रस के कारण 'सुरसा' कहलाती है.

३/ ग्राम्या - गाँव अथवा विशेष निराली भूमि में होने की प्रकृति के कारण इसे 'ग्राम्या' कहा जाता है.

४/ सुलभा - सभी को सरलतापूर्वक आसानी से उपलब्ध हो जाने के कारण 'सुलभा' कहलाती है.

५/ बहुमंजरी - इसपर अनेक मंजरियों के लगने के कारण यह 'बहुमंजरी' कहलाती है.

६/ अपेतराक्षसी - इसके सानिध्य से राक्षसी पाप दूर भाग जाते हैं.

७/ श्वेत या गोरा तुलसी - सफेद रंग की तुलसी को 'गोरा तुलसी' कहा जाता है.

८/ कृष्ण-तुलसी - श्यामल रंग के कारण काली तुलसी को 'श्यामा या कृष्ण-तुलसी' कहा जाता है.

९/ शूलघ्नी - रोगों का नाश करने के कारण यह नामकरण हुआ.

१०/ देवदुन्दुभी - देवों के लिये आनंददायक होने से यह नाम पड़ा.

[F] गुणों के अनुसार तुलसी के नाम व किस्में:

[१) बर्बरी २) तुवरी ३) तुंगी ४) खरपुष्पा ५) अजगंधिका ६) पर्णास ७) कुठेरक ८) अर्जक ९) वटपत्र]

१/ बर्बरी - अनेकानेक अतिशय गुणों की खान होने के कारण इसे 'बर्बरी' कहा जाता है.

२/ तुवरी - इसका रस तुअर जैसा कसैला होने के कारण इसे 'तुवरी-बर्बरी-तुलसी' कहा जाता है.

३/ तुंगी - विष का नाश करने के कारण इसे 'तुंगी-बर्बरी-तुलसी' कहा जाता है.

४/ खरपुष्पा - कठोर एवं खुरदरे पुष्पों के कारण इसे 'खरपुष्पा-बर्बरी-तुलसी' कहा जाता है.

५/ अजगंधिका - इसकी गंध 'अज' अर्थात बकरे जैसी होने के कारण इसे 'अजगंधिका-बर्बरी-तुलसी' कहते हैं.

६/ पर्णास - यह संपूर्ण पत्तियों को गिराकर पत्तियों से दीप्ति प्रदान करती है अतः 'पर्णास-बर्बरी-तुलसी' कहलाती है.

७/ कुठेरक - श्यामल तुलसी कफ, वायु आदि का शमन करती है, अतः 'कुठेरक-श्यामा-बर्बरी-तुलसी' कहलाती है.

८/ अर्जक - स्वयं गोरवर्ण धारण करने व दूसरों को भी गोरापन प्रदान करने के कारण सफ़ेद तुलसी को 'अर्जक-बर्बरी-तुलसी' कहा जाता है.

९/ वटपत्र - इसकी पत्तियाँ वटवृक्ष के पत्तों के समान होने के कारण इसे 'वटपत्र-बर्बरी-तुलसी' कहा जाता है.

[G] तुलसी की महिमा के बहुआयामी परिदृश्य:

१/ 'अथर्ववेद' के अनुसार त्वचा, मांस तथा अस्थि में महारोग प्रविष्ट होने पर राम (श्वेत) तुलसी उसे नष्ट कर देती है. श्यामा तुलसी सौंदर्यवर्धक है. इसके सेवन से रोगिष्ठ त्वचा के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और त्वचा पुनः मूल स्वरूप धारण कर लेती है.
तुलसी, त्वचा के लिये अदभुत गुणकारी है.

२/ 'भावमिश्र' के अनुसार तुलसी कटु, तिक्त (अर्थात तीखी), रसयुक्त, हृदय-हितकर, उष्ण, दाह-पित्त को उत्पन्न करने वाली और अग्निदीपक है. यह कुष्ठ, मूत्रकृच्छ्र, रक्तविकार,पार्श्वशूल, कफ तथा वात को नष्ट करने वाली है. श्वेत व कृष्ण दोनों तुलसी गुणों में करीब करीब समान हैं.

