Saturday, 10 October 2015

किडनी बेकार, जिंदगी नहीं
















किडनी बेकार, जिंदगी नहीं

बदलते लाइफस्टाइल से दूसरी बीमारियों के साथ-साथ किडनी खराब होने के मामले भी बढ़ रहे हैं। एक बार किडनी की बीमारी हो गई तो ज्यादातर लोग जिंदगी से हताश हो जाते हैं, जबकि सच यह है कि अगर सही से इलाज कराया जाए और पूरी सावधानियां बरती जाएं तो किडनी खराब होने के बाद भी मरीज लंबी ठीक-ठाक जिंदगी जी सकता है। इस बीमारी के बारे में एक्सपर्ट्स से बात करके पूरी जानकारी दे रहे हैं अनूप भटनागर:
एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. दीपांकर भौमिक, अडिशनल प्रफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ नेफ्रॉलजी, एम्स
डॉ. एस. सी. तिवारी, डायरेक्टर, फोर्टिस इंस्टिट्यूट ऑफ रीनल साइंसेज
डॉ. शबाना आजमी, हेड, होम्योकेयर
रामनिवास पाराशर, चीफ एडवाइजर, वेदांता आयुर्वेद
अनीता लांबा, डायटीशियन
मोहन गुप्ता, एक्सपर्ट, नैचरोपैथी

10 आम आदतें, जो किडनी खराब करती हैं:

1. पेशाब आने पर करने न जाना
2. रोज 7-8 गिलास से कम पानी पीना
3. बहुत ज्यादा नमक खाना
4. हाई बीपी के इलाज में लापरवाही बरतना
5. शुगर के इलाज में कोताही करना
6. बहुत ज्यादा मीट खाना
7. ज्यादा मात्रा में पेनकिलर लेना
8. बहुत ज्यादा शराब पीना
9. पर्याप्त आराम न करना
10. सॉफ्ट ड्रिंक्स और सोडा ज्यादा लेना

नोट: किसी को भी दवाओं को लेकर एक्सपेरिमेंट नहीं करना चाहिए। बहुत-सी दवाएं, खासकर आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं में लेड और पोटैशियम ज्यादा मात्रा में होता है, जो किडनी के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होता है।

किडनी की बीमारी से बचने के उपाय - रोज 8-10 गिलास पानी पीएं। 
- फल और कच्ची सब्जियां ज्यादा खाएं। 
- अंगूर खाएं क्योंकि ये किडनी से फालतू यूरिक एसिड निकालते हैं। - मैग्नीशियम किडनी को सही काम करने में मदद करता है, इसलिए ज्यादा मैग्नीशियम वाली चीजें जैसे कि गहरे रंग की सब्जियां खाएं। 
- खाने में नमक, सोडियम और प्रोटीन की मात्रा घटा दें। 
- 35 साल के बाद साल में कम-से-कम एक बार ब्लड प्रेशर और शुगर की जांच जरूर कराएं। 
- ब्लड प्रेशर या डायबीटीज के लक्षण मिलने पर हर छह महीने में पेशाब और खून की जांच कराएं। 
- न्यूट्रिशन से भरपूर खाना, रेग्युलर एक्सरसाइज और वजन पर कंट्रोल रखने से भी किडनी की बीमारी की आशंका को काफी कम किया जा सकता है।
किडनी के मरीज खाने में रखें ख्याल किसी शख्स की किडनी कितना फीसदी काम कर रही है, उसी के हिसाब से उसे खाना दिया जाए तो किडनी की आगे और खराब होने से रोका जा सकता है :

1. प्रोटीन : 1 ग्राम प्रोटीन/किलो मरीज के वजन के हिसाब से लिया जा सकता है। नॉनवेज खानेवाले 1 अंडा, 30 ग्राम मछली, 30 ग्राम चिकन और वेज लोग 30 ग्राम पनीर, 1 कप दूध, 1/2 कप दही, 30 ग्राम दाल और 30 ग्राम टोफू रोजाना ले सकते हैं।

2. कैलरी : दिन भर में 7-10 सर्विंग कार्बोहाइड्रेट्स की ले सकते हैं। 1 सर्विंग बराबर होती है - 1 स्लाइस ब्रेड, 1/2 कप चावल या 1/2 कप पास्ता।

3. विटामिन : दिन भर में 2 फल और 1 कप सब्जी लें।

4. सोडियम : एक दिन में 1/4 छोटे चम्मच से ज्यादा नमक न लें। अगर खाने में नमक कम लगे तो नीबू, इलाइची, तुलसी आदि का इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने के लिए करें। पैकेटबंद चीजें जैसे कि सॉस, आचार, चीज़, चिप्स, नमकीन आदि न लें।

5. फॉसफोरस : दूध, दूध से बनी चीजें, मछली, अंडा, मीट, बीन्स, नट्स आदि फॉसफोरस से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें सीमित मात्रा में ही लें। डॉक्टर फॉसफोरस बाइंडर्स देते हैं, जिन्हें लेना न भूलें।

6. कैल्शियम : दूध, दही, पनीर, टोफू, फल और सब्जियां उचित मात्रा में लें। ज्यादा कैल्शियम किडनी में पथरी का कारण बन सकता है।

7. पोटैशियम : फल, सब्जियां, दूध, दही, मछली, अंडा, मीट में पोटैशियम काफी होता है। इनकी ज्यादा मात्रा किडनी पर बुरा असर डालती है। इसके लिए केला, संतरा, पपीता, अनार, किशमिश, भिंडी, पालक, टमाटर, मटर न लें। सेब, अंगूर, अनन्नास, तरबूज़, गोभी ,खीरा , मूली, गाजर ले सकते हैं।

8. फैट : खाना बनाने के लिए वेजिटबल या ऑलिव ऑयस का ही इस्तेमाल करें। बटर, घी और तली -भुनी चीजें न लें। फुल क्रीम दूध की जगह स्किम्ड दूध ही लें।

9. तरल चीजें : शुरू में जब किडनी थोड़ी ही खराब होती है तब सामान्य मात्रा में तरल चीजें ली जा सकती हैं, पर जब किडनी काम करना कम कर दे तो तरल चीजों की मात्रा का ध्यान रखें। सोडा, जूस, शराब आदि न लें। किडनी की हालत देखते हुए पूरे दिन में 5-7 कप तरल चीजें ले सकते हैं।

10. सही समय पर उचित मात्रा में जितना खाएं, पौष्टिक खाएं।
खाने में इनसे करें परहेज - फलों का रस, कोल्ड ड्रिंक्स, चाय-कॉफी, नीबू पानी, नारियल पानी, शर्बत आदि। - सोडा, केक और पेस्ट्री जैसे बेकरी प्रॉडक्ट्स और खट्ट‌ी चीजें। - केला, आम, नीबू, मौसमी, संतरा, आडू, खुमानी आदि। - मूंगफली, बादाम, खजूर, किशमिश और काजू जैसे सूखे मेवे। - चौड़ी सेम, कमलककड़ी, मशरूम, अंकुरित मूंग आदि। - अचार, पापड़, चटनी, केचप, सत्तू, अंकुरित मूंग और चना। - मार्केट के पनीर के सेवन से बचें। बाजार में मिलने वाले पनीर में नींबू, सिरका या टाटरी का इस्तेमाल होता है। इसमें मिलावट की भी गुंजाइश रहती है।

कैसे तैयार करें खाना- - वेजिटेबल ऑयल और घी आदि बदल-बदल कर इस्तेमाल करें। - घर पर ही नीबू के बजाय दही से डबल टोंड दूध फाड़कर पनीर बनाएं। - खाना पकाने से पहले दाल को कम-से-कम दो घंटे और सब्जियों को एक घंटे तक गुनगुने पानी में रखें। इससे उनमें पेस्टिसाइड्स का असर कम किया जा सकता है। -महीने में एकाध बार लीचिंग प्रक्रिया अपनाकर घर में छोले और राजमा भी खा सकते हैं, पर इसकी तरी के सेवन से बचें। -नॉनवेज खानेवाले रेड मीट का सेवन नहीं करें। चिकन और मछली भी एक सीमित मात्रा में ही खाएं। -रोजाना कम-से-कम दो अंडों का सफेद हिस्सा खाने से जरूरी मात्रा में प्रोटीन मिलता है।

शुरुआती लक्षण - पैरों और आंखों के नीचे सूजन - चलने पर जल्दी थकान और सांस फूलना - रात में बार-बार पेशाब के लिए उठना - भूख न लगना और हाजमा ठीक न रहना - खून की कमी से शरीर पीला पड़ना

नोट: इनमें से कुछ या सारे लक्षण दिख सकते हैं।

देर से पता लगती है बीमारी

पहली स्टेज: पेशाब में कुछ गड़बड़ी पता चलती है लेकिन क्रिएटनिन और ईजीएफआर (ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट) सामान्य होता है। ईजीएफआर से पता चलता है कि किडनी कितना फिल्टर कर पा रही है।

दूसरी स्टेज: ईजीएफआर 90-60 के बीच में होता है लेकिन क्रिएटनिन सामान्य ही रहता है। इस स्टेज में भी पेशाब की जांच में प्रोटीन ज्यादा होने के संकेत मिलने लगते हैं। शुगर या हाई बीपी रहने लगता है।

