मलेरिया बुखार का चमत्कारिक रामबाण घरेलु नुस्खा
विशव युद 1914 में जर्मनी, हंगरी, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, के फौजियों ने मलेरिया फैलने पर उपरोक्त प्रकार से नमक का प्रयाग किया, वे सभी लोग मलेरिया से बचे और दूसरे लोग जो अन्य दवाइयों पर निर्भर रहे उनमे से बहुतायत से लोग मर गये। इसलिए भारत के गरीब तबके के लोगो को बुखार निवरणर्थ भुने नमक का प्रयोग सस्ता और अमोघ है। इससे नब्बे प्रतिशत रोगियों को बुखार दोबारा चढ़ेगा नही और यदि किसी कारण बुखार न उतरे तो नमक का यही इलाज करें। तीसरी मात्रा की बिलकुल आवश्यकता नही पड़ेगी। हाँ, रोगी को सर्दी से बचाने की और अधिक ध्यान देना चाहिए।
सादा खाने का नमक लेकर तवे पर (धीमी आंच पर) इतना सेंके की उसका रंग काला भूरा (कॉफ़ी के समान) हो जाएँ। ठंडा होने पर शीशी में भर लें। बस दवा तैयार है जो की मलेरिया, विषम-ज्वर, एकांतरा-पारी, तिजारी, चौथारी की खास दवा है। ज्वर आने से पहले, छ: ग्राम (एक चाय का चम्मच या अधिक मगर कम न हो) भुना नमक एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर लें तथा ज्वर उतर जाने पर भी छ: ग्राम भुना नमक गर्म पानी से सेवन करना जरूरी है। बस इन दो खुराकों के लेने मात्र से बुखार उतर जायेगा और फिर नही लौटेगा। अगर दूसरी बार बुखार फिर आ जाए तो भी यही प्रयोग किया जाये, तीसरी बार बुखार कतई नही आता है।
ये अनुभव बहुत पुराना है, उस समय नमक का जो स्वरुप आज कल आता है ऐसा नहीं था। मतलब आज कल जो इसको आयोडाईज़ेड करने के लिए जिस विधि से निकाला जाता है, वो नहीं था। आज भी पंसारी के पास या किराने वाले के पास मोटा डली वाला नमक मिल जाता है, उसको पीसकर उसको इस्तेमाल करें।
मलेरिया बुखार का अनुभव
डा. मोहनलाल जैन, अँधेरी मुम्बई द्वारा स्वानुभूत है। वे लिखते है, बहुत वर्ष पहले जब मुझे 1934-35 में जब 15 दिनों तक मलेरिया बुखार ने घेरा और डाकटरो के एल्गा और कुनीन मिक्स्चरों से कोई फायदा न हुआ हो तो मेरा ध्यान एक लेख पर गया जिसमे लिखा था की विशव युद 1914 में जर्मनी, हंगरी, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, के फौजियों ने मलेरिया फैलने पर उपरोक्त प्रकार से नमक का प्रयाग किया, वे सभी लोग मलेरिया से बचे और दूसरे लोग जो अन्य दवाइयों पर निर्भर रहे उनमे से बहुतायत से लोग मर गये। इसलिए भारत के गरीब तबके के लोगो को बुखार निवरणर्थ भुने नमक का प्रयोग सस्ता और अमोघ है। मैंने चढ़े हुए बुखार में 6 ग्राम उपरोक्त तैयार नमक (थोड़ा अजवायन थोड़ी हल्दी चूर्ण मैंने उसमे मिला दिया ताकि कोष्ठस्थ वायु निकले और संचित मल खिसके) को गर्म पानी से लिया। दो मिनट में उलटी हुयी। खूब चिकना पानी निकला। कुछ राहत लगी। फिर छः ग्राम चूर्ण पानी से लिया तो पाखाने की हाजत हुयी और २-२ घंटे से चार बार पाखाना हुआ। खूब नींद आई। इसके पश्चात कभी बुखार नहीं आया, 50 साल हो गए हैं। "मेरे प्रयोग कई मरीजों पर और मेरे खुद पर आजमाएं हुए हैं।"
इसके अतिरिक्त उपरोक्त चूर्ण (अर्थात भुना नमक + अजवायन + हल्दी) उदरशूल, पुरानी कब्जियत, कृमि-दोष आदि में लाभदायक पाया गया है।
विशेष
1. अधिक उच्च रक्तचाप के रोगी और वृद्धो के लिए उपरोक्त नमक का प्रयोग न करे या सावधानी पूर्वक करे।