३/ 'चरक-सूत्र २७,१६९' के अनुसार तुलसी हिचकी, खाँसी, विषदोष, श्वास और पार्श्वशूल को नष्ट करती है. तुलसी पित्त को उत्पन्न करने वाली तथा वात, कफ एवं मुँह की दुर्गन्ध को नष्ट करती है.

४/ 'चरक-सूत्र २७-९९, १०३, १०४' के अनुसार कठिंजर (कृष्ण) तुलसी की पत्तियों कि सब्जी पचने में भारी, रुक्ष-प्रभावी तथा विष्टंभ करने वाली है. किन्तु यदि तुलसी की पत्तियों को पानी में उबालकर व रस निचोड़कर तथा प्रचुर मात्रा में देशीगाय का घी मिलाकर या उसमें तलकर सब्जी तैयार की जाये तो वह अत्यंत मधुर, पाकयुक्त, शीतवीर्य व मलबंधहर होती है.

५/ 'चरक-सूत्र २७-९६, ९८' के अनुसार बर्बरी तथा अर्जक (कुठेरक) तुलसी की सब्जी तिक्तरस, शीतवीर्य, कटुपाकी व कफपित्तहर होती है.

६/ 'निघंटु रत्नाकर' के अनुसार श्वेत व काली दोनों प्रकार की तुलसी कटुरसयुक्त, उष्ण व तीक्ष्ण हैं. ये दाह और पित्तकारक, हृदयहितकारी, तीखी, अग्निदीपक, वात, कफ, श्वास, खाँसी, हिचकी तथा कृमि को नष्ट करने वाली हैं. साथ ही सस्थ ये वमन, दुर्गन्ध, कुष्ठ, पार्श्वशूल, विषदोष, मूत्रकृच्छ्र, रक्तदोष, भूतबाधा, शूल, ज्वर व हिचकी नष्ट करती है.

७/ 'राजनिघंटु १०, १५८' के अनुसार तुलसी कटु, टिकट, रूचिवर्धक, कफ व पित्त का नाश करने वाली तथा शूक्ष्म कृमियों को मारने वाली होती है.

८/ 'धन्वंतरि निघंटु' के अनुसार तुलसी लघु, उष्ण, कफनाशक, कृमिनाशक है. यह जठराग्नि को प्रदीप्त कर रूचि को बढ़ाती है.

९/ 'राजवल्लभ' के अनुसार तुलसी रोगप्रतिकारक , शुष्कता, खाँसी, श्वास, अरुचि और पसली का दर्द आदि अनेकानेक रोगों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता रखती है.

[H] पद्मपुराण के अनुसार :

१/ जब भगवान विष्णु ने अमृतमंथन किया था तब औषधियों और रसों में प्राणिमात्र के कल्याणार्थ सर्वप्रथम तुलसी की ही उत्पत्ति की थी.

२/ तुलसी की गंध हवा के साथ दूर-सुदूर जहाँ तक भी जाती है, वहाँ तक के वातावरण को व उस वातावरण में रहने वाले प्राणियों को वह पवित्र और निर्विकार बनाती है.

३/ जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर का वातावरण तीर्थस्थल के समान हो जाता है. वहाँ व्याधिरूपी यमराज प्रवेश नहीं कर पाते हैं.

४/ जिस घर में तुलसी का जल और मिट्टी मिट्टी मौजूद हों, वहाँ यम के गण ठहर नहीं पाते.
अर्थात जिन घरों में तुलसी के जल और मिट्टी का उपयोग किया जाता है वहाँ रोग के कीटाणुओं का उद्भव नहीं हो सकता.

५/ जिस घर या गाँव में तुलसी उगी हुई होती है, वहाँ तीनों लोकों के स्वामी 'भगवान विष्णु' निवास करते हैं तथा उस घर या गाँव में दरिद्रता, बंधुवियोग आदि कोई भी उपद्रव नहीं होते हैं.

