Thursday 13 March 2014

पलाश















पलाश (पलास, परसा, ढाक, टेसू , किंशुक, केसू ) एक वृक्ष है जिसके फूल बहुत ही आकर्षक होते हैं। इसके आकर्षक फूलो के कारण इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है। 

- जिसकी समिधा यज्ञ में प्रयुक्त होती है, ऐसे हिन्दू धर्म में पवित्र माने गये पलाश वृक्ष को आयुर्वेद ने 'ब्रह्मवृक्ष' नाम से गौरवान्विति किया है। पलाश के पाँचों अंग (पत्ते, फूल, फल, छाल, व मूल) औषधीय गुणों से सम्पन्न हैं। यह रसायन (वार्धक्य एवं रोगों को दूर रखने वाला), नेत्रज्योति बढ़ाने वाला व बुद्धिवर्धक भी है।

- वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है। इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें। यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है, कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं।

- फूल झड़ जाने पर चौड़ी चौ़ड़ी फलियाँ लगती है जिनमें गोल और चिपटे बीज होते हैं । फलियों को 'पलास पापड़ा' या 'पलास पापड़ी' और बीजों को 'पलास-बीज' कहते हैं।

- पलास के पत्ते प्रायः पत्तल और दोने आदि के बनाने के काम आते हैं।इसके पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी के पात्र में किये गये भोजन के समान लाभ प्राप्त होते हैं।

- फूल और बीज औषधिरूप में उपयोग में आते हैं । बीज में पेट के कीड़े मारने का गुण विशेष रूप से है । फली की बुकनी कर लेने से वह भी अबीर का काम देती है । 

- छाल से एक प्रकार का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरों की दरारों में भरकर भीतर पानी आने की रोक की जाती है । जड़ की छाल से जो रेशा निकलता है उसकी रस्सियाँ बटी जाती हैं । दरी और कागज भी इससे बनाया जाता है । 

- इसकी पतली डालियों को उबालकर एक प्रकार का कत्था तैयार किया जाता है जो बंगाल में अधिक खाया जाता है । 

- मोटी डालियों और तनों को जलाकर कोयला तैयार करते हैं । 

- छाल पर बछने लगाने से एक प्रकार का गोंद भी निकलता है जिसको 'चुनियाँ गोंद' या पलास का गोंद कहते हैं । इसका गोंद हड्डियों को मजबूत बनाता है।पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से शरीर पुष्ट होता है।

- यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।

- वैद्यक में इसके फूल को स्वादु, कड़वा, गरम, कसैला, वातवर्धक शीतज, चरपरा, मलरोधक तृषा, दाह, पित्त कफ, रुधिरविकार, कुष्ठ और मूत्रकृच्छ का नाशक; फल को रूखा, हलका गरम, पाक में चरपरा, कफ, वात, उदररोग, कृमि, कुष्ठ, गुल्म, प्रमेह, बवासीर और शूल का नाशक; बीज को स्तिग्ध, चरपरा गरम, कफ और कृमि का नाशक और गोंद को मलरोधक, ग्रहणी, मुखरोग, खाँसी और पसीने को दूर करनेवाला लिखा है।

- यह वृक्ष पवित्र माने हुए वृक्षों में से हैं । इसका उल्लेख वेदों तक में मिलता है । श्रोत्रसूत्रों में कई यज्ञपात्रों के इसी की लकड़ी से बनाने की विधि है । गृह्वासूत्र के अनुसार उपनयन के समय में ब्राह्मणकुमार को इसी की लकड़ी का दंड ग्रहण करने की विधि है।

- इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है।

- पलाश फूल से स्नान करने से ताजगी महसूस होती है। पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता।

- पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम तो करती ही है इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है।

- पलाश के बीजों में पैलासोनिन नामक तत्त्व पाया जाता है, जो उत्तम कृमिनाशक है। 3 से 6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें । चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरण्डी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलायें, इससे कृमि निकल जायेंगे।

- इस फूल को कई लोग सहेजकर रखते है क्योंकि इससे कार्तिक और माघ मास में भगवान शिव का पूजन करने की परंपरा हैं।

- इसके पुष्प मधुर व शीतल हैं। उनके उपयोग से पित्तजन्य रोग शांत हो जाते हैं।

- इसकी जड़ अनेक नेत्ररोगों में लाभदायी है।

- पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिलाकर धूप करने से बुद्धि शुद्ध होती है व बढ़ती भी है।

- महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें। अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है।

- मूत्र-संबंधी विकारों में पलाश के फूलों का काढ़ा (50 मि.ली.) मिलाकर पिलायें।

- रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है।

- आँख आने पर (Conjunctivitis) फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजें।

- स्वस्थ संतान की प्राप्ति के लिए दूध के साथ प्रतिदिन एक पलाशपुष्प पीसकर दूध में मिला के गर्भवती माता को पिलायें।

- बीज-चूर्ण को नींबू के रस में मिलाकर दाद पर लगाने से वह मिट जाती है।

- पलाश के बीज आक (मदार) के दूध में पीसकर बिच्छूदंश की जगह पर लगाने से दर्द मिट जाता है।

- बालकों की आँत्रवृद्धि (Hernia) में छाल का काढ़ा (25 मि.ली.) बनाकर पिलायें।

- नाक, मल-मूत्रमार्ग अथवा योनि द्वारा रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें।

- बवासीर में पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में बनाकर दही के साथ खायें।

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