Monday, 23 December 2013

Ayurvedic dohe


स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र
























स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र

-सदा ब्रह्ममुहूर्त (पातः 4-5 बजे) में उठना चाहिए।
इस समय प्रकृति मुक्तहस्त से स्वास्थ्य, प्राणवायु,
प्रसन्नता, मेघा, बुद्धि की वर्षा करती है।

-बिस्तर से उठते ही मूत्र त्याग के पश्चात उषा पान
अर्थात बासी मुँह 2-3 गिलास शीतल जल के सेवन
की आदत सिरदर्द, अम्लपित्त, कब्ज, मोटापा,
रक्तचाप, नैत्र रोग, अपच सहित कई रोगों से
हमारा बचाव करती है।

-स्नान सदा सामान्य शीतल जल से करना चाहिए।
(जहाँ निषेध न हो)

-स्नान के समय सर्वप्रथम जल सिर पर
डालना चाहिए, ऐसा करने से मस्तिष्क
की गर्मी पैरों से निकल जाती है।

-दिन में 2 बार मुँह में जल भरकर, नैत्रों को शीतल जल
से धोना नेत्र दृष्टि के लिए लाभकारी है।

-नहाने से पूर्व, सोने से पूर्व एवं भोजन के पश्चात् मूत्र
त्याग अवश्य करना चाहिए। यह आदत आपको कमर
दर्द, पथरी तथा मूत्र सम्बन्धी बीमारियों से
बचाती है।

-सरसों, तिल या अन्य औषधीय तेल की मालिश
नित्यप्रति करने से वात विकार,, बुढ़ापा, थकावट
नहीं होती है। त्वचा सुन्दर , दृष्टि स्वच्छ एवं शरीर
पुष्ट होता है।

-शरीर की क्षमतानुसार प्रातः भ्रमण, योग,
व्यायाम करना चाहिए।
अपच, कब्ज, अजीर्ण,
मोटापा जैसी बीमारियों से बचने के लिए भोजन
के 30 मिनट पहले तथा 30 मिनट बाद तक जल
नहीं पीना चाहिए। भोजन के साथ जल
नहीं पीना चाहिए। घूँट-दो घूँट ले सकते हैं।
दिनभर में 3-4 लीटर जल थोड़ा-थोड़ा करके पीते
रहना चाहिए।

-भोजन के प्रारम्भ में मधुर-रस (मीठा), मध्य में अम्ल,
लवण रस (खट्टा, नमकीन) तथा अन्त में कटु, तिक्त,
कषाय (तीखा, चटपटा, कसेला) रस के
पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

-भोजन के उपरान्त वज्रासन में 5-10 मिनट
बैठना तथा बांयी करवट 5-10 मिनट
लेटना चाहिए।

-भोजन के तुरन्त बाद दौड़ना, तैरना, नहाना, मैथुन
करना स्वास्थ्य के बहुत हानिकारक है।

-भोजन करके तत्काल सो जाने से
पाचनशक्ति का नाश हो जाता है जिसमें
अजीर्ण, कब्ज, आध्मान, अम्लपित्त
(प्दकपहमेजपवदए ब्वदेजपचंजपवदए ळंेजतपजपेए ।
बपकपजल) जैसी व्याधियाँ हो जाती है। इसलिए
सायं का भोजन सोने से 2 घन्टे पूर्व हल्का एवं
सुपाच्य करना चाहिए।

-शरीर एवं मन को तरोताजा एवं क्रियाशील रखने
के लिए औसतन 6-7 घन्टे की नींद आवश्यक है।

-गर्मी के अलावा अन्य ऋतुओं में दिन में सोने एवं
रात्री में अधिक देर तक जगने से शरीर में भारीपन,
ज्वर, जुकाम, सिर दर्द एवं अग्निमांध होता है।

-दूध के साथ दही, नीबू, नमक, तिल उड़द, जामुन,
मूली, मछली, करेला आदि का सेवन
नहीं करना चाहिए। त्वचा रोग एवं ।ससमतहल होने
की सम्भावना रहती है।

-स्वास्थ्य चाहने वाले व्यक्ति को मूत्र, मल, शुक्र,
अपानवायु, वमन, छींक, डकार, जंभाई, प्यास, आँसू
नींद और परिश्रमजन्य श्वास के वेगों को उत्पन्न
होने के साथ ही शरीर से बाहर निकाल
देना चाहिए।

-रात्री में सोने से पूर्व दाँतों की सफाई,
नैत्रों की सफाई एवं पैरों को शीतल जल से धोकर
सोना चाहिए।

-रात्री में शयन से पूर्व अपने किये गये
कार्यों की समीक्षा कर अगले दिन की कार्य
योजना बनानी चाहिए। तत्पश्चात् गहरी एवं
लम्बी सहज श्वास लेकर शरीर को एवं मन
को शिथिल करना चाहिए। शान्त मन से अपने
दैनिक क्रियाकलाप, तनाव, चिन्ता, विचार सब
परात्म चेतना को सौंपकर निश्चिंत भाव से
निद्रा की गोद में जाना चाहिए।

आयुर्वेद के हिसाब से जानिए कैसा है आपका शरीर....

