तुलसी


















१/ तुलसी एक अमृतबूटी है. इसके प्रयोगों से चमत्कारिक सफलता प्राप्त होती है. विभिन्न प्रकार के विषों को दूर करने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है.

२/ केवल सर्प, बिच्छु, पागलकुत्ता आदि के काटने से ही शरीर में विष नहीं फैलता वरन शरीर में उत्पन्न फोड़े, फुंसियाँ, खुजली, कैंसर, मलेरिया, कालेरा आदि रोगों के रूप में यह विष अनेकानेक प्रकार से शरीर में प्रकट होता है. रक्त में मिला हुआ विष रक्तकणों का नाश करता है व नाना प्रकार के रक्तविकार उत्पन्न करता है. तुलसी इन सभी प्रकार के विषों को नष्ट कर शरीर को निरोगी बनाती है.

३/ उचित विधिविधान के साथ तुलसी मिश्रित औषधियों का सेवन करने से चमत्कारिक लाभ मिलते हैं.

मित्रों, हम यहाँ कुछ ऐसे सत्य उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनसे तुलसी की अमोघता पर प्रकाश पड़ेगा और हम तुलसी को सही ढंग से पहचान सकेंगे.

१/ चाय, काफी, शक्कर अत्यंत हानिकारक होने के कारण महात्मागाँधी द्वारा स्थापित उरूलिकांचन (पुणे) के निसर्गोपचार आश्रम में इनके सेवन की मनाही होने से, तुलसी व अदरक को उबालकर काढ़ा तैयार किया जाता है. उसमें शहद अथवा गुड़ की शहद जैसी चासनी तथा उचित मात्रा में दूध डालकर रोगियों को दिया जाता है. यह वनस्पति-चाय पूर्णतः निरापद व अपेक्षाकृत अत्यंत लाभ पहुँचाने वाली होती है.

२/ तुलसी किडनी की कार्यशक्ति में वृद्धि करती है. उरूलिकांचन में तुलसी के रस में शहद मिलाकर देने से एक रोगी की किडनी की पथरी छः माह के निरंतर उपचार से बाहर निकल गयी थी.

३/ इंट्राट्रेकियल कैंसर से पीड़ित एक रोगी पर ऑपरेशन तथा अन्य अनेक उपचार करने के बाद, अंत में आशा छोड़कर डाक्टरों ने घोषित किया कि रोगी का यकृत खराब हो गया है तथा यक्ष्मा में भी वृद्धि हो रही है अतः अब यह लाइलाज रोग ठीक नहीं हो सकता. तभी एक वैद्द ने डॉक्टरों के उक्त विधान के विरुद्ध चुनौती दी. रोगी को पाँच सप्ताह तक सिर्फ तुलसी का सेवन करवाया. वह इतना स्वस्थ हो गया कि एक-सवा माह में ही वह एक-डेढ़ किलोमीटर पैदल चलने लग गया.

४/ योनि-कैंसर वाली एक वृद्धा को डॉक्टरों ने जब रेडियम व कोबाल्ट चिकत्सा द्वारा भी रोगमुक्त होते हुये न देखा और आशा छोड़ दी तब तुलसी के मात्र दस दिवसीय उपचार से ही उसका रक्तस्त्राव और दर्द कम हो गया तथा एक माह बाद तो उसके श्लेष्मायुक्त रिसते घाव भी ठीक हो गये.

५/ तुलसी के उपचार द्वारा हृदयरोग से पीड़ित कई रोगियों के उच्च-रक्तचाप सामान्य होकर हृदय की दुर्बलता कम हो गयी तथा रोगी के रक्त में चर्बी की वृद्धि भी रुक गई. जिन्हें थोड़ा भी चलने-फिरने व ऊपर चढ़ने की मनाही थी ऐसे अनेक रोगी तुलसी के नियमित सेवन के बाद आनंद से पहाड़ी स्थानों पर सैर व हवाखोरी के लिये जाने में समर्थ हुये.

