साइटिका का लक्षण और इलाज
एक पैर मे पंजे से लेकर कमर तक दर्द होना गृध्रसी या रिंगण बाय कहलाता है। प्रायः पैर के पंजे से लेकर कूल्हे तक दर्द होता है जो लगातार होता रहता है। मुख्य लक्षण यह है कि दर्द केवल एक पैर मे होता है। दर्द इतना अधिक होता है कि रोगी सो भी नहीं पाता।
चिकित्सा -
ये चिकित्सा बहुत अनुभव की है। बहुत अधिक परेशानी मे मे भी तीन दिन मे फायदा हो जाता है स्थायी लाभ के लिए 10-15 दिन जरूर प्रयोग करें।
हारसिंगार, पारिजात के 10-15 मुलायम पत्ते तोड़ लाएँ। पत्तों को धो कर मिक्सी मे या कैसे ही थोड़ा सा कूट पीस ले। बहुत अधिक बारीक पीसने कि जरूरत नहीं है। एक गिलास पानी मे धीमी आंच पर उबालें। चाय कि तरह छान कर गरम गरम पानी (काढ़ा) पी ले। प्रतिदिन दो बार पीजिये, पहली बार मे ही 10% फायदा होगा । काढ़े से 15 मिनट पहले और 1 घंटा बाद तक ठंडा पानी न पियें।
दही लस्सी और अचार न खाएं। बार बार प्रयोग किया है । कभी असफल नहीं हुआ। पारिजात (Nyctanthes arbor-tristis) एक पुष्प देने वाला वृक्ष है। इसे परिजात, हरसिंगार, शेफाली, शिउली आदि नामो से भी जाना जाता है। इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊँचा होता है। इसका वानस्पतिक नाम 'निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस' है। पारिजात पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। यह सब स्थानो पर मिलता है। इसकी सबसे बड़ी पहचान है सफ़ेद फूल केसरिया डंडी। सुबह सब फूल झड़ जाते है।
इसके साथ योगराज गुग्गल व वातविध्वंसक वटी एक एक गोली दोनों समय लें । आवश्यकतानुसार इस उपचार को 40 से 45 दिनों तक करलें ।
अन्य उपचार-
एरण्ड के बीजों की पोटली बनालें व इसे तवे पर गर्म करके जहाँ दर्द हो वहाँ सेंकने से दर्द दूर होता है ।
एक गिलास दूध में एक कप पानी डाल दें और इसमें लहसुन की 6-7 कलियां काटकर डाल दें । फिर इसे इतना उबालें कि यह आधा रह जाए तो ठण्डा होने पर पी लें । यह सायटिका की उत्तम दवा मानी जाती है ।
सायटिका के दर्द को दूर करने के लिये आधा कप गोमूत्र में डेढ कप केस्टर आईल (अरण्डी का तेल) मिलाकर सोते समय एक माह पीने से यह दुष्ट रोग चला जाता है ।
निर्गुण्डी के 100 ग्राम बीज साफ करके कूट-पीसकर बराबर मात्रा की 10 पुडिया बना लें । सूर्योदय से पहले आटे या रवे का हलवा बनाएँ और उसमें शुद्ध घी व गुड का प्रयोग करें, वेजीटेबल घी व शक्कर का नहीं । जितना हलवा खा सकें उतनी मात्रा में हलवा लेकर एक पुडिया का चूर्ण उसमें मिलाकर हलवा खा लें और फिर सो जाएँ । इसे खाकर पानी न पिएँ सिर्फ कुल्ला करके मुँह साफ करलें । दस पुडिया दस दिन में इस विधि से सेवन करने पर सायटिका, जोडों का दर्द, कमर व घुटनों का दर्द होना बन्द हो जाता है । इस अवधि में पेट साफ रखें व कब्ज न होने दें ।
मीठी सुरंजान 20 ग्राम, सनाय 20 ग्राम, सौंफ़ 20 ग्राम, शुद्ध गंधक 20 ग्राम, मेदा लकड़ी 20 ग्राम, छोटी हरड़ 20 ग्राम, सेंधा नमक 20 ग्राम। इन सब को मजबूत हाथों से घोंट लें व दिन में तीन बार तीन-तीन ग्राम गर्म पानी से लीजिये।
लौहभस्म 20 ग्राम, रस सिंदूर 20 ग्राम, विषतिंदुक बटी 10 ग्राम, त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम इन सबको अदरक के रस के साथ घोंट कर 250 मिलीग्राम के वजन की गोलियां बना लीजिये और दो-दो गोली दिन में तीन बार गर्म पानी से लीजिये।
दवा खाली पेट न लें, बासी भोजन और बाजारू आहार हरगिज न खाएं। कोक पेप्सी बिलकुल न पिएं। तीन माह तक इस उपचार को लगातार ले लेने से आपकी समस्या स्थायी तौर पर खत्म हो जाएगी। लाभ भी आपको मात्र तीन दिन में ही दिखने लगेगा।
निर्जलीकरण: Dehydration
बार-बार या ज्यादा प्यास लगने से रोकने के लिए शरीर से अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ समाप्त हो जाना जल्ह्रास या निर्जलीकरण (अंग्रेज़ी:डी-हाइड्रेशन) कहलाता है। मानव शरीर को कार्य करने के लिए निर्धारित मात्रा में कम से कम ८ गिलास के बराबर (एक लीटर या सवा लीटर) तरल पदार्थ शरीर के लिए आवश्यक होता है जो व्यक्ति के कार्य करने की क्षमता और आयु पर निर्भर करता है। परंतु अधिक कार्यशील व्यक्ति को इससे दो या तीन गुना अधिक तरल पदार्थ की आवश्यकता होती है। साधारण मानव जो तरल पदार्थ लेते हैं, वह उस तरल पदार्थ का स्थान ले लेती है जो शारीरिक कार्य को करने के लिए आवश्यक होता है। यदि कोई शरीर की आवश्यकता से कम तरल पदार्थ लेते हैं, तब निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) हो जाता है।
1 बार-बार या ज्यादा प्यास लगने से रोकने के लिए कच्चे चावल के दाने चबाने (१-२ ग्राम) लेकर चबा लीजिए, बार बार प्यास लगना बंद हो जाएगी। मधुमेह के रोगियों को बार बार प्यास लगने की समस्या का निवारण इसी फ़ार्मुले से किया जा सकता है। वैसे जब भी आप पहाडों या लंबी पगडंडियों पर सैर सपाटों के लिए जाएं, तो इस फ़ार्मुले को जरूर अपनाएं, प्यास कम लगेगी और थकान भी कम होगी। हर्बल फ़ार्मुला है, नुकसान कुछ नहीं, स्वस्थ रहिए- मस्त रहिए
2.दो चम्मच दही लें और उसमे छोटी इलायची पीस कर मिला लें और इसे चाटने से भी आपकी प्यास (thirsty) कम हो जाती है |
3.शहद को पानी में मिलकर कुल्ले करने से भी प्यास (thirsty) में कमी होती है
4.लॉन्ग को मुंह में रखकर आप अपनी प्यास (thirsty) की समस्या से निजात पा सकते है |
5.भुने हुए जौ के आटे को पानी में मिलाकर उसमे घी मिलाकर पीने से भी प्यास (thirsty) में कमी आती है साथ ही आपके शरीर की जलन भी ठीक हो जाती है |
6 पुदीने के पत्तो को पीसकर ठन्डे पानी में मिलाकर पीने से भी आपकी प्यास (thirsty) सही हो जाती है और साथ में शरीर को भी ठंडक मिलती है
इमली (Tamarind)
इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह अमेरिका, अफ्रीका और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। 8 वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। फरवरी और मार्च के महीनों में इमली पक जाती है। इमली शाक (सब्जी), दाल, चटनी आदि कई चीजों में डाली जाती है। इमली का स्वाद खट्टा होने के कारण यह मुंह को साफ करती है। पुरानी इमली नई इमली से अधिक गुणकारी होती है। इमली के पत्तों का शाक (सब्जी) और फूलों की चटनी बनाई जाती है। इमली की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इस कारण लोग इसकी लकड़ी से कुल्हाड़ी आदि के दस्ते भी बनाते हैं।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. खूनी बवासीर (रक्त-अर्श):
इमली की छाल का चूर्ण बनाकर कपडे़ में छानकर सुबह तथा शाम गाय के दही के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
खूनी बवासीर के रोग में इमली के पत्तों का रस पीने से बहुत लाभ होता है।
1 से 2 ग्राम इमली के बीजों की राख को दही के साथ मिलाकर चाटने से खूनी बवासीर मिट जाती है।
2. प्रमेह:
6 ग्राम इमली की छाल की राख को लगभग 55 ग्राम कच्ची गिरी के साथ मिलाकर 5-6 दिन तक सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।
125 ग्राम इमली के बीजों को 250 मिलीलीटर दूध में भिगो दें। 3 दिन के बाद छिलके उतारकर, साफ करके पीस लेते हैं। इसे सुबह-शाम 6 ग्राम की मात्रा में गाय के दूध या पानी से लेने से प्रमेह रोग दूर होता है।
3. पाण्डु (पीलिया) रोग:
10 ग्राम इमली की छाल की राख को 40 ग्राम बकरी के मूत्र में मिलाकर देने से लाभ मिलता है।
इमली को पानी में भिगोकर, मथ (मिलोकर) कर पानी पीना उपयोगी है।
4. बिच्छू के विष: इमली के सिंके हुए बीजों को घिसें, जब इसका सफेद भाग दिखे तो इसे डंक के स्थान पर लगा दें। यह बीज विश (जहर) चूसकर अपने आप ही हटकर गिर जाएगा।
5. सिर दर्द:
पानी में इमली को भिगोकर इसमें थोड़ी शक्कर मिलाकर सुबह और शाम को 2 या 3 बार पीने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
10 ग्राम इमली को 1 गिलास पानी में भिगोकर थोड़ा सा मसलकर और छानकर उसमें शक्कर मिलाकर पीने से पित्त से उत्पन्न सिर दर्द दूर होता है।
इमली की छाल का चूर्ण अथवा राख गर्म जल में डालकर पीने सिर दर्द में लाभ होता है।
6. चूहे के विष पर: 40 ग्राम इमली और 20 ग्राम धमासे को पुराने घी में मिलाकर 7 दिन तक खाने से चूहे का जहर उतर जाता है।
7. आंखों में दर्द: इमली के हरे पत्तों और एरण्ड के पत्तों को गर्म कर इसका रस निकाल लें, फिर इसमें फूली हुई फिटकरी और चना भर अफीम तांबे के बर्तन में घोंटे और उसमें कपड़ा भिगोकर आंखों में रखें। इससे आंखों के दर्द में लाभ होता है।