आयुर्वेद के हिसाब से जानिए कैसा है
आपका शरीर....

क्या आपको पता है
कि आपका शरीर कैसा है? आयुर्वेद में
शरीर को तीन तरह
का माना जाता है - वात, पित्त
और कफ। आयुर्वेद के अनुसार, हम सभी का शरीर इन
तीनों में से किसी एक प्रवृत्ति का होता है, जिसके
अनुसार उसकी बनावट, दोष, मानसिक अवस्था और
स्वभाव का पता लगाया जा सकता है।

अगर आप अपने शरीर के बारे में इतना कुछ जान लेंगे
तो यकीनन अपनी सेहत से जुड़ी समस्याओं को हल करने
और फिट रहने में आपको मदद मिलेगी। तो जानिए,
आखिर कैसा है आपका शरीर।

-(1) वात युक्त शरीर

आयुर्वेद के अनुसार, वात युक्त शरीर का स्वामी वायु
होता है।

बनावट - इस तरह के शरीर वाले लोगों का वजन
तेजी से नहीं बढ़ता और ये अधिकतर छरहरे होते हैं।
इनका मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है लेकिन इन्हें
सर्दी लगने की आशंका अधिक रहती है। आमतौर पर
इनकी त्वचा ड्राइ होती है और नब्ज तेज चलती है।

स्वभाव - सामान्यतः ये बहुत ऊर्जावान और फिट
होते हैं। इनकी नींद कच्ची होती है इसलिए अक्सर इन्हें
अनिद्रा की शिकायत अधिक रहती है। इनमें
कामेच्छा अधिक होती है। इस तरह के लोग
बातूनी किस्म के होते हैं।

मानसिक स्थिति - ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते
हैं और अपनी भावनाओं का झट से इजहार कर देते हैं।
हालांकि इनकी याददाश्त कमजोर होती है और
आत्मविश्वास अपेत्राकृत कम रहता है। ये बहुत
जल्दी तनाव में आ जाते हैं।

डाइट - वात युक्त शरीर वाले लोगों को डाइट में
अधिक से अधिक फल, बीन्स, डेयरी उत्पाद, नट्स
आदि का सेवन अधिक करना चाहिए।

-(2) पित्त युक्त शरीर

आयुर्वेद के अनुसार, पित्त युक्त शरीर का स्वामी आग
है।

बनावट -इस तरह के शरीर के लोग आमतौर पर मध्यम
कद-काठी के होते हैं। इनमें मांसपेशियां अधिक
होती हैं और इन्हें गर्मी अधिक लगती है। अक्सर ये कम
समय में ही गंजेपन का शिकार हो जाते हैं।
इनकी त्वचा कोमल होती है और इनमें ऊर्जा का स्तर
अधिक रहता है।

स्वभाव - इस तरह के लोगों को विचलित
करना आसान नहीं होता। इन्हें गहरी नींद आती है,
कामेच्छा और भूख तेज लगती हैं। आमतौर पर इनके बोलने
की टोन ऊंची होती है।

मानसिक स्थिति - इस तरह के लोग आत्मविश्वास
और महत्वाकांक्षा से भरपूर होते हैं। इन्हें परफेक्शन
की आदत होती है और हमेशा आकर्षण का केंद्र बने
रहना चाहते हैं।

डाइट - पित्त युक्त शरीर के लिए डाइट में सब्जियां,
फल, आम, खीरा, हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिए
जिससे शरीर में पित्त दोष अधिक न हो।

-(3) कफ युक्त शरीर

कफ युक्त शरीर के स्वामी जल और पृथ्वी होते हैं।
आमतौर पर इस तरह के शरीर वाले
लोगों की संख्या अधिक होती है।

बनावट - इनके कंधे और कमर का हिस्सा अधिक
चौड़ा होता है। ये अक्सर तेजी से वजन बढ़ा लेते हैं
लेकिन इनमें स्टैमिना अधिक होता है। इनका शरीर
मजबूत होता है।

स्वभाव - इस तरह के लोग भोजन के बहुत शौकीन होते
हैं और थोड़े आलसी होते हैं। इन्हें सोना बहुत पसंद
होता है। इनमें सहने की क्षमता अधिक होती है और ये
समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं।
मानसिक स्थिति - इन्हें सीखने में समय लगता है और
भावनात्मक होते ह

डाइट - कफ युक्त शरीर के लिए डाइट में बहुत अधिक
तैलीय और हेवी भोजन से थोड़ा परहेज करना चाहिए।
हां, मसाले जैसे काली मिर्च. अदरक, जीरा और मिर्च
का सेवन इनके लिए फायदेमंद हो सकता है। हल्का गर्म
भोजन इनके लिए अधिक फायदेमंद है।