६/ कलकत्ता की 'मॉडर्न-रिव्यू' नामक पत्रिका में सर्पदंश पर तुलसी के अद्भुत प्रभाव की एक घटना प्रकाशित हुई थी. एक व्यक्ति को साँप ने काट लिया था. वह सुदूर गाँव में रहता था. अतः आठ घंटे तक वहाँ कोई भी वैद्द या डॉक्टर नहीं पहुँच सका. आठ घंटे के बाद एक वैद्द पहुँचा. उसने तुलसी की पत्तियों को पीसकर स्वरस निकाला व इस स्वरस से बेहोश पड़े रोगी के सीने, चेहरे और कपाल की खूब मालिश की. साथ ही केले के तने का रस व तुलसी के पत्तों का रस दस-दस ग्राम की मात्रा में मिला-मिलाकर, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से रोगी को पिलाता रहा. इस चिकित्सा के परिणामस्वरूप रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो गया. यही प्रयोग रामकृष्ण मिशन आश्रम सहित अन्य स्थानों पर भी, इसी प्रकार सफल हुआ है.

७/ 'चिकित्सा-प्रकाश' नामक पत्रिका में एक बार प्रसिद्द चिकित्साशास्त्री श्री नलनीनाथ मजूमदार ने लिखा था कि देश की गुलामी के दौर में उनके एक मित्र के मकान में बिजली के तार डाले जाने वाले थे. अतः आवश्यक पूछताछ के लिये वे कलकत्ता के विद्युत विभाग के चीफ इंजीनियर के यहाँ गये. यह देखकर उन्हें अत्यंत आश्चर्य हुआ कि उस अंग्रेज अधिकारी के यहाँ तमाम गमलों में यत्र-तत्र तुलसी के अनेक पौधे लगे हुये थे. एक अंग्रेज के बँगले में सजावट के फूलों और लताओं के स्थान पर तुलसी-वाटिका देखकर उनसे रहा न गया और उन्होंने उस अंग्रेज अधिकारी से इसका कारण पूछा...!!! अधिकारी महोदय ने प्रत्युत्तर प्रश्न किया कि "तुमसे ज्यादा आश्चर्य तो तुम्हारी बात सुनकर मुझे हो रहा है कि तुम एक हिंदू होकर भी तुलसी का महत्व नहीं जानते? उन्होंने कहा कि हमारे यहाँ इंग्लैंड में 'तुलसी' पर विपुल साहित्य प्रकाशित हुआ है. क्या आपके हिस्दुस्तान में तुलसी पर कोई पुस्तक नहीं है? उन्होंने आगे कहा कि वास्तव में जितनी विद्दुतशक्ति तुलसी में है उतनी विश्व के अन्य किसी पौधे में नहीं है. जहाँ भी तुलसी-वाटिका होती है, उसके आसपास छः सौ फीट के क्षेत्र की हवा उससे प्रभावित होती है. परिणामस्वरूप मलेरिया, प्लेग तथा यक्ष्मा के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं. रोग के कीटाणुओं के आक्रमण से बचने के लिये मैं अपनी कमर में सदैव तुलसी के डंठल बाँधकर रखता हूँ तथा मैं नियमित रूप से सुबह-शाम तुलसी के बगीचे में टहलता रहता हूँ. इन्हीं कारणों से मैं सदैव स्वस्थ रहता हूँ."