तीसरी स्टेज: ईजीएफआर 60-30 के बीच में होने लगता है, वहीं क्रिएटनिन भी बढ़ने लगता है। इसी स्टेज में किडनी की बीमारी के लक्षण सामने आने लगते हैं। अनीमिया हो सकता है, ब्लड टेस्ट में यूरिया ज्यादा आ सकता है। शरीर में खुजली होती है। यहां मरीज को डॉक्टर से सलाह लेकर अपना लाइफस्टाइल सुधारना चाहिए।

चौथी स्टेज: ईजीएफआर 30-15 के बीच होता है और क्रिएटनिन भी 2-4 के बीच होने लगता है। यह वह स्टेज है, जब मरीज को अपनी डायट और लाइफस्टाइल में जबरदस्त सुधार लाना चाहिए नहीं तो डायैलसिस या ट्रांसप्लांट की स्टेज जल्दी आ सकती है। इसमें मरीज जल्दी थकने लगता है। शरीर में कहीं सूजन आ सकती है।

पांचवीं स्टेज : ईजीएफआर 15 से कम हो जाता है और क्रिएटनिन 4-5 या उससे ज्यादा हो जाता है। फिर मरीज के लिए डायैलसिस या ट्रांसप्लांट जरूरी हो जाता है।

नोट: शुरुआती स्टेज में किडनी की बीमारी को पकड़ना बहुत मुश्किल है क्योंकि दोनों किडनी के करीब 60 फीसदी खराब होने के बाद ही खून मे क्रिएटनिन बढ़ना शुरू होता है।

क्या है इलाज
इस बीमारी के इलाज को मेडिकल भाषा में रीनल रिप्लेसमेंट थेरपी (RRT) कहते हैं। किडनी खराब होने पर फाइनल इलाज तो ट्रांसप्लांट ही है, लेकिन इसके लिए किडनी डोनर मिलना मुश्किल है, इसलिए इसका टेंपररी हल डायैलसिस है। यह लगातार चलनेवाले प्रोसेस है और काफी महंगा है।

क्या है डायैलसिस 
खून को साफ करने और इसमें बढ़ रहे जहरीले पदार्थों को मशीन के जरिए बाहर निकालना ही डायैलसिस है। 

डायैलसिस दो तरह की होती है:

1. हीमोडायैलसिस : सिर्फ अस्पतालों में ही होती है। तय मानकों के तहत अस्पताल में किसी मरीज की हीमोडायैलसिस में चार घंटे लगते हैं और हफ्ते में कम-से-कम दो बार इसे कराना चाहिए। इसे बढ़ाने या घटाने का फैसला डॉक्टर ही कर सकते हैं।

2. पेरीटोनियल : पानी से डायैलसिस घर पर की जा सकती है। इसके लिए पेट में सर्जरी करके वॉल्व जैसी चीज डाली जाती है। इसका पानी भी अलग से आता है। डॉक्टर घर में किसी को करना सिखा देते हैं। यह थोड़ी कम खर्चीली है लेकिन इसमें सफाई का बहुत ज्यादा ध्यान रखना होता है, वरना इन्फेक्शन हो सकता है।

कैसे होती है हीमोडायैलसिस इमरजेंसी में मरीज की गर्दन के निचले हिस्से में कैथेटर डालकर या फिर जांघ की ब्लड वेसल्स में फेमोरल प्रक्रिया से डायैलसिस की जाती है। 
रेग्युलर डायैलसिस के लिए मरीज की बाजू में सर्जरी करके 'एवी फिस्टुला' बनाया जाता है ताकि बगैर किसी परेशानी के डायैलसिस की जा सके। एवी फिस्टुला में आर्टरी को नाड़ी से जोड़ा जाता है। इस तरह से बनाए गए फिस्टुला को काम करने लायक होने में 8 हफ्ते लगते हैं। 
फिस्टुला डायैलसिस कराने वाले मरीजों की लाइफलाइन है, इसलिए इसकी हिफाजत बहुत जरूरी है। ध्यान रखें कि जिस हाथ में फिस्टुला बना है, उससे न तो बीपी नापा जाए और न ही जांच के लिए खून निकाला जाए। इस हाथ में इंजेक्शन भी नहीं लगवाना चाहिए। यह हाथ न तो दबना चाहिए और न ही इससे भारी सामान उठाना चाहिए। 
अगर एवी फिस्टुला सही समय पर बन जाए तो मरीज के लंबे समय तक जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।

कितना हो फर्क 
किडनी की समस्या से जूझ रहे मरीज की हफ्ते में 8 से 12 घंटे डायैलसिस होनी चाहिए। चूंकि आमतौर पर एक बार में चार घंटे की डायैलसिस होती है, इसलिए मरीज की सेहत को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर उसे हफ्ते में दो बार या हर तीसरे/ दूसरे दिन डालसिसिस कराने की सलाह देते हैं। मरीज को अपनी मर्जी से दो डायैलसिस के बीच का फर्क नहीं बढ़ाना चाहिए 
क्योंकि ऐसा करने पर कभी-कभी बड़ी परेशानी पैदा हो जाती है और मरीज आईसीयू तक में पहुंच जाता है।

खर्च 
एक डायैलसिस पर 2000 से 3000 रुपये खर्च आता है। महीने में 8-10 डायैलसिस कराने पर करीब 25 से 30 हजार रुपये खर्च होते हैं। सरकारी अस्पतालों में डायैलसिस मशीनें और डायैलसिस करने वाले ट्रेंड कर्मी जरूरी संख्या में नहीं हैं। जो मरीज वहां भर्ती हैं, सिर्फ उन्हीं को डायैलसिस की सुविधा मिलती है। डायैलसिस मेडिक्लेम में कवर है।

ध्यान दें: दिल्ली सरकार छह अस्पतालों में 120 डायैलसिस मशीनें लगा रही है। इनमें गरीबी की रेखा से नीचे जिंदगी गुजारनेवालों की मुफ्त डायैलसिस होगी, जबकि आम जनता को इसके लिए 1073 रुपये देने होंगे।
ये अस्पताल हैं: 1. राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी स्पिटल, ताहिलपुर 2. डॉ. हेड़गेवार आरोग्य संस्थान, कड़कड़डूमा 3. जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, जनकपुरी 4. भगवान महावीर हॉस्पिटल, पीतमपुरा 5. पं. मदन मोहन मालवीय हॉस्पिटल, मालवीय नगर 6. लोकनायक जयप्रकाश हॉस्पिटल, दिल्ली गेट

खून की नियमित जांच जरूरी 
- डायैलसिस कराने वाले मरीजों को महीने में कम-से-कम एक बार खून की जांच (KFT) करानी चाहिए। इस जांच से मरीज के शरीर में हीमोग्लोबीन, ब्लड यूरिया, क्रिएटनिन, पोटैशियम, फॉस्फोरस और सोडियम की मात्रा का पता लगता है।

- हालात के अनुसार समय-समय पर डॉक्टर मरीज के खून की जांच के जरिए शरीर में पीटीएच, आयरन और बी-12 आदि की भी जांच करते हैं। - हर डायैलसिस यूनिट अपने मरीजों से हर छह महीने पर एचआईवी, हैपेटाइटिस बी और सी के लिए खून की जांच कराने का अनुरोध करती है।
- अगर किसी मरीज की रिपोर्ट से उसके एचआईवी, हैपेटाइटिस बी या सी से प्रभावित होने का संकेत मिलता है तो उसकी डायैलसिस में खास सावधानी बरती जाती है। ऐसे मरीज की डायैलसिस में हर बार नए डायैलजर का इस्तेमाल होता है ताकि कोई दूसरा मरीज इस इन्फेक्शन की चपेट में न आ सके।

बरतें ये सावधानियां 
- डायैलसिस कराने वालों को लिक्विड चीजें कम लेनी चाहिए। किडनी खराब होने पर खून की सफाई के प्रॉसेस में रुकावट आती है और आमतौर पर मरीज को पेशाब भी कम आने लगता है, इसलिए उन्हें सीमित मात्रा में लिक्विड चीजें लेनी चाहिए।
- लिक्विड चीजों में पानी के अलावा दूध, दही, चाय, कॉफी, आइसक्रीम, बर्फ और दाल-सब्जियों की तरी भी शामिल हैं। यही नहीं, रोटी, चावल और ब्रेड आदि में भी पानी होता है।
- लिक्विड पर कंट्रोल रखने से दो डायैलसिस के बीच में मरीज का वजन (जिसे वेट गेन या वॉटर रिटेंशन भी कहते हैं) अधिक नहीं बढ़ता। दो डायैलसिस के बीच में ज्यादा वजन बढ़ने से डायैलसिस का प्रॉसेस पूरा होने पर कई बार कमजोरी या चक्कर आने की शिकायत भी होने लगती है।
- किडनी के मरीज को डायटीशियन से भी जरूर मिलना चाहिए क्योंकि इस बीमारी में खानपान पर कंट्रोल बहुत जरूरी है।
- किडनी के जो मरीज डायैलसिस पर नहीं हैं, उन्हें कम प्रोटीन और डायैलसिस कराने वाले मरीजों को ज्यादा प्रोटीन की जरूरत होती है। लेकिन खानपान की पूरी जानकारी डायट एक्सपर्ट ही दे सकते हैं।
- डायैलसिस कराने वाले शख्स को कोई भी दवा लेने से पहले अपने किडनी एक्सपर्ट (नेफ्रॉलजिस्ट) से सलाह जरूरी है। नोट: किडनी की बीमारी सुनकर जिंदगी खत्म होने की बात सोचना गलत है क्योंकि अगर खानपान और रुटीन में सावधानी बरती जाए तो डायैलसिस कराते हुए भी लंबी जिंदगी का आनंद लिया जा सकता है। मरीज को घर-परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों का पूरा साथ मिलना जरूरी है ताकि वह उलट परिस्थितियों का ज्यादा संयम के साथ सामना कर सके।
लिक्विड का सेवन ऐसे कम करें 

