Thursday 24 July 2014

कत्था (खदिर, खैर )














कत्था (खदिर, खैर )-

कत्थे का पेड़ भारत में १५०० मीटर की ऊंचाई तक पंजाब, ,उत्तर पश्चिम हिमालय,मध्यभारत,बिहार,महाराष्ट्र,राजस्थान,कोंकण,आसाम,उड़ीसा ,दक्षिण भारत एवं पश्चिम बंगाल में पाया जाता है | इसके पेड़ नदियों के किनारे अधिक होते हैं | कत्थे का पेड़ बबूल के पेड़ की तरह होता है | जब इसके पेड़ के तने लगभग एक फुट मोटे हो जाते हैं तब इन्हें काटकर छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर भट्टियों में पकाकर काढ़ा बनाया जाता है | फिर इसे चौकोर रूप दिया जाता है जिसे कत्था कहते हैं | 
आइये जानते हैं कत्थे के कुछ औषधीय प्रयोग -

१- कत्था/खदिर आदि द्रव्यों से निर्मित खदिरादि वटी चूसने से सभी प्रकार के मुखरोगों में लाभ होता है तथा दांतों के दीर्घकाल तक स्थिरता प्रदान करता है | 

२- कत्थे को सरसों के तेल में घोलकर प्रतिदिन २ से ३ बार मसूड़ों पर मलने से दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं तथा मसूड़ों से खून आनाव मुँह से बदबू आना बंद हो जाता है | 

३- कत्थे के काढ़े को पानी में मिलाकर प्रतिदिन नहाने से कुष्ठ रोग ठीक होता है | 

४- यदि घाव में से पस निकल रहा हो तो कत्थे को घाव पर बुरकने से पस निकलना बंद हो जाता है तथा घाव सूखने लगता है | 

५- सफ़ेद कत्था,माजूफल और गेरू को पीसकर फोड़ों पर लगाने से सिर के फोड़े ठीक होते हैं |

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.