८/ 'जीवनसखा' नामक पत्र के नवंबर १९४० के अंक में श्री विश्वनाथप्रताप द्वारा लिखित तुलसी के प्रभाव से संबंधित एक लेख प्रकाशित हुआ था. उनके ३५ वर्षीय मित्र बीमार पड़ गये. दिन-प्रतिदिन उनका स्वास्थ्य क्षीण होने लगा. अनेकानेक इलाज किये गये किन्तु रोग नहीं मिटा. अंत में उन्हें पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया. वहाँ डॉक्टरों ने बताया कि उनका कलेजा दुर्बल है. अस्पताल में मछली का तेल व अन्य मूल्यवान औषधियों का सेवन कराया गया किन्तु परिणाम शून्य रहा. चिकित्सकों ने उनके रोग को असाध्य घोषित कर दिया. घर के सभी लोग भी निराश हो गये. सभी ने मान लिया कि उनका अंत-समय आ गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार अपने अंत-समय में उन्होंने गंगा मैया की गोद में ही शेष दिन बिताकर शरीर त्याग करने का निश्चय कर लिया. संयोगवश, सौभाग्य से एक महात्मा घूमते फिरते वहाँ आ पहुँचे. उन्होंने रोगी की पूरी स्थिति को अच्छी तरह जानने समझने के बाद रोगी से नित्य प्रातःकाल खाली पेट तुलसीपत्र एवं गंगाजल सेवन करने की सलाह दी. रोगी द्वारा तदनुसार पालन किया गया. सच मानें... जिस रोग को चिकित्सा-जगत ने असाध्य घोषित कर दिया था वही रोग एक माह के भीतर ही निर्मूल हो गया.

९/ एक वृद्ध व्यक्ति श्वास-रोग (Asthma), बृद्धआंत्रशोथ (Colitis) एवं श्वेतकोषवृद्धि (Leucocytosis) इन तीन गंभीर रोगों से पीड़ित था. रोगी की आँते भी खराब हो चुकी थीं. तुलसी के इलाज से उसके स्वास्थ्य में तीव्रगति से सुधार हुआ.

१०/ सात वर्ष की एक लड़की को दवाओं की एलर्जी थी. किसी भी दवा का सेवन करते ही उसके पूरे शरीर पर नीले रंग के चकत्ते उभर आते थे. जब उसे अनेक प्रकार के इलाजों से लाभ न मिल सका तब तुलसी के नियमित उपचार से उस रोगी की एलर्जी समूल नष्ट हो गई.

११/ एक प्रौढ़ व्यक्ति को जन्म से ही एलर्जी वाली सर्दी थी. तुलसी के सेवन से वह बिल्कुल स्वस्थ हो गया.

१२/ एक युवक को वर्षों से हर माह छः-सात दिनों के लिये ज्वर आ जाता था. उसने तीन माह तक लगातार तुलसी के काढ़े का प्रयोग किया, उसका ज्वर आना बिल्कुल बंद हो गया.

१३/ एक सज्जन को करीब पन्द्रह वर्षों से सिरदर्द रहता था. तुलसी के नियमित उपचार से उनका दर्द दूर हो गया.

१४/ एक लड़का बचपन से ही मंद्बुद्धि था. सोलह वर्षों तक उसके अनेक उपचार हुये किन्तु उसकी बौद्धिक मंदता दूर नहीं हुई. तुलसी के नियमित सेवन से दो ही महीनों के भीतर उसमें बुद्धिमत्ता के लक्षण दिखाई देने लगे. समय के साथ-साथ वह सामान्य व प्रखर बुद्धिशाली हो गया.

१५/ 'सायनस' की तकलीफ़ वाले एक युवक को डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी. वह इस हेतु तैयार भी हो गया था, किन्तु एक वैद्य की सलाह से उसने दो सप्ताह तक तुलसी का सेवन किया. उसके सर्दी-ज़ुकाम सब दूर हो गये और वह सर्ज़री से बच गया.

१६/ एक रोगी को किडनी की पथरी थी. चूँकि 'दही' रोगी की प्रकृति के अनुकूल नहीं था अतः उसे तुलसी, शहद के साथ दी गई.
छः माह के उपचार के बाद पथरी चूर-चूर होकर बाहर निकल गई.

१७/ सफेद दाग या कोढ़ के अनेक रोगियों को तुलसी के उपचार से अद्भुत लाभ हुआ है. उनके दाग कम हो गये और उनकी त्वचा सामान्य हो गई.