डायैलसिस कराने वाला शख्स नीचे लिखे तरीकों से लिक्विड का सेवन कम कर सकता है:
- गर्मियों में 500 एमएल की कोल्ड ड्रिंक की बोतल में पानी भरके उसे फ्रीजर में रख लें। यह बर्फ बन जाएगा और फिर इसका धीरे-धीरे सेवन करें।
- फ्रिज में बर्फ जमा लें और प्यास लगने पर एक टुकडा मुंह में रखकर घुमाएं और फिर उसे फेंक दें।
- गर्मियों में रुमाल भिगोकर गर्दन पर रखने से भी प्यास पर काबू पाया जा सकता है।
- घर में छोटा कप रखें और उसी में पानी लेकर पीएं।
- खाना खाते समय दाल और सब्जियों की तरी का सेवन कम-से-कम करने की कोशिश करें।

आयुर्वेद
बीमारी की वजह के आधार पर ही जरूरी दवा खाने की सलाह दी जाती है:
- चूंकि किडनी का काम शरीर में खून की सफाई करना और जहरीली चीजों को बाहर निकालना होता है। इलाज के दौरान मरीज के खानपान को सुधारने के साथ ही उसके बीपी और शुगर को कंट्रोल में रखने पर खास ध्यान दिया जाता है।
- वरुण, पुनर्नवा, अर्जुन, वसा, कातुकी, शतावरी, निशोध, कांचनार, बाला, नागरमोथा, भबमिआमलकी, सारिवा, अश्वगंधा और पंचरत्नमूल आदि दवाओं का इस्तेमाल किडनी के इलाज में किया जाता है।
- किडनी की बीमारी का लगातार इलाज जरूरी है और यह ताउम्र चलता है। किडनी की बीमारी का इलाज से ज्यादा मैनेजमेंट होता है।

होम्यॉपथी 
लक्षणों के आधार पर कॉलि-कार्ब 200, एपिस-मेल-30, एसिड बेंजोक, टेरीबिंथ,बर्बेरिस वल्गरीस, लेसीथिन, फेरम मेट और चाइना जैसी दवाएं दी जाती हैं। थकान और कमजोरी दूर करने के लिए अल्फाल्फा टॉनिक भी दिया जाता है।

नोट: होम्यॉपथी डायैलसिस बंद कराने में सक्षम नहीं है लेकिन यह ऐसे मरीजों की सहायक जरूर है। ऐलोपैथी दवाओं के साथ ही होम्योपैथी दवाओं के सेवन से मरीज ज्यादा सेहतमंद रह सकता है।

नेचरॉपथी 
- किडनी की क्षमता बढ़ाने के लिए नेचरोपैथी में मरीद को सलाद, फल आदि कुदरती चीजें लेने को कहा जाता है। इससे किडनी की सफाई शुरू होती है और उसे आराम भी मिलता है।
- किडनी की जगह पर सूती कपड़े की पट्टी को ताजे पानी में भिगोकर रोजाना आधे घंटे लगाते हैं। ऐसा करने से किडनी की तरफ के शरीर का तापमान कम होता है और उस ओर खून का दौरा बढ़ता है।
- इसी तरह किडनी की जगह पर गर्म और ठंडे पानी से सिकाई करते हैं। इसे भी रोजाना आधे घंटे के लिए कर सकते हैं। इससे किडनी में खून का दौरा बढ़ता है।
- धूप स्नान के जरिए सुबह-सुबह किडनी पर सूरज की सीधी किरणों से इलाज किया जाता है और किडनी की सफाई होती है।
- मरीज को एक टब में बिठाकर उसकी नाभि तक पानी रखा जाता है। यह क्रिया आधे घंटे तक की जाती है। कटिस्नान से भी किडनी की ओर खून का दौरा बढ़ता है।

योग
- रोजाना कम-से-कम 20 मिनट तक अनुलोम-विलोम करना चाहिए।
- गलत लाइफस्टाइल और बुरी आदतों को छोड़ दें तो किडनी के साथ-साथ दूसरी बीमारियों से भी बचने की संभावना काफी बढ़ जाती है।

किडनी ट्रांसप्लांट
किडनी खराब होने का परमानेंट इलाज ट्रांसप्लांट के जरिए ही मुमकिन है।
कहां होता है: सरकारी अस्पतालों में एम्स और आरएमएल के अलावा सर गंगाराम, मैक्स, अपोलो, फोर्टिस, रॉकलैंड और बी. एल. कपूर आदि प्राइवेट हॉस्पिटलों में भी ट्रांसप्लांट होता है।
कितना खर्च: किडनी किसी ब्रेन डेड शख्स की ली जाती है तो सरकारी अस्पताल में करीब 2 लाख रुपये तक वरना 7-8 लाख रुपये तक खर्च आता है। अगर किडनी देने वाले और लेनेवाले का ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता तो खर्च बहुत बढ़ जाता है।

क्या हैं नियम: ह्यूमन ऑर्गन ट्रांसप्लांट कानून में उन लोगों की जानकारी दी गई है, जो अंग दान कर सकते हैं। डोनेशन के प्रॉसेस के तहत एक समिति दानकर्ता से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार करती है। इस प्रॉसेस की वीडियोग्राफी भी की जाती है ताकि डोनर से संबंधित सारे फैक्ट्स रिकार्ड में रहें। आमतौर पर ब्लड रिलेशन वाले लोगों को अंगदान के लिए सबसे सही माना जाता है।

कैसे होता है: ट्रांसप्लांट के प्रोसेस के दौरान मरीज और डोनर के ब्लड ग्रुप से लेकर टिश्यू मैचिंग तक कई टेस्ट करके यह तय किया जाता है कि डोनर मरीज के लिए सही है या नहीं। ट्रांसप्लांट के बाद हालांकि डोनर कुछ ही दिनों में सामान्य जीवन जीने लगता है लेकिन मरीज को काफी सावधानी बरतनी होती है। मरीज को ट्रांसप्लांट के बाद दूसरे लोगों से अलग रखा जाता है ताकि उसे किसी तरह का इन्फेक्शन न हो। अस्पताल से घर पहुंचने पर भी कुछ महीने परिवार के सदस्यों से भी दूरी बनाकर रखने की सलाह दी जाती ह। इन्फेक्शन से बचने के लिए हमेशा मुंह पर पटटी लगा कर रखनी होती है। किसी के भी कॉन्टैक्ट में आने पर फौरन हाथ साफ करने होते हैं। किडनी एक्सपर्ट की देखरेख में हमेशा दवाएं खानी होती हैं और जांच भी करानी होती है।

मुनक्का यानी बड़ी दाख













मुनक्का यानी बड़ी दाख 

मुनक्का यानी बड़ी दाख को आयुर्वेद में एक औषधि माना गया है। आयुर्वेद में मुनक्का को गले संबंधी रोगों की सर्वश्रेष्ठ औषधि माना गया है।

मुनक्का के औषधीय उपयोग इस प्रकार हैं-

शाम को सोते समय लगभग 10 या 12 मुनक्का को धोकर पानी में भिगो दें। इसके बाद सुबह उठकर मुनक्का के बीजों को निकालकर इन मुनक्कों को अच्छी तरह से चबाकर खाने से शरीर में खून बढ़ता है। इसके अलावा मुनक्का खाने से खून साफ होता है और नाक से बहने वाला खून भी बंद हो जाता है। मुनक्का का सेवन 2 से 4 हफ्ते तक करना चाहिए।

250 ग्राम दूध में 10 मुनक्का उबालें फिर दूध में एक चम्मच घी व खांड मिलाकर सुबह पीएं। इससे वीर्य के विकार दूर होते हैं। इसके उपयोग से हृदय, आंतों और खून के विकार दूर हो जाते हैं। यह कब्जनाशक है।

जिन व्यक्तियों के गले में निरंतर खराश रहती है या नजला एलर्जी के कारण गले में तकलीफ बनी रहती है, उन्हें सुबह-शाम दोनों वक्त चार-पांच मुनक्का बीजों को खूब चबाकर खा ला लें, लेकिन ऊपर से पानी ना पिएं। दस दिनों तक निरंतर ऐसा करें।
जो बच्चे रात्रि में बिस्तर गीला करते हों, उन्हें दो मुनक्का बीज निकालकर रात को एक सप्ताह तक खिलाएं।