2. यह ओषधि खाली पेट गुण करती है अत: इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए की रोगी कुछ न खायें और उसे ठंड न लगने पाये। अधिक प्यास लगने पर उबाल कर ठंडा किया हुआ थोड़ा सा पानी दिया जा सकता है। यथा सम्भव नमक की पहली खुराक लेने के 48 घंटे बाद दूध या चाय या पटोलिया लेकर धीरे-धीरे बुखार का उचित परहेज करते हुए साधरण खुराक पर आएं।
3. पेट में हवा भर जाने पर पीसी हुई हल्दी एक ग्राम और नमक एक ग्राम मिलाकर गर्म पानी से लेने से भी हवा ख़ारिज होकर पेट हल्का हो जाता है।
भुने नमक की अन्य विधि द्वारा मलेरिया निवारण
रोजाना इस्तमाल में लाये जाने वाले नमक को साफ़-सुथरी लोहे की कड़ाई या तवे पर अच्छी तरह भून लिया जाये, इतना की वह भूरे रंग का हो जाये। बच्चे के लिए आधा और जवान व्यक्ति के लिए पूरा चम्मच यह नमक लेकर एक गिलास पानी में उबाल लें। जब नमक पानी में भली प्रकार घुल जाये तो ऐसे गुनगुना ही रोगी को उस समय पिला देना चाहिए जबकि उसे बुखार न चढ़ा हुआ हो। इससे नब्बे प्रतिशत रोगियों को बुखार दोबारा चढ़ेगा नही और यदि किसी कारण बुखार न उतरे तो नमक का यही इलाज करें। तीसरी मात्रा की बिलकुल आवश्यकता नही पड़ेगी। हाँ, रोगी को सर्दी से बचाने की और अधिक ध्यान देना चाहिए।
इस दवा का वास्तविक लाभ भूखे पेट सेवन करने से ही होता है। इसलिए इसका सेवन हमेशा खाली पेट ही करना चाहिए। पिछले 17 वर्षो में सैंकड़ों रोगियों पर इस दवा का प्रयोग हो चूका है। जिन लोगो ने नियमानुसार इस दवा का सेवन किया और उचित परहेज रखा उनमे से शायद ही कोई निराश हुआ हो।
सभी ज्वरों में पथ्यापथ्य
ज्वर के प्रारंम्भ में रोगी को अन्न न देकर केवल तरल पदार्थ या फल देना अच्छा रहता है। जैसे-दूध, चाय मौसमी या मौसमी का रस नारियल का पानी, निम्बू पानी, चीकू, पपीता, आलूबुखारा आदि। आयुर्वेदानुसार मैदे की बनी वस्तुएं, बिस्कुट, डबल रोटी आदि भी बुखार की हालत में देना ठीक नही है। इनकी जगह मूंग की दाल का पानी, साबूदाना-दूध दे सकते है। या फिर भुने हुए गेहूं के आटे का घोल बनाकर रूचि के अनुसार आधा कप की मात्रा में एक-दो बार दे सकते है।
पटोलिया बनाने की विधि-
थोड़े से गेंहू के आटे में कुछ बुँदे देशी घी की डालकर हल्की आंच पर गुलाबी-गुलाबी भुने आटे में गर्म पानी मिलाते समय किसी कड़छी से अच्छी तरह हिलाते रहें ताकि आटे की डलियां न रहने पाएं और घोल गाड़ा और एक सर बन जाये। फिर इसमें आवश्यकता अनुसार दूध शककर या अकेली शककर या नमक मिलाकर लें। यही सुपाच्य पटोलिया है।
बुखार कम हो जाने पर खिचड़ी, गेंहू का दलिया अंगूर, सेव आदि सुपाच्य आहार दे। बुखार के दौरान पानी खूब पिलायें लेकिन उबाल कर ठंडा किया हुआ और थोड़ी थोड़ी मात्रा में घूंट-घूंट करके बार-बर देना चाहिए। बुखार उतर जाने के बाद धीरे-धीरे तरल के स्थान पर ठोस पदार्थ दें जो की
पौष्टिक हो। ध्यान रहे की बुखार रोगी को कोई भी खाद्य पदार्थ भर पेट न खिलाएं बल्कि थोड़ी थोड़ी मात्रा में कई बार करके खिलाएं। बुखार में पुदीना के 10 पाते और 10 मुनक्का शाम को 200 ग्राम पानी में भिगो देने के बाद प्रात: मसल छानकर पीना बहुत लाभप्रद है। इससे से उदर विकार, अपच और मंदाग्नि में लाभ होता है। बुखार के बाद कमजोरी दूर करने के लिए, दूध में खजूर (4-5 दाने) उबालकर अथवा शहद एक-दो चम्मच की मात्रा में दो बार देना चाहिए।
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