१८/ प्रोस्टेट-ग्रंथि के दर्द को दूर करने में भी तुलसी सहायक सिद्ध हुई है.

उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि तुलसी से असाध्य कैंसर तथा अनेक कष्टदायी व्याधियों से मुक्ति प्राप्त होती है.

ऐसे तो अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं जिनमें डॉक्टरों के असफल होने के बाद किये गये तुलसी के उपयोग से अनेक रोगी स्वस्थ्य हो गये. हम यहाँ कुछ अनुभूत प्रयोग प्रस्तुत कर रहे हैं. आप इन्हें SAVE करके अपने पास रखें और वक़्त-ज़रूरत, आवश्यकतानुसार आज़माते रहें.

१/ प्रातःकाल खाली पेट तुलसी की पत्तियों का रस पानी के साथ मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से बल, तेज और स्मरणशक्ति बढ़ती है. 

२/ तुलसी के काढ़े में थोड़ा सा गुड़ तथा गाय का दूध मिलाकर पीने से स्फूर्ति आती है और थकावट दूर होती है.

३/ नित्य तुलसी के रस का सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है.

४/ तुलसी के रस में नमक मिलाकर उसकी बूँदे नाक में डालने से मूर्छा दूर होती है व हिचकियाँ भी शांत होती हैं.

५/ तुलसी, ब्लडकोलेस्ट्राल को बहुत तेजी के साथ सामान्य बना देती है. तुलसी के सेवन से एसिडिटी दूर होती है. पेचिश, कोलाईटिस आदि मिट जाते हैं. स्नायुदर्द, सर्दी, जुकाम, सफ़ेद दाग, मंदबुद्धि, सिरदर्द आदि में यह गुणकारी है. बच्चों के कुछ रोगों में विशेषकर सर्दी, दस्त-उल्टी, और कफ़ में तुलसी अकसीर है.

६/ आहार-विहार का विशेष ध्यान न रखने से अनेक प्रकार की वात-व्याधियाँ हो जाती हैं, जिनमें 'गृघ्सीवात' (Sciatica) भी एक है. इस रोग में एक नाड़ी विशेष में पीड़ा होती है. कूल्हे की संधियाँ, कमर, पीठ, पेट, जाँघ तथा पैर में शूल चुभने की सी वेदना होती है.कूल्हे की शिराएँ एवं संधियाँ बार-बार काँपती हैं. इस रोग में दर्द प्रायः कमर से घुटने तक होता है व कभी-कभी टखने तक भी जाता है. तुलसी की पत्तियों को पानी में उबालकर दर्द वाले भाग पर उसकी भाप देने से इस रोग में लाभ होता है.

७/ तुलसी का नियमित सेवन करने वाले वृद्ध व्यक्ति दुर्बलता का अनुभव नहीं करते. वे शक्ति तथा उत्साह का अनुभव करते हैं व उनकी रोगनिरोधक शक्ति भी बढ़ती है.

८/ तुलसी-उपचार की पद्दति बिल्कुल सरल है. बच्चों के लिये पाँच से पच्चीस पत्तियाँ पर्याप्त हैं. वयस्कों के लिये उनके रोग, प्रकृति, क्षमता तथा ऋतु के अनुसार (शीतऋतु में अधिक व ग्रीष्मऋतु में कम) पच्चीस से एकसौ पत्तियाँ तक दी जाती हैं.

९/ पत्तियों को स्वच्छ पत्थर पर पीसकर उसके रस का उपयोग किया जाता है. रोगी की प्रकृति व स्थिति के अनुसार ५ से १० ग्राम तक रस पिलाया जा सकता है. तुलसी की मंजरियाँ भी एक ग्राम तक साथ में ली जा सकती हैं. मंजरियाँ पेशाब को साफ़ करती हैं और शक्ति बढ़ाती हैं. ताजी पत्तियाँ न मिलने पर सूखी पत्तियों के चूर्ण से भी काम चल सकता है.