सर्दी-जुकाम होने पर सात मुनक्का रात्रि में सोने से पूर्व बीज निकालकर दूध में उबालकर लें। एक खुराक से ही राहत मिलेगी। यदि सर्दी-जुकाम पुराना हो गया हो तो सप्ताह भर तक लें।

आंखों की ज्योति होती है तेज—-
आंखों की ज्योति बढाने, नाखूनों की बीमारी होने पर, सफेद दाग, महिलाओं में गर्भाशय की समस्या में मुनक्का को दूध में उबालकर थोड़ा घी व मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।

जितना पच सके उतने मुनक्का रोज खाने से सातों धातुओं का पोषण होता है।

12 मुनक्का, 5 छुहारे, 6 फूलमखाने दूध में मिलाकर खीर बनाकर सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है।

जिनका ब्लडप्रेशर कम रहता है, उन्हें हमेशा अपने पास नमक वाले मुनक्का रखना चाहिए। यह ब्लडप्रेशर को सामान्य करने का सबसे आसान उपाय है।

बुखार में लाभकारी
दस मुनक्का एक अंजीर के साथ सुबह पानी में भिगोकर रख दें।रात में सोने से पहले मुनक्का और अंजीर को दूध के साथ उबालकर इसका सेवन करें। ऐसा तीन दिन करें। कितना भी पुराना बुखार हो, ठीक हो जाएगा।
रात में लगभग 10 या 12 मुनक्का को धोकर पानी में भिगो दें। इसके बाद सुबह उठकर मुनक्का के बीजों को निकालकर इन मुनक्का को अच्छी तरह से चबाकर खाने से शरीर में खून बढ़ता है।

कब्ज की समस्या में फायदा
प्रतिदिन सोने से एक घंटा पहले दूध में उबाली गई 11 मुनक्का खूब चबा-चबाकर खाएं और दूध को भी पी लें। इस प्रयोग से कब्ज की समस्या में तत्काल फायदा होता है।

सुबह की लार











सुबह की लार 

सुबह जब हम सो कर उठते है उस समय जो हमारे मुहं की लार होती है उसके अनेक फायदे है इसे बासी मुंह की लार भी कहते है । सुबह की लार का पूरा फायदा उठाने के लिए हमें बिना मुहं धोये ही उसका उपयोग करना पडेगा। 

सुबह की लार का निम्‍न बीमारियों को दूर करने के लिए उपयोग करते है:-

1 - चर्म रोग - किसी भी प्रकार का दाद हो , उस पर सुबह उठकर बिना मुहं धोये मुहं का लार लगाने से पुराने से पुराना दाद भी ठीक हो जाता है । इसके अलावा एक्जिमा, अन्‍य फोडे फुन्‍सी,मुहासे ठीक करने में भी सुबह की लार का उपयोग किया जाता है।

2 - घाव ठीक करने में :- शरीर में कही कट छिल गया हो, अथवा कोई घाव हो गया हो तो भी उसके लिए सुबह की लार बहुत फायदा करती है।

3- नेत्र रोग मे - आजकल बच्‍चों तक को चश्‍मा लगना आम बात है। इस चश्‍में को उतारने में भी सुबह की बिना मुहं धोये की लार यदि आखों में काजल की तरह लगाया जाये तो चश्‍में कुछ ही महीने में उतर सकता है। बच्‍चों के चश्‍में चार से छ:माह में ही उतर जाते है बडों काे थोडा लम्‍बा टाइम लगभग एक साल भी लग सकता है।

4- शरीर के दा्ग धब्‍ब्‍ाों में - श्‍ारीर में होने वाले फोडे-फुन्सियों या घाव के पश्‍चात जो दाग शेष रह जाते है उनकोे दूर करने के ि‍लए भी सुबह की लार बहुत काम आती है ।

इस प्रकार सुबह की अथवा बासी मुहं की लार से हम मुफत में कई बीमारियों का इलाज कर सकते है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि इस लार में वो सभी 18 तत्‍व पाये जाते है जो कि मिटटी में पाए जाते है

Friday, 9 October 2015

मोटापा












मोटापा

डिलिवरी के बाद बडे हुए पेट से परेसान है तो एक सिम्पल सा आजमाया नुक्सा यूज करे बहोत सारे फायदा उठा चुके आशा करता हु आपको भी पसन्द आयेगा......

2 लीटर पानी मतलब 8 गिलास में 
3 इंच लम्बी एक दालचीनी की लकड़ी
डाले और 2-3 लोग डालके 8 से 10 
मिनट उबाले 
सर्दियो में थोडा हल्का गर्म और गर्मियों में ठंडा करके ये पानी नॉर्मल पानी की जगह दिन भर ले 2 महीने लगातार .... 
आप स्वाद के लिए शहद भी मिला सकते है ये आपके बड़े हुये पेट को अंदर करेगा 2-3 हफ्ते में ही ये पेट को टोन करना शरू कर देगा ।

आँखों की रौशनी तेज करने के उपाय



















आँखों की रौशनी तेज करने के उपाय

ईश्वर की बनायी गयी इस दुनिया को दखने का माध्यम केवल हमारी ऑंखें ही है और इनको उम्र के पड़ाव के साथ देखभाल की भी नितांत आवयकता होती है क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ हमारी आँखों के चारो तरफ क मांसपेशियां ढीली पड़ने लगती है और हमारी आँखें कमजोर हो जाती है। आंखों की रौशनी हमारे आहार और जीवनशैली पर भी निर्भर करती है।
हम यहाँ पर आपको आँखों की देखभाल और उसकी रौशनी बढ़ाने के कुछ आसान से उपाय बता रहे है ।

* सुबह उठकर मुहँ में पानी भरकर आँखें खोलकर साफ पानी के छीटें आँखों में मारने चाहिए इससे आँखों की रौशनी बढ़ती है ।

* प्रातः खाली पेट आधा चम्मच ताजा मक्खन, आधा चम्मच पसी हुई मिश्री और 5 पिसी काली मिर्च मलाकर चाट लें, इसके बाद कच्चे नारीयल की गिरी के 2-3 टुकड़े खूब चबा-चबाकर खाये और ऊपर से थोड़ी सौंफ चबाकर खा लें फिर दो घंटे तक कुछ भी न खाये। यह क्रिया 2-3 माह तक जरूर करिये ।

* बालों पर रंग, हेयर डाई और केमीकल शैम्पू लगाने से परहेज करें ।

* रात को 1 चम्मच त्रिफला मिट्टी के बर्तन में भिगाकर सुबह छाने हुए पानी से आँखें धोयें। इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है और कोई बीमारी भी नहीं होती है।

* प्रातःकाल सूर्योदय से पहले नियमित रूप से हरी घास पर 15-20 मिनट तक नंगे पैर टहलना चाहए। घास पर ओस की नमी रहती है नंगे पैर इस पर टहलने से आँख को तनाव से राहत मिलती है।और रौशनी भी बढ़ती है ।

* पैरों के तलवे की सरसों के तेल से नियमित मालिश करनी चाहिए । नहाने से 10 मिनट पूर्व पैरों के अंगूठों को सरसों के तेल से तर करने से आँखों की रौशनी लम्बे समय तक कायम रहती है ।

* पालक, पत्ता गोभी, हरी सब्जियाँ और पीले फल खाएं। विटामिन ए, सी और ई से भरपूर कई पीले फल हमारी आंखों के लिए फायदेमंद हैं। इसके अतिरिक्त पपीता, संतरा, नींबू आदि के सेवन से दिन की रोशनी में हमारे देखने की क्षमता बढ़ती हैं।

* आँखों की रौशनी बढ़ाने के लिए प्रतिदिन 1-2 गाजर खूब चबा-चबाकर खाएँ ।गाजर का रस निकालकर भोजन के घंटे भर बाद पिएँ।

* नियमित रूप से अंगूर खाएं, अंगूर के सेवन से रात में देखने की क्षमता बढ़ती है।

* 2 अखरोट और 3 हरड की गुठली को जलाकर उनकी भस्म के साथ 4 काली मिर्च को पीसकर उसका अंजन करने से आँखों की रौशनी बढती हे।

* 10 ग्राम छोटी हरी इलाइची , 20 ग्राम सौंफ के मिश्रण को महीन पीस लें। एक चम्मच चूर्ण को दूध के साथ नियमित रूप से पीने से आंखों की ज्योति अवश्य ही बढ़ती है।

* अनार के 5 से 6 पत्ते को पीस कर दिन में 2 बार लेप करने से दुखती आँख में लाभ होता हे और रौशनी भी बढ़ती है ।

* 300 ग्राम सौंफ को अच्छे से साफ करके कांच के बर्तन में रख ले अब बदाम और गाजर के रस से सौंफ को तीन बार भगोएँ जब सुख जाए तो इसे रोज रात दूध के साथ लें इससे भी आँखों की रोशनी बढ़ती है ।

* सूखें आँवले को रात में पानी में अच्छी तरह धोकर भिगो दें फिर दिन में 3 बार इसे रुई से आँखों में डालें और आँवले का ज्यादा ज्यादा किसी ना किसी रूप में अपने खाने / पीने में अवश्य ही प्रयोग करें। 3 माह के अंदर ही चश्मा उतर जायेगा ।