8. अजीर्ण (पुरानी कब्ज): इमली की ऊपर की छाल को जलाकर, सोते समय लगभग 6 ग्राम गर्म पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण रोग में लाभ होता है।
9. भूख कम लगना: इमली के पत्तों की चटनी बनाकर खाने से भूख तेज लगने लगती है।
10. भांग के नशे पर: इमली को गलाकर उसका पानी पीने से भांग का नशा उतर जाता है।
दूध (Milk)
दूध पुराने समय से ही मनुष्य को बहुत पसन्द है। दूध को धरती का अमृत कहा गया है। दूध में विटामिन `सी´ को छोड़कर शरीर के लिए सभी पोषक तत्त्व यानि विटामिन हैं। इसलिए दूध को पूर्ण भोजन माना गया है। सभी दूधों में माता के दूध को श्रेष्ठ माना जाता है, दूसरे क्रम में गाय का दूध है। बीमार लोगों के लिए गाय का दूध श्रेष्ठ है। गैस तथा मन्दपाचनशक्ति वालों को सोंठ, इलायची, पीपर, पीपरामूल जैसे पाचक मसाले डालकर उबला हुआ दूध पीना चाहिए। दूध को ज्यादा देर तक उबालने से उसके पोषक तत्व कम हो जाते हैं और दूध गाढ़ा हो जाता है। दूध को उबालकर उससे मलाई निकाली जाती है। मलाई गरिष्ठ, शीतल (ठण्डा), बलवर्धक, तृप्तिकारक, पुष्टिकारक, कफकारक और धातुवर्धक है। यह पित, वायु, रक्तपित एवं रक्तदोष को खत्म करती है। गुड़ डाला हुआ दूध मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) को खत्म करता है। सुबह का दूध विशेषकर शाम के दूध की तुलना में भारी व ठण्डा होता है। रात में पिया हुआ दूध बुद्धिवर्द्धक, टी.बी.नाशक, बूढ़ों के लिए वीर्यप्रद आदि दोषों को खत्म करने वाला होता है। खाने के बाद होने वाली जलन को शान्त करने के लिए रात में दूध पीना चाहिए।

विभिन्न रोगों में सहायक :
1. शिशु शक्तिवर्धक: बच्चे बड़े होने पर कमजोर हो या उन्हें सूखा रोग (रिकेटस) हो तो उन्हें दूध में बादाम मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
2. शक्तिवर्धक: आधा किलो दूध में 250 ग्राम गाजर को कद्दूकस से छोटे-छोटे पीस करके उबालकर सेवन करने से दूध जल्दी हजम हो जाता है। दस्त साफ आता है व दूध में लोहे की मात्रा अधिक हो जाती है।
3. स्त्रीप्रसंग (संभोग) के बाद की कमजोरी: स्त्री प्रसंग (संभोग) करने के बाद एक गिलास दूध में 5 बादाम पीसकर मिलाएं और इसमें 1 चम्मच देशी घी डालें और पी जाएं। इस प्रयोग से बल मिलता है। नामर्दी दूर करने के लिए सर्दियों के मौसम में दूध में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग केसर डालकर पीना चाहिए।
4. अम्लपित्त:
जिन्हें अम्लपित्त (पेट से कंठों तक जलन) हो, उन्हें दिन में 3 बार ठण्डा दूध पीने से लाभ होता है।
गाय या बकरी के दूध का प्रयोग करना चाहिए। भैंस के दूध का सेवन हानिकारक होता है, इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
आधा गिलास कच्चा दूध, आधा गिलास पानी, 2 पिसी हुई छोटी इलायची मिलाकर सुबह पीने से अम्लपित्त में लाभ होता है।
5. थकान: थकावट दूर करने के लिए 1 गिलास गर्म दूध सेवन करना चाहिए।
6. होठों का सौन्दर्य: 1 चम्मच कच्चे दूध में थोड़ा-सा केसर मिलाकर होंठों पर मालिश करने से होंठों का कालापन दूर होकर रौनक बढ़ती है।
7. चेहरे का सौन्दर्य:
चेहरे पर से झांई, मुंहासे और दाग-धब्बे हटाने के लिए रात को सोने से पहले गर्म दूध चेहरे पर मलें, फिर आधे घंटे के बाद साफ पानी से धोयें इससे चेहरे की सुन्दरता बढे़गी, दूध की झाग चेहरे पर मलने से दाग-धब्बे समाप्त हो जाते हैं।
चेहरे पर झांई, कील, मुंहासे, दाग, धब्बे दूर करने के लिए सोने से पहले गर्म दूध चेहरे पर मले, चेहरा धोएं। आधा घंटे बाद साफ पानी से चेहरा धोएं। इससे चेहरे का सौन्दर्य बढ़ेगा। चेहरे के धब्बों पर ताजे दूध के झाग मिलने से धब्बे मिट जाते हैं। सोते समय चेहरे पर दूध की मलाई लगाने से भी कील-मुहांसे तथा दाग-धब्बों पर ताजे दूध के झाग मलने से धब्बे मिट जाते हैं।
8. खुजली: दूध में पानी मिलाकर रूई के फाहे से ‘शरीर पर रगड़ने के थोड़ी देर बाद स्नान करने से खुजली मिट जाती है।
9. आधासीसी का दर्द:
सूर्योदय (सुबह सूरज उगने से पहले) से पहले गर्म दूध के साथ जलेबी या रबड़ी खाने से आधाशीशी (आधे सिर के दर्द) का दर्द दूर हो जाता है।
50 ग्राम बकरी के दूध में लगभग 50 ग्राम भांगरे के रस को मिलाकर धूप में गर्म होने के लिए रख दें। अब इस मिले हुए दूध में लगभग 5 ग्राम कालीमिर्च के चूर्ण को मिलाकर सिर में मलने से आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है।
10. आंखों के रोग: आंखों में चोट लगी हो, जलन हो रही हो, मिर्च-मसाला गिरा हो, कोई कीड़ा गिर गया हो या दर्द होता हो, तो रूई के फाहे को दूध में भिगोकर आंखों पर रखने से आराम मिलता है। दूध की 2 बूंदे दूध आंखों में भी डालने से भी लाभ होता है।
मोतियाबिंद :
मोतियाबिंद आंखों का एक सामान्य रोग है। प्रायः पचपन वर्ष की आयु से अधिक के लोगों में मोतियाबिंद होता है, किन्तु युवा लोग भी इससे प्रतिरक्षित नहीं हैं। मोतियाबिंद विश्व भर में अंधत्व के मुख्य कारण हैं। ६० से अधिक आयु वालों में ४० प्रतिशत लोगों में मोतियाबिंद विकसित होता है। शल्य क्रिया ही इसका एकमात्र इलाज़ है, जो सुरक्षित एवं आसान प्रक्रिया है। आंखों के लेंस आँख से विभिन्न दूरियों की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। समय के साथ लेंस अपनी पारदर्शिता खो देता है तथा अपारदर्शी हो जाता है। लेंस के धुंधलेपन को मोतियाबिंद कहा जाता है। दृष्टिपटल तक प्रकाश नहीं पहुँच पाता है एवं धीरे-धीरे दृष्टि में कमी अन्धता के बिंदु तक हो जाती है। ज्यादातर लोगों में अंतिम परिणाम धुंधलापन एवं विकृत दृष्टि होते है। मोतियाबिंद का निश्चित कारण अभी तक ज्ञात नहीं है।
मोतियाबिंद के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनमें सबसे आम वृद्धावस्था का मोतियाबिंद है, जो ५० से अधिक आयुवाले लोगों में विकसित होता है। इस परिवर्तन में योगदान देने वाले कारकों में रोग, आनुवांशिकी, बुढ़ापा, या नेत्र की चोट शामिल है। वे लोग जो सिगरेट के धुएँ, पराबैंगनी विकिरण (सूर्य के प्रकाश सहित), या कुछ दवाएं के सम्पर्क मे रह्ते हैं, उन्हें भी मोतियाबिंद होने का खतरा होता है। मुक्त कण और ऑक्सीकरण एजेंट्स भी आयु-संबंधी मोतियाबिंद के होने से जुड़े हैं। इसके लक्षणों में समय के साथ दृष्टि में क्रमिक गिरावट, वस्तुयें धुंधली, विकृत, पीली या अस्पष्ट दिखाई देती हैं। रात में अथवा कम रोशनी में दृष्टि में कमी होना। रात में रंग मलिन दिखाई दे सकते हैं या रात की दृष्टि कमजोर हो सकती है। धूप या तेज रोशनी में दृष्टि चमक से प्रभावित होती है। चमकदार रोशनी के चारों ओर कुण्डल दिखाई देते हैं। मोतियाबिंद से खुजली, आंसू आना या सिर दर्द नहीं होता है।
उपचार:
1.वर्तमान में लेंस की पारदर्शिता को पुनर्स्थापित करने वाली कोई भी दवा उपलब्ध नहीं है। चश्मे मदद नहीं कर पाते क्योंकि प्रकाश की किरणें आंखों से पारित नहीं हो पाती हैं। शल्यक्रिया के द्वारा हटाना ही मोतियाबिंद के इलाज का एकमात्र तरीका है। मोतियाबिंद सर्जरी के विभिन्न प्रकार होते हैं। यदि दृष्टि केवल कुछ धुंधली हो तो मोतियाबिंद का इलाज करने की आवश्यकता नहीं होती है। बस चश्मे बदलने से दृष्टि के सुधार में मदद मिलती है, लेकिन केवल थोड़े समय के लिए। सर्जरी तब करनी चाहिए जब मरीज को अपनी पसंद की चीजें करने के लिए पर्याप्त दिखाई न दें।
2.मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज: आयुर्वेद में मोतियाबिंद के अनेक सफल योग हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
आंखों में लगाने वाली औषधियाँ-
* मोतियाबिंद की शुरुआती अवस्था में भीमसेनी कपूर स्त्री के दूध में घिसकर नित्य लगाने पर यह ठीक हो जाता है।
* हल्के बड़े मोती का चूरा 3 ग्राम और काला सुरमा 12 ग्राम लेकर खूब घोंटें। जब अच्छी तरह घुट जाए तो एक साफ शीशी में रख लें और रोज सोते वक्त अंजन की तरह आंखों में लगाएं। इससे मोतियाबिंद अवश्य ही दूर हो जाता है।
* छोटी पीपल, लाहौरी नमक, समुद्री फेन और काली मिर्च सभी 10-10 ग्राम लें। इसे 200 ग्राम काले सुरमा के साथ 500 मिलीलीटर गुलाब अर्क या सौंफ अर्क में इस प्रकार घोटें कि सारा अर्क उसमें सोख लें। अब इसे रोजाना आंखों में लगाएं।
* 10 ग्राम गिलोय का रस, 1 ग्राम शहद, 1 ग्राम सेंधा नमक सभी को बारीक पीसकर रख लें। इसे रोजाना आंखों में अंजन की तरह प्रयोग करने से मोतियाबिंद दूर होता है।
*१०० ग्राम गुलाब जल
१५ नीम के पत्ते
आधा चम्मच हल्दी पाउडर
१५ तुलसी के पत्ते
