Saturday, 3 October 2015

डेंगू ज्वर से बचने के उपाय











डेंगू ज्वर से बचने के उपाय :

डेंगू ज्वर आजकल एक विकराल समस्या के रूप में उभर रहा है । सम्पूर्ण भारत देश में इसका आयुर्वेदिक उपचार उपलब्ध है तथा वह भी इतना सरल और सस्ता कि उसे कोई भी अपना सकता है l

यह एक विषाणु जनित रोग है । इस रोग में तेज बुखार, जोड़ों में दर्द तथा माथे में दर्द होता है । कभी-कभी रोगी के शरीर में आन्तरिक रक्तस्त्राव भी होता है ।

यह चार प्रकार के विषाणुओं के कारण होता है तथा इस रोग का वाहक एडिस मच्छर की दो प्रजातियां हैं । साधारणतः गर्मी के मौसम में यह रोग महामारी का रुप ले लेता है, जब मच्छरों की जनसंख्या अपने चरम सीमा पर होती है ।

यह संक्रमण सीधे व्यक्तियों से व्यक्तियों में प्रसारित नहीं होता है तथा यह भी आवश्यक नहीं कि मच्छरों द्वारा काटे गये सभी व्यक्तियों को यह रोग हो ।

डेंगु एशिया, अफ्रीका, दक्षिण तथा मध्य अमेरिका के कई उष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में होता है ।

डेंगु के चारो विषाणुओं में से किसी भी एक से संक्रमित व्यक्ति में बाकी तीनों विषाणुओं के प्रति प्रतिरोध क्षमता विकसित हो जाती है । पूरे जीवन में यह रोग दोबारा किसी को भी नहीं होता है ।

यह बुखार एक आम संक्रामक रोग है जिसके मुख्य लक्षण हैं :-

तीव्र बुखार होना, अत्यधिक शरीर दर्द होना तथा सिर दर्द होना ।
यह एक ऐसी बीमारी है जिसे महामारी के रूप में देखा जाता है । वयस्कों के मुकाबले, बच्चों में इस बीमारी की तीव्रता अधिक होती है । यह बीमारी यूरोप महाद्वीप को छोड़कर पूरे विश्व में होती है तथा काफी लोगों को प्रभावित करती है । एक अनुमान है कि प्रतिवर्ष पूरे विश्व में लगभग 2 करोड़ लोगों को डेंगू बुखार होता है ।

डेंगू होने के कारण :

यह "डेंगू" वायरस द्वारा होता है जिसके चार विभिन्न प्रकार हैं । टाइप 1,2,3,4 । आम भाषा में इस बीमारी को हड्डी तोड़ "बुखार" कहा जाता है क्योंकि इसके कारण शरीर व जोड़ों में बहुत दर्द होता है ।

डेंगू फैलता कैसे है ? :-

मलेरिया की तरह डेंगू बुखार भी मच्छरों के काटने से फैलता है । इन मच्छरों को 'एडीज मच्छर' कहते हैं जो काफी ढीठ व और दुस्साहसी मच्छर हैं और दिन में भी काटते हैं ।

डेंगू बुखार से पीड़ित रोगी के रक्त में डेंगू वायरस काफी मात्रा में होता है । जब कोई एडीज मच्छर डेंगू के किसी रोगी को काटने के बाद किसी अन्य स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह डेंगू वायरस को उस व्यक्ति के शरीर में पहुँचा देता है ।

संक्रामक काल जिस दिन डेंगू वायरस से संक्रमित कोई मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो उसके लगभग 3-5 दिनों बाद ऐसे व्यक्ति में डेंगू बुखार के लक्षण प्रकट हो सकते हैं । यह संक्रामक काल 3-10 दिनों तक भी हो सकता है ।

डेंगू बुखार के लक्षण इस बात पर निर्भर करेंगे कि डेंगू बुखार किस प्रकार का है ।

डेंगू बुखार के तीन प्रकार :-
१. क्लासिकल अर्थात साधारण डेंगू बुखार
२. डेंगू हॅमरेजिक बुखार (डीएचएफ)
३. डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस)

क्लासिकल अर्थात साधारण बुखार :
यह एक स्वयं ठीक होने वाली बीमारी है तथा इससे मृत्यु नहीं होती है लेकिन यदि (डीएचएफ) तथा (डीएसएस) का तुरन्त उपचार शुरू नहीं किया जाता है तो वे जानलेवा सिद्ध हो सकते हैं । इसलिए यह पहचानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बीमारी का स्तर कैसा है ।