* प्रतिदिन भोजन के साथ 50 से 100 ग्राम मात्रा में पत्तागोभी के पत्तों का सलाद बारीक कतर कर, इन पर पिसा हुआ सेंधा नमक और काली मिर्च डालकर खूब चबा-चबाकर खाएँ।

* आंखों की स्वस्थ्यता के लिए अच्छी नींद जरूरी है, नहीं तो आंखों के नीचे काला घेरा पड़ जाता है और रोशनी भी कम होती है।

* जब आँख भारी होने लगे नींद का समय हो जाए तब जागना उचित नहीं। सूर्योदय के बाद सोये रहने, दिन में सोने और रात में देर तक जागने से आँख पर बुरा प्रभाव पड़ता है और धीरे-धीरे आँखे रुखी और बेजान होने लगती है

* लगातार, बिस्तर पर लेट कर और यात्रा के दौरान पढ़ना नहीं चाहिए। पढ़ाई के समय आंखों को पर्याप्त विश्राम दें। अतिरिक्त सूर्य की और भी टकटकी लगाकर नहीं देखना चाहिए।

* आंखों की रोशनी तेज करने के लिए अपनी डाइट में प्याज और लहसुन को जरूर शामिल करें। इनमें सल्फर होता है जो आंखों के लिए ग्लूटाथाइन नामक एंटीऑक्सीडेंट तैयार करता है, जिससे नेत्रों की ज्योति बढ़ती है ।

* सोया व इसके उत्पाद में फैट्स बहुत कम व प्रोटीन बहुत अच्छी मात्रा में होता है। इसमें जरूरी फैटी एसिड, विटामिन ई व कई जरूरी तत्व होते हैं जो आंखों के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। * बालों पर रंग, हेयर डाई और केमीकल वाले शैम्पू नहीं लगाना चाहिए इसका भी बुरा असर हमारी आँखों पर पड़ता है ।

* लगातार टीवी देखने से आंखों की ज्योति घटती है क्योंकि टीवी से निकलने वाली घातक किरणे हमारी आँखों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचती है। कभी भी बहुत पास या बहुत दूर और लेटकर भी टीवी नहीं देखना चाहिए

सुबह खाली पेट पानी पीने के फायदे













सुबह खाली पेट पानी पीने के अनेको फायदे हैं। अगर आप अपनी बीमारियों को काबू में करना चाहते हैं तो रोज सुबह उठ कर ढेर सारा पानी पियें। खाली पेट पानी पीने से पेट की सारी गंदगी दूर हो जाती है
और खून शुद्ध होता है जिससे आपका शरीर बीमारियों से दूर रहता है।

हमारा शरीर 70% पानी से ही बना हुआ है इसलिये पानी हमारे शरीर को ठीक से चलाने के लिये कुछ हद तक जिम्मेदार भी है।

आपको सुबह उठते ही तुरंत २-३ गिलास पानी पीना चाहिये। 
पानी अगर हल्का गर्म हो तो बहुत अच्छा रहेगा, आप बिना कुल्ला किए
पानी पिए क्यो कि इससे मूंह में जो लार होती है वो सीधा आपके अंदर
जाएगी जो कि शरीर के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, 

आराम से बैठकर घूंट भर भर के पिए और पीने के 1 घंटे तक कुछ भी ना खाएं।
सुबह सबसे पहले पानी पीने से मासपेशियों और नई कोशिकाओं का निर्माण होता है।
पानी स्वास्थ्य के लिए लाभाकारी होता है और गर्म पानी स्वास्थ्य के लिए एक गुणकारी दवा के रूप में काम करता है। स्वास्थ्य से लेकर सौंदर्य तक को निखारने में गर्म पानी लाभदायक है।

हल्का गर्म पानी औषधीय गुणों की खान है। पानी को अगर थोड़ा गर्म
करके लें तो कब्ज को दूर करने में भी मदद मिलती है। यदि आपको मोटापे से पाना है छुटकारा तो आपको गर्म पानी का सेवन करना चाहिए।

इससे शरीर की सारी गंदगी बाहर निकल जाती है पित्त की बिमारियों को कम करने के लिए, अपच, खट्टी डकारें, पेट दर्द, कब्ज, गैस आदि बिमारियों को इस पद्धति से अच्छी तरह से ठीक किया जा सकता है ।

भोजन के समय पानी न पियें । यदि प्यास लगती हो या भोजन अटकता हो तो मठ्ठा / छाछ ले सकते हैं या उस मौसम के किसी भी फल का रस पी सकते है (डिब्बा बन्ध फलों का रस गलती से भी न पियें) । पानी नहीं पीना है क्योंकि जब हम भोजन करते है तो उस भोजन को पचाने के लिए हमारी
जठराग्नि में अग्नि प्रदीप्त होती है । उसी अग्नि से वह खाना पचता है । यदि हम पानी पीते है तो खाना पचाने के लिए पैदा हुई अग्नि मंद पड़ती है और खाना अच्छी तरह से नहीं पचता और वह विष बनता है । कई तरह की बीमारियां पैदा करता है । 

भोजन करने के एक घन्टा बाद ही पानी पिए वो भी घूंट घूंट करके ।

मधुमेह (sugar)















मधुमेह (sugar)

कितनी भी हाई शुगर हो, निचे लिखे 
योग के अनुसार, ताजी पत्तिया पीसकर, खली पेट, पानी के साथ ले, कम से कम आधा घण्टा और कुछ न खाये.....

योग इस प्रकार :-- 
बेल पत्र 6 पत्तिया,
6 नीम के पत्ते, 
6 तुलसी के पत्ते, 
6 बैगनबेलिया के पत्ते,
3 साबुत काली मिर्च 

इसके नियमत सेवन से शुगर  सामान्य हो जाती है फिर कभी मिठाई
खा भी सकते हे | परन्तु यह ओषधि बराबर लेते रहे और समय-समय पर 
पर शुगर चेक कराते रहे ।
आज बहोत से लोग ईस बिमारी से  परेसान है ये आजमाया नुक्सा है अतः आप लीगों से निवेदन हे की इसे ज्यादा से ज्यादा सेयर करे और बताये ताकि लोग इसका फायदा उठा सके

How To Lose Up To 1 Inch While You Sleep!

















































































































How To Lose Up To 1 Inch While You Sleep!

Let’s see what you need for this body wrap:

Lotion
Clear Plastic Wrap
Bandage Wrap

For lotion, use something that contains something from the ocean.
Here is the simple process explained step by step.

Feeling thinner already?
Give it a try and share the results with us. We would like to hear your experience with this.
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Source: supertastyrecipes

रोज़ सुबह पीयें काळे नमक वाला पानी














रोज़ सुबह पीयें काळे नमक वाला पानी ....

रोज सुबह काला नमक और पानी मिला कर पीना शुरु करें !
( सादे नमक का प्रयोग नहीं करना ) 

इस घोल को सोल वॉटर कहते हैं ....
काले नमक में 80 खनिज और जीवन के लिए वे सभी आवश्यक प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं जो जरुरी हैं !

जिससे आपकी ब्‍लड शुगर - ब्‍लड प्रेशर - ऊर्जा में सुधार - मोटापा और अन्‍य तरह की बीमारियां झट से ठीक हो जाएंगी !

~ नमक वाला पानी बनाने की विधि :- 
एक गिलास हल्‍के गरम पानी में एक तिहाई छोटा चम्‍मच काला नमक मिला गिलास को प्‍लास्‍टिक के ढक्‍कन से ढंक - गिलास को हिलाते हुए नमक मिलाइये और 24 घंटे के लिये छोड़ दें !

24 घंटे के बाद देखिये कि क्‍या काले नमक का टुकड़ा ( क्रिस्‍टल ) पानी में घुल चुका है - उसके बाद इसमें थोड़ा सा काला नमक और मिलाइये !
जब आपको लगे कि पानी में नमक अब नहीं घुल रहा है तो समझिये कि आपका घोल पीने के लिये तैयार हो गया है !

* पाचन दुरुस्‍त करे :- 
नमक वाला पानी मुंह में लार वाली ग्रंथी को सक्रिय करने में मदद करता है - अच्‍छे पाचन के लिये यह पहला कदम बहुत जरुरी है !
पेट के अंदर प्राकृतिक नमक - हाइड्रोक्लोरिक एसिड और प्रोटीन को पचाने वाले इंजाइम को उत्‍तेजित करने में मदद करता है !
इससे खाया गया भोजन टूट कर आराम से पच जाता है !
इसके अलावा इंटेस्‍टाइनिल ट्रैक्ट और लिवर में भी एंजाइम को उत्‍तेजित होने में मदद मिलती है - जिससे खाना पचने में आसानी होती है !

* नींद लाने में लाभदायक :- 
अपरिष्कृत नमक में मौजूदा खनिज हमारी तंत्रिका तंत्र को शांत करता है !

नमक - कोर्टिसोल और एड्रनलाईन - जैसे दो खतरनाक स्‍ट्रेस हार्मोन को कम करता है !
इसलिये इससे रात को अच्‍छी नींद लाने में मदद मिलती है !