२ ग्राम फिटकरी भुनी हुई का पाउडर
१/२ ग्राम शुद्ध अफीम
सबको मिलकर कांच की शीशी मई धुप मई ७ दिन के लिए रख दें फिर छानकर सुबह और शाम प्रयोग करें .जरूर लाभ होगा
खाने वाली औषधियाँ-
आंखों में लगने वाली औषधि के साथ-साथ जड़ी-बूटियों का सेवन भी बेहद फायदेमन्द साबित होता है। एक योग इस प्रकार है, जो सभी तरह के मोतियाबिंद में फायदेमन्द है-
* 500 ग्राम सूखे आँवले गुठली रहित, 500 ग्राम भृंगराज का संपूर्ण पौधा, 100 ग्राम बाल हरीतकी, 200 ग्राम सूखे गोरखमुंडी पुष्प और 200 ग्राम श्वेत पुनर्नवा की जड़ लेकर सभी औषधियों को खूब बारीक पीस लें। इस चूर्ण को अच्छे प्रकार के काले पत्थर के खरल में 250 मिलीलीटर अमरलता के रस और 100 मिलीलीटर मेहंदी के पत्रों के रस में अच्छी तरह मिला लें। इसके बाद इसमें शुद्ध भल्लातक का कपड़छान चूर्ण 25 ग्राम मिलाकर कड़ाही में लगातार तब तक खरल करें, जब तक वह सूख न जाए। इसके बाद इसे छानकर कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें। इसे रोगी की शक्ति व अवस्था के अनुसार 2 से 4 ग्राम की मात्रा में ताजा गोमूत्र से खाली पेट सुबह-शाम सेवन करें।
विभिन्न तेल के विभिन्न फायदे
शायद आप इस बात से अनजान ही होंगे कि जिस कड़ी पत्ता, हल्दी, दालचीनी, सौंफ आदि चीजों को खाना बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं उनसे बनने वाले तेल जिनको एसेंशियल ऑयल कहते हैं उनके सौन्दर्य और स्वास्थ्यवर्द्धक फायदों भी हैं। ये तेल बालों का झड़ना कम करने के साथ-साथ डिप्रेशन, जोड़ो का दर्द, बदहजमी जैसे तरह-तरह के समस्याओं पर जादु जैसा काम करता है।
दालचीनी का तेल
यह तेल ब्रेन के फंक्शन को बढ़ाने के साथ नर्वस के स्ट्रेस कम करने और याददाश्त दुरुस्त रखने में सहायता करता है।
मोगरे का तेल
मोगरे का तेल मेंटल और इमोशनल प्रॉबल्म पर असरदार रूप से काम करता है इसलिए डिप्रेशन, स्ट्रेस, गु्स्सा और डर जैसे समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करता है। इसका एन्टी बैक्टिरीयल गुण इंफेक्शन होने के संभावना को कम करता है। इसके ऐंठनरोधी गुणों के कारण ये मसल्स, ब्लड वेसल के तनाव को दूर करता है।
सौंफ का तेल
अगर आपको अधिकतर बदहजमी की समस्या के कारण पेट या सीने में दर्द होता है इस तेल का जादू इस समस्या पर ज़रूर चलेगा। सौंफ का तेल समय पूर्व रजोनिवृत्ति या प्रीमेनोपोज़ की समस्याएं दर्द, चक्कर आना या मूड स्विंग्स जैसे समस्याओं से राहत दिलाने के साथ पिरियड के रूकने जैसे समस्याओं से जूझने वाली महिलाओं को राहत प्रदान करने में सहायता करता है।
कड़ी पत्ते का तेल
अगर आपको बालों संबंधी कई तरह की समस्याएं हैं, जैसे बालों का झड़ना, असमय सफेद होना, बालों का नैचुरल रंग बरकरार रखना आदि तो ये तेल इस संदर्भ में असरदार रूप से काम करेगा। साथ ही छाछ या जूस में इस तेल का एक बूंद डाल देने से पेट संबंधी समस्याओं से भी कुछ हद तक राहत मिलता है।
लोबान का तेल (फ्रेंकिन्सेंस ऑयल)
लोबान का तेल जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने में असरदार रूप से काम करता है। अगर आपको एसिडिटी, बदहजमी, बेचैनी की समस्या ज्यादा होती है इस तेल का इस्तेमाल करें। फोड़े या किसी भी तरह से शरीर में दाग पड़ने में उस पर ये तेल लगाने से दूर होता है। अगर आपको ज्यादा पसीना आता है तो इस तेल का इस्तेमाल करना न भूलें।
हल्दी का तेल
वैसे तो हल्दी का इस्तेमाल हर डिश को बनाने के लिए किया जाता है लेकिन हल्दी तेल का एन्टी इनफ्लैमटोरी को अगर जोड़ों के दर्द या अर्थराइटिस के दर्द के समय इस्तेमाल किया गया तो जल्द आराम दिलाने में मदद करता है। इस तेल में एआर टर्मीरोन नाम का यौगिक रहता है जो लीवर को हेल्दी रखने के साथ-साथ फोड़ों या घाव को ठीक रखने में मदद करता है।
मनुष्य के शरीर में एक साईटिका नाड़ी होती है जिसका ऊपरी सिरा 1 इंच मोटा होता है। यह साईटिका नाड़ी शरीर में प्रत्येक नितम्ब के नीचे से शुरू होकर टांग के पीछे के भाग से होती हुई पैर की एड़ी पर खत्म होती है। इस साईटिका नाड़ी को साइटिका नर्व भी कहते हैं।
इस नाड़ी में जब सूजन तथा दर्द होने लगता है तो इसे साईटिका या फिर वात- शूल कहते हैं।
जब यह रोग होता है तो व्यक्ति के पैर में अचानक तेज दर्द होने लगता
है। यह रोग अधिकतर 30 से 50 वर्ष की आयु के लोगों को होता है।
साईटिका का दर्द
एक समय में एक ही पैर में होता है। जब यह दर्द सर्दियों में होता है तो यह रोगी व्यक्ति को और भी परेशान करता है। इस रोग में किसी-किसी रोगी को कफ प्रकोप भी हो जाता है। इस रोग के कारण रोगी को चलने में परेशानी होती है। रोगी व्यक्ति जब उठता-बैठता या सोता है तो उसकी टांगों की पूरी नसें खिंच जाती हैं और उसे बहुत कष्ट होता है।
साईटिका रोग होने के लक्षण:-
जब किसी व्यक्ति को साईटिका रोग हो जाता है तो उसके पैर के निचले
भाग से होते हुए ऊपर के भागों तक तेज दर्द होता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति अपने पैर को सीधा नहीं कर पाता है तथा सीधा खड़ा भी नहीं हो पाता है। रोगी व्यक्ति को चक्कर आने लगते हैं। रोगी व्यक्ति को कभी-कभी धीरे-धीरे दर्द होता है तो कभी बहुत तेज दर्द होता है। इस दर्द के
कारण रोगी व्यक्ति को बुखार भी हो जाता है।
साईटिका रोग होने का कारण:-
* जब किसी व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी में चोट लग जाती है तो उसे यह रोग हो जाता है।
* यदि साईटिका नाड़ी के पास विजातीय द्रव (दूषित द्रव) जमा हो जाता है तो नाड़ी दब जाती है जिसके कारण साईटिका रोग हो जाता है।
* रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में आर्थराइटिस रोग हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
* असंतुलित भोजन का सेवन करने तथा गलत तरीके के खान-पान से भी यह रोग हो जाता है।
* रात के समय में अधिक जागने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
अधिक समय तक एक ही अवस्था में बैठने या खड़े रहने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
* अपनी कार्य करने की क्षमता से अधिक परिश्रम करने के कारण या अधिक सहवास करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
साईटिका रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
* इस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म पानी में आधे घण्टे के लिए अपने पैरों को डालकर बैठ जाना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को तुरंत आराम मिल जाता है। इस क्रिया को प्रतिदिन करने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो
सकता है।
* साईटिका रोग को ठीक करने के लिए आधी बाल्टी पानी में 40-50 नीम की पत्तियां डाल दें और पानी को उबालें। फिर उबलते हुए पानी में थोड़े से मेथी के दाने तथा काला नमक डाल दें। फिर इस पानी को छान लें।
इसके बाद गर्म पानी को में दुबारा डाल दें और पानी को गुनगुना होने दे पैरों को डालकर बैठ जाएं तथा अपने शरीर के चारों ओर कंबल लपेट लें। रोगी व्यक्ति को कम से कम 15 मिनट के लिए इसी अवस्था में बैठना
चाहिए।
इसके बाद अपने पैरों को बाहर निकालकर पोंछ लें। इस प्रकार से 1 सप्ताह
तक उपचार करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
* लगभग 250 ग्राम पारिचाज के पत्तों को 1 लीटर पानी में अच्छी तरह से उबाल लें और जब उबलते-उबलते पानी 700 मिलीलीटर बच जाए तब उसे
छान लें। इस पानी में 1 ग्राम केसर पीसकर डाल दें और फिर इस पानी को ठंडा करके बोतल में भर दें। इस पानी को रोजाना 50-50 मिलीलीटर सुबह तथा शाम के समय पीने से यह रोग 30 दिनों में ठीक हो जाता है। अगर यह पानी खत्म हो जाए तो दुबारा बना लें।
* 100 ग्राम नेगड़ के बीजों को कूटकर पीस लें। फिर इसके 10 भाग करके 1-1 पर्ची में पैक करके पुड़ियां बना लें। इसके बाद शुद्ध घी में सूजी या आटे
का हलवा बना लें और जितना हलवा खा सकते हैं उसको अलग निकाल लें। इस हलवे में एक पुड़िया नेगड़ के चूर्ण की डालकर इसे खा लें और मुंह धो लें। लेकिन रोगी व्यक्ति को पानी नहीं पीना चाहिए। इस हलवे का
कम से कम 10 दिनों तक सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
* 20 ग्राम आंवला,
20 ग्राम मेथी दाना,
20 ग्राम काला नमक,
10 ग्राम अजवाइन और
5 ग्राम नमक को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें।
इस चूर्ण को 1 चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
