Thursday, 1 October 2015

साईटिका

















साईटिका में होने वाला दर्द, साईटिका नर्व के कारण होता है। यह दर्द सामान्यत: पैर के निचले हिस्से की तरफ फैलता है। ऐसा दर्द स्याटिक नर्व में किसी प्रकार के दबाव, सूजन या क्षति के कारण उत्पन्न होता है। इसमें चलने-उठने-बैठने तक में बहुत तकलीफ होती है। यह दर्द अकसर लोगों में 30 से 50 वर्ष की उम्र में होता है। इसकी चिकित्सा सर्जरी या वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति से हो सकती है। 

साईटिका नर्व (नाड़ी) शरीर की सबसे लंबी नर्व होती है। यह नर्व कमर की हड्डी से गुजरकर जांघ के पिछले भाग से होती हुई पैरोँ के पिछले हिस्से मेँ जाती है। जब दर्द इसके रास्ते से होकर गुजरता है, तब ही यह साईटिका का दर्द कहलाता है।

लक्षण :- 
कमर के निचले हिस्से मेँ दर्द के साथ जाँघ व टांग के पिछले हिस्से मेँ दर्द।
पैरोँ मेँ सुन्नपन के साथ मांसपेशियोँ मेँ कमजोरी का अनुभव।
पंजोँ मेँ सुन्नपन व झनझनाहट।
पैदल चलने में परेशानी।

उपचार और बचाव :- 

1. आलू का रस 300 ग्राम नित्य २ माह तक पीने से साईटिका रोग नियंत्रित होता है। इस उपचार का प्रभाव बढाने के लिये आलू के रस मे गाजर का रस भी मिश्रित करना चाहिये।

2. लहसुन की खीर इस रोग के निवारण में महत्वपूर्ण है। 100 ग्राम दूध में 4-5 लहसुन की कली चाकू से बारीक काटकर डालें। इसे उबालकर ठंडी करके पीलें। यह विधान 2-3 माह तक जारी रखने से साईटिका रोग को उखाड फ़ैंकने में भरपूर मदद मिलती है। लहसुन में एन्टी ओक्सीडेन्ट तत्व होते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखने हेतु मददगार होते है । हरे पत्तेदार सब्जियों का भरपूर उपयोग करना चाहिये। कच्चे लहसुन का उपयोग साईटिका रोग में अत्यंत गुणकारी है। सुबह शाम 2-3 लहसुन की कली पानी के साथ निगलने से भी फायदा होता है। हरी मटर, पालक, कलौंजी, केला, सूखे मेवे ज्यादा इस्तेमाल करें।

3. साईटिका रोग को ठीक करने में नींबू का अपना महत्व है। रोजाना नींबू के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर पीने से आशातीत लाभ होता है।

4. सरसों के तेल में लहसुन पकालें। दर्द की जगह इस तेल की मालिश करने से तुरंत आराम लग जाता है।

5. लौह भस्म 20 ग्राम+विष्तिंदुक वटी 10 ग्राम+रस सिंदूर 20 ग्राम+त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम इन सबको अदरक के रस के साथ घोंटकर 250 गोलियां बनालें। दो-दो गोली पानी के साथ दिन में तीन बार लेते रहने से साईटिका रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।

प्रतिदिन सामान्य व्यायाम करेँ। वजन नियंत्रण मेँ रखेँ। पौष्टिक आहार ग्रहण करेँ। रीढ़ की हड्डी को चलने-फिरने और उठते-बैठते समय सीधा रखेँ। भारी वजन न उठाएं।

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