विशेष लक्षण :
१. ठंड के साथ अचानक तीव्र ज्वर होना ।
२. सिर, मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द होना ।
३. आँखों के पीछे दर्द होना ।
४. अत्यधिक कमजोरी लगना ।
५. अरुचि होना तथा जी मिचलाना ।
६. उल्टियाँ लगना ।
७. मुँह का स्वाद खराब होना ।
८. गले में हल्का सा दर्द होना ।
९. त्वचा का शुष्क हो जाना ।
१०. रोगी स्वयं को अत्यन्त दुःखी व बीमार महसूस करता है ।
११. शरीर पर लाल ददोरे (रैश) का होना शरीर पर लाल-गुलाबी ददोरे निकल सकते हैं । चेहरे, गर्दन तथा छाती पर विसरित दानों की तरह के ददोरे हो सकते हैं । बाद में ये ददोरे और भी स्पष्ट हो जाते हैं ।
१२. रक्त में प्लेटलेटस की मात्रा का तेज़ी से कम होना इत्यादि डेंगू के कुछ लक्षण हैं । जिनका यदि समय रहते इलाज न किया जाए तो रोगी की मृत्यु भी सकती है l

लाक्षणिक उपचार :

यदि रोगी को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका उपचार व देखभाल घर पर भी की जा सकती है । चूँकि यह स्वयं ठीक होने वाला रोग है इसलिए केवल लाक्षणिक उपचार ही चाहिए ।

पेरासिटामॉल की गोली या सिरप से ज्वर को कम करना चाहिए । रोगी को डिस्प्रीन या एस्प्रीन कभी नहीं देनी चाहिए । यदि ज्वर 102 डिग्री फा. से अधिक है तो ज्वर को कम करने के लिए हाइड्रोथेरेपी अर्थात जल चिकित्सा को ही अपनाना चाहिए ।

यदि आपके किसी भी जानकार को यह रोग हुआ हो और खून में प्लेटलेट की संख्या कम होती जा रही हो तो निम्न चीजों का रोगी को सेवन करायें :
१) अनार का जूस
२) गेंहूँ के ज्वारे का रस
३) पपीते के पत्तों का रस
४) गिलोय/अमृता/अमरबेल सत्व अथवा रस
५) घृत कुमारी ( एलोवेरा ) स्वरस
६) बकरी का दूध
७) किवी फल का अधिक सेवन
८) नारियल पानी का अधिक सेवन

विशेष :
रोगी को यदि उल्टियाँ हों तो सेब के रस में नीम्बू मिलाकर सेवन करायें । अनार जूस तथा गेंहूँ के ज्वारे का रस नया खून बनाने तथा रोगी की रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करने के लिए है ।

अनार जूस आसानी से उपलब्ध है । यदि गेंहूँ के ज्वारे का रस ना मिले तो रोगी को सेब का रस भी दिया जा सकता है । पपीते के पत्तों का रस सबसे महत्वपूर्ण है । पपीते का पेड़ आसानी से मिल जाता है उसकी ताज़ी पत्तियों का रस निकाल कर मरीज़ को दिन में २ से ३ बार आधे से एक कप की मात्रा में दें । एक दिन की खुराक के बाद ही प्लेटलेट की संख्या बढ़ने लगती है ।

गिलोय की बेल का सत्व मरीज़ को दिन में २-३ बार सेवन करायें । इससे खून में प्लेटलेट की संख्या बढती है । रोग से लड़ने की शक्ति बढती है तथा कई रोगों का नाश होता है । यदि गिलोय की बेल आपको ना मिले तो किसी भी नजदीकी पतंजलि आरोग्य केंद्र में जाकर "गिलोय घनवटी" ले आयें जिसकी एक-एक गोली रोगी को दिन में 3 बार अवशय दें ।
यदि बुखार १ दिन से ज्यादा रहे तो खून की जाँच अवश्य करवा लें ।
यदि रोगी बार- बार उलटी करे तो सेब के रस में थोडा सा नीम्बू रस मिला कर रोगी को दें । इससे उल्टियाँ शीघ्र बंद हो जायेंगी ।

यदि रोगी को अंग्रेजी दवाइयाँ दी जा रही है तब भी यह चीज़ें रोगी की बिना किसी डर के दी जा सकती हैं ।

डेंगू जितना जल्दी पकड़ में आये, उतना जल्दी उपचार आसान हो जाता है और रोग जल्दी ख़त्म होता है ।

रोगी के खान-पान का भी विशेष ध्यान रखें, क्योंकि बिना खान-पान में परहेज़ रखे कोई भी दवाई असर नहीं करती ।

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