* प्रतिदिन 2 लहसुन की कली तथा थोड़ी-सी अदरक खाने के साथ लेने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
* तुलसी की 5 पत्तियां प्रतिदिन सुबह के समय में खाने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार कराते समय क्रोध तथा चिंता को बिल्कुल छोड़ देना चाहिए। रोगी को प्रतिदिन अपने पैरों पर सरसों के तेल से नीचे से ऊपर की ओर मालिश करनी चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
5 कालीमिर्चों को तवे पर सेंककर कर सुबह के समय में खाली पेट मक्खन के साथ सेवन करना चाहिए। इस प्रयोग को प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
करेला, लौकी, टिण्डे, पालक , बथुआ तथा हरी मेथी का अधिक सेवन करने से साईटिका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को पपीते तथा अंगूर का अधिक सेवन करना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
सूखे मेवों में किशमिश, अखरोट, अंजीर , मुनक्का का सेवन करने से भी यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। फलों का रस दिन में 3 बार तथा आंवला का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से साईटिका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सबसे पहले एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद रोगी को अपने पैरों पर मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए।
इसके बाद रोगी को कटिस्नान करना चाहिए और फिर इसके बाद मेहन स्नान करना चाहिए। इसके बाद कुछ समय के लिए पैरों पर गर्म सिंकाई करनी चाहिए और गर्म पाद स्नान करना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से साईटिका रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
सुबह के समय में सूर्यस्नान करने तथा इसके बाद पैरों पर तेल से मालिश करने और कुछ समय के बाद रीढ़ स्नान करने तथा शरीर पर गीली चादर लपेटने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
सूर्यतप्त लाल रंग की बोतल के तेल की मालिश करने से तथा नारंगी रंग की बोतल का पानी कुछ दिनों तक पीने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
तुलसी के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
हार-सिंगार के पत्तों का काढ़ा सुबह के समय में प्रतिदिन खाली पेट पीने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
सुबह तथा शाम के समय में अपने पैरों पर प्रतिदिन 2 मिनट के लिए ताली बजाने से भी यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।
साईटिका रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के व्यायाम तथा योगासन हैं जिनको करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
ये आसन तथा योगासन इस प्रकार हैं-
इस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को पीठ के बल सीधे लेट जाना चाहिए। फिर रोगी को अपने पैरों को बिना मोड़े ऊपर की ओर उठाना चाहिए। इस क्रिया को कम से कम 20 बार दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक व्यायाम करने से साईटिका रोग ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को अपने दोनों पैरों को मोड़कर, अपने घुटने से नाभि को दबाना चाहिए। इस क्रिया को कई बार दोहराएं। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक व्यायाम करने से साईटिका रोग में बहुत लाभ मिलता है।
साईटिका रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को पीठ के बल सीधे लेटकर अपने घुटने को मोड़ते हुए पैरों को साइकिल की तरह चलाना चाहिए। इस व्यायाम को प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में करने से साईटिका रोग में आराम मिलता है।
साईटिका रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं जिनको प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है,
ये आसन इस प्रकार हैं- उत्तानपादासन , नौकासन, शवसान , वज्रासन तथा भुजंगासन आदि।
दुनीया का सबसे ताकतवर पोषण पुरक आहार है सहजन (मुनगा) 300 से अधि्क रोगो मे बहोत फायदेमंद इसकी जड़ से लेकर फुल, पत्ती, फल्ली, तना, गोन्द हर चीज़ उपयोगी होती है
आयुर्वेद में सहजन से तीन सौ रोगों का उपचार संभव है
सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना
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-विटामिन सी- संतरे से सात गुना
-विटामिन ए- गाजर से चार गुना
-कैलशियम- दूध से चार गुना
-पोटेशियम- केले से तीन गुना
प्रोटीन- दही की तुलना में तीन गुना
स्वास्थ्य के हिसाब से इसकी फली, हरी और सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम,
विटामिन-ए , सी और बी-काम्प्लेक्स प्रचुर मात्रा में पाई जाती है
इनका सेवन कर कई बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है, इसका बॉटेनिकल नाम ' मोरिगा ओलिफेरा ' है हिंदी में इसे सहजना , सुजना , सेंजन और मुनगा नाम से भी जानते हैं.
जो लोग इसके बारे में जानते हैं , वे इसका सेवन जरूर करते हैं
सहजन में दूध की तुलना में चार गुना कैल्शियम और दोगुना प्रोटीन पाया जाता है.
ये हैं सहजन के औषधीय गुण सहजन का फूल पेट और कफ रोगों में , इसकी फली वात व उदरशूल में , पत्ती नेत्ररोग , मोच , साइटिका , गठिया आदि में उपयोगी है
इसकी छाल का सेवन साइटिका , गठिया , लीवर में लाभकारी होता है। सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात और कफ रोग खत्म हो जाते हैं
इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया , साइटिका , पक्षाघात , वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है। साइटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है.
मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं और मोच के स्थान पर लगाने से जल्दी ही लाभ मिलने लगता है
सहजन की सब्जी के फायदे.
सहजन के फली की सब्जी खाने से पुराने गठिया , जोड़ों के दर्द , वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है।
इसके ताजे पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है साथ ही इसकी सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है,
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इसकी जड़ की छाल का काढ़ा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है
सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के किड़े निकालता है और उल्टी-दस्त भी रोकता है
ब्लड प्रेशर और मोटापा कम करने में भी कारगर सहजन का रस सुबह-शाम पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है
इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे-धीरे कम होनेलगता है
इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़े नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है
इसके कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होता है इसके अलावा इसकी जड़ के काढ़े को सेंधा नमक और हिंग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है।
इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सूजन ठीक होते हैं
पानी के शुद्धिकरण के रूप में कर सकते हैं इस्तेमाल सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
इसके बीज को चूर्ण के रूप में
पीसकर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लेरीफिकेशन एजेंट बन जाता है यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है , बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है।
काढ़ा पीने से क्या-क्या हैं फायदे
कैंसर और पेट आदि के दौरान शरीर के बनी गांठ , फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन , हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द) , जोड़ों में दर्द , लकवा ,दमा,सूजन , पथरी आदि में लाभकारी है |
सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है। आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से वायरस से होने वाले रोग , जैसे चेचक के होने का खतरा टल जाता है
शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है
सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है , जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिए अति आवश्यक है। सहजन में विटामिन-सी की मात्रा बहुत होती है। यह शरीर के कई रोगों से लड़ता है
सर्दी-जुखाम
यदि सर्दी की वजह से नाक-कान बंद हो चुके हैं तो , आप सहजन को पानी में उबालकर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।
हड्डियां होती हैं मजबूत.
सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है , जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं। इसके अलावा इसमें आइरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है
इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है , इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है, गर्भवती महिला को इसकी पत्तियों का रस देने से डिलीवरी में आसानी होती है।
सहजन में विटामिन-ए होता है, जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिए प्रयोग किया आता जा रहा है
इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढ़ापा दूर रहता है इससे आंखों की रोशनी भी अच्छी होती है
यदि आप चाहें तो सहजन को सूप के रूप में पी सकते हैं इससे शरीर का खून साफ होता है
चना के गुण :
चने अंकुरित करने की विधि :
सर्वप्रथम चने को साफ करके प्रातःकाल इतने पानी में भिगोएं जितना पानी चना सोख ले। एवं रात में साफ, मोटे, गीले कपडे़ या उसकी थैली में बांधकर लटका दें। गर्मी में 12 घंटे और सर्दी के मौसम में 18 से 24 घंटों के बाद भिगोकर गीले कपड़ों में बांधने से दूसरे, तीसरे दिन उसमें अंकुर निकल आते हैं। गर्मी में थैली में आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहना चाहिए। इस प्रकार चने अंकुरित हो जाएंगे।
अंकुरित चनों का नाश्ता एक उत्तम टॉनिक है। अंकुरित चनों में कुछ व्यक्ति स्वाद के लिए कालीमिर्च, सेंधानमक, अदरक एवं नींबू का रस भी मिलाते हैं परन्तु यदि अंकुरित चने को बिना किसी मिलावट के साथ खाएं तो अधिक लाभकारी है।
रोगों में चने के कुछ प्रयोग :
कब्ज:
• 1 या 2 मुट्ठी चनों को धोकर रात को भिगो दें। सुबह जीरा और सोंठ को पीसकर चनों पर डालकर खाएं। घंटे भर बाद चने भिगोये हुए पानी को भी पीने से कब्ज दूर होती है।
धातु पुष्टि:
• 1 मुट्ठी सेंके हुए चने या भीगे हुए चने और 5 बादाम खाकर दूध पीने से वीर्य का पतलापन दूर होकर वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
नपुंसकता:
• भीगे हुए चने सुबह-शाम चबाकर खाने से ऊपर से बादाम की गिरी खाने से मैथुन-शक्ति बढ़ती है और नंपुसकता खत्म होती है।
त्वचा का कालापन:
• लगभग 12 चम्मच बेसन, 3 चम्मच दही या दूध, थोड़ा सा पानी सभी को मिलाकर पेस्ट सा बनाकर पहले चेहरे पर मले और फिर सारे शरीर पर मलने के लगभग 10 मिनट बाद स्नान करें तथा स्नान में साबुन का उपयोग न करें। इस प्रकार का उबटन करते रहने से त्वचा का कालापन दूर हो जाएगा।
चेहरे का सौंदर्यवर्धक:
• चना के बेसन में नमक मिलाकर अच्छी तरह गौन्दकर लेप बना लें। इस लेप को चेहरे पर मलने से त्वचा में झुर्रियां नहीं आती हैं और चेहरा सुन्दर रहता है।
अण्डकोष वृद्धि :
• चने के बेसन को पानी और शहद में मिलाकर अण्डकोष की सूजन पर लगाने से लाभ होता है।
श्वेतप्रदर :
• प्रातः सेंके हुए चने पीसकर उसमें खाण्ड मिलाकर खाएं। ऊपर से एक गिलास दूध में एक चम्मच देशी घी मिलाकर पियें। इससे श्वेतप्रदर लाभ होता है।
चेहरे की झांई के लिए:
• रात्रि में 2 बड़े चम्मच चने की दाल को आधा कप दूध में भिगोकर रख दें। सुबह दाल को पीसकर उसी दूध में मिला लें। फिर इसमें एक चुटकी हल्दी और 6 बूंदे नींबू की मिलाकर चेहरे पर लगाकर रखें। सूखने पर चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें। इस पैक को सप्ताह में तीन बार लगाने से चेहरे की झाईयां दूर हो जाती हैं।
खाज-खुजली:
• चने के आटे की रोटी को लगातार 64 दिन तक खाने से दाद, खुजली आदि रोग मिट जाते हैं।
निम्न रक्तचाप:
• 20 ग्राम काला चना और 25 दाने किशमिश या मुनक्का रात को ठण्डे पानी में भिगो दें। सुबह रोजाना खाली पेट खाने से निम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) में लाभ होगा और साथ ही चेहरे की चमक भी बढ़ जाती है।
पीलिया :
• चना का सत्तू पीलिया रोग में लाभदायक है। 1 मुट्ठी चने की दाल को 2 गिलास पानी में भिगो दें। फिर दाल को निकालकर बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर 3 दिन तक खाना चाहिए। प्यास लगने पर दाल का वहीं पानी पीना चाहिए। इससे पीलिया रोग नष्ट हो जाता है।
सफेद दाग:
• मुट्ठी भर काले चने और 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण (हरड़, बहेड़ा, आंवला) को 125 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। कम से कम 12 घंटों के बाद इन चनों को मोटे कपड़े में बांधकर रख दें और बचा हुआ पानी कपडे़ की पोटली के ऊपर डाल दें। फिर 24 घंटे के बाद पोटली को खोल दें अब तक इन चनों में से अंकुर निकल आयेंगे। यदि किसी मौसम में अंकुर न भी निकले तो चनों को ऐसे ही खा लें। इस तरह से अंकुरित चनों को चबा-चबाकर लगातार 6 हफ्तों खाने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं।
शरीर का वजन बढ़ाने के लिए :
• लगभग 50 ग्राम की मात्रा में चने की दाल को लेकर शाम को 100 मिलीलीटर कच्चे दूध में भिगोकर रख दें। अब इस दाल को सुबह उठकर किशमिश और मिश्री में मिलाकर अच्छी तरह से चबाकर खायें। इसका सेवन लगातार 40 दिनों तक करना चाहिए। इससे शरीर को ताकत मिलती है और मनुष्य का वीर्य बल भी बढ़ता है। रात को सोते समय थोड़े से देशी चने लेकर उनको पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उठकर गुड़ के साथ इन चनों को रोजाना खूब चबाकर खाने से शरीर की लम्बाई बढ़ती है। चनों की मात्रा शरीर की पाचन शक्ति के अनुसार बढ़ानी चाहिए। इन चनों को 2-3 तीन महीने तक खाना चाहिए।
किडनी अकर्मण्यता के आसान उपचार:
How to deal with kidney falure
किडनी फेल्योर क्या है -
शरीर मे किडनी का मुख्य कार्य शुद्धिकरण का होता है| लेकिन किडनी के किसी रोग की वजह से जब दोनों गुर्दे अपना सामान्य कार्य करने मे अक्षम हो जाते हैं तो इस स्थिति को हम किडनी फेल्योर कहते हैं| खून मे क्रिएट्नीन और यूरिया की मात्रा की जांच से किडनी की कार्यक्षमता का पता चलता है| वैसे तो किडनी की क्षमता शरीर की आवश्यकता से ज्यादा होती है इसलिए गुर्दे को थोड़ा नुकसान हो भी जाये तो भी खून की जाच मे कोई खराबी देखने को नहीं मिलती है| जब रोग के कारण किडनी 50 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो जाती तभी खून की जांच मे यूरिया और क्रिएट्नीन की बढ़ी हुई मात्रा का प्रदर्शन होता है|
किडनी वास्तव में रक्त का शुद्धिकरण करने वाली एक प्रकार की 11 सैं.मी. लम्बी काजू के आकार की छननी है जो पेट के पृष्ठभाग में मेरुदण्ड के दोनों ओर स्थित होती हैं। प्राकृतिक रूप से स्वस्थ गुर्दे में रोज 60 लीटर जितना पानी छानने की क्षमता होती है। सामान्य रूप से वह 24 घंटे में से 1 से 2 लीटर जितना मूत्र बनाकर शरीर को निरोग रखती है। किसी कारणवशात् यदि एक गुर्दा कार्य करना बंद कर दे अथवा दुर्घटना में खो देना पड़े तो उस व्यक्ति का दूसरा गुर्दा पूरा कार्य सँभालता है एवं शरीर को विषाक्त होने से बचाकर स्वस्थ रखता है।
गुर्दों का विशेष सम्बन्ध हृदय, फेफड़ों, यकृत एवं प्लीहा (तिल्ली) के साथ होता है। ज्यादातर हृदय एवं गुर्दे परस्पर सहयोग के साथ कार्य करते हैं। इसलिए जब किसी को हृदयरोग होता है तो उसके गुर्दे भी बिगड़ते हैं और जब गुर्दे बिगड़ते हैं तब उस व्यक्ति का रक्तचाप उच्च हो जाता है और धीरे-धीरे दुर्बल भी हो जाता है।गुर्दे के रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इसका मुख्य कारण आजकल के समाज मे हृदयरोग, दमा, श्वास, क्षयरोग,मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसे रोगों में किया जा रहा अंग्रेजी दवाओं का दीर्घकाल तक अथवा आजीवन सेवन है।
