वात-पित्त-कफ के लक्षण और रोग :-
वात :-- वात के बिगड़ने से मुख्यतः ८० विमारियां होती है जैसे हड्डियों और मांसपेशियों में जकड़न, याद दास्त की कमी ,फटी एड़िया, सूखी त्वचा, किसी भी तरह का दर्द, लकवा, भ्रम, विषाद, कान व आँख के रोग , मुख सूखना, कब्ज , आदि ।
लक्षण :-
मुंह में कड़वाहट , फटी त्वचा , नाखुनो का खुरदरा होना , ठण्ड बर्दास्त ना होना , कार्य जल्दी करने की प्रविर्ती , रंग काला , अनियमित पाचन , नीद कम आना , खट्टा व मीठे चीज के खाने की इच्छा करना , मैले नेत्र रूखे बाल ।
* नाड़ी की गति तेज व अनियमित , टेढ़ी-मेढ़ी (सर्पाकार ) होती है ।
इलाज :- तेल की मालिश व चुना
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पित्त :-- पित्त से लगभग ४० विमारियां होती है जैसे - शरीर में जलन , खट्टी डकार , दुर्गन्धयुक्तअधिक पसीना , लाल चकत्ते निकलना , पीलिया , मुँह का तीखापन , गल्पाक , गुदा में जलन , आँखों में जलन , मुंख की दुर्गन्ध, मुंह के छाले आदि ।
लक्षण :- गुस्सा आना , भूख-प्यास ज्यादा लगना, गर्मी सहन ना होना , बार-बार पेशाब जाना ,पीली त्वचा, बाल जल्द सफ़ेद होना , मूत्र में जलन , धूप-आग बुरी लगती है ।
इलाज :- देशी गाय का घी , त्रिफला ।
* नाड़ी की गति कूदती ( मेढक या कौवे चाल वाली ) ,उत्तेजित व भारी होती है ।
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कफ :-- कफ से लगभग २० रोग होते है जैसे - आलस्य , गल्कंड , विना खाए पेट भारी होना , बलासक, शरीर पर चकत्ते, ह्रदयोप्लेप ,मुंह का फीकापन आदि ।
लक्षण :-मोटापा , आलस्य, सब काम आराम से करते है , गुस्सा ना आना , किसी चीज को देर से समझना , मुंह से बलगम आना , भूख- प्यास कम लगना , चिकने नाख़ून व त्वचा , मधुरभाषी ।
* नाड़ी :-- मंद-मंद ( कबूतर या मोर चाल युक्त ), कमजोर व कोमल नाड़ी ।
इलाज :- गुड और शहद ।
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सभी रोगों की शुरुआत मन्दाग्नि कम होने पर होती है ।
किसी औषधि से अच्छा उपवास है
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