* शरीर करे डिटॉक्‍स :- 
नमक में काफी खनिज होने की वजह से एंटीबैक्‍टीरियल का काम भी करता है !
इस‍से शरीर में मौजूद खतरनाक बैक्‍टीरिया का नाश होता है !

* हड्डी की मजबूती :- 
हम मे से ज्‍यादातर को नहीं पता कि हमारा शरीर, हमारी हड्डियों से कैल्‍शियम और अन्‍य खनिज खींचता है जिससे हमारी हड्डियों में कमजोरी आ जाती है !
इसलिये नमक वाला पानी उस मिनरल लॉस की पूर्ती करता है और हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है !

* त्‍वचा की समस्‍या :- 
नमक में मौजूद क्रोमियम एक्‍ने से लड़ता है और सल्‍फर से त्‍वचा साफ और कोमल बनती है !
नमक वाला पानी पीने से एक्‍जिमा और रैश की समस्‍या दूर होती है !

* मोटापा घटाए :- 
यह पाचन को दुरुस्‍त कर के शरीर की कोशिकाओं तक पोषण पहुंचाता है जिससे मोटापा कंट्रोल करने में मदद मिलती है !
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~ सेंधा नमक :- 
सेंधा नमक को लाहोरी नमक भी कहा जाता है क्योकि यह पाकिस्तान मे अधिक मात्रा मे मिलता है !
यह सफ़ेद और लाल रंग मे पाया जाता है !
सफ़ेद रंग वाला नमक उत्तम होता है - यह ह्रदय के लिये उत्तम - दीपन और पाचन मे मदद रूप - त्रिदोष शामक - शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला - पचने मे हल्का है - इससे पाचक रस बढ़्ते हैं !
रक्त विकार आदि के रोग जिसमे नमक खाने को मना हो उसमे भी इसका उपयोग किया जा सकता है - यह पित्त नाशक और आंखों के लिये हितकारी है - दस्त - कृमिजन्य रोगो और रह्युमेटिज्म मे काफ़ी उपयोगी होता है !
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~ ऐसे बनता है असली काला नमक :- 

* कुछ स्रोतों में काला नमक बनाने की निम्नलिखित विधियां बतायी गयी है !
1 - नमकीन पानी में हरड के बीज ( गुठली ) डाल उबाला जाता है - उबलने के बाद पानी भाप बन कर उड़ जाता है और काला क्रिस्टल नुमा नमक बच जाता है !
काले रंग के कारण ही इसे काला नमक कहा जाता है !
पीसने पर इसका रंग गुलाबी हो जाता है !
रासायनिक रूप से काला नमक सोडियम सल्फाइड होता है - जिसमें खनिज लवण भी होते हैं !
इसका उत्पादन सोडियम थायोसल्फेट बनाने के दौरान बाइप्रोडक्ट के रूप में भी होता है !

2 - काला नमक बनाने के लिये सेंधा नमक और साजीखार बराबर भाग मे ले ।
( साजीखार का उपयोग पापड बनाने में होता है और यह पंसारी की दुकान पर आसानी से मिलता है ) इस मिश्रण को पानी मे घोलें !
अब इसे धीमी आंच पर गर्म करे और पूरा पानी जला दें !
अंत मे जो बचेगा वह काला नमक है !

सुखी जीवन उत्तम स्वास्थ्य













संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो दुःखी होना चाहता हो। सुख की चाह प्रत्येक व्यक्ति की होती है, परन्तु सुखी जीवन उत्तम स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। स्वस्थ और सुखी रहने के लिए यह आवश्यक है कि शरीर में कोई विकार न हो और यदि विकार हो जाए तो उसे शीघ्र दूर कर दिया जाये। आयुर्वेद का मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं रोगी हो जाने पर उसके विकार का प्रशमन करना है। ऋषि जानते थे कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ जीवन से है इसीलिए उन्होंने आत्मा के शुद्धिकरण के साथ शरीर की शुद्धि व स्वास्थ्य पर भी विशेष बल दिया है।

वैसे तो रसोई में प्रयुक्त हर खाद्य और हर मसाले के गुण वाग्भट्ट ने बताये हैं, यही कारण है कि उनकी कृति को आयुर्वेद का एक संदर्भग्रन्थ माना जाता है। किन्तु उन सबको याद रखना यदि संभव न हो तो भी खाद्यों को उनके स्वाद के अनुसार भी वर्गीकृत किया जा सकता है और उसके गुण बताये जा सकते हैं। हम जो भी खाते हैं, उन्हें मुख्यतः 6 रसों में विभक्त किया जा सकता है। ये 6 रस हैं, मधुर, अम्ल, लवण, तिक्त, कटु, कषाय। प्रथम तीन रस कफ बढ़ाते हैं, वात कम करते हैं। अन्तिम तीन रस वात बढ़ाते हैं, कफ कम करते हैं। अम्ल, लवण और कटु पित्त बढ़ाते हैं, शेष तीन रस पित्त कम करते हैं। इन रसों के प्रभाव को उनकी मौलिक संरचना से समझा जा सकता है। इन रसों में क्रमशः पृथ्वी-जल, अग्नि-जल, अग्नि-पृथ्वी, आकाश-वायु, अग्नि-वायु, पृथ्वी-वायु के मौलिक तत्व विद्यमान रहते हैं।

कोई भी द्रव्य किसी दोष विशेष का शमन, कोपन या स्वस्थहित करता है। बहुत ही कम ऐसे द्रव्य हैं जो कफ, वात और पित्त, तीनों को संतुलित रखते हैं। हरड, बहेड़ा और आँवला ऐसे ही तीन फल हैं। इन तीन फलों के एक, दो और तीन के अनुपात में मिलने से बनता है त्रिफला, वाग्भट्ट इससे अभिभूत हैं और इसे दैवीय औषधि मानते हैं। त्रिफला तीनों दोषों का नाश करता है। सुबह में त्रिफला गुड़ के साथ लें, यह पोषण करता है। रात में त्रिफला दूध या गरम पानी के साथ लें, यह पेट साफ करने वाला होता है, रेचक। इससे अच्छा और कोई एण्टीऑक्सीडेण्ट नहीं है। आवश्यकता के अनुसार इसे सुबह या रात में खाया जा सकता है। शरीर पर इसका प्रभाव सतत बना रहे, इसलिये तीन माह में एक बार 15 दिन के लिये इसका सेवन छोड़ देना चाहिये।

शुद्ध सरसों का तेल वात को कम रखने के लिये सबसे अच्छा है। चिपचिपा और अपनी मौलिक गंध वाला। तेल की गंध उसमें निहित प्रोटीन से आती है और चिपचिपापन फैटी एसिड के कारण होता है। जब किसी तेल को हम रिफाइन करते हैं तो यही दो लाभदायक तत्व हम उससे निकाल फेकते हैं और उसे बनाने की प्रक्रिया में न जाने कितने दूषित कृत्रिम रसायन उसमें मिला बैठते हैं। इस तरह रिफाइण्ड तेल किसी दूषित पानी की तरह हो जाता है, गुणहीन, प्रभावहीन। जब सर्वाधिक रोग वातजनित हों तो सरसों के तेल का प्रयोग अमृत सा हो जाता है। हमारे पूर्वजों ने घी और तेल खाने में कभी कोई कंजूसी नहीं की और उन्हें कभी हृदयाघात भी नहीं हुये। तेल की मूल प्रकृति बिना समझे उसे रिफाइण्ड करके खाने से हम इतने रोगों को आमन्त्रित कर बैठे हैं। प्राकृतिक तेलों में पर्याप्त मात्रा में एचडीएल होता है जो स्वास्थ्य को अच्छा रखता है। हर त्योहार में पकवान विशेष तरह से बनते हैं। जाड़े में तिल और मूँगफली बहुतायत से खाया जाता और वह शरीर को लाभ पहुँचाता है। इसके अतिरिक्त जिन चीजों में पानी की मात्रा अधिक होती है, वे सभी वातनाशक हैं, दूध, दही, मठ्ठा, फलों के रस आदि।

गाय का घी पित्त के लिये सबसे अच्छा है। जो लोग शारीरिक श्रम करते हैं या कुश्ती लड़ते हैं, उनके लिये भैंस का घी अच्छा है। देशी घी के बाद सर्वाधिक पित्तनाशक है, अजवाइन। दोपहर में पित्त बढ़ा रहता है अतः दोपहर में बनी सब्जियों में अजवाइन का छौंक लगता है। मठ्ठे में भी अजवाइन का छौंक लगाने से पित्त संतुलित रहता है। उसी कारण एसिडिटी में अजवाइन बड़ी लाभकारी है। काले नमक के साथ खाने से अजवाइन के लाभ और बढ़ जाते हैं। अजवाइन के बाद, इस श्रेणी में है, काला जीरा, हींग और धनिया।