किडनी अकर्मण्यता के लक्षण-
1. उल्टी होना
2. भूख न लगाना
3. थकावट और कमजोरी महसूस होना
4. नींद की समस्या होना
5. पेशाब की मात्रा कम हो जाना
6. दिमाग ठीक से काम नहीं करना
7. हिचकी आना
8. मांसपेशयों मे खिंचाव और आक्षेप आना
9. पैरों और टखने मे सूजन आना
10. लगातार खुजली होने की समस्या
11. हृदय मे पानी जमा होने पर छाती मे दर्द होना
12. हाई ब्ल प्रेशर जिसे से कट्रोल करना कठिन हो|
किडनी खराब करने वाली 10 आदतें-
1) पेशाब आने पर करने न जाना (रोकना)
2) रोज 8 गिलास से कम पानी पीना
3) बहुत ज्यादा नमक खाना
4) उच्च रक्त चाप के ईलाज मे लापरवाही
5) शुगर के ईलाज मे लापरवाही
6) अधिक मांसाहार करना|
7 दर्द नाशक(पेन किलर) दवाएं लगातार लेते रहना
8) ज्यादा शराब पीना
9) काम के बाद जरूरी मात्रा मे आराम नहीं करना
10) कोला , पेप्सी आदि साफ्ट ड्रिंक्स और सोडा पीना
हमारे गुर्दे रक्त में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों और जल को फ़िल्टर कर मूत्र के रूप में बाहर निकालने की क्रिया संपन्न करते हैं। हमारी मांसपेशियों में उपस्थित क्रिएटिन फ़ास्फ़ेटस के विखंडन से उर्जा उत्पन होती है और इसी प्रक्रिया में अपशिष्ट पदार्थ क्रिएटनीन बनता है । स्वस्थ गुर्दे अधिकांश क्रिएटनीन को फ़िल्टर कर मूत्र में निष्कासित करते रहते हैं। अगर खून में क्रिएटनीन का स्तर १.५ से ज्यादा हो जाता है तो समझा जाता है कि गुर्दे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। इसलिये खून में क्रिएटनीन की मात्रा का परीक्षण करना जरूरी होता है।
कुछ ऐसे उपाय जिनको व्यवहार में लाकर रोगी अपने खून मे क्रिटनीन की मात्रा घटा सकते हैं। ये ऊपाय गुर्दे का कार्य-भार कम करते हैं जिससे खून में उपस्थित क्रिएटनीन का लेविल कम होने में मदद मिलती है।
क्रिएटनीन कम करने वाले भोजन में प्रोटीन, फ़ास्फ़ोरस,पोटेशियम,नमक की मात्रा बिल्कुल कम होने पर ध्यान दिया जाता है। जिन भोजन पदार्थों में इन तत्वों की अधिकता हो उनका परहेज करना आवश्यक है।
जब उच्च प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ उपयोग नहीं किये जाएंगे तो मांसपेशियों में कम क्रिएटीन मौजूद रहेगा अत: क्रिएटनीन भी कम बनेगा। किडनी को भी अपशिष्ट पदार्थ को फ़िल्टर करने में कम ताकत लगानी पडेगी जिससे किडनी की तंदुरस्ती में इजाफ़ा होगा। याद रखने योग्य है कि क्रिएटिन के टूटने से ही क्रिएटनीन बनता है। एक और जहां उच्च क्रिएटनीन लेविल गुर्दे की गंभीर विकृति की ओर संकेत करता है वही शरीर में जल की कमी से समस्या और गंभीर हो जाती है। जल की कमी से रक्तगत क्रिएटनीन में वृद्धि होती है। अत: महिलाओं को २४ घंटे में २.५ लिटर तथा पुरुषों को ३.५ लिटर पानी पीने की सलाह दी जाती है। चाय ,काफ़ी में केफ़ीन तत्व ज्यादा होता है जो गुर्दे के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।अत: इनका सर्वथा परित्याग आवश्यक है।
मूत्र प्रणाली में कोई संक्रामक रोग हो जाने से भी रक्तगत क्रिएटनीन बढ सकता है। अत: इस विषय में सावधानी पूर्वक इलाज करवाना चाहिये। उच्च रक्त चाप से गुर्दे को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाओं को नुकसान होता है। इससे भी रक्त गत क्रिएटनीन बढ जाता है। अत: ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने के उपाय करना जरूरी है। नमक ३ ग्राम से ज्यादा हानिकारक है। नियमित २० मिनिट व्यायाम करने और ३ किलोमिटर घूमने से खून में क्रिएटनीन की मात्रा काबू करने में मदद मिलती है।व्यायाम और घूमने के मामले में बिल्कुल आलस्य न करें ।
मधुमेह रोग धीरे -धीरे गुर्दे को नुकसान पहुंचाता रहता है। इसलिये यह रोग भी रक्तगत क्रिएटनीन को बढाने में अपनी भूमिका निर्वाह करता है। खून में शर्करा संतुलित बनाये रखने के उपाय आवश्यक हैं।
प्रोटीन हमारे शरीर के ऊतकों और मांसपेशियों के निर्माण में उपयोग होता है। इससे रोगों के विरुद्ध लडने में भी मदद मिलती है। जब प्रोटीन शारीरिक क्रियाओं के लिये टूटता है तो इससे यूरिया अपशिष्ट पदार्थ बनता है। अकर्मण्य अथवा क्षतिग्रस्त किडनी इस यूरिया को शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती है। खून में यूरिया का स्तर बढने पर क्रिएटनीन भी बढेगा । मांस में और अंडों में किडनी के लिये सबसे ज्यादा हानिकारक प्रोटीन पाया जाता है।अत: किडनी रोगी को ये भोजन पदार्थ नहीं लेना चाहिये। प्रोटीन की पूर्ति थोडी मात्रा में दालो के माध्यम से कर सकते हैं।
* किडनी के सुचारु कार्य नहीं करने से खून में पोटेशियम का लेविल बहुत ज्यादा बढ जाता है। पोटेशियम की अधिकता से अचानक हार्ट अटेक होने की सम्भावना बढ जाती है। अगर लेबोरेटरी जांच में रक्त में पोटेशियम बढा हुआ पाया जाए तो कम पोटेशियम वाला खाना लेना चाहिये।
* पाईनेपल,शिमला मिर्च,पत्ता गोभी,फूल गोभी,लहसुन,प्याज,अंडे की सफेदी,जेतुन का तेल,मछली,, खीरा ककडी,गाजर,सेव,लाल अंगूर और सफ़ेद चावल कम पोटेशियम वाले भोजन पदार्थ हैं ।
* केला,तरबूज,किशमिस,पालक टमाटर, आलू बुखारा ,भूरे चावल,संतरा,आलू का उपयोग वर्जित है।इनमे अधिक पोटेशियम पाया जाता है।लेकिन अगर पोटेशियम वांछित स्तर का हो तो इन फ़लों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
क्रोनिक किडनी फेल्योर के कारणों का उपचार -
*डायबीटीज और उच्च रक्तचाप का उचित इलाज |
*पेशाब में इन्फेक्शन का सही उपचार|
*किडनी में पथरी का हर्बल उपचार जो गुर्दे की कार्यक्षमता बढाता हो|
एलौपथिक पद्धति में किडनी फेल्योर के लिए कोई स्पेसिफिक मेडिसिन नहीं है और शुगर और ब्लड प्रेशर नियंत्रण पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं|
* दामोदर चिकित्सालय की हर्बल औषधि क्रोनिक किडनी फेल्योर में वरदान तुल्य सिद्ध हो सकती है| बढ़ा हुआ क्रिएटनिन धीरे धीरे नीचे आने लगता है | हाँ , हिमोग्लोबिन बढाने के लिए एरिथ्रोपोएटिन इंजेक्शन की मदद ली जा सकती है|
किडनी के मरीज क्या खाएँ-
रोगी की किडनी कितने प्रतिशत काम रही है, उसी के हिसाब से उसे खाना दिया जाए तो किडनी की आगे और खराब होने से रोका जा सकता है :
1. प्रोटीन : 1 ग्राम प्रोटीन/किलो मरीज के वजन के हिसाब से लिया जा सकता है। नॉनवेज खाने वाले 1 अंडा, 30 ग्राम मछली, 30 ग्राम चिकन और वेज लोग 30 ग्राम पनीर, 1 कप दूध, 1/2 कप दही, 30 ग्राम दाल
2. कैलरी : दिन भर में 7-10 सर्विंग कार्बोहाइड्रेट्स की ले सकते हैं। 1 सर्विंग बराबर होती है - 1 स्लाइस ब्रेड, 1/2 कप चावल या 1/2 कप पास्ता।
3. विटामिन : दिन भर में 2 फल और 1 कप सब्जी लें।
4. सोडियम : एक दिन में 1/4 छोटे चम्मच से ज्यादा नमक न लें। अगर खाने में नमक कम लगे तो नीबू, इलाइची, तुलसी आदि का इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने के लिए करें। पैकेटबंद चीजें जैसे कि सॉस, आचार, चीज़, चिप्स, नमकीन आदि न लें।
5. फॉसफोरस : दूध, दूध से बनी चीजें, मछली, अंडा, मीट, बीन्स, नट्स आदि फॉसफोरस से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें सीमित मात्रा में ही लें।
