भगन्दर रोग उपचार। (FISTULA-IN-ANO)
परिचय :
बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें। इसलिए बवासीर को नज़र अंदाज़ ना करे। भगन्दर का इलाज़ अगर ज्यादा समय तक ना करवाया जाये तो केंसर का रूप भी ले सकता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। ऐसा होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है ।
यह एक प्रकार का नाड़ी में होने वाला रोग है, जो गुदा और मलाशय के पास के भाग में होता है। ये रोग हमारी आज कल की घटिया जीवन शैली की देन हैं, जिसको हम बदलना नहीं चाहते। अपने खान पान पर पूरा ध्यान दे, कूड़ा करकट भोजन ना खाए, कोल्ड ड्रिंक्स तो बिलकुल भी ना पिए।
भगन्दर में पीड़ाप्रद दानें गुदा के आस-पास निकलकर फूट जाते हैं। इस रोग में गुदा और वस्ति के चारो ओर योनि के समान त्वचा फैल जाती है, जिसे भगन्दर कहते हैं। `भग´ शब्द को वह अवयव समझा जाता है, जो गुदा और वस्ति के बीच में होता है। इस घाव (व्रण) का एक मुंख मलाशय के भीतर और दूसरा बाहर की ओर होता है। भगन्दर रोग अधिक पुराना होने पर हड्डी में सुराख बना देता है जिससे हडि्डयों से पीव निकलता रहता है और कभी-कभी खून भी आता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से मल भी आने लगता है।
भगन्दर रोग अधिक कष्टकारी होता है। यह रोग जल्दी खत्म नहीं होता है। इस रोग के होने से रोगी में चिड़चिड़ापन हो जाता है। इस रोग को फिस्युला अथवा फिस्युला इन एनो भी कहते हैं।
भगन्दर रोग उत्पंन होने के पहले गुदा के निकट खुजली, हडि्डयों में सुई जैसी चुभन, दर्द, दाह (जलन) तथा सूजन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। भगन्दर के पूर्ण रुप से निकलने पर तीव्र वेदना (दर्द), नाड़ियों से लाल रंग का झाग तथा पीव आदि निकलना इसके मुख्य लक्षण हैं।
भोजन और परहेज :
आहार-विहार के असंयम से ही रोगों की उत्पत्ति होती है। इस तरह के रोगों में खाने-पीने का संयम न रखने पर यह बढ़ जाता है। अत: इस रोग में खास तौर पर आहार-विहार पर सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार के रोगों में सर्व प्रथम रोग की उत्पति के कारणों को दूर करना चाहिए क्योंकि उसके कारण को दूर किये बिना चिकित्सा में सफलता नहीं मिलती है। इस रोग में रोगी और चिकित्सक दोनों को सावधानी बरतनी चाहिए।
चिकित्सा
चोपचीनी और मिस्री
भगंदर के लिए चोपचीनी और मिस्री पीस कर इनके बराबर देशी घी मिलाइए।20-20 ग्राम के लड्डू बना कर सुबह शाम खाइए। परहेज नमक तेल खटाई चाय मसाले आदि हैं। अर्थात फीकी रोटी घी शक्कर से खा सकते हैं। दलिया बिना नमक का हलवा आदि खा सकते हैं। इससे 21 दिन में भगन्दर सही हो जायेगा। इसके साथ सुबह शाम १-१ चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ ले। इसके साथ रात को सोते समय कोकल का चूर्ण आपको बाजार से मिल जाएगा वो एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ ले। 21 दिन में भगन्दर सही हो जायेगा। ये बहुत लोगो द्वारा आज़माया हुआ नुस्खा हैं।
पुनर्नवाः
पुनर्नवा, हल्दी, सोंठ, हरड़, दारुहल्दी, गिलोय, चित्रक मूल, देवदार और भारंगी के मिश्रण को काढ़ा बनाकर पीने से सूजनयुक्त भगन्दर में अधिक लाभकारी होता है। पुनर्नवा शोथ-शमन कारी गुणों से युक्त होता है।
पुनर्नवा के मूल को वरुण (वरनद्ध की छाल के साथ काढ़ा बनाकर पीने से आंतरिक सूजन दूर होती है। इससे भगन्दर के नाड़ी-व्रण को बाहर-भीतर से भरने में सहायता मिलती है।
नीम:
नीम की पत्तियां, घी और तिल 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर उसमें 20 ग्राम जौ के आटे को मिलाकर जल से लेप बनाएं। इस लेप को वस्त्र के टुकड़े पर फैलाकर भगन्दर पर बांधने से लाभ होता है।
नीम की पत्तियों को पीसकर भगन्दर पर लेप करने से भगन्दर की विकृति नष्ट होती है।
गुड़:
पुराना गुड़, नीलाथोथा, गन्दा बिरोजा तथा सिरस इन सबको बराबर मात्रा लेकर थोड़े से पानी में घोंटकर मलहम बना लें तथा उसे कपड़े पर लगाकर भगन्दर के घाव पर रखने से कुछ दिनों में ही यह रोग ठीक हो जाता है। अगर गुड पुराना ना हो तो आप नए गुड को थोड़ी देर धुप में रख दे, इसमें पुराने गुड जिने गुण आ जाएंगे।
शहद:
शहद और सेंधानमक को मिलाकर बत्ती बनायें। बत्ती को नासूर में रखने से भगन्दर रोग में आराम मिलता है।
केला और कपूर।
एक पके केले को बीच में चीरा लगा कर इस में चने के दाने के बराबर कपूर रख ले और इसको खाए, और खाने के एक घंटा पहले और एक घंटा बाद में कुछ भी नहीं खाना पीना।
अगर भगन्दर बहुत पुरानी हो और इन प्रयोगो से भी सही ना हो तो कृपया उचित शल्य कर्म (Operate) करवाये।
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