कफ को शान्त रखने के लिये सर्वोत्तम हैं, गुड़ और शहद। कफ कुपित होने से शरीर में फॉस्फोरस की कमी हो जाती है, गुड़ उस फॉस्फोरस की कमी पूरी करता है। गाढ़े रंग और ढेली का गुड़ सबसे अच्छा है। गुड़ पचने के बाद क्षार बनता है, स्वयं पचता है और जिसके साथ खाया जाता है, उसे भी पचाता है। गुड़ को दूध में मिलाकर न खायें, दूध के आगे पीछे खायें। दही में गुड़ मिलाकर ही खायें, दही चूड़ा की तरह। मकरसंक्रान्ति के समय, जब कफ और वात दोनों ही बढ़ा रहता है, गुड़, तिल और मूँगफली की गज़क और पट्टी खाने की परम्परा है, गुड़ कफ शान्त रखता है और तिल वात। अदरक, सोंठ, देशी पान, गुलकन्द, सौंफ, लौंग कफ कम करने वाले तत्व हैं।

मेथी वात और कफ नाशक है, पर पित्त को बढ़ाती है। जिन्हें पित्त की बीमारी पहले से है, वे इसका उपयोग न करें। रात को एक गिलास गुनगुने पानी में मेथीदाना डाल दें और सुबह चबा चबा कर खायें। चबा चबा कर खाने से लार बनती है जो अत्यधिक उपयोगी है। अचारों में मेथी पड़ती है, वह औषधि है। अचार में मेथी और अजवाइन अत्यधिक उपयोगी है। इन औषधियों के बिना अचार न खायें। चूना सबसे अधिक वातनाशक है। कैल्शियम के लिये सबसे अच्छा है चूना, हमारे यहाँ पान के साथ शरीर को चूना मिलता रहता है। इसकी उपस्थिति में अन्य पोषक तत्वों का शोषण अच्छा होता है। 40 तक की अवस्था में कैल्शियम हमें दूध, दही आदि से मिलता है, केला और खट्टे फलों से मिलता रहता है, उसके बाद कम होने लगता है। पान खाने की परम्परा संभवतः इसी कारण से विकसित हुई होगी, पान हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है।

मिर्गी रोग लक्षण एवं उपचार



















मिर्गी रोग लक्षण एवं उपचार 

चिंता और शोकादि से क्रोध को प्राप्त हुए वात, पित और कफ हृदय की नसों मे घुसकर स्मरण मात्र का नाश कर मिर्गी रोग को प्रकट करते हैं। हृदय कांपे, शरीर सुन्न हो जाए, पसीना आए, ध्यान लग जाए, मूर्छा हो, ज्ञान जाता रहे, निद्रा ना आए, ये लक्षण हो तो जानिए की मिर्गी रोग है। और उसको सर्वत्र अंधकार दिखाई दे, स्मरण जाता रहे व हाथ पैर आदि अंगों को पृथ्वी पर पटके जब भी ये मान लेना चाहिए की मिर्गी रोग है। मिर्गी निम्नलिखित प्रकार से होती है।

वात की मिर्गी :-
व्यक्ति कांपता हो, दाँत चबाये, मुख से झाग आए, श्वास हो, काला पीला दिखाई दे, ये लक्षण वात की मिर्गी के हैं।

पित की मिर्गी :- 
मुख से पीला झाग आए व शरीर की त्वचा ये मुख पीला हो जाए तो समझो की पित की मिर्गी है।

कफ़ की मिर्गी :- 
मुख से सफ़ेद झाग आए, शरीर की त्वचा व मुख आदि सफ़ेद पड़ जाए तो ये निश्चित है कि ये कफ़ की मिर्गी है।

ऊपर लिखे गए अगर सभी लक्षण हैं तो ये सन्निपात कि मिर्गी के लक्षण हैं।

मिर्गी के असाध्य लक्षण :-
शरीर बहुत फड़कता हो, क्षीण हो जाए और 15वें दिन आए, भोंहे चढ़ जाए व नेत्र फिर जाए तो वह मिर्गी वाला मर जाता है।

मिर्गी 12वें दिन आए तो वात की, 15वें दिन आए तो पित की व एक महीने मे आए तो कफ़ की मिर्गी जान लेना चाहिए।

उपचार :- तिल के साथ लहसुन खाये तो वात कि मिर्गी समाप्त हो जाती है। 

दूध के साथ शतावर खाये तो पित कि मिर्गी ठीक हो जाती है। 

ब्राह्मी का रस शहद के साथ खाये तो कफ़ कि मिर्गी ठीक हो जाती है । अथवा राई व सरसों खाएँ। 

या एक किलो सरसों तेल, 4 किलो सहजन का रस, चिड़चिड़े का रस 4 किलो, ग्वारपाठे(घृतकुमारी) का रस 4 किलो, गौमूत्र 4 किलो, नीम की छाल का रस एक किलो, इन सबको एक साथ मिलकर पकाये। जब सारा रस जल जाए व मात्र तेल बच जाए तब इस तेल का मर्दन करने से मिर्गी रोग समाप्त हो जाएगा।

बालों के लिए चिकित्सा



















बालों के लिए चिकित्सा 

1. अमरबेल : 250 ग्राम अमरबेल को लगभग 3 लीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो इसे उतार लें। सुबह इससे बालों को धोयें। इससे बाल लंबे होते हैं।

2. त्रिफला : त्रिफला के 2 से 6 ग्राम चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बन्द हो जाता है।

3. कलौंजी : 50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें। इस उबले हुए पानी से बालों को धोएं। इससे बाल 1 महीने में ही काफी लंबे हो जाते हैं।

4. नीम : नीम और बेर के पत्तों को पानी के साथ पीसकर सिर पर लगा लें और इसके 2-3 घण्टों के बाद बालों को धो डालें। इससे बालों का झड़ना कम हो जाता है और बाल लंबे भी होते हैं।

5. लहसुन : लहसुन का रस निकालकर सिर में लगाने से बाल उग आते हैं।

6. सीताफल : सीताफल के बीज और बेर के बीज के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बालों की जड़ों में लगाएं। ऐसा करने से बाल लंबे हो जाते हैं।

7. आम : 10 ग्राम आम की गिरी को आंवले के रस में पीसकर बालों में लगाना चाहिए। इससे बाल लंबे और घुंघराले हो जाते हैं।

8. शिकाकाई : शिकाकाई और सूखे आंवले को 25-25 ग्राम लेकर थोड़ा-सा कूटकर इसके टुकड़े कर लें। इन टुकड़ों को 500 ग्राम पानी में रात को डालकर भिगो दें। सुबह इस पानी को कपड़े के साथ मसलकर छान लें और इससे सिर की मालिश करें। 10-20 मिनट बाद नहा लें। इस तरह शिकाकाई और आंवलों के पानी से सिर को धोकर और बालों के सूखने पर नारियल का तेल लगाने से बाल लंबे, मुलायम और चमकदार बन जाते हैं। गर्मियों में यह प्रयोग सही रहता है। इससे बाल सफेद नहीं होते अगर बाल सफेद हो भी जाते हैं तो वह काले हो जाते हैं।

9. मूली : आधी से 1 मूली रोजाना दोपहर में खाना-खाने के बाद, कालीमिर्च के साथ नमक लगाकर खाने से बालों का रंग साफ होता है और बाल लंबे भी हो जाते हैं। इसका प्रयोग 3-4 महीने तक लगातार करें। 1 महीने तक इसका सेवन करने से कब्ज, अफारा और अरुचि में आराम मिलता है।

नोट : मूली जिसके लिए फयदेमन्द हो वही इसका प्रयोग कर सकते हैं।

10. आंवला : सूखे आंवले और मेंहदी को समान मात्रा में लेकर शाम को पानी में भिगो दें। प्रात: इससे बालों को धोयें। इसका प्रयोग लगातार कई दिनों तक करने से बाल मुलायम और लंबे हो जायेंगे।

11. ककड़ी : ककड़ी में सिलिकन और सल्फर अधिक मात्रा में होता है जो बालों को बढ़ाते हैं। ककड़ी के रस से बालों को धोने से तथा ककड़ी, गाजर और पालक सबको मिलाकर रस पीने से बाल बढ़ते हैं। यदि यह सब उपलब्ध न हो तो जो भी मिले उसका रस मिलाकर पी लें। इस प्रयोग से नाखून गिरना भी बन्द हो जाता है।

12. रीठा
* कपूर कचरी 100 ग्राम, नागरमोथा 100 ग्राम, कपूर तथा रीठे के फल की गिरी 40-40 ग्राम, शिकाकाई 250 ग्राम और आंवले 200 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी का चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण के 50 ग्राम चूर्ण में पानी मिलाकर लुग्दी (लेप) बनाकर बालों में लगाना चाहिए। इसके पश्चात् बालों को गरम पानी से खूब साफ कर लें। इससे सिर के अन्दर की जूं-लींकें मर जाती हैं और बाल मुलायम हो जाते हैं।

* रीठा, आंवला, सिकाकाई तीनों को मिलाने के बाद बाल धोने से बाल सिल्की, चमकदार, रूसी-रहित और घने हो जाते हैं।

13. गुड़हल : * गुड़हल के फूलों के रस को निकालकर सिर में डालने से बाल बढ़ते हैं।

* गुड़हल के पत्तों को पीसकर लुग्दी बना लें। इस लुग्दी को नहाने से 2 घंटे पहले बालों की जड़ों में मालिश करके लगायें। फिर नहायें और इसे साफ कर लें। इस प्रयोग को नियमित रूप से करते रहने से न केवल बालों को पोषण मिलेगा, बल्कि सिर में भी ठंड़क का अनुभव होगा।