6. कैल्शियम : दूध, दही, पनीर, फल और सब्जियां उचित मात्रा में लें। ज्यादा कैल्शियम किडनी में पथरी का कारण बन सकता है।
7. पोटैशियम : फल, सब्जियां, दूध, दही, मछली, अंडा, मीट में पोटैशियम काफी होता है। इनकी ज्यादा मात्रा किडनी पर बुरा असर डालती है। इसके लिए केला, संतरा, पपीता, अनार, किशमिश, भिंडी, पालक, टमाटर, मटर न लें। सेब, अंगूर, अनन्नास, तरबूज़, गोभी ,खीरा , मूली, गाजर ले सकते हैं।
8. फैट : खाना बनाने के लिए वेजिटेबल या ऑलिव आईल का ही इस्तेमाल करें। बटर, घी और तली -भुनी चीजें न लें। फुल क्रीम दूध की जगह स्किम्ड दूध ही लें।
9. तरल चीजें : शुरू में जब किडनी थोड़ी ही खराब होती है तब सामान्य मात्रा में तरल चीजें ली जा सकती हैं, पर जब किडनी काम करना कम कर दे तो तरल चीजों की मात्रा का ध्यान रखें। सोडा, जूस, शराब आदि न लें। किडनी की हालत देखते हुए पूरे दिन में 5-7 कप तरल चीजें ले सकते हैं।
10. सही समय पर उचित मात्रा में जितना खाएं, पौष्टिक खाएं।
11. अंकुरित मूंग किडनी खराब रोगी के लिए उत्तम आहार है| अंकुरित मूंग को भली प्रकार उबालकर जीवाणु रहित कर लेना चाहिए
यव (जौ) के क्या-क्या फायदे है - WHAT ARE THE BENEFITS OF MALT (BARLEY)
जौ को यव और धान्यराज भी कहा जाता है यह सभी अनाजों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है यह एकमात्र बुद्धि वर्धक अनाज है किसी भी रोग के लिए यह निरापद है इसका सेवन बिना झिझके किसी भी रोग के लिए निरापद रूप से किया जा सकता है
यह बहुत कम परिश्रम से ही बंजर या पथरीली भूमि पर भी उग जाता है यह वास्तव में अनाज नहीं बल्कि औषधि है भुने हुए जौ के आटे से बना हुआ सत्तू शीतल और पौष्टिक पेय होता है मीठा और ठंडा सत्तू गर्मी के दिनों में पीने से पित्त शांत होता है और शीतलता मिलती है मिश्री मिलाकर पीने से अधिक शीतलता मिलती है
प्रयोग-
जौ रक्तशोधक होता है इससे त्वचा भी सुन्दर हो जाती है जौ के आटे को खाने से ही नहीं वरन लगाने से भी चेहरे की सुन्दरता निखरती है बारीक जौ के आटे में खीरे और टमाटर का रस मिलाकर चेहरे पर लेप करें कुछ देर ऐसे ही रहने दें बाद में धो लें ऐसा कुछ दिन करने से चेहरा खिल उठेगा -
जौ खांसी के लिए अचूक दवाई है जौ को जलाकर इसकी राख 1- 1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सवेरे शाम चाटने से खांसी बिलकुल ठीक हो जाती है इसके पौधे की राख को भी खांसी के लिए 1-1 ग्राम की मात्रा में लिया जा सकता है श्वास रोगों में भी यह राख शहद के साथ ली जा सकती है
यदि इस राख को 1-1 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लिया जाए तो पेशाब खुलकर आता है और किडनी की समस्या ठीक हो जाती है
शुगर की बीमारी में यह अनाज लिया जाए तो दवा का काम करता है इस बीमारी के उपचार के लिए प्रयोग-
जौ - 10 ग्राम
तिल - 5 ग्राम
मेथी दाना - 3 ग्राम
उपरोक्त सभी सामग्री को दरदरा कूटकर मिट्टी के बर्तन में रात को भिगो दें और सवेरे-सवेरे इस पानी को छानकर पी लें इससे गर्मी भी शांत होगी और पेशाब की जलन भी खत्म हो जाएगी शुगर की बीमारी में जौ चने और गेहूँ की मिस्सी रोटी खानी चाहिए इससे सभी खनिज , विटामिन, कैल्शियम और लौह तत्व भी भरपूर मात्रा में मिल जाते हैं इस रोटी को खाने से कमजोरी भी दूर होती है
इसका दलिया रात को मिटटी के बर्तन में पानी में भिगो दें सवेरे इसका पानी निथारकर पीने से शीतलता व शक्ति मिलती है बचे हुए दलिए को ऐसे ही पका लें या फिर खीर बना लें इससे ताकत बढती है
यवक्षार या जौ का क्षार हल्के मटमैले रंग का होता है यह बहुत सी बीमारियों के लिए रामबाण है इसे बनाना बहुत आसान है
आधे पके हुए जौ के पौधों को उखाडकर उनके टुकड़े कर लें इसको जलाकर राख बना लें राख में पानी मिलाकर अच्छी तरह से हिलाएं 10-15 मिनट के लिए रख दें फिर से हिलाएं और 10-15 मिनट तक रख दें ऐसा चार पांच बार करें फिर ऊपर के तिनके निकाल कर पानी को निथारकर फेंक दें नीचे के बचे हुए सफ़ेद रंग के गाढे द्रव को धीमी आंच पर धीरे धीरे पकाएं जब यह काफी गाढ़ा हो जाए तो इसे सुखा लें यही मटमैला सा पाऊडर यवक्षार कहलाता है इसे जौ के बीजों को जलाकर भी प्राप्त कर सकते हैं
यवक्षार की 1-2 ग्राम मात्रा शहद के साथ लेने से खांसी और अस्थमा जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है
यवक्षार को पानी के साथ लेने पर पथरी और किडनी की समस्याओं से राहत मिलती है
भूख कम लगती हो तो आधा ग्राम यवक्षार रोटी में रखकर खाएं यह कई तरह की दवाओं में प्रयोग में लाया जाता है
इस अनाज को पवित्र माना गया है हवन में में यव (जौ ) और तिल डाले जाते हैं इससे वातावरण के बैक्टीरिया आदि समाप्त हो जाते हैं
इसे खाने से शरीर के विजातीय तत्व खत्म हो जाते हैं या बाहर निकल जाते हैं
आजकल के प्रदूषित वातावरण में प्रदूषित खाद्यान्नों का प्रभाव कम करना हो तो जौ का सेवन अवश्य ही करना चाहिए -
इसके निरंतर सेवन से कई प्रकार की अंग्रेजी दवाइयां लेने से भी बचा जा सकता है
बालों को झड़ने से रोकने के घरेलू उपाय-BALO KO JHDNE SE ROKNE KE GHRELU UPAYE
आज कल बाल झड़ने कि समस्या आम हो गयी है है महिलाये हो या पुरुष बाल झड़ने कि समस्या दोनों को ही हो रही है आजकल खराब खान-पान, प्रदूषित वातावरण, हार्मोनल के बदलाव आदि के कारण कम उम्र में ही बाल झड़ने की समस्या से परेशान हो जाते हैं यह समस्या आम बात हो गई है इसे पूरी तरह तो छुटकारा नहीं दिला सकते लेकिन कुछ घरेलू उपये करके इसे रोक सकते है आज कुछ ऐसे ही घरेलू उपये बताने जा रहे है-
1- कुछ लोग बाल मे बार बार कंघी करते है ऐसा करने से बाल झड़ने लगते है ज्यदा कंघी करना भी हानिकारक है इसलिए आप दिन में एक या दो तीन बार ही कंघी करे इससे ज्यदा नहीं और वेसे भी बाल है तो सब है।
2- बालों को झड़ने से बचाने के लिए आपको इन्हे धूप से बचना चाहिए ज्यदा धुप में रहने से भी बालो को परेशानी होती है यदि आप धुप में निकलते है तो छाता लेकर निकले और अपने बालो को ज्यदा गरम पानी से न धोये।
3- मेथी के बीज में काफी शक्तिशाली हॉर्मोन के गुण होते हैं इनमें निकोटिनिक एसिड और प्रोटीन के गुण होते हैं जो बालों को शक्ति देते हैं मेथी के बीजों को रात भर पानी में भिगोकर रखें और सुबह उसका एक महीन पेस्ट बना लें फिर इस पेस्ट को तीस मिनिट बालो में लागने से काफी आरम मिलेगा और इसे एक महिना करके देखे फायदा होगा ।
4- आजकल हम जंक फुड ज्यदा पंसद करते है जो कि हमारे बालो के लिए हानिकारक है हमें ज्यदा से ज्यदा प्रोटीन, आइरन, जिंक,सलफर,विटामिन सी, के अलावा विटामिन ब से युक्त खध पदार्थ भरपूर मात्रा मे लेने चाहिए।
5- हमे बालो में हॉट रोल्स वा ब्लू ड्राइयर या आइरन के ज़्यादा इस्तेमाल करने से भी बाल डॅमेज हो जाते है इसलिए कोशिश करे की बालों को प्राकृतिक ही रहने दे और बालों पर बहूत ज़्यादा एक्सपेरिमेंट करने से बचे बालों को सही पोषण ना मिलने से भी बाल झड़ने लगते है ऐसे मे बालों को झड़ने से बचाने के लिए समय समय पर बालों मे मेहन्दी लगानी चाहिए या फिर बालों को पोषण देने के लिए दही भी लगा सकते है।