१०/ तुलसी की दवा प्रातःकाल शौचादि से निवृत्त होकर कुछ भी खाने-पीने से पहले खाली पेट दिन में एक बार लेना ही ज्यादा कारगर सिद्ध होती है.

११/ प्रातःकाल खाली पेट तुलसी की पत्तियों का रस दो-तीन चम्मच लेने से बल, तेज और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है, लेकिन तकलीफ अधिक हो तो दिन में दो-तीन बार इसका सेवन किया जा सकता है.

१२/ जो लोग चाय और तंबाकू के व्यसनों से मुक्त होना चाहते हैं, उन्हें चाय तंबाकू के बदले तुलसी के काढ़े का उपयोग करना चाहिये. इसके अलावा तुलसी के साथ कालीमिर्च भी चबाएँ. इस प्रकार तुलसी के सेवन से शराब की लत से भी मुक्ति मिल जाती है.

१३/ तुलसी के उपयोग के साथ प्राणायाम, योगासन आदि भी किये जाएँ तो वे अधिक प्रभावशाली बन जाते हैं. तुलसी के इलाज़ के साथ प्राकृतिक चिकित्सा तथा होमियोपेथी भी प्रभावशाली रहती है. 

१४/ तुलसी का सेवन करते समय भगवान का नाम स्मरण करने से भी इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अति प्रिय है. 

१५/ तुलसी की पत्तियाँ, बीज तथा टहनियाँ औषधि का काम करती हैं. इसकी जड़ से ज्वर का प्रकोप शांत हो जाता है. इसके बीज वीर्य को गाढ़ा करते हैं. इसमें पाचन शक्ति बढ़ाने का अद्भुत गुण है.

१६/ वजन बढ़ाना हो या घटाना हो, तुलसी का सेवन करें. इससे शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है.

कमर दर्द -

















कमर दर्द -

प्रायः कमर दर्द से सभी का सामना होता है | आजकल की व्यस्त जीवन शैली में कई बार शरीर में कमर दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है | यह अधिकतर उन लोगों में होता है जो अधिक समय तक खड़े होकर,बैठकर या गलत तरीके से बैठकर और लेटकर कार्य करते हैं | अधिक मुलायम गद्दे पर बैठने और सोने से भी कमर दर्द हो जाता है | कई बार किसी कारण से कमर की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न हो जाता है जिसकी वजह से कमर में दर्द होता है जो बहुत कष्टपूर्ण होता है | कमर दर्द के और भी कारण हो सकते हैं जैसे ठण्ड लगने से,पानी में भीगने से अथवा और किसी रोग की वजह से | 
कमर दर्द का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -

१- सौंठ के चूर्ण को अलसी के तेल में पका लें | इस तेल से कमर की मालिश करने से कमर दर्द में लाभ होता है | 

२- अजवायन को एक पोटली में बाँध लें | फिर इस पोटली को तवे पर गर्म करें तथा इससे कमर की सिकाई करें ,लाभ होगा | 

३- आधा चम्मच सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है | 

४- लगभग ५ ग्राम सौंफ,१० ग्राम तेजपात और दस ग्राम अजवायन को एक लीटर पानी में उबालें | जब १०० ग्राम शेष रह जाए तब इसे ठंडा करके पी लें | इससे ठण्ड के कारण उत्पन्न हुए कमर दर्द में राहत मिलती है | 

५- अरण्ड के पत्ते पर एक तरफ सरसों का तेल लगाकर तवे पर हल्का सा सेंक लें | फिर इसे तेल की तरफ से कमर पर बाँध लें | यह प्रयोग रात्रि में सोते समय करना चाहिए | सुबह तक कमर दर्द में बहुत आराम मिलता है | 

६- आधा लीटर सरसों के तेल में १२५ गर्म लहसुन की पोथियों को कूटकर डालें | फिर उसे लहसुन के जलने तक गर्म करें और ठंडा होने पर छानकर शीशी में भर लें| इस तेल की मालिश से कमर दर्द मिट जाता है |