* गुड़हल के पत्ते और फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर पीसकर लेप तैयार करें। इस लेप को सोते समय बालों में लगाएं और सुबह धोयें। ऐसा कुछ दिनों तक नियमित रूप से करने से बाल स्वस्थ बने रहते हैं।

* गुड़हल के ताजे फूलों के रस में जैतून का तेल बराबर मिलाकर आग पर पकायें, जब जल का अंश उड़ जाये तो इसे शीशी में भरकर रख लें। रोजाना नहाने के बाद इसे बालों की जड़ों में मल-मलकर लगाना चाहिए। इससे बाल चमकीले होकर लंबे हो जाते हैं।

14. शांखपुष्पी : शांखपुष्पी से निर्मित तेल रोज लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।

15. भांगरा :
* बालों को छोटा करके उस स्थान पर जहां पर बाल न हों भांगरा के पत्तों के रस से मालिश करने से कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंहे हो जाते हैं। उन्हें इस प्रयोग को अवश्य ही करना चाहिए।

* त्रिफला के चूर्ण को भांगरा के रस में 3 उबाल देकर अच्छी तरह से सुखाकर खरल यानी पीसकर रख लें। इसे प्रतिदिन सुबह के समय लगभग 2 ग्राम तक सेवन करने से बालों का सफेद होना बन्द जाता है तथा इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।

* आंवलों का मोटा चूर्ण कप्याले में रखकर ऊपर से भांगरा का इतना डाले कि आंवले उसमें डूब जाएं। फिर इसे खरलकर सुखा लेते हैं। इसी प्रकार 7 भावनाएं (उबाल) देकर सुखा लेते हैं। प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन से करने से असमय ही बालों का सफेद होना बन्द जाता है। यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने वाला, उम्र को बढ़ाने वाला लाभकारी योग है।

* भांगरा, त्रिफला, अनन्तमूल और आम की गुठली का मिश्रण तथा 10 ग्राम मण्डूर कल्क व आधा किलो तेल को एक लीटर पानी के साथ पकायें। जब केवल तेल शेष बचे तो इसे छानकर रख लें। इसके प्रयोग से बालों के सभी प्रकार के रोग मिट जाते हैं।

16. अनन्तमूल : अनन्तमूल की जड़ का चूर्ण 2-2 ग्राम दिन में 3 बार पानी के साथ सेवन करने से सिर का गंजापन दूर होता है।

17. तिल :
* तिल के पौधे की जड़ और पत्तों के काढ़े से बालों को धोने से बालों पर काला रंग आने लगता है।

* काले तिलों के तेल को शुद्ध करके बालों में लगाने से बाल असमय में सफेद नहीं होते हैं। प्रतिदिन सिर में तिल के तेल की मालिश करने से बाल हमेशा मुलायम, काले और घने रहते हैं।

* तिल के फूल और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर घी और शहद में पीसकर लेप बना लें। इसे सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है।

* तिल के तेल की मालिश करने के एक घंटे बाद एक तौलिया गर्म पानी में डुबोकर उसे निचोड़कर सिर पर लपेट लें तथा ठण्डा होने पर दोबारा गर्म पानी में डुबोकर निचोड़कर सिर पर लपेट लें। इस प्रकार 5 मिनट लपेटे रखें। फिर ठंड़े पानी से सिर को धो लें। ऐसा करने से बालों की रूसी दूर हो जाती है।बालों के लिए चिकित्सा :

Thursday, 8 October 2015

Lose 15 Pounds Without Diet










Lose 15 Pounds Without Diet 
With This Home Natural Recipe!

If you are overweight, losing weight can help you reduce the risk of some potentially serious health issues.

In accordance to National Institute for Health & Care Excellence (NICE), most of the people who need to lose weight could get great health benefits from that, even if they lose a very small amount, for example, about 5 percent of their weight.

Health problems related to being overweight 

The overweight or obese people have a higher risk of: heart disease, high blood pressure, type 2 diabetes, stroke, infertility, some types of cancer, back pain, osteoarthritis, back pain, depression.

How do I know if I need to lose weight?

By calculating the body mass index or BMI, you can find out if you are overweight.  The size of your waist is also very important. If it is too large, the risk of health issues is higher.

If you really want to lose weight, you need to make some changes to your diet and the amount of physical activities you do

The amount of physical activities you should do depends on the age you have. For instance, adults between the ages of 19 and 64 need to do 150 minutes a week of some moderate-intensity physical activities.

If you want to lose weight quickly and you aren’t fan of some strict diet, than this is the right solution for you. This mixture will melt the extra pounds in a very short period of time without being on a diet. It’s simple, but very effective recipe and you do not have to spend any extra money for its preparation.

You will need:

1 cup of boiling water
1 teaspoon of ground cumin
 2 pieces of lemon peel
 ¼ teaspoon of cinnamon
½ teaspoon of ginger
 spoonful of honey

Directions:

Take the cup of boiling water and put the rest of the ingredients in it. Mix well and you are done.

Have a nice day and enjoy your body like never before.


Source:  www.homehealthyrecipes.com

थाइरोइड का उपचार


Wednesday, 7 October 2015

The Health Benefits of Himalayan Salt Inhalers


















The Health Benefits of Himalayan Salt Inhalers

Himalayan salt has many great health benefits, especially when used with food. Using a Himalayan Salt Inhaler offers an easy, drug-free way to conveniently get many of the multiple benefits of salt-air therapy. This article will discuss Himalayan salt inhaler therapy and the health benefits associated with its use.


What is Salt Therapy?

Humans have been using salt for therapeutic uses for thousands of years. Anyone who has spent a day at the ocean knows that salt-filled air has something special about it. Hippocrates, the father of modern medicine, used to steam salt to purify the air and the lungs.

In Europe, the ancient Greeks used what they called Halotherapy (Halo is the word for salt in Greek), for respiratory ailments. Cave rooms full of salty air have been considered therapeutic in countries in Eastern Europe for hundreds of years.

Salt rooms that mimic these salty European caves are popping up in many polluted cities such as New York and London. These salt-filled, salt-lined rooms act as a powerful aid for people affected by breathing-related conditions.

The ancient Ayurvedic and yogic cultures of India relied on salt inhaling therapies to cleanse out the nose and throat areas. Today, the popular neti pot is an example of the extensive use of Himalayan crystal salt to combat harmful organisms. Interestingly, it has been found that workers in salt mines do not develop lung diseases, but actually have extremely healthy respiratory health.

Modern salt air therapy, including Himalayan Crystal Salt Inhalers, combine both the ancient and the modern techniques. Himalayan salt crystals rest in a chamber inside the inhaler.

As you breathe, natural moisture in the air absorbs the salt particles into the lungs, which can help with sinus problems, asthma, the common cold, allergies, hay fever and congestion.

Unlike steroid inhalers and other pharmaceutical drugs, this therapeutic approach offers absolutely no negative side effects

9 Health Benefits of Salt Inhalers

1. Helps with Sinus Ailments

Salt inhalation therapy has been used to boost overall respiratory strength and lung capacity. Studies from the 1800’s found that breathing pure, ionized (salted) air in salt mines could help reduce respiratory problems and the general irritation cause by smoking and air pollution.

2. Supports Harmful Organism Cleansing

Himalayan salt has been used as a cleansing agent against harmful organisms. In fact, it is a commonly used holistic health practice to help individuals with respiratory difficulties, and may even work better than some of the commonly prescribed options for these conditions.

Himalayan Salt
3. May Help Reduce Swelling and Redness

Crystal salt helps reduce redness and swelling, aiding in the body’s ability to fight off responses that lead to deterioration in the body over time.

4. Detoxifies Air

We breathe in a shocking amount of chemical pollutants, as well as smoke, dust, smog and pet dander. Our lungs are under constant stress from air pollution. Similarly, many smokers have found comfort in using the Himalayan salt inhaler, as it helps reduce withdrawal symptoms associated with quitting.

5. May Help Lower Blood Pressure

High in the mineral potassium, the Himalayan sea salt inhaler may also aid in stabilizing blood pressure.

6. Deepens Breath Capacity and Promotes Mental Calmness

Given its ability to increase the body’s natural ability to breathe deeply, a salt inhaler may provide a variety of psychological benefits. The ability to breathe easily promotes their body’s own natural relaxation response.

7. Aids in Promoting Sound Sleep

Using a Himalayan salt inhaler is believed to help people breathe better at night. It may also reduce or eliminate night coughs, snoring, and breath-related sleeping conditions.

8. May Help Reduce Mucus Build Up

Salt is a natural cleansing expectorant, and can aid in reducing excess mucous and general nose and throat stuffiness.

9. Moisturizes Dry Mucous Membranes

A crystal salt inhaler is great for taking aboard an airplane, as the salt hydrates the respiratory system while we travel.

I love the benefits of salt inhalers. My family uses them on a regular basis and we always get great results. I highly recommend every family purchase and use these. They are great to use during the flu season as well!


By: by Dr. Edward Group DC, NP, DACBN, DCBCN, DABFM

Source: http://www.globalhealingcenter.com/