6- यदि आपको बालो के झड़ने से रोकना है तो आंवला सबसे अच्छा उपयोग है आंवला बालों को जड़ से मजबूत बनाता है और यह प्राकृतिक रूप से बालों को गिरने से रोकता है आप कुछ सूखें आंवले लीजिए और उन्हें नारियल के तेल में मिक्स करके उबालें तब तक इसे उबालें जब तक इसका रंग काला ना हो जाए फिर इसे ठंड़ा करके बालों के सिरे से लेकर जड़ों तक लगाएं नियमित एैसा करने से आपको इसका फायदा मिलेगा बाल झड़ना जरूर रूकेगा।
7- हम रोज तो तेल लगा नहीं सकते लेकिन हफ्ते में एक दिन तेल से बालो कि मालिश जरुर करनी चहिये इसे बाल टूटना बंद हो जाता है यदि आप गुनगुने तेल से बालो कि मालिश करते है तो और ही फयदा होता है नारियल के तेल से मालिश करने से और काफी फयदा होता है।
8- बालों पर कलर करने से भी बाल खराब हो जाते है और जल्दी टूटने लगते है इसलिए ज्यदा से ज्यदा इनका उपयोग नहीं करना चहिये अगर लगाना ही है तो आवंला और सिकाकई का उपयोग करे इसे बाल नहीं टूटेगे।
9- दही एक बहुत ही अचूक घरेलू नुस्खा है दही से बालों को पोषण मिलता है। बालों को धोने से कम से कम आधा घंटा पहले बालों में दही लगाइये और जब यह पूरी तरह सूख जाएं तो उसे पानी से धो लीजिए। दही में नींबू का रस मिलाकर भी प्रयोग किया जा सकता है नींबू के रस को दही में मिलाकर पेस्ट बना लीजिए। नहाने से पहले इस पेस्ट को बालों में लगाइए, तीस(३०) मिनट बाद बालों को धुल लीजिए। बालों का गिरना कम हो जाएगा।
10- नारियल के दूध में प्रोटीन होता है। इससे बाल बढ़ते हैं और बालों का झड़ना रुकता है। तेज़ परिणामों के लिए नारियल के दूध को बालों में लगाएं नारियल को पीस कर उसका दूध निकाल और इसे बालो कि जडो में लगाये इससे बाल टूटना बंद हो जयेगा।
आँख आना / Conjunctivitis
आँख आना, जिसे ‘पिंक आई’, ‘कंजंक्टिवाइटिस’ या “ नेत्र शोथ” भी कहा जाता है। आँख की बाहरी पर्त कंजंक्टिवा और पलक की अंदरूनी सतह के संक्रमण को नेत्र शोथ कहते हैं। यह प्रायः एलर्जी या संक्रमण (सामान्यतः वायरस से लेकिन कभी-कभी बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण) द्वारा होता है।
कंजंक्टिवाइटिस को बोलचाल की भाषा में ‘आँख आना’ कहा जाता है। इसकी वजह से आँखें लाल, सूजन युक्त, चिपचिपी [कीचड़युक्त] होने के साथ-साथ उसमें तेज चुभन भी होती है।
शहद :
नमक को शहद के साथ मिलाकर सुबह शाम आंखोँ मेँ लगाने से आपको आँखों की समस्याओं से छुटकारा मिलेगा।
जायफल :
जायफल को पीसकर दूध मेँ मिलाकर आंखोँ मेँ लगाने से, आपको आंखोँ से संबंधित सभी बिमारियों से तुरंत राहत मिलता है।
हल्दी :
हल्दी को पानी में उबालकर छान लें, फिर इसे आंखों में बार-बार बूंदों की तरह डालने से आंखों का दर्द कम होता है। इससे आंखों में कीचड़ आना और आंखों का लाल होना आदि रोग समाप्त हो जाते हैं। इसके लिए आप कपड़ें को हल्दी से रंग कर जब आँख आये तो इस कपड़े का प्रयोग कर सकते है। उस समय इस कपडे़ से आंखों को साफ करने से फायदा होता है।
मुलहठी :
मुलहठी को पानी मेँ भिगो देँ फिर हर दो घंटे के बाद उस पानी मेँ रूई डुबोकर आंखोँ पर रखने से आंखोँ की जलन और दर्द कम होती है।
धनिया :
धनिये का काढ़ा तैयार करके अच्छी तरह से छान लें। अब इस काढ़े को बूंद-बूंद करके हर 2-3 घंटों में आंखों में डालें। इससे आंखों को आराम मिलता है। इस काढ़े को आंखों में डालने की शुरुआत करने से पहले आंखों में एक बूंद एरण्ड तेल (कैस्टर आयल) डाल लें। यह आंख आने और आंखों के दर्द की बहुत लाभकारी दवा है।
बेर :
बेर की गुठली को पीसकर गर्म पानी से मिलाकर, अच्छी तरह से छान लें, फिर इसे आंखों में डालने से आँख आना और आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
आंवला :
आंवले का रस निकालकर उसे किसी कपडे़ में छान लें। इस रस को बूंद-बूंद करके आंखों में डालने से आंखों का लाल होना और आंखों की जलन जैसी समस्याओं से तुरंत निजात मिलता है।
त्रिफला :
त्रिफला का चूर्ण पानी में भिगों दें। फिर उस पानी को अच्छी तरह से छानकर आंखों पर छींटे मारकर आंखों को दिन में 4 से 5 बार धोने से आंखों के रोगों में लाभ होता है।
बबूल :
बबूल की पत्तियों को पीसकर टिकिया बना लें और रात के समय आंखों पर बांध लें सुबह उठने पर खोल लें। इससे आंखों का लाल होना और आंखों का दर्द आदि रोग दूर हो जायेंगे।
पीले धतूरे :
पीले धतूरे का दूध को गाय के घी के साथ आंखों में लगाने से लाभ होता है। यह दूध हर समय नहीं मिलता इसलिए जब यह दूध मिले तो तब इस दूध को इकट्ठा करके सुखाकर रख लें। इसके बाद जरूरत पड़ने पर इसे गाय के घी में मिलाकर काजल की तरह आंखों में लगाने से आंख आने का रोग दूर होता है।
बेल :
आंख आने पर बेल के पत्तों के रस को सुबह-शाम पिए और उसके पत्तों का लेप बनाकर आँखों के ऊपर रखें। इससे आंखों को आराम मिलता है।
सुहागा :
आंख आने पर सुहागा और फिटकरी को एक साथ पानी में घोल बना लें और फिर इसी पानी से आंख को धोयें और बीच-बीच में बूंद-बूंद करके आई ड्राप्स की तरह प्रयोग करें। इससे बहुत जल्दी लाभ होता है।
बकरी का दूध :
आँख आने या आंखों के लाल होने पर मोथा या नागरमोथा के फल को साफ करके बकरी के दूध में घिसकर आंखों में लगाने से बहुत जल्द आराम होता है।
वेदमुश्क के फूल :
वेदमुश्क के फूलों के रस में कपड़ा भिगोकर, आंखों पर रखने से आंख आना जैसी समस्याओं में लाभ मिलता है।
गुलाबजल :
आंखों को साफ करके गुलाब जल की बूंदें, आंखों में डालने से आंखों से सम्बंधित सारी समस्यायों से निजात मिलता हैं। यदि आपको आंखों में जलन और किरकिरापन (आंखों में कुछ चुभना) मेहसूस हो रहा है तो गुलाबजल डालने से आंखों में आराम मिलता है।
चमेली :
आंख आने पर कदम के रस में चमेली के फूलों को पीसकर आँखों के ऊपर रखने से रोगी को लाभ होता है।
अगस्त के फूल :
अगस्त के फूल और पत्तों का रस, नाक में डालने से आंखों की समस्यायों से छुटकारा मिलता है।
बोरिक एसिड पाउडर:
बोरिक एसिड पाउडर को पानी में मिलाकर, आंखों को कई बार साफ करने से आंखों के अंदर जमा कीचड़ और धूल मिट्टी साफ हो जाती है।
मिश्री :
महात्रिफला और मिश्री को घी में मिलाकर, सुबह-शाम रोगी को देने से गर्मी के कारण उत्पन आंखों में जलन, आंखें ज्यादा लाल हो जाना और रोशनी की ओर देखने से आंखों में जलन होना इत्यादि समस्याएं दूर होती हैं। इसके साथ ही त्रिफला के पानी से आंखों को धोने से भी आराम मिलता है।
फिटकरी :
फिटकरी का टुकड़ा पानी में भिगोकर, उसी पानी से रोजाना 3 से 4 बार आँखों को धोने से लाभ मिलता है।
बरगद :
बरगद का दूध लेकर यदि उसे पैरों के नाखूनों में लगाये तो आंख आना ठीक हो जाता है।
दूध :
मां के दूध की 1-2 बूंदे बच्चे की आंखों में डालने से बच्चों को आंखों के सभी प्रकार के रोगों से लाभ मिलता है।
दूब :
हरी दूब या घास के रस में रूई के टुकड़े को भिगोकर आँखों पर रखने से आंख आना जैसे रोग से छुटकारा मिलता है।
हरड़ :
हरड़ को रात में पानी में भिगोकर रखें। सुबह उस पानी को कपड़े से छानकर आंखों को धोयें। इससे आंखों का लाल होना दूर होता है।
नीम :
नीम के पत्ते और मकोय का रस निकालकर आँखों पर लगाने से आंखों का लाल होना जैसी समस्याएं दूर हो जाती है। नीम के पानी से आंखें धोकर, फिर आंखों में गुलाबजल या फिटकरी के पानी को बूंद बूँद डालें, इससे आपको काफी आराम मिलेगा।
अडूसा :
अड़ूसा के ताजे फूलों को हल्का सा गर्म करके आँखों पर बांधने से आंखों के दर्द होने जैसी समस्या दूर होती है।