जायफल -
जायफल का उल्लेख आयुर्वेदीय तथा निघण्टुओं में प्राचीनकाल से प्राप्त होता है | जायफल और जावित्री का प्रयोग मसाले के रूप में होता है | जायफल के तेल का उपयोग साबुन बनाने तथा सुगन्धित द्रव्य के रूप में किया जाता है | जायफल को चारों ओर से घेरे हुए रक्तवर्ण का कठिन आवरणयुक्त मांसल कवच होता है जिसे 'जावित्री' कहते हैं | यह सूखने पर अलग हो जाता है | इस जावित्री के अंदर जायफल होता है,जो अंडाकार,गोल तथा १ इंच व्यास का बाहर से धूसर वर्ण का सिकुड़ा हुआ दिखाई देता है | जायफल की तासीर गर्म होती है अतः गर्म प्रकृति वाले लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए |
विभिन्न रोगों में जायफल से उपचार -
१- जायफल को पानी में घिसकर मस्तक पर लगाने से सर का दर्द ठीक होता है |
२- जायफल को पीसकर कान के पीछे लेप करने से कान की सूजन में आराम मिलता है |
३- जायफल के तेल में भिगोई हुई रुई के फाहे को दांतों में रखकर दबाने से दांत के दर्द में लाभ होता है |
४- ५०० मिलीग्राम जायफल चूर्ण में मधु मिलकर सेवन करने से खांसी,सांस फूलना ,भूख न लगना,क्षय रोग एवं सर्दी से होने वाले जुकाम में लाभ होता है |
५- जायफल तथा सौंठ बराबर मात्रा में लेकर जल में घिसकर सेवन करने से शीघ्र ही दस्त बंद हो जाते हैं |
६- जायफल को पानी में घिसकर पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है |
७- एक से दो बूँद जायफल तेल को बताशे में डालकर खिलाने से पेट दर्द में लाभ होता है |
८- जायफल तथा जावित्री के बारीक चूर्ण को जल में घोलकर लेप करने से झाइयाँ दूर